Wednesday 29 November 2017

चाउमीन

"जिंदगी उलझी है चाउमीन सी..तो क्या...चटपटी भी तो है
घड़ी की प्लेट में परोसिए...दोनों काँटो से खाइए..चटकारा लगाइए।"

#तुषारापात®

Thursday 23 November 2017

आशिक vs शायर

इश्क़ को आशिक़ों ने नहीं शायरों ने ज़िन्दा रखा है।

#तुषारापात®

Wednesday 22 November 2017

खरीदार सर्दियाँ

पलकों के शटर पे है रंगीन विज्ञापन छतरियों का
आँखों की दुकान के भीतर काली बदलियाँ छाईं हैं

कह दो की दुकान बंद हुई,रात के बारह बजे क्यों
पुराने दिनों की गर्मी खरीदने ये सर्दियाँ आईं हैं

#तुषारापात®

Saturday 18 November 2017

दिल का डॉक्टर, राइटर

दिल को डॉक्टरों ने नहीं राइटरों ने संभाल रखा है
-तुषारापात®

Wednesday 15 November 2017

चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है

चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है
काम कल्पना से विरह कहीं मिटती है

एक हाथ के अंतर पे था मुखड़ा
एक हाथ के समांतर था अंतरा
दोनों हाथ बाँधे असहाय रह गया मैं
बेसुरी मर्यादा बड़ा बेसुरा गीत रचती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक फूँक में उड़ाता मैं तुम्हारी लाज
एक फूँक से भर देतीं तुम मुझमें आग
दो फूँकों से संसार की,फुँक गया ये स्वप्न
साँसों की धौंकनी से अब राख उड़ती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक आस बसन्त बनके तुम महकोगी
एक आस सावन बनके तुम बरसोगी
दो आसें ओस सी जेठ में वाष्पित हुईं अब
पूस की हवा इस बरस बहुत चुभती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक चुंबन में मुंदती आँखें चंद्रमा सी
एक चुंबन से काँपती नाभि मध्यमा की
दो चुम्बन नियति के क्रूर,सुखा गये होंठ
बार बार जिह्वा अब इनपे फिरती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक कविता में लिखता तुम्हारा यौवन
एक कविता से पढ़ता तुम्हारा अन्तर्मन
दो कविताओं में था रचा किंतु अपना दुर्भाग्य
तेरी और मेरी हथेली प्रतिदिन कहती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

-तुषारापात®

चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है

चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है
काम कल्पना से विरह कहीं मिटती है

एक हाथ के अंतर पे था मुखड़ा
एक हाथ के समांतर था अंतरा
दोनों हाथ बाँधे असहाय रह गया मैं
बेसुरी मर्यादा बड़ा बेसुरा गीत रचती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक फूँक में उड़ाता मैं तुम्हारी लाज
एक फूँक से भर देतीं तुम मुझमें आग
दो फूँकों से संसार की,फुँक गया ये स्वप्न
साँसों की धौंकनी से अब राख उड़ती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक आस बसन्त बनके तुम महकतीं
एक आस सावन बनके तुम बरसतीं
दो आसें ओस सी जेठ में वाष्पित हुईं अब
पूस की हवा इस बरस बहुत चुभती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक चुंबन में मुंदती आँखें चंद्रमा सी
एक चुंबन से काँपती नाभि मध्यमा की
दो चुम्बन नियति के क्रूर,सुखा गये होंठ
बार बार जिह्वा अब इनपे फिरती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

एक कविता में लिखता तुम्हारा यौवन
एक कविता से पढ़ता तुम्हारा अन्तर्मन
दो कविताओं में था रचा किंतु अपना दुर्भाग्य
तेरी और मेरी हथेली प्रतिदिन पढ़ती है
चाँद की हसिया से रात नहीं कटती है...

