तुषार सिंह 'तुषारापात' हिंदी के एक उभरते हुए लेखक हैं जो सोशल मीडिया के अनेक मंचों पे बहुत लोकप्रिय हैं इनके लिखे कई लेख, कहानियाँ, कवितायें और कटाक्ष सभी प्रमुख हिंदी अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं तथा रेडियो fm पर भी कई कार्यक्रमो के लिए आपने लिखा है। कुछ हिंदी फिल्मों के लिए आप स्क्रिप्ट भी लिख रहे हैं। आप इन्हें यहाँ भी पढ़ सकते हैं: https://www.facebook.com/tusharapaat?ref=hl
Sunday 29 November 2015
Saturday 28 November 2015
फेसबुकिया नशा
फेसबुक का नशा इतना है कि पूछिये मत,देखिये ये सच्चा किस्सा-
एक फंक्शन में जाने को मैं और पत्नी जी तैयार हो रहे थे
पत्नी जी -"आप बताइये कि कौन सी साड़ी पहनू ?वरना कहोगे ऐसे कैसे तैयार होके चल रही हो"
मैं -" अरे वो चिकन वाली सफ़ेद और नीली साड़ी है न ,जो कमल की सगाई में तुमने पहनी थी बड़ी जंच रहीं थी उस दिन तुम,ऐसा करो आज वही पहन लो "
पत्नी जी - "पर वो तो राधिका भाभी देख चुकी हैं वो भी आ रही हैं इस पार्टी में,मन ही मन सोचेंगी की मैं साड़ी रिपीट कर रही हूँ"
मैं -"अरे तो कोई नहीं राधिका भाभी को 'ब्लाक' कर देना फिर नहीं देख पाएंगी"
-तुषारापात®™ (जरा मुस्कुराइए)
एक फंक्शन में जाने को मैं और पत्नी जी तैयार हो रहे थे
पत्नी जी -"आप बताइये कि कौन सी साड़ी पहनू ?वरना कहोगे ऐसे कैसे तैयार होके चल रही हो"
मैं -" अरे वो चिकन वाली सफ़ेद और नीली साड़ी है न ,जो कमल की सगाई में तुमने पहनी थी बड़ी जंच रहीं थी उस दिन तुम,ऐसा करो आज वही पहन लो "
पत्नी जी - "पर वो तो राधिका भाभी देख चुकी हैं वो भी आ रही हैं इस पार्टी में,मन ही मन सोचेंगी की मैं साड़ी रिपीट कर रही हूँ"
मैं -"अरे तो कोई नहीं राधिका भाभी को 'ब्लाक' कर देना फिर नहीं देख पाएंगी"
-तुषारापात®™ (जरा मुस्कुराइए)
Friday 20 November 2015
नवम्वर याद आता है
नवम्बर की गुलाबी शाम का
तुम्हारे छूने से
सुर्ख लाल रात हो जाना
याद आता है,
सुरमई बादल में लपटा चाँद
और चाँदिनी रंग की
रिमझिम बारिश का होना
याद आता है,
मखमली काले बादल की ओट में
सितारे का टूट के
चाँद पे ज़ार ज़ार हो जाना
याद आता है
बिजली की चमकती आवाज़ पे
मदहोश पड़े पड़े अचानक
तुम्हारा चौंक के मुझे थामना
याद आता है
चाय की प्याली हाथ में लिए
खिड़की खोल के
तुम पर सूरज फेंकना
याद आता है
चले भी आओ अब
ज़िन्दगी की सफेदी
यादों से रंगीन नहीं होती
बिस्तर की नीली चादर पे
बनाया हमारा इंद्रधनुष
याद आता है ।
-तुषारापात®™
तुम्हारे छूने से
सुर्ख लाल रात हो जाना
याद आता है,
सुरमई बादल में लपटा चाँद
और चाँदिनी रंग की
रिमझिम बारिश का होना
याद आता है,
