"हेल्ल्लो..लो..ओ. ओ.....वन.टू..थ्री..सांग चेंज...आज मेरे यार की सादी है....आज मेरे यार सादी है...ओSSSSS ऐसा लगता हैSSS जैसे सारे संसार....."ऑर्केस्ट्रा वाला चमकती चाँदी के रंग की लाल टिप्पों वाली शर्ट पैंट पहने,हिमेश रेशमिया के अंदाज में माइक पकड़ के अपना सर झटक झटक के ये गाना गाने लगा,दो तीन उसके साथी भी अपनी पूरी ताकत से ड्रम पीपीरी इत्यादि पे जुट गए और सुरों को असुर बनाने लगे।
ऑर्केस्ट्रा के उस रथनुमा पीपे के पीछे,दूल्हे सुशील के सारे दोस्त देशी माधुरी के ईंधन की ऊर्जा से ओतप्रोत जनरेटर बने थे और गाने पे ऐसे झूम रहे थे मानो होड़ चल रही हो कि किदवई नगर का सबसे टॉप का बाराती नचनिया कौन है,उनके पीछे,लड़कियाँ,महिलाएं सौंदर्य प्रसाधन की दुकान बनी,डांस करते लड़कों को देख मंद मंद मुस्कुरा रही थीं,कोई कटरीना की तरह का लाचा तो कोई बाजीराव मस्तानी की दीपिका वाले लहंगे की सस्ती नकल पहन के इतरा रही थी, महिलाएं छपरे वाले गहनों से लदीं थीं जो बस देखने में ही भारी लगते थे,थे बहुत ही हल्के असली होने की गारंटी भी नहीं थी वैसे भी बारात में कोई कसौटी लेकर तो चलता नहीं,इसलिए सब अपने अपने गहनों को दिखाने में मन धन और तन से दिखाने में लगीं थीं।
उनके आसपास कुछ ऐसे भी बाराती थे जिनका मन नाचने को हो रहा था मगर अपनी इमेज मेंटन करने के चक्कर में अपनी नाक ऊपर किये चल रहे थे और कुछ ऐसे थे जो डर रहे थे कि नाचते लोगों में से कोई उन्हें देख के नाचने को न बुला ले, ऐसे लोगों की चाल में सकुचाहट थी,बारात के दोनो बार्डर पे कई औरतें लाइट को अपने सरों पे ढोते हुए चल रहीं थीं उनपे भला किसी का ध्यान क्यों कर होता ,जो रोशनी अपने सरों पे ले के चलते हैं उनके चेहरे हमेशा अँधेरे में रहते हैं।
निम्न मध्यमवर्गीय ये बारात मूलगंज चौराहे से रामबाग की कन्हैयालाल धर्मशाला की ओर बढ़ रही थी और संकरी मेस्टन रोड पर जाम लगाने में पूरी तरह सहायक सिद्ध हो रही थी।
घोड़ी पे बैठे दूल्हे राजा सफ़ेद कलर का सूट पहने हल्के नशे में थे उनके गले में दस दस के नोटों से बनी माला पड़ी थी अब बारात में उन्हें ये माला पहनने की सलाह किस जीजा ने दी ये विषय यहाँ छोड़ देते हैं,आसपास की दुकानों के और आते जाते लोग बारात का पूरा स्वाद अपने चक्षुओं से ले रहे थे, बारात ताकने वाली भीड़ में एक उच्च मध्यम परिवार के कुछ लोग जिनकी कार सड़क के बीच वाली पार्किंग में फँसी थी दूल्हे को देख आपस में बोले "ये दूल्हा तो नशे में लगता है...ये लोग अपनी शादी को भी नहीं छोड़ते...चरसी कहीं के..." तभी उनमें से एक बोला "ओह माय गॉड लुक ऐट हर... ये तो प्रेग्नेंट लगती है...ऑ.. बेचारी फिर भी इतनी भारी लाइट सर पे उठाए जा रही है.." सबने उस ओर देखा और अपने अपने मोबाइल से उस गर्भवती महिला की धड़ाधड़ तस्वीरें लेने लगे।
