तुमने तानी है गर्दन मज़हब के रंग पे मगर
'तुषार' लाल लहू ढोती नसों का रंग हरा है
#तुषारापात®
तुषार सिंह 'तुषारापात' हिंदी के एक उभरते हुए लेखक हैं जो सोशल मीडिया के अनेक मंचों पे बहुत लोकप्रिय हैं इनके लिखे कई लेख, कहानियाँ, कवितायें और कटाक्ष सभी प्रमुख हिंदी अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं तथा रेडियो fm पर भी कई कार्यक्रमो के लिए आपने लिखा है। कुछ हिंदी फिल्मों के लिए आप स्क्रिप्ट भी लिख रहे हैं। आप इन्हें यहाँ भी पढ़ सकते हैं: https://www.facebook.com/tusharapaat?ref=hl
तुमने तानी है गर्दन मज़हब के रंग पे मगर
'तुषार' लाल लहू ढोती नसों का रंग हरा है
#तुषारापात®
नीले हरे
एक लड्डू पे
हम चींटियों को बाँध रखा है
और ललचाने को
वर्क लगा एक लड्डू
उसने ऊपर टांग रखा है
#तुषारापात®
नहीं जानता
खाली बर्तन देख के
घर से निकलो तो
अपशगुन होता है
नहीं मानता
गंगाजल की दो कटोरियाँ
देख, बाहर जाओ तो
शुभ-शगुन होता है
जब किसी खास काम पे
जाना होता है मुझे
तो दही-चीनी
चटा दिया करती है
हाँ,अब कुछ कुछ समझा हूँ
आखिर क्यों
माँ,भरी आँखों से,मुझे
विदा किया करती है।
#तुषारापात®
खाली हाथों को नहीं मिलती कोई कमान
ऐ खुदा हथेली के तरकश में तीरे मुकद्दर भर दे
#तुषारापात®
अगर तुम्हें लगता है कि
सुबह अपने आप हो जाती है तो
तुमने कभी किसी राइटर की
टेबल नहीं देखी
मेरी मेज पर कई
कोरी डायरियाँ पड़ी हैं
अनगिनत सुबहें इनमें कैद हैं
एक डायरी उठा के
रात को उसमें भरने लगता हूँ तो
पन्नों से सफेदी खिसकने लगती है जो
इकठ्ठी होके सुबह बन जाती है
इस काम को मुझे लंबा और
उबाऊ बनाये रखना पड़ता है अगर
एक झटके से सारी रात
कलम के पतीले से
डायरी के हलक में उतार दी तो पता चला कि
तुम अभी सोए थे और अभी सवेरा हो गया
हाँ कभी थोड़ा कम तो
कभी बहुत ज्यादा लिखता हूँ
इसीलिए तुम्हारी हर सुबह का
टाइम एक सा नहीं रहता
जब कम लिखता हूँ तो
कई रातों तक लिखना
कम से कम करता जाता हूँ और
सफेदी कम रिहा कर पाता हूँ
वे रातें पिछली सर्दियों की
इसीलिए लंबी रह गयीं थीं
लेकिन आजकल अपना काम मैं
मन लगा के कर रहा हूँ
रातों को ज्यादा से ज्यादा
डायरियों में भर रहा हूँ
देखो ये रात भी लगभग मैंने
डायरी में पूरी कर दी है
जाग जाओ
डायरी की सारी सफेदी रिहा हो चुकी है
एक बार फिर से तुम्हारी सुबह हो चुकी हो।
~तुषार सिंह #तुषारापात®
हजारों फॉलोवर्स ऐसे कि हर फॉलोवर पे दम निकले
बहुत निकले उनके लाइक्स मगर फिर भी कम निकले
कहाँ मोटी आँटी की लंगड़ी कविता और कहाँ बुद्धिजीवी
बस इतना जानते हैं वहाँ भी तुम्हारे दो दो कमेंट निकले
निकलना हाई कमिश्नरों का सुनते आए हैं दुश्मन देशों से
बड़े ब्लॉक हो के तेरी फ्रेंड लिस्ट से बाहर हम निकले
फेसबुक पे नहीं है लुत्फ अब साहित्य लिखने का
उसी को लोग पढ़ते हैं जो इंस्टा-गरम निकले
खुदा के वास्ते अँगूठा न पोस्ट पे लगा तुषार
कहीं ऐसा न हो यहाँ भी आधार का भरम निकले
~तुषारापात®