तुम
गले लग के
मुझमें ही
फुसफुसाया करतीं थीं
रिसीवर
कानों से
लगते ही ऐसा लगता था
और
उँगलियाँ
तार के छल्लों में फँसा के
ज़ुल्फों को
तेरी मैं खूब
सुलझाया करता था
उन दिनों
बात करना ही
तुझसे लिपट जाना होता था
लैंडलाइन का
वो ज़माना भी
क्या ज़माना होता था।
~तुषारापात®