Thursday 19 April 2018

मन्नत

"तो क्या माँगा तुमने भगवान से" आभास ने अपने पैर पे दूसरा पैर चढ़ाया और उसकी ओर घूमते हुए पूछा

"मन्नतें..किसी को ..बताईं नहीं जाती..वरना पूरी नहीं होतीं..ये तो भक्त और भगवान के बीच की बात है" अमितिभा बस के झटकों के साथ अपने स्वर को बिठाते हुए चुलबुलाहट से बोली

आभास पहले तो बनावटी मुँह बनाता है फिर झूठे रौब के साथ कहता है "पता है मेरे लिए ही कुछ माँगा होगा..अब जिसके लिए माँगा है उसे बताने में क्या हर्ज...वैसे भी पति को सबकुछ जानने का हक़ है..शास्त्र कहता है"

"बस बस..'गुप्ता' साहब..धोती कुर्ता और केसरिया गमछा पहनके खुद को ज्यादा 'पंडित' मत समझो.." अमितिभा उसकी धोती खींचने की एक्टिंग करते हुए बोली

"अरे यार..ज्यादा भाव मत खाओ..बताओ न..नहीं तो मैं अपनी मन्नत सबको बता दूँगा.. आभास ने उसे डराया

अमितिभा ने हँसते हुए कहा "अच्छा अच्छा..मैंने माँगा.. मैंने माँगा कि मेरे जिद्दी पति की..गंदे पति की..सिगरेट पीने की गंदी आदत छूट जाए.."

"चल झूठी..." आभास ने कहा और उन दोनों की नोंकझोंक यूँ ही चलती रही

बालाजी के दर्शन करके दोनो जयपुर से आगरा जाती बस को हाई-वे से पकड़ के भरतपुर जा रहे थे और गर्म दोपहरी के इस सफर को अपनी नोकझोंक के छींटों से भिगो रहे थे कुछ देर में बस एक ढाबे पे रुकती है,कंडक्टर की आवाज आती है कि दस मिनट का स्टॉप है जिन्हें चाय नाश्ता करना है कर लें

"तुम कुछ खाओगी." आभास ने पूछा

"नहीं..अभी आधे घंटे पहले ही दर्शन करके तो लंच किया है" अमितिभा ने कहा

"ठीक है..मैं अभी आता हूँ..अब ये मुँह मत बनाओ..दर्शनों के चक्कर मे सुबह से नहीं पी..बस एक दो कश मारकर आता हूँ..कोल्डड्रिंक पियोगी?"
आभास ने उसके चेहरे पे नाराजगी का भाव देख के पूछा

"अरे ये क्या है..ये लोग क्या खा रहे हैं आइसक्रीम है शायद...मेरे लिए ये ला दो" कुछ लोग दोने में कुल्फी जैसी कुछ चीज लाकर खा रहे थे वही अमितिभा ने भी उसे लाने को कह दिया

आभास ने सोचा कि जब तक ये कुल्फी खायेगी तब तक वो आराम से सिगरेट फूँक लेगा वो जल्दी से कुल्फी के ठेले पे गया,ठेला पान की गुमटी से सटा हुआ ही था,पता नहीं गर्मी ज्यादा होने के कारण ठेले पे भीड़ थी या मात्र दस रुपये की कुल्फी की एक प्लेट होने के कारण ऐसा था जो भी हो,ठेले पे बस की आधी सवारियों की भीड़ जमा थी, उसने दस रुपये का नोट हाथ में लेकर आगे बढ़ाया और व्यस्त ठेले वाले से बोला "भइया.. एक देना.."

कुल्फी वाले ने उसे देखा पर अपने काम मे लगा रहा पहले से खड़े लोगों को वो अल्युमिनियम कम टीन के छोटे छोटे डिब्बों से कुल्फी निकाल के चाकू से दो पीस में काट काट के दे रहा था आभास खड़ा अपनी बारी का इंतजार करने लगा एक दो मिनट के बाद उसने फिर कहा "अरे भाई एक मुझे भी दे दो"

कुल्फी वाला मशीन की रफ्तार से टीन के डब्बे मटके से निकालता और चाकू से कुल्फी काटके देता जा रहा था पर भीड़ ज्यादा होने के कारण समय तो लगना ही था आभास ने सोचा कि शायद ये एक कुल्फी के कारण उसकी बात नहीं सुन रहा है तो उसने पर्स से एक दस का नोट और निकालकर कहा.."भाई दो कुल्फी दे दो..बस छूट जाएगी.."

कुल्फी वाले ने फिर उसे देखा और अपना काम जारी रखा आभास अब बेचैन होने लगा सिगरेट की तलब भी बढ़ रही थी और घड़ी की सुइयां भीं,कुल्फी वाले ने जब उसके बाद आए आदमी को तीन कुल्फी निकालकर दीं तो उसके सब्र का बाँध टूटने ही वाला था उसके भीतर अहम की आग जाग रही थी,वो बस अब किसी भी क्षण इस कुल्फी वाले को गालियां देने वाला था ठेले पे आए उसे पाँच मिनट से ज्यादा हो चुके थे भीड़ अब छँट चुकी थी वो बस इंतज़ार कर रहा था कि अब ये क्या करता है और सोचता है कि अगर अब इसने नहीं दी तो दो हाथ तो इस नालायक के लगा ही दूँगा

ठेले वाले ने मटके से दो अल्युमिनियम के डब्बे छाँट के निकाले,ठेले पे रखे उसके बाद जाँच परखकर दो दोने उठाए उसके बाद चाकू को अच्छे से धोया और उसी धोए हुए चाकू से डिब्बे से कुल्फी निकालकर,कुल्फी को चार पीसों में काटा और दोनों में सजा के सम्मान की मुद्रा में आभास को देते हुए बोला "लीजिये पंडित जी!"

आभास अवाक रह गया उसका ध्यान एक बार अपने पहनावे की ओर गया और दूसरी ओर उसकी श्रद्धा की ओर, उसने ठेले वाले को रुपए दिए और दोनों हाथों में कुल्फी लेकर बस की ओर चल पड़ा पता नहीं क्यों वो अब सिगरेट नहीं पीना चाहता था।

~तुषार_सिंह तुषारापात®