मखमली काले बादल की ओट में
सितारे का टूट के
चाँद पे ज़ार ज़ार हो जाना
याद आता है
बिजली की चमकती आवाज़ पे
मदहोश पड़े पड़े अचानक
तुम्हारा चौंक के मुझे थामना
याद आता है
चाय की प्याली हाथ में लिए
खिड़की खोल के
तुम पर सूरज फेंकना
याद आता है
चले भी आओ अब
ज़िन्दगी की सफेदी
यादों से रंगीन नहीं होती
बिस्तर की नीली चादर पे
बनाया हमारा इंद्रधनुष
याद आता है ।
-तुषारापात®™
Thursday 19 November 2015
मदिरा मंथन
मदिरा सेवन कर्ता के प्रथम कुछ वर्षों में 100 Pipers बजता है उसे लगता है कि उसका जीवन NO 1 है पर शनेः शनेः उसके जीवन का सूर्य 8PM पे अस्त होने लगता है तब उसकी 'देशी माधुरी' उसका 'सुमिरन करना ऑफ' कर देती है और वो एक असहाय old monk बन के रह जाता है :)
जनहित में जारी -
-तुषारापात®™
जनहित में जारी -
-तुषारापात®™
Wednesday 18 November 2015
लाजवाब
उनके इस जवाब कि "लाजवाब हो तुम" का कोई जवाब नहीं
ख्वाब देखूँ जो कहीं उनका तो सोंचू ये तो कोई ख्वाब नहीं
गिनने चलती हैं मेरी धड़कनें सीने पे रख के हाथ अपना
बढ़ जाएं जो धड़कनें तो कहती हैं इनका कोई हिसाब नहीं
लफ्ज़ लफ्ज़ पढता हूँ तो हर्फ़ हर्फ़ वो खुलती हैं
उसपे ये कहना के जल्दी में पढ़ी जाने वाली मैं किताब नहीं
सुलगती आँखों की छुअन से भाप उठती है शबनमी बदन से
गिरा के आँचल वो कहना उनका के एक तुम ही बेताब नहीं
लाल होंठों के लफ़्ज़ों पे है नुक्ते सा एक काला तिल
एक ग़ज़ल जैसा वो चेहरा जिसपे आज नकाब नहीं
कोरे कागज़ को आहिस्ता से रंगीन किया जाता है
बेसबर होके ग़ज़ल पढ़ना महफ़िल का आदाब नहीं
मीर ने भी कहा और खूब असद भी कह गए उर्दू फ़ारसी में
'तुषार' से कहना उनका मगर हिंदी में तुम्हारा कोई जवाब नहीं
उनके इस जवाब कि "लाजवाब हो तुम" का कोई जवाब नहीं.....
-तुषारापात®™
© tusharapaat.blogspot.com
ख्वाब देखूँ जो कहीं उनका तो सोंचू ये तो कोई ख्वाब नहीं
गिनने चलती हैं मेरी धड़कनें सीने पे रख के हाथ अपना
बढ़ जाएं जो धड़कनें तो कहती हैं इनका कोई हिसाब नहीं
लफ्ज़ लफ्ज़ पढता हूँ तो हर्फ़ हर्फ़ वो खुलती हैं
उसपे ये कहना के जल्दी में पढ़ी जाने वाली मैं किताब नहीं
सुलगती आँखों की छुअन से भाप उठती है शबनमी बदन से
गिरा के आँचल वो कहना उनका के एक तुम ही बेताब नहीं
लाल होंठों के लफ़्ज़ों पे है नुक्ते सा एक काला तिल
एक ग़ज़ल जैसा वो चेहरा जिसपे आज नकाब नहीं
कोरे कागज़ को आहिस्ता से रंगीन किया जाता है
बेसबर होके ग़ज़ल पढ़ना महफ़िल का आदाब नहीं
मीर ने भी कहा और खूब असद भी कह गए उर्दू फ़ारसी में
'तुषार' से कहना उनका मगर हिंदी में तुम्हारा कोई जवाब नहीं
उनके इस जवाब कि "लाजवाब हो तुम" का कोई जवाब नहीं.....