-तुषार सिंह #तुषारापात
©tusharapaat.blogspot.com

Monday 13 November 2017

दो और दो हजार

कहाँ था मालूम कि दो और दो हजार होता है
दो उसने कही थी और दो ही हमने कही थी
फिर तमाम बातों से भरा क्यों अखबार होता है

#तुषारापात®

शो मस्ट गो ऑन

"भई वाह..सुधाकर जी..आज तो आपने कमाल कर दिया..क्या गज़ब के..डूब के भजन गाए आपने...पूरी पब्लिक भावों के समंदर में बह गई.. आज का आपका ये प्रोग्राम 'बच्चों के लिए भजन संध्या' तो सुपरहिट रहा.. सुपरहिट" चिल्ड्रेन्स डे की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम में जैसे ही सुप्रसिद्ध भजन गायक सुधाकर मिश्रा अपना अंतिम भजन गाकर बैक स्टेज आए उनसे मिलने को वहाँ पहले से तैयार खड़े मेयर चकोर सिधवानी उन्हें पकड़ के उनकी तारीफों के पुल बाँधने लगे, सुधाकर मिश्रा गुनगुना पानी जल्दी जल्दी पीते हुए उनका फरमाइशी अभिवादन कर कहते हैं "बहुत..बहुत..धन्यवाद मेयर साहब" और अपनी कार की ओर लगभग दौड़ के जाने लगते हैं

मेयर साहब उन्हें पीछे से रोकते हैं "अरे रुकिए तो..ये हमारी साली साहिबा आपकी बहुत बड़ी फैन हैं..खास आपके प्रोग्राम के लिए जबलपुर से यहाँ आई हैं..जरा एक दो तस्वीर..."

चकोर सिधवानी आगे कुछ और कहते कि सुधाकर ने उनकी साली साहिबा को नमस्कार किया और तेजी से उनसे आगे बढ़ते हुए कहा "मेयर साहब...माफ कीजियेगा अभी जरा जल्दी में हूँ..मेरा अपने शहर पहुँचना बेहद जरूरी है..तस्वीर फिर कभी....." कहकर वो मोबाईल कान से सटा,कार में बैठकर निकल गए

मेयर तिलमिला के रह गये, एक तो शहर के मेयर होने का नशा और दूसरे साली साहिबा और अपने अर्दली के सामने हुए अपने अपमान से वो भड़क गए "ये अपने को समझता क्या है..गवर्नर है क्या ये..साले की तारीफ पे तारीफ की..और मेयर होने के नाते इसका अपने शहर में इतना आदर सत्कार किया..इतने सारे स्कूलों से गरीब बच्चों को बुलवाया...और ये सीधे मुँह बात भी नहीं करके गया...जाओ जरा सुरेंद्र और विश्वास को तो लेकर आओ यहाँ" उन्होंने आयोजकों को बुलाने को अर्दली को लगभग डाँटने वाले अंदाज में भेजा, उसके बाद काफी देर तक मेयर साहब का 'कीर्तन' वहाँ चलता रहा।

भजन संध्या कार्यक्रम शुरू होने के पाँच मिनट पहले का दृश्य: (फ्लैशबैक)

"सर..सारे गेस्ट आ चुके हैं..हॉल पूरा खचाखच भरा है..सारे बच्चों को आपके कहने के अनुसार सबसे आगे बिठा दिया है..बस अब आपका इंतजार है...एंकर बस थोड़ी देर में आपको स्टेज पे इनवाइट करेगा.." सुरेंद्र ने सुधाकर के कमरे में आकर कहा

"ठीक है..मैं भी तैयार ही हूँ..वो हारमोनियम वगैरह वाले सबने अपनी जगह ले ली न" सुधाकर ने बस पूछने को पूछ दिया

"हाँ..सर..सब कुछ रेडी है बस आप आ जाइयेगा जब आपका नाम पुकारा जाए" कहकर सुरेंद्र स्टेज के काम संभालने चला गया

π...ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन..π..सुधाकर मिश्रा कार्यक्रम के लिए तैयार थे कि तभी उनके मोबाइल की ये ट्यून बजती है वो झट से फोन उठाते हैं क्योंकि ये ट्यून उन्होंने घर के नंबर पे सेट की होती है... "हेलो..हेलो..हाँ..हाँ पिताजी बोलिये...पता नहीं फोन में नेटवर्क नहीं था बहुत देर से...नहीं नहीं अभी प्रोग्राम शुरू नहीं हुआ..अरे हुआ क्या बोलिये भी..इतना घबराए हुए क्यों लग रहे हैं" सुधाकर सांस रोक के दूसरी ओर से आवाज आने की प्रतीक्षा करने लगे

थोड़ी देर बाद उनके पिताजी की धीमी धीमी और रुआँसी आवाज़ मोबाइल में सुनाई देती है "बेटा..वो..बहू...बहू..की तबियत अचानक बिगड़ गई थी...वो..वो..उसे ब्लीडिंग...ब्लीड..बहुत ज्यादा खून आया...तो..डॉक्टर वसुंधरा के नर्सिंग होम में ले आए थे... तो..तो..वहाँ....डॉक्टरों ने बताया..कि...कि... बच्चा..मतलब... मिसकैरिज....हो गया है...बहू...बहू...पूरी तरह ठीक हैं पर बेहोश हैं...बेटे....डॉक्टर..ने..बहू को तो बचा लिया...पर बच्चा........................................................"