घोड़ी पे बैठे सुशील का ध्यान उन फोटो खींचते लोगों पे गया और उसने उस महिला को भी देखा,वो उतरना चाहता था पर थोड़ी सकुचाहट और जाम लग जाने के डर से नहीं उतरा पर उसका मन बेचैन सा हो चुका था,धीरे धीरे बारात आगे बढ़ के कॉनपोर कोतवाली के सामने पहुँची वहाँ रास्ता चौड़ा होने के कारण रोड पे काफी जगह थी वो झट से घोड़ी से उतरा और भाग के उस लाइट उठाये औरत के पास पहुँचा उसने देखा कि करीबन 30 या 32 साल की वो महिला पेट से थी और बोझ उठाने के कारण इतनी सर्द रात में भी पसीने से तर थी सुशील का हाथ अपने गले में पड़ी नोटों की माला पे गया,माला तोड़ के उसने महिला के कंधे पे रखी और उसके सर से लाइट उठा के अपने हाथों में पकड़ ली।
बारात को अचानक ब्रेक लग गए ऑर्केस्ट्रा रुक गया सुशील के पिताजी दौड़ते हुए उसके पास आए और पूछा क्या हुआ तो उसने कहा "बाबू...सभी लाइट वाली औरतों का पूरा हिसाब कर दो.. और रिक्सा का पैसा भी दीजियेगा...बारात अब बगैर लाइट के आगे जायेगी..और इन सबसे कह दो खाना खा के ही जाएं" यह कहकर रौशनी के गुलदस्ते को जमीन पे रख वो घोड़ी की ओर जाने लगा उसके दोस्त नाचना छोड़ के उसके पास आए और पूछने लगे "क्या हुआ बे...उसके साथ फोटू खींचा रहे थे क्या.. नशा ज्यादा करे हो का"
सुशील उन्हें देख के बस मुस्कुराया और बुदबुदाते हुए घोड़ी पे चढ़ गया" बड़का लोग अच्छी बात करते हैं..फोटू भी अच्छी खींचते हैं बस करते कुछ नहीं...फेसबुकिया नशेड़ी कहीं के"
बारात बगैर लाइट के आगे बढ़ने लगी,ऑर्केस्ट्रा फिर शुरू होता है "ये देस है वीर जवानों का...अलबेलों का...मस्तानों का... इस देस का यारों... होSSSय...
क्या कहना.............................।"
#तुषारापात®™
ऑर्केस्ट्रा के उस रथनुमा पीपे के पीछे,दूल्हे सुशील के सारे दोस्त देशी माधुरी के ईंधन की ऊर्जा से ओतप्रोत जनरेटर बने थे और गाने पे ऐसे झूम रहे थे मानो होड़ चल रही हो कि किदवई नगर का सबसे टॉप का बाराती नचनिया कौन है,उनके पीछे,लड़कियाँ,महिलाएं सौंदर्य प्रसाधन की दुकान बनी,डांस करते लड़कों को देख मंद मंद मुस्कुरा रही थीं,कोई कटरीना की तरह का लाचा तो कोई बाजीराव मस्तानी की दीपिका वाले लहंगे की सस्ती नकल पहन के इतरा रही थी, महिलाएं छपरे वाले गहनों से लदीं थीं जो बस देखने में ही भारी लगते थे,थे बहुत ही हल्के असली होने की गारंटी भी नहीं थी वैसे भी बारात में कोई कसौटी लेकर तो चलता नहीं,इसलिए सब अपने अपने गहनों को दिखाने में मन धन और तन से दिखाने में लगीं थीं।
उनके आसपास कुछ ऐसे भी बाराती थे जिनका मन नाचने को हो रहा था मगर अपनी इमेज मेंटन करने के चक्कर में अपनी नाक ऊपर किये चल रहे थे और कुछ ऐसे थे जो डर रहे थे कि नाचते लोगों में से कोई उन्हें देख के नाचने को न बुला ले, ऐसे लोगों की चाल में सकुचाहट थी,बारात के दोनो बार्डर पे कई औरतें लाइट को अपने सरों पे ढोते हुए चल रहीं थीं उनपे भला किसी का ध्यान क्यों कर होता ,जो रोशनी अपने सरों पे ले के चलते हैं उनके चेहरे हमेशा अँधेरे में रहते हैं।