-तुषारापात®™
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Monday 16 November 2015
चोर
दिन के वक्त जब तुम मिली थीं
तो थोड़ा सा तुमको चुरा लाया था
तुम्हारी खुश्बू तुम्हारा अक्स
चाय की प्याली से टकराती तुम्हारी अँगूठी की खनक
सुरमई आँखों में तुम्हारी डूबते दो सूरजों की चमक
घर आकर चोरी का ये सारा सामान
बंद आँखों से देख रहा था कि
पलकों के पल्लों पे कोई दस्तक देता है
खोलकर देखता हूँ तो
अपनी वर्दी में कई सितारे टाँकें
रात एक इन्स्पेक्टर की तरह
तुम्हारे ख्वाबों की हथकड़ी लिए खड़ी है
चाँद के पुलिस स्टेशन में
चोरी की रपट तुमने तो नहीं लिखवाई ?
-तुषारापात®™
तो थोड़ा सा तुमको चुरा लाया था
तुम्हारी खुश्बू तुम्हारा अक्स
चाय की प्याली से टकराती तुम्हारी अँगूठी की खनक
सुरमई आँखों में तुम्हारी डूबते दो सूरजों की चमक
घर आकर चोरी का ये सारा सामान
बंद आँखों से देख रहा था कि
पलकों के पल्लों पे कोई दस्तक देता है
खोलकर देखता हूँ तो
अपनी वर्दी में कई सितारे टाँकें
रात एक इन्स्पेक्टर की तरह
तुम्हारे ख्वाबों की हथकड़ी लिए खड़ी है
चाँद के पुलिस स्टेशन में
चोरी की रपट तुमने तो नहीं लिखवाई ?
-तुषारापात®™
Sunday 15 November 2015
बुद्ध
कई किस्से सुनाता रहा
वो बूढ़ा मुझे
शायद कई दिनों से तरस रहा था
किसी से दो शब्द बतियाने को/
दवा की दो पुड़ियों से
बीमार का तीमारदार बन गया मैं
शर्मा रहा था भूख और मर्ज में से
किसी एक को पहले बताने को/
और लावारिस मुर्दे को फूँक आया मैं
शायद हिन्दू ही था वो
अब समझा क्यों कहा जाता था
कलाई पे नाम अपना गुदवाने को/
एक बूढ़े
एक बीमार और
एक मुर्दे के साथ
गुरु ने कहा था मुझे एक दिन बिताने को/
लेकिन मैं 'बुद्ध' नहीं बन पाया
चलो अच्छा ही हुआ
बेवजह क्यूँ जाता मैं
एक नया मजहब बनाने को/
-तुषारापात®™
वो बूढ़ा मुझे
शायद कई दिनों से तरस रहा था
किसी से दो शब्द बतियाने को/
दवा की दो पुड़ियों से
बीमार का तीमारदार बन गया मैं
शर्मा रहा था भूख और मर्ज में से
किसी एक को पहले बताने को/
और लावारिस मुर्दे को फूँक आया मैं
शायद हिन्दू ही था वो
अब समझा क्यों कहा जाता था
कलाई पे नाम अपना गुदवाने को/
एक बूढ़े
एक बीमार और
एक मुर्दे के साथ
गुरु ने कहा था मुझे एक दिन बिताने को/
लेकिन मैं 'बुद्ध' नहीं बन पाया
चलो अच्छा ही हुआ
बेवजह क्यूँ जाता मैं
एक नया मजहब बनाने को/
-तुषारापात®™
Tuesday 10 November 2015
ताश के आध्यात्मिक पत्ते
दिवाली का त्यौहार और ताश के खेल का कॉम्बिनेशन तो सभी रात्रि जागरण करने वाले बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। ताश के बदनाम पत्तों को देखकर अचानक ख्याल आया की इसमें तो पूरी दुनिया का ज्ञान छुपा है।
ताश के 52 पत्तों की एक अपनी पूरी दुनिया है जो हमारी दुनिया से बहुत मिलती जुलती है बादशाह और बेगम,हमारी दुनिया के शाषन करने वालों जैसे हैं और गुलाम कहने को ही बस गुलाम है वास्तव में वो 10 पत्तों को अपने नीचे दबा के रखता है और व्यवस्था बनाये रहता है जैसे हमारे IAS या PCS अधिकारी आदि ।बाकी 10 से 2 तक के पत्ते आम इंसानों जैसे अपनी अपनी हैसियत अनुसार रहते हैं।
