अगर तुम्हें लगता है कि
सुबह अपने आप हो जाती है तो
तुमने कभी किसी राइटर की
टेबल नहीं देखी
मेरी मेज पर कई
कोरी डायरियाँ पड़ी हैं
अनगिनत सुबहें इनमें कैद हैं
एक डायरी उठा के
रात को उसमें भरने लगता हूँ तो
पन्नों से सफेदी खिसकने लगती है जो
इकठ्ठी होके सुबह बन जाती है
इस काम को मुझे लंबा और
उबाऊ बनाये रखना पड़ता है अगर
एक झटके से सारी रात
कलम के पतीले से
डायरी के हलक में उतार दी तो पता चला कि
तुम अभी सोए थे और अभी सवेरा हो गया
हाँ कभी थोड़ा कम तो
कभी बहुत ज्यादा लिखता हूँ
इसीलिए तुम्हारी हर सुबह का
टाइम एक सा नहीं रहता
जब कम लिखता हूँ तो
कई रातों तक लिखना
कम से कम करता जाता हूँ और
सफेदी कम रिहा कर पाता हूँ
वे रातें पिछली सर्दियों की
इसीलिए लंबी रह गयीं थीं
लेकिन आजकल अपना काम मैं
मन लगा के कर रहा हूँ
रातों को ज्यादा से ज्यादा
डायरियों में भर रहा हूँ
देखो ये रात भी लगभग मैंने
डायरी में पूरी कर दी है
जाग जाओ
डायरी की सारी सफेदी रिहा हो चुकी है
एक बार फिर से तुम्हारी सुबह हो चुकी हो।
~तुषार सिंह #तुषारापात®