निम्न मध्यमवर्गीय ये बारात मूलगंज चौराहे से रामबाग की कन्हैयालाल धर्मशाला की ओर बढ़ रही थी और संकरी मेस्टन रोड पर जाम लगाने में पूरी तरह सहायक सिद्ध हो रही थी।
घोड़ी पे बैठे दूल्हे राजा सफ़ेद कलर का सूट पहने हल्के नशे में थे उनके गले में दस दस के नोटों से बनी माला पड़ी थी अब बारात में उन्हें ये माला पहनने की सलाह किस जीजा ने दी ये विषय यहाँ छोड़ देते हैं,आसपास की दुकानों के और आते जाते लोग बारात का पूरा स्वाद अपने चक्षुओं से ले रहे थे, बारात ताकने वाली भीड़ में एक उच्च मध्यम परिवार के कुछ लोग जिनकी कार सड़क के बीच वाली पार्किंग में फँसी थी दूल्हे को देख आपस में बोले "ये दूल्हा तो नशे में लगता है...ये लोग अपनी शादी को भी नहीं छोड़ते...चरसी कहीं के..." तभी उनमें से एक बोला "ओह माय गॉड लुक ऐट हर... ये तो प्रेग्नेंट लगती है...ऑ.. बेचारी फिर भी इतनी भारी लाइट सर पे उठाए जा रही है.." सबने उस ओर देखा और अपने अपने मोबाइल से उस गर्भवती महिला की धड़ाधड़ तस्वीरें लेने लगे।
घोड़ी पे बैठे सुशील का ध्यान उन फोटो खींचते लोगों पे गया और उसने उस महिला को भी देखा,वो उतरना चाहता था पर थोड़ी सकुचाहट और जाम लग जाने के डर से नहीं उतरा पर उसका मन बेचैन सा हो चुका था,धीरे धीरे बारात आगे बढ़ के कॉनपोर कोतवाली के सामने पहुँची वहाँ रास्ता चौड़ा होने के कारण रोड पे काफी जगह थी वो झट से घोड़ी से उतरा और भाग के उस लाइट उठाये औरत के पास पहुँचा उसने देखा कि करीबन 30 या 32 साल की वो महिला पेट से थी और बोझ उठाने के कारण इतनी सर्द रात में भी पसीने से तर थी सुशील का हाथ अपने गले में पड़ी नोटों की माला पे गया,माला तोड़ के उसने महिला के कंधे पे रखी और उसके सर से लाइट उठा के अपने हाथों में पकड़ ली।
बारात को अचानक ब्रेक लग गए ऑर्केस्ट्रा रुक गया सुशील के पिताजी दौड़ते हुए उसके पास आए और पूछा क्या हुआ तो उसने कहा "बाबू...सभी लाइट वाली औरतों का पूरा हिसाब कर दो.. और रिक्सा का पैसा भी दीजियेगा...बारात अब बगैर लाइट के आगे जायेगी..और इन सबसे कह दो खाना खा के ही जाएं" यह कहकर रौशनी के गुलदस्ते को जमीन पे रख वो घोड़ी की ओर जाने लगा उसके दोस्त नाचना छोड़ के उसके पास आए और पूछने लगे "क्या हुआ बे...उसके साथ फोटू खींचा रहे थे क्या.. नशा ज्यादा करे हो का"
सुशील उन्हें देख के बस मुस्कुराया और बुदबुदाते हुए घोड़ी पे चढ़ गया" बड़का लोग अच्छी बात करते हैं..फोटू भी अच्छी खींचते हैं बस करते कुछ नहीं...फेसबुकिया नशेड़ी कहीं के"
बारात बगैर लाइट के आगे बढ़ने लगी,ऑर्केस्ट्रा फिर शुरू होता है "ये देस है वीर जवानों का...अलबेलों का...मस्तानों का... इस देस का यारों... होSSSय...
क्या कहना.............................।"
#तुषारापात®™