अब बात करते हैं इक्के की कि वो क्या है ? इक्के की हैसियत बादशाह के भी ऊपर है और दुक्की के नीचे भी है तो उसे क्या कहा जा सकता ? मेरे हिसाब से इक्का उस ईश्वर या उपरवाले का प्रतीक है जिसकी हम अलग अलग रूप में इबादत करते हैं,उसे सबसे बड़ी शक्ति भी मानते हैं और सबका आधार भी,यानि बादशाह के भी ऊपर और दुक्की के नीचे का भी ,ताश का पहला और आखिरी पत्ता भी इक्का ही है।
पत्तों के अलग रंग और प्रकार अलग अलग मजहब और रहन सहन को दिखाते हैं जिनके अपने अपने ख़ुदा हैं (हुकुम,ईंट,चिड़ी और पान और उनके इक्के),रूप रंग में अलग होते हुए भी मूल रूप से सब एक ही व्यवस्था का पालन करते हैं।
अच्छा आप सबने ये भी देखा होगा की ताश की गड्डी में दो या तीन जोकर भी मिलते हैं जो आमतौर पे खेल में काम नहीं आते और गड्डी की डिब्बी में बेकार पड़े रहते हैं और हम उन्हें भूल भी जाते हैं,हाँ जब कोई पत्ता गुम हो जाता है और पूरी गड्डी बेकार हो सकती है तब उनका इस्तेमाल होता है,अब सवाल उठता है उन्हें क्या नाम दूं फिर अचानक ख्याल आया की ये शायद उस ब्रह्म शक्ति उस सबसे बड़ी ताकत को दिखाते हैं जिन्हें हम जानते भी नहीं क्यूंकि इक्के तो हमारी कल्पना के खुदा हुए पर ये जोकर वास्तविक सर्वोच्च शक्ति के अवतार के रूप में आते हैं जब गड्डी यानि संसार खतरे में होता है।
और जनाब जरा गौर से देखिएगा,सारे पत्तों का असली रंग हम माया में पड़े लोगों की तरह हल्का पड़ जाता है पर इन जोकरों का रंग वैसा ही पाएंगे जैसी नई गड्डी के पत्तों का होता है
जाइये देखिये रंग जाँचिये और हाँ मुझे बताइएगा जरुर ,इस गड्डी का कौनसा ताश का पत्ता आपसे मिलता है ?
(वैधानिक चेतावनी:- जुआ खेलना आप और समाज दोनों के लिए हानिकारक है।)
-तुषारापात®™
ताश के 52 पत्तों की एक अपनी पूरी दुनिया है जो हमारी दुनिया से बहुत मिलती जुलती है बादशाह और बेगम,हमारी दुनिया के शाषन करने वालों जैसे हैं और गुलाम कहने को ही बस गुलाम है वास्तव में वो 10 पत्तों को अपने नीचे दबा के रखता है और व्यवस्था बनाये रहता है जैसे हमारे IAS या PCS अधिकारी आदि ।बाकी 10 से 2 तक के पत्ते आम इंसानों जैसे अपनी अपनी हैसियत अनुसार रहते हैं।
अब बात करते हैं इक्के की कि वो क्या है ? इक्के की हैसियत बादशाह के भी ऊपर है और दुक्की के नीचे भी है तो उसे क्या कहा जा सकता ? मेरे हिसाब से इक्का उस ईश्वर या उपरवाले का प्रतीक है जिसकी हम अलग अलग रूप में इबादत करते हैं,उसे सबसे बड़ी शक्ति भी मानते हैं और सबका आधार भी,यानि बादशाह के भी ऊपर और दुक्की के नीचे का भी ,ताश का पहला और आखिरी पत्ता भी इक्का ही है।
पत्तों के अलग रंग और प्रकार अलग अलग मजहब और रहन सहन को दिखाते हैं जिनके अपने अपने ख़ुदा हैं (हुकुम,ईंट,चिड़ी और पान और उनके इक्के),रूप रंग में अलग होते हुए भी मूल रूप से सब एक ही व्यवस्था का पालन करते हैं।
