Saturday 4 May 2019

राइटर अब सोता है

अगर तुम्हें लगता है कि
सुबह अपने आप हो जाती है तो
तुमने कभी किसी राइटर की
टेबल नहीं देखी
मेरी मेज पर कई
कोरी डायरियाँ पड़ी हैं
अनगिनत सुबहें इनमें कैद हैं
एक डायरी उठा के
रात को उसमें भरने लगता हूँ तो
पन्नों से सफेदी खिसकने लगती है जो
इकठ्ठी होके सुबह बन जाती है
इस काम को मुझे लंबा और
उबाऊ बनाये रखना पड़ता है अगर
एक झटके से सारी रात
कलम के पतीले से
डायरी के हलक में उतार दी तो पता चला कि
तुम अभी सोए थे और अभी सवेरा हो गया
हाँ कभी थोड़ा कम तो
कभी बहुत ज्यादा लिखता हूँ
इसीलिए तुम्हारी हर सुबह का
टाइम एक सा नहीं रहता
जब कम लिखता हूँ तो
कई रातों तक लिखना
कम से कम करता जाता हूँ और
सफेदी कम रिहा कर पाता हूँ
वे रातें पिछली सर्दियों की
इसीलिए लंबी रह गयीं थीं
लेकिन आजकल अपना काम मैं
मन लगा के कर रहा हूँ
रातों को ज्यादा से ज्यादा
डायरियों में भर रहा हूँ
देखो ये रात भी लगभग मैंने
डायरी में पूरी कर दी है
जाग जाओ
डायरी की सारी सफेदी  रिहा हो चुकी है
एक बार फिर से तुम्हारी सुबह हो चुकी हो।

~तुषार सिंह #तुषारापात®