Saturday 11 November 2017

झूठा सच

झूठ है दिखता बसंतों में उगे सरसों की तरह
सच है मिलता किताबों में सूखे फूलों की तरह

#तुषारापात®

राम नाम सत्य है


"क्या इस बार भी सच हार जाएगा..झूठ की जीत आखिर कब तक यूँ ही होती रहेगी...क्या कोई भी सच के साथ नहीं है?"

"कोशिश करके देख लो..सच को लेकर आगे बढ़ो..देखो कौन साथ आता है तुम्हारे..लोग झूठ के विरोध में तो कभी आते ही नहीं.. और.. न ही सच के साथ चलते हैं..बस सच बोलने वाले के साथ थोड़ी दूर यूँ टहल आते हैं.. मानो दिल बहलाने को सिनेमा देख आए हों"

"पर लोग सिनेमा में भी तो सच की जीत की कहानियों पे ताली बजाते हैं फिर क्यों नहीं आएंगे सच के साथ"

"सिनेमा किन्नरों के स्वांग जैसा है जो क्षणिक दबाव बनाता है..सच के लिए ताली बजाने वाले हाथ झूठ के लिए कभी अपनी मुठ्ठियाँ नहीं कसते..."

"मुठ्ठियाँ न भी कसें..हाथ भी न उठाएं..मगर धीमी ही सही..मेरी आवाज में अपनी आवाज़ तो मिला सकते हैं..मैं सबसे आगे चलने को तैयार हूँ...मैं सच के लिए मरने के लिए भी तैयार हूँ"

"अपने आगे चलने की तुम्हारी तमन्ना ये जरूर पूरी कर देंगे.. तुम्हारे मरने के बाद ये सब आएंगे तुम्हारे जनाज़े के पीछे..ये कहते कहते कि राम नाम सत्य है...."

"तो क्या करूँ मैं..बचपन से मुझे सिखाया गया कि सच ही सबकुछ है..एक सच सौ झूठ पे भारी है..क्या किताबों में लिखा वो सब सच, झूठ था..इस सच के लिए लड़ते लड़ते हर जगह से निष्काषित हूँ मैं..और जिन लोगों ने मुझे निष्काषित किया वो मुझे ही भगौड़ा कहते हैं.."

"सच कहूँ तो इस झूठ और सच की लड़ाई की बात ही बेमानी है..झूठ के सैनिक बहुत निर्दयी हैं..और सच..सच की कोई सेना ही नहीं है..बस एक पैदल है जो सच का झंडा उठाए दिखता है मानो कोई बहुत बड़ी सेना उसके पीछे आ रही हो..नियति ने उस पैदल के रूप में तुम्हें चुन लिया है..तुम मरोगे तो कोई और इस झंडे को पकड़ लेगा..पर.. उसके भी पीछे कोई सेना नहीं होगी..मेरी मानो झूठ में घुलमिल जाओ फिर देखो इस झंडे को कितना बढ़िया रथ मिल जाएगा..झूठ चारो ओर ऐसे फैला हुआ है जैसे बसन्त में सरसों ही सरसों हो और रही बात सच के किताबों में होने की..हाँ..सच किताबों में मिलता है..मगर सूखे फूलों की तरह.."

-तुषारापात®