" तेरी हिम्मत कैसे हुई...मेरे बेटे को गलत कहने की...खेल खेल में चोट वोट तो लग ही जाती है...इसमें क्या बड़ी बात है...बड़ी आईं हैं मेरे बेटे की शिकायत लेकर." विभक्ति चिल्ला चिल्ला कर बोल रही थी
" अरे विभक्ति जी..कैसे बात कर रहीं हैं आप...मैंने खुद अपनी आँखों से देखा है..कारक ने जानबूझकर हलन्त को धक्का दिया है...वो झूले से गिरते गिरते बचा है..उसे काफी चोट आ सकती थी...आप अपने बेटे कारक को समझा के रखिये...वो कुछ ज्यादा ही शैतानी करने लगा है" संधि ने भी ऊँची लेकिन मर्यादित भाषा में अपनी बात रखी
" हुँ..मेरे बेटे को शैतान कहती है तू...तेरा बेटा तो बड़ा दूध का धुला है...अगर इतनी ही फिकर है..तुझे अपने बेटे की....तो....तो..उस लंगड़े को इन बच्चों के साथ खेलने भेजती क्यूँ है तू...अब स्वस्थ बच्चों के साथ लंगड़ा खेलेगा तो गिरेगा पड़ेगा ही" विभक्ति ने कारक का हाथ पकड़ते हुए हलन्त की तरफ बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा
संधि का दिल अंदर तक छिल गया..अपमान से उसकी आँखे भीग गई कांपती आवाज में वो बोली
"आप अपनी हद में रहिये..मेरे बच्चे को..बच्चे को..उसके सामने ही ..ऐसा कहने में शर्म नहीं आती..अपना घटियापन दिखा दिया आपने.."
व्याख्या निष्कर्ष और टिप्पणी को लेकर सोसायटी के प्लेइंग ग्राउंड में आई हुई थी अपनी सोसाइटी की इन दोनों पड़ोसनों को वहाँ यूँ लड़ते देख वो संधि के पास गई और उसे अपने साथ ले आई
" व्याख्या ....पता नहीं भगवान् ने मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ किया.. हलन्त हैंडीकैप है इसमें उस बेचारे की क्या गलती..ये कारक अक्सर उससे मारपीट करता रहता है..और ये विभक्ति से कहने जाओ तो..कैसे बिहैव करती है..वो तो तुमने देखा ही है..जरा सा भी रहम तो आना दूर...ऊपर से मेरे बच्चे का मजाक बनाती है....मैं हैंडीकैप्ड कैंप जा जा कर दूसरे लोगों की कितनी सेवा करती हूँ...फिर भी भगवान् मुझे ही दुःख देते हैं " संधि रुआँसी हो गई
" देखो संधि ...इस दुनिया में दो तरीके के लोग होते हैं...एक जो लोगों को जोड़ते हैं ....उनके दुखों को समझते हैं ...उनको हौसला देते हैं जैसे कि तुम हो ...और ...दूसरी तरफ विभक्ति जैसे हैं ...जो किसी को अपने आगे कुछ नहीं समझते...दूसरों का मजाक उड़ाते हैं ...और लोगों में अपने को बड़ा बना के ...दिखावा करते हैं...ऐसे लोग समाज को बांटते है.." व्याख्या ने उसे समझाया और आगे कहा
" और ये कहाँ अच्छा लगता है कि..बच्चों की लड़ाई में बड़े इस तरह तू तू मैं मैं करें..अच्छा ये बता ..अगर हलन्त ऐसा नहीं होता तो क्या... तुम्हे हलन्त जैसे और बच्चों से इतनी हमदर्दी होती?..नहीं न..शायद भगवान ने तुम्हारे साथ ऐसा करके..ऐसे और बच्चों के लिए तुम्हारे मन में उनके लिए सम्मान और ममता जगाई है..जिससे उन्हें भी एक सहारा मिल सके..चल अब परेशान मत हो..जाने दे..आगे से हलन्त को निष्कर्ष और टिप्पणी के साथ खेलने भेज दिया करना" व्याख्या ने उसे हिम्मत दी..संधि हलन्त को लेकर चली गई
"मम्मा..हलन्त बैया ने..वो..वो..अमी..ताब..बरतन..के दो बूँड ..जिनडगी वाले पो.लि..यो.. ड्रा..फ नई पिया था...टिप्पणी ने अपनी तुतलाती आवाज में व्याख्या से पूछा
" हाँ बेटा..शायद नहीं पिया.." उसने टिप्पणी को प्यार से चूमते हुए कहा और मन ही मन बुदबुदाई "शायद विभक्ति को ज्यादा जरूरत थी उन ड्रॉप्स की..पर क्या मानसिक विकलाँगता के लिए कोई ड्रॉप्स आता है ?"।