सुधाकर के हाथ से मोबाइल छूट गया, वो धम्म से सोफे पे बैठ गए तभी मंच से उन्हें तीसरी बार आवाज़ दी गई सुरेंद्र दौड़के उन्हें बुलाने आया और मन भर भारी पाँव उठाते वो मंच पे किसी तरह पहुँचे

मंच पे स्वागत आदि क्या क्या हुआ उन्हें कुछ याद नहीं था बस वो अपने आसन पे बैठे और सामने बैठे तमाम स्कूल के बच्चों को देखते हुए पहला भजन तुरंत गाने लगे "भए प्रगट कृपाला... दीन दयाला.... कौशल्या हितकारी....हरषित महतारी..." भजन की इस पंक्ति के साथ ही उनकी पलकों के बाँध से आँसूओं की नदी रिसने लगी।

चकोर चमकते सुधाकर को देख पाता है पर उसके पीछे की काली रात उसे दिखाई नहीं देती।

-तुषारापात®

Saturday 11 November 2017

झूठा सच

झूठ है दिखता बसंतों में उगे सरसों की तरह
सच है मिलता किताबों में सूखे फूलों की तरह

#तुषारापात®

राम नाम सत्य है


"क्या इस बार भी सच हार जाएगा..झूठ की जीत आखिर कब तक यूँ ही होती रहेगी...क्या कोई भी सच के साथ नहीं है?"

"कोशिश करके देख लो..सच को लेकर आगे बढ़ो..देखो कौन साथ आता है तुम्हारे..लोग झूठ के विरोध में तो कभी आते ही नहीं.. और.. न ही सच के साथ चलते हैं..बस सच बोलने वाले के साथ थोड़ी दूर यूँ टहल आते हैं.. मानो दिल बहलाने को सिनेमा देख आए हों"

"पर लोग सिनेमा में भी तो सच की जीत की कहानियों पे ताली बजाते हैं फिर क्यों नहीं आएंगे सच के साथ"

"सिनेमा किन्नरों के स्वांग जैसा है जो क्षणिक दबाव बनाता है..सच के लिए ताली बजाने वाले हाथ झूठ के लिए कभी अपनी मुठ्ठियाँ नहीं कसते..."

"मुठ्ठियाँ न भी कसें..हाथ भी न उठाएं..मगर धीमी ही सही..मेरी आवाज में अपनी आवाज़ तो मिला सकते हैं..मैं सबसे आगे चलने को तैयार हूँ...मैं सच के लिए मरने के लिए भी तैयार हूँ"

"अपने आगे चलने की तुम्हारी तमन्ना ये जरूर पूरी कर देंगे.. तुम्हारे मरने के बाद ये सब आएंगे तुम्हारे जनाज़े के पीछे..ये कहते कहते कि राम नाम सत्य है...."

"तो क्या करूँ मैं..बचपन से मुझे सिखाया गया कि सच ही सबकुछ है..एक सच सौ झूठ पे भारी है..क्या किताबों में लिखा वो सब सच, झूठ था..इस सच के लिए लड़ते लड़ते हर जगह से निष्काषित हूँ मैं..और जिन लोगों ने मुझे निष्काषित किया वो मुझे ही भगौड़ा कहते हैं.."

"सच कहूँ तो इस झूठ और सच की लड़ाई की बात ही बेमानी है..झूठ के सैनिक बहुत निर्दयी हैं..और सच..सच की कोई सेना ही नहीं है..बस एक पैदल है जो सच का झंडा उठाए दिखता है मानो कोई बहुत बड़ी सेना उसके पीछे आ रही हो..नियति ने उस पैदल के रूप में तुम्हें चुन लिया है..तुम मरोगे तो कोई और इस झंडे को पकड़ लेगा..पर.. उसके भी पीछे कोई सेना नहीं होगी..मेरी मानो झूठ में घुलमिल जाओ फिर देखो इस झंडे को कितना बढ़िया रथ मिल जाएगा..झूठ चारो ओर ऐसे फैला हुआ है जैसे बसन्त में सरसों ही सरसों हो और रही बात सच के किताबों में होने की..हाँ..सच किताबों में मिलता है..मगर सूखे फूलों की तरह.."