अच्छा आप सबने ये भी देखा होगा की ताश की गड्डी में दो या तीन जोकर भी मिलते हैं जो आमतौर पे खेल में काम नहीं आते और गड्डी की डिब्बी में बेकार पड़े रहते हैं और हम उन्हें भूल भी जाते हैं,हाँ जब कोई पत्ता गुम हो जाता है और पूरी गड्डी बेकार हो सकती है तब उनका इस्तेमाल होता है,अब सवाल उठता है उन्हें क्या नाम दूं फिर अचानक ख्याल आया की ये शायद उस ब्रह्म शक्ति उस सबसे बड़ी ताकत को दिखाते हैं जिन्हें हम जानते भी नहीं क्यूंकि इक्के तो हमारी कल्पना के खुदा हुए पर ये जोकर वास्तविक सर्वोच्च शक्ति के अवतार के रूप में आते हैं जब गड्डी यानि संसार खतरे में होता है।
और जनाब जरा गौर से देखिएगा,सारे पत्तों का असली रंग हम माया में पड़े लोगों की तरह हल्का पड़ जाता है पर इन जोकरों का रंग वैसा ही पाएंगे जैसी नई गड्डी के पत्तों का होता है
जाइये देखिये रंग जाँचिये और हाँ मुझे बताइएगा जरुर ,इस गड्डी का कौनसा ताश का पत्ता आपसे मिलता है ?
(वैधानिक चेतावनी:- जुआ खेलना आप और समाज दोनों के लिए हानिकारक है।)
-तुषारापात®™
Monday 9 November 2015
नया कटोरा और धनतेरस
के ये सोचकर/जो आज खरीदे बर्तन/खुदा उसको बरकत देता है
नुक्कड़ का/एक भिखारी/हर धनतेरस/नया कटोरा खरीद लेता है
-तुषारापात®™
नुक्कड़ का/एक भिखारी/हर धनतेरस/नया कटोरा खरीद लेता है
-तुषारापात®™
Sunday 8 November 2015
बिहार चुनाव
सूरज जब दीपक बनने का प्रयास करता है तो लालटेन से पराजित होता है
इति सिद्धम्
-तुषारापात®™
इति सिद्धम्
-तुषारापात®™
Friday 6 November 2015
दिवाली की सफाई
दिवाली आने वाली है,बचपन में तो त्यौहार का मतलब नए नए कपड़े, मिठाई और पटाखों का मिलना भर होता था,10 दिन पहले से रोज माँ से पूछना कब है दिवाली,कब है दिवाली ?
ताऊ जी और दादी को देखता था तो उनके लिए दिवाली का त्यौहार मतलब पूजन,लक्ष्मी पूजा की तैयारी वो बड़ी जोर शोर से किया करते थे।
खैर मैं अब न उतना छोटा रहा और न ही ताऊ जी के जितना बड़ा हो पाया हूँ तो उम्र के इस मुकाम पे मेरे लिए दिवाली का मतलब है घर की सफाई, हाँ भाई दिवाली पे सबसे ज्यादा मजा आता है पूरे घर को साफ़ करने में और वो भी पत्नी जी के special comments and guidelines के साथ,
तो साहब सबसे पहले बारी आती है उस जरुरी सामान की जिसे हर बार की सफाई के बाद सहेज के इसलिए रख लिया जाता है की वो कभी आगे काम आएगा ( जो शायद ही कभी काम आता है ) और हाँ अभी उसे हम कबाड़ नहीं कह सकते क्यूंकि अभी वो भविष्य में कभी काम आ सकने वाले सामान की स्थिति में है ,हर बार की तरह इस बार भी हम उसमे से कुछ सामान छाँट के निकाल देते हैं मतलब उसे कबाड़ घोषित कर कबाड़ी की राह देखते हैं और बाकी सामान को बड़ी अच्छी तरह झाड़ पोछ के अगली बार की दिवाली की सफाई में फेंकने के लिए रख देते हैं ।