'सक्षम व्यक्ति के जीवन में भगवान् की उत्पत्ति देर से होती है'
-तुषारापात®™
" अरे विभक्ति जी..कैसे बात कर रहीं हैं आप...मैंने खुद अपनी आँखों से देखा है..कारक ने जानबूझकर हलन्त को धक्का दिया है...वो झूले से गिरते गिरते बचा है..उसे काफी चोट आ सकती थी...आप अपने बेटे कारक को समझा के रखिये...वो कुछ ज्यादा ही शैतानी करने लगा है" संधि ने भी ऊँची लेकिन मर्यादित भाषा में अपनी बात रखी
" हुँ..मेरे बेटे को शैतान कहती है तू...तेरा बेटा तो बड़ा दूध का धुला है...अगर इतनी ही फिकर है..तुझे अपने बेटे की....तो....तो..उस लंगड़े को इन बच्चों के साथ खेलने भेजती क्यूँ है तू...अब स्वस्थ बच्चों के साथ लंगड़ा खेलेगा तो गिरेगा पड़ेगा ही" विभक्ति ने कारक का हाथ पकड़ते हुए हलन्त की तरफ बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा
संधि का दिल अंदर तक छिल गया..अपमान से उसकी आँखे भीग गई कांपती आवाज में वो बोली
"आप अपनी हद में रहिये..मेरे बच्चे को..बच्चे को..उसके सामने ही ..ऐसा कहने में शर्म नहीं आती..अपना घटियापन दिखा दिया आपने.."
व्याख्या निष्कर्ष और टिप्पणी को लेकर सोसायटी के प्लेइंग ग्राउंड में आई हुई थी अपनी सोसाइटी की इन दोनों पड़ोसनों को वहाँ यूँ लड़ते देख वो संधि के पास गई और उसे अपने साथ ले आई
" व्याख्या ....पता नहीं भगवान् ने मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ किया.. हलन्त हैंडीकैप है इसमें उस बेचारे की क्या गलती..ये कारक अक्सर उससे मारपीट करता रहता है..और ये विभक्ति से कहने जाओ तो..कैसे बिहैव करती है..वो तो तुमने देखा ही है..जरा सा भी रहम तो आना दूर...ऊपर से मेरे बच्चे का मजाक बनाती है....मैं हैंडीकैप्ड कैंप जा जा कर दूसरे लोगों की कितनी सेवा करती हूँ...फिर भी भगवान् मुझे ही दुःख देते हैं " संधि रुआँसी हो गई
" देखो संधि ...इस दुनिया में दो तरीके के लोग होते हैं...एक जो लोगों को जोड़ते हैं ....उनके दुखों को समझते हैं ...उनको हौसला देते हैं जैसे कि तुम हो ...और ...दूसरी तरफ विभक्ति जैसे हैं ...जो किसी को अपने आगे कुछ नहीं समझते...दूसरों का मजाक उड़ाते हैं ...और लोगों में अपने को बड़ा बना के ...दिखावा करते हैं...ऐसे लोग समाज को बांटते है.." व्याख्या ने उसे समझाया और आगे कहा
" और ये कहाँ अच्छा लगता है कि..बच्चों की लड़ाई में बड़े इस तरह तू तू मैं मैं करें..अच्छा ये बता ..अगर हलन्त ऐसा नहीं होता तो क्या... तुम्हे हलन्त जैसे और बच्चों से इतनी हमदर्दी होती?..नहीं न..शायद भगवान ने तुम्हारे साथ ऐसा करके..ऐसे और बच्चों के लिए तुम्हारे मन में उनके लिए सम्मान और ममता जगाई है..जिससे उन्हें भी एक सहारा मिल सके..चल अब परेशान मत हो..जाने दे..आगे से हलन्त को निष्कर्ष और टिप्पणी के साथ खेलने भेज दिया करना" व्याख्या ने उसे हिम्मत दी..संधि हलन्त को लेकर चली गई
"मम्मा..हलन्त बैया ने..वो..वो..अमी..ताब..बरतन..के दो बूँड ..जिनडगी वाले पो.लि..यो.. ड्रा..फ नई पिया था...टिप्पणी ने अपनी तुतलाती आवाज में व्याख्या से पूछा
" हाँ बेटा..शायद नहीं पिया.." उसने टिप्पणी को प्यार से चूमते हुए कहा और मन ही मन बुदबुदाई "शायद विभक्ति को ज्यादा जरूरत थी उन ड्रॉप्स की..पर क्या मानसिक विकलाँगता के लिए कोई ड्रॉप्स आता है ?"।
'सक्षम व्यक्ति के जीवन में भगवान् की उत्पत्ति देर से होती है'
-तुषारापात®™