-तुषारापात®

Sunday 5 November 2017

त्रिशूल

तीर होता तो निशाने पे लगता जाकर
मैं वहीं का वहीं रह गया जमीं के त्रिशूल की तरह

-तुषारापात®

शनिश्चरी इतवार

उलझे हैं अंतरे में मुखड़ा उदास बैठा है
आशिक महबूबा के बच्चे के साथ बैठा है

-तुषारापात®

Wednesday 1 November 2017

अनलकी सेवेन

"लेकिन सर...ये देखिए इसमें..इस क्वेश्चन में भी मुझे सिर्फ सात नम्बर दिए गए हैं ..आश्चर्य की बात है कि सवाल को पूरा सही सॉल्व करने के बाद भी मुझे बीस में सात नंबर दिए गए जबकि..मैथ्स में तो..एक्यूशन सॉल्व करने के पूरे पूरे नंबर मिलते हैं" ज्ञान ने आर.टी.आई के तहत अपनी सिद्धान्त ज्योतिष के पहले पेपर की कॉपी निकलवाई थी और जानबूझकर दिए गए कम नंबरों पर वह अपने कोर्स कॉर्डिनेटर और सीनियर टीचर प्रोफेसर मिश्रा से इसी पर बहस कर रहा था

कोर्स कॉर्डिनेटर प्रोफेसर मिश्रा ने पान की पीक को ऐसे निगला मानो उसने खून का घूँट पिया हो पर बहुत ही डिप्लोमेटिक अंदाज में मुस्कुराते हुए उससे बोला "बेटा ज्ञान प्रताप ... देखो ये ज्योतिष का विषय है और तुम तो जानते हो कि ज्योतिष आर्ट्स सब्जेक्ट के अंडर आता है..अब आर्ट्स में कहीं किसी को पूरे पूरे नम्बर मिलते हैं"

"सही कहते हैं सर ट्रिग्नोमेट्री..ज्योतिष के अंडर आके गणित नहीं रहती बल्कि कला हो जाती है" ज्ञान अपने साथ हुए पक्षपात को बहुत अच्छी तरह समझ चुका था अभी उसे यहीं आगे और पढ़ना भी था तो वो व्यंग्यात्मक टोन में ये कहकर कॉर्डिनेटर के रूम से बाहर निकल आता है

उसके साथ पढ़ने वाला उसका दोस्त शरद उसे बाहर खड़ा मिलता है "क्या हुआ ज्ञानप्रताप सिंह..कुछ नहीं हुआ न..अबे तुम शिक्षा पांडे नहीं हो जो तुम्हें ये पूरे पूरे नंबर देंगे...पिछले सेमेस्टर तुमने आर टी आई दाखिल की थी तो तबसे और चिढ़ गया है ये प्रोफेसर"

"यार..थ्योरी में नंबर काटते तो अलग बात होती..पर यहाँ तो इन्होंने चापजात्य त्रिकोणमिति की पाँचवी प्रतिज्ञा पे नम्बर कम दिए हैं..जो मैंने उत्पत्ति सहित पूरी सही हल की थी ..हर सेमेस्टर की तरह इस सेमेस्टर भी मेरे साथ ये किया गया..और अब ये लोग कुछ मानने को भी तैयार नहीं..ये साला सात का नंबर ही मेरे लिए हमेशा अनलकी रहा है..इस क्वेश्चन का सीरियल नम्बर भी सातवाँ था..ज्ञान ने मायूस हो खीजते हुए कहा

"छोड़ बे..जानते हो ही तुम यहाँ का हाल.. ये सब सिद्धांत ज्योतिष की पी एच डी की सीट पे शिक्षा को सेट करने के लिए गोलमाल किया जा रहा है..वैसे भी तुम्हें आगे फलित में प्रैक्टिस करनी है..डिग्री लो और आगे बढ़ो..ये चापीय त्रिकोणमिति घंटा काम आएगी फलित में...जाने दो एक दिन जब तुम बड़े ज्योतिषी बन चुके होगे..तो ये सब भूल भी चुके होगे.." शरद ने उसे हिम्मत देते हुए कहा

