Tuesday 30 June 2020

हथेली पे साँप-सीढ़ी

माना उसने हथेली पे साँप-सीढ़ी बिछाई है
पर उँगलियों के पोरों पे तो गिनती बिठाई है

#बारह_पोर_पौ_बारह
~#तुषारापात

Monday 29 June 2020

पाठकों का सुरुर, कलम क्यों मगरूर

सुरुर तुममें है, नशीली बात, न मेरी क़लम से निकले
मेरी हस्ती है राख सी, जो तुम्हारी, चिलम से फिसले

अपने सभी पाठक-पाठिकाओं के लिए🙏
~#तुषारापात 

Friday 26 June 2020

बंटवारा

बंटवारे के बाद दो भाई सीलन से परेशान हैं 
गले लग के रोतीं हैं दीवारें दो बहनों की तरह 

#तुषारापात

Wednesday 24 June 2020

अनुवाद :'Stopping by woods on a snowy evening'

है जिसका अरण्य यह, उससे मेरा है परिचय  गृह,उसका इसी ग्राम में,वन में मेरा है आश्रय 
सोचा भी न होगा उसने, रुक के मापूँगा कभी मैं 
अरण्य ने उसके, कितना किया है हिम संचय 

मेरे अश्व की सीमित बुध्दि पा रही इसे बड़ा विचित्र
ठहरना वहाँ जहाँ नहीं भौतिकता का एक भी चित्र 
पत्रहीन वृक्षों और अकड़ी हुई झील के मध्य, क्यों 
वर्ष की सबसे साँवली संध्या को बना मैं बैठा मित्र 

वो अपने सिर को नहीं नहीं के भाव में रहा झुला
ग्रीवा पे बँधी घण्टी की ध्वनि से भूल मेरी रहा बता 
स्फुरित वृक्षों से उत्पन्न वायु का प्रवहण, कानों तक
हिम के गिरते सूक्ष्म पतरों की ध्वनि रहा पहुँचा

सघन गहन यह अरण्य शांत संन्यासाश्रम सम 
पर प्रत्येक वचन को पूर्ण करना है प्रथम धर्म 
मृत्यु से पहले मोक्ष के लिये करने हैं कई कर्म
मृत्यु से पहले मोक्ष के लिए करने हैं कई कर्म 

~तुषार सिंह #तुषारापात

☝️Translation of The poem 
'Stopping by woods on a snowy evening' 

Whose woods these are I think I know.
His house is in the village though;
He will not see me stopping here
To watch his woods fill up with snow.

My little horse must think it queer
To stop without a farmhouse near
Between the woods and frozen lake
The darkest evening of the year.

He gives his harness bells a shake
To ask if there is some mistake.
The only other sound’s the sweep
Of easy wind and downy flake.

The woods are lovely, dark and deep,
But I have promises to keep,
And miles to go before I sleep,
And miles to go before I sleep.

~by Robert Frost.








Thursday 18 June 2020

जेठ भी देवर की तरह मनचला निकला

धूप सख़्त न थी,आसमाँ से,मचलता सावन फिसला 
इस बरस, जेठ भी, देवर की तरह, मनचला निकला 

~#तुषारापात

Tuesday 16 June 2020

सितारे नजूमियों को चुभते हैं

कमाल नहीं ये क़हर है उनपर 
आसमानी आवाज़ें जो सुनते हैं 

रात ओढ़ती है चाँदनी की चुनरी 
और सितारे नजूमियों को चुभते हैं 

#तुषारापात

Sunday 14 June 2020

यार सुशांत

कभी हम जान न पाए खुशनुमा नहीं वो मंज़र थे 
मुस्कुराते लबों की पीठ पे  घुपे बत्तीसों ख़ंजर थे 

#तुषारापात 😔