भई हमारी आदत है हम कोई नयी चीज़ इसलिए इस्तमाल नहीं करते कि इस्तमाल करने से वो पुरानी हो जाएगी इसलिए उसे रखे रहते हैं फिर जब रखे रखे वो पुरानी हो जाती है तो उसे कबाड़ के रूप में कभी आँगन तो कभी दुछत्ती पे डाल देते हैं कि 5 साल तो काम आई नहीं पर आगे शायद कभी काम आये, फिर उसके साथ वही होता है जो ऊपर लिखा है ।
हम सोफा हो या साईकिल की गद्दी पहले तो मनपसंद रंग की बड़ा सर खपा के पसंद करते हैं फिर एक गन्दा सा कवर लाकर उसे ढके रहते हैं और तब तक ढके रहते हैं जब तक की अन्दर वाली गद्दी फट नहीं जाती मजाल है कि कभी अन्दर की गद्दी का असली रूप रंग कोई देख पाए।
हमारे आपके सबके घरों में ऐसे सामान भरे पड़े हैं जो कभी कोई काम नहीं आते पर हम मोह नहीं छोड़ पाते और उसे रखे रहते हैं
अरे भई हटाइए ऐसे सामान को ,बहुतों के वो बहुत काम आ सकता है उन्हें दे दीजिये और उस सामान की अच्छी हालत में दीजिये नाकि घर में रखे रखेे जब ख़राब हो जाये तब आप उसे किसी को दें और वो किसी के काम न आ सके,उसे कबाड़ न बनने दें ऐसा करके आप किसी की दिवाली खुशियों से भर सकते हैं
एक बात कहूँ दिवाली न धन की पूजा है,न पटाखों का शोर ,न रौशनी की सजावट और न ही मिठाइयों की लज्जत,दिवाली तो है सफाई का त्यौहार
मन की सफाई का और विचारों की सफाई का और ज्ञान रूपी लक्ष्मी का स्वागत करने का
तो इस दिवाली जलन,कुढ़न,लालच आदि के पटाखे फोड़तें हैं और कुत्सित विचारों को जलाकर खुद की सफाई करते हैं और सदविचारों के दियों की रौशनी में दिवाली मनाते हैं देखिये फिर कितना आनंद मिलता है।
(पिछले वर्ष fm रेनबो पर मेरा ये लेख RJ aparajita द्वारा प्रसारित हुआ था हमेशा की तरह डेट मुझे याद नहीं है पर पिछली दिवाली के कुछ दिन पहले की बात है )
- तुषारापात®™
© tusharapaat.blogspot.com
ताऊ जी और दादी को देखता था तो उनके लिए दिवाली का त्यौहार मतलब पूजन,लक्ष्मी पूजा की तैयारी वो बड़ी जोर शोर से किया करते थे।
खैर मैं अब न उतना छोटा रहा और न ही ताऊ जी के जितना बड़ा हो पाया हूँ तो उम्र के इस मुकाम पे मेरे लिए दिवाली का मतलब है घर की सफाई, हाँ भाई दिवाली पे सबसे ज्यादा मजा आता है पूरे घर को साफ़ करने में और वो भी पत्नी जी के special comments and guidelines के साथ,
तो साहब सबसे पहले बारी आती है उस जरुरी सामान की जिसे हर बार की सफाई के बाद सहेज के इसलिए रख लिया जाता है की वो कभी आगे काम आएगा ( जो शायद ही कभी काम आता है ) और हाँ अभी उसे हम कबाड़ नहीं कह सकते क्यूंकि अभी वो भविष्य में कभी काम आ सकने वाले सामान की स्थिति में है ,हर बार की तरह इस बार भी हम उसमे से कुछ सामान छाँट के निकाल देते हैं मतलब उसे कबाड़ घोषित कर कबाड़ी की राह देखते हैं और बाकी सामान को बड़ी अच्छी तरह झाड़ पोछ के अगली बार की दिवाली की सफाई में फेंकने के लिए रख देते हैं ।