हुआ भी यूँ ही..डिग्री लेने के सात साल बाद ज्ञान आज एक बड़ा ज्योतिषी है और शहर में अपना एक अच्छा नाम रखता है एक दिन वो रात को टीवी देख रहा था कि कौन बनेगा करोड़पति के रिपीट शो में उसे उसके साथ पढ़ने वाली वही शिक्षा पांडे हॉट सीट पे दिखाई दी और कुछ ही देर में गणितीय ज्योतिष के एक आसान सवाल का जवाब न दे पाने के कारण छह लाख चालीस हजार पे क्विट करते भी दिखती है

ज्ञान के मन मे पुरानी प्रतिस्पर्धा जागने लगती है और वो कौन बनेगा करोड़पति में जाने के लिए रोज बार बार मैसेज, एस एम एस आदि करने लगता है पर वो चुना नहीं जाता और कौन बनेगा करोड़पति का वो सीजन भी खत्म हो जाता है पर इस बीच ज्ञान जनरल स्टडीज ,सामान्य ज्ञान इत्यादि की तैयारी करता रहता है

समय का चक्र ढुलकते ढुलकते ही चलता हो पर चलता ही जाता है और बीतते बीतते कौन बनेगा करोड़पति का नया सीजन शुरू होने के विज्ञापन आने लगते हैं इसबार न सिर्फ ज्ञान चुन लिया जाता है बल्कि वो हॉट सीट पे भी पहुँच जाता है

"देवियों और सज्जनों..मेरे सामने हॉट सीट पे बैठे हैं लखनऊ से आये ज्ञान प्रताप सिंह जो कि बहुत बहुत अच्छा खेल रहे हैं और एक करोड़ की भारी भरकम रकम जीत चुके हैं जोर दार तालियों से हम इनका अभिनंदन करते हैं और खेल को कल छोड़े गये बिंदु से आगे बढ़ाते हैं" अमिताभ बच्चन की आवाज से स्टूडियो गूँज रहा था ज्ञान उनके सामने बैठा था

"खेल के इस पड़ाव पे मैं आपको बता दूँ कि सोलहवाँ प्रश्न जो कि सात करोड़ के लिए है उसमें आप अपनी बची हुई कोई भी लाइफ लाइन प्रयोग नहीं कर पाएंगे और अगर आपने गलत उत्तर दिया तो आप सीधे तीन लाख बीस हजार पे जाकर नीचे गिरेंगे..इसलिये भाईसाहब..बहुत सोच समझ के.." अमिताभ ने अपने अंदाज में कहा

सर सोलह के अंकों का जोड़ सात होता है और सात करोड़ के लिए ये प्रश्न भी है..और सात के अंक से मेरी अच्छी यादें नहीं हैं..पर अब यहाँ तक आकर..देखते हैं क्या होता है" ज्ञान ने धड़कते दिल के साथ चेहरे पे आत्मविश्वासी मुस्कान लाते हुए कहा

"ज्ञान प्रताप जी...जिओ जैकपॉट..सात करोड़ के लिए..ये रहा अंतिम प्रश्न..आपके कंप्यूटर स्क्रीन पे..." कहकर अमिताभ बच्चन ने सोलहवाँ प्रश्न पढ़ना शुरू किया "चापीय त्रिकोणमिति के चापजात्य अध्याय के पाँचवे साध्य के उत्पत्ति श्लोक में इनमें से कौन सा शब्द ..नहीं..है..और ये रहे आपके ऑप्शन.."

"एक मिनट सर.. आपके ऑप्शन देने से पहले आपसे एक रिक्वेस्ट है.." ज्ञान ने उन्हें रोका

यूँ ऑप्शन देने से पहले ही रोक देने पे और ज्ञान के चेहरे की मुस्कान की विशालता और आँखों की नमीं को देख आश्चर्य में डूबे अमिताभ बोल पड़े "जी..जी..बिल्कुल कहिए..क्या बात है...ज्ञान"

ज्ञान नौ साल पुरानी अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हुए कहता है "सर मैं चाहता हूँ कि आप मेरी ओर से एक घोषणा कर दें कि प्रोफेसर बालमुकुंद मिश्रा आपका शिष्य 'ज्ञान' आपकी दी हुई 'शिक्षा' से छह करोड़ तिरानबे लाख साठ हजार रुपये अधिक जीत चुका है"

-तुषार सिंह 'तुषारापात'