भई हमारी आदत है हम कोई नयी चीज़ इसलिए इस्तमाल नहीं करते कि इस्तमाल करने से वो पुरानी हो जाएगी इसलिए उसे रखे रहते हैं फिर जब रखे रखे वो पुरानी हो जाती है तो उसे कबाड़ के रूप में कभी आँगन तो कभी दुछत्ती पे डाल देते हैं कि 5 साल तो काम आई नहीं पर आगे शायद कभी काम आये, फिर उसके साथ वही होता है जो ऊपर लिखा है ।
हम सोफा हो या साईकिल की गद्दी पहले तो मनपसंद रंग की बड़ा सर खपा के पसंद करते हैं फिर एक गन्दा सा कवर लाकर उसे ढके रहते हैं और तब तक ढके रहते हैं जब तक की अन्दर वाली गद्दी फट नहीं जाती मजाल है कि कभी अन्दर की गद्दी का असली रूप रंग कोई देख पाए।
हमारे आपके सबके घरों में ऐसे सामान भरे पड़े हैं जो कभी कोई काम नहीं आते पर हम मोह नहीं छोड़ पाते और उसे रखे रहते हैं
अरे भई हटाइए ऐसे सामान को ,बहुतों के वो बहुत काम आ सकता है उन्हें दे दीजिये और उस सामान की अच्छी हालत में दीजिये नाकि घर में रखे रखेे जब ख़राब हो जाये तब आप उसे किसी को दें और वो किसी के काम न आ सके,उसे कबाड़ न बनने दें ऐसा करके आप किसी की दिवाली खुशियों से भर सकते हैं
एक बात कहूँ दिवाली न धन की पूजा है,न पटाखों का शोर ,न रौशनी की सजावट और न ही मिठाइयों की लज्जत,दिवाली तो है सफाई का त्यौहार
मन की सफाई का और विचारों की सफाई का और ज्ञान रूपी लक्ष्मी का स्वागत करने का
तो इस दिवाली जलन,कुढ़न,लालच आदि के पटाखे फोड़तें हैं और कुत्सित विचारों को जलाकर खुद की सफाई करते हैं और सदविचारों के दियों की रौशनी में दिवाली मनाते हैं देखिये फिर कितना आनंद मिलता है।
(पिछले वर्ष fm रेनबो पर मेरा ये लेख RJ aparajita द्वारा प्रसारित हुआ था हमेशा की तरह डेट मुझे याद नहीं है पर पिछली दिवाली के कुछ दिन पहले की बात है )
- तुषारापात®™
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Tuesday 3 November 2015
Sunday 1 November 2015
लफ्ज़
बेपर्दा होकर
बहुत मुश्किल से निकले थे
बड़ी हिफाजत से
चिट्ठियों का लिबास पहनाया था इन्हें
तुम्हारे होठों को छूकर पाकीज़ा होना था इन्हें
इसीलिए
डाक के उस काफ़िर लाल डिब्बे में नहीं भेज पाया
आज पुरानी बकस से खनक के बाहर आ गए
कुछ सील से गएँ हैं
मुलायम ठंडी धूल में लिपटे हुए
झाड़ पोछ के सोचा थोड़ी गर्माहट कर दूं इनपे
आँगन की डोरी पे टांग दिए हैं सारे
पर तेज़ आंच में सख्त न होने पायें
इसलिए
पिछली मार्च के उन 'लफ़्ज़ों' को
जाते हुए अक्टूबर की नर्म धूप लगा रहा हूँ
-तुषारापात®™
बहुत मुश्किल से निकले थे
बड़ी हिफाजत से
चिट्ठियों का लिबास पहनाया था इन्हें
तुम्हारे होठों को छूकर पाकीज़ा होना था इन्हें
इसीलिए
डाक के उस काफ़िर लाल डिब्बे में नहीं भेज पाया
आज पुरानी बकस से खनक के बाहर आ गए
कुछ सील से गएँ हैं
मुलायम ठंडी धूल में लिपटे हुए
झाड़ पोछ के सोचा थोड़ी गर्माहट कर दूं इनपे
आँगन की डोरी पे टांग दिए हैं सारे
पर तेज़ आंच में सख्त न होने पायें
इसलिए
पिछली मार्च के उन 'लफ़्ज़ों' को
जाते हुए अक्टूबर की नर्म धूप लगा रहा हूँ
-तुषारापात®™
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