Wednesday 1 August 2018

दोराहा

"एक बार फिर कहता हूँ.. याद रखिए..अगर आप चाहते हैं कि आपका केतु अच्छा फल दे तो कोई भी कुत्ता..आपके द्वार से खाली पेट न जाए...इसी तरह अगर गुरु..यानी बृहस्पति के अच्छे फल चाहियें तो ध्यान रखिए कि कोई भी गाय..जो आपके गेट पे आए भूखी न जाने पाए.." ज्योतिष सम्मेलन में अंतिम वक्ता के तौर पे एक ज्योतिषी ने अपने भाषण का समापन इन वचनों के साथ किया।

उत्साही कार्यक्रम संचालक ने सत्र के समापन की घोषणा कर, आगे कहा "सभी अतिथियों से आग्रह है कि कृपया भोजन कक्ष की ओर प्रस्थान करें और कोई भी पुरुष या स्त्री बिना भोजन किये..भूखा..निःशुल्क परामर्श कक्ष में कुंडली विवेचन के लिए न जाए, उसका इतना कहना था कि अंतिम वक्ता के वचनों को,कार्यक्रम संचालक की इस घोषणा से मिलाकर निकले अर्थ से वो मन ही मन मुस्कुरा उठा।

भोजन उपरांत दोपहर 2 से शाम 7 बजे तक आमजनों का कुंडली देखने का कार्यक्रम आरम्भ हुआ, सैकड़ों लोग एक साथ कक्ष में प्रवेश करते हैं और अपनी अपनी पसंद के ज्योतिषियों के पास जाकर उनके सामने पड़ी कुर्सियों पे बैठ जाते हैं और बाकी आसपास खड़े होकर अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगते हैं। वो थोड़ी देर से परामर्श-कक्ष में पहुँचता है और सबसे आखिरी वाली मेज को खाली देख उस ओर बढ़ने लगता है, अभी वो कुछ ही कदम चला होगा कि अन्य ज्योतिषियों के आसपास खड़े लोग उसके पास आकर प्रणाम पंडित जी,गुरु जी प्रणाम कह कहकर उसके पैरों को छूने लगे अचानक से हुए इस चरण स्पर्श की होड़ से वो आश्चर्य से भर जाता है न वो जाति का पंडित था और न ही कोई नामी ज्योतिषी वो तो मामूली सा एक लेखक था जो कि शौकिया धोती कुर्ता पहन लेता था उसके पास ज्योतिष विज्ञान की डिग्री तो थी पर विशाल भीड़ का अनुभव शून्य था।

वो दौड़ के अपनी मेज पर पहुँच जाना चाहता था पर लोगों की भारी श्रद्धा ने उसके पैरों को ऐसा कर दिया था मानो वो जल में पग बढ़ा रहा हो,अपनी ओर ताकते अन्य ज्योतिषियों को भी उसने देखा वे सब बहुत बड़े नामी ज्योतिषी थे जो अभी कुछ देर पहले गूढ़ भाषण दे रहे थे और अपने साथियों के मोबाइल में कैद होने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे,मंच पर मुख्य अतिथि से सम्मान का कोई भी मौका उन्होंने नहीं छोड़ा था और उस माला अर्पण की तस्वीरें भी तुरंत ऑनलाइन करते जाते थे। ज्योतिषियों की आग्नेय दृष्टि से सहमा वो उनसे नजरें हटा लेता है और धीरे धीरे अपनी कुर्सी तक पहुँचने का प्रयास करने लगता है।

तभी एक वृद्ध पुरुष उसके पैरों को छूने का प्रयास करता है वो तुरंत अपने आपको पीछे खींचता है और कहता है "मैं आपसे बहुत छोटा हूँ.. कृपया मेरे पैर पड़के मुझे शर्मिंदा न करें..." उस वृद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा "विधाता की लेखनी बाँच लेने वाला छोटा कैसे हो सकता है..आज गुरुपूर्णिमा भी है और चंद्रग्रहण भी अब इस सरस्वती पुत्र पर है वो किसका चुनाव करता है"
वो उस वृद्ध की यह बात सुनकर चौंक जाता है पर जब तक वो अपनी कुर्सी तक पहुँचता है,वृद्ध उसे फिर कहीं दिखाई नहीं देता।

उसे कुंडली दिखाने आए लोगों में मध्य और निम्न दोनो वर्गों के लोग थे किसी को मकान बनवाने की चिंता थी तो किसी को लड़की की शादी की,कोई अपनी नौकरी छूट जाने से परेशान था, कोई व्यापार में घाटा उठा के बर्बाद हो चुका था,कोई बीमारी से दुखी था,किसी का पति शराबी था तो कोई सरकारी नौकरी के लिए परेशान था चूँकि परामर्श निःशुल्क था तो लोग पाँच सात कुंडली दिखा रहे थे जाते जाते कुछ लोग उसके पैर छू जाते थे तो कुछ वृद्ध आँख में पानी लिए उसके हाथ चूम,ढेरों दुआएं दे जाते थे।

कुंडलियाँ देखते देखते शाम के पाँच बजकर पैंतालीस मिनट हो जाते हैं, मुख्य आयोजक का पुत्र उसके पास आकर फुसफुसाता है "कुछ वी आई पी आए हैं और वे सभी किसी अच्छे वैदिक ज्योतिषी को कुंडली दिखाना चाहते हैं तो पिताजी ने मुझे आपको बुलाने भेजा है"

वो जानता था कि मुख्य आयोजक उसके दिए आज के भाषण से उसकी प्रतिभा आँक चुके हैं पर इस तरह अपने पास खड़े लोगों को छोड़कर कैसे जाया जा सकता है तो उसने कहा "पर अभी तो यहाँ बहुत भीड़ है...कइयों ने तो काफी लंबा इंतजार किया है..ऐसे कैसे छोड़ के.."

आयोजक के पुत्र ने लोगों से थोड़े से रौब में कहा और उसे चलने का इशारा किया "पंडित जी..बस पंद्रह मिनट में आ रहे हैं..इन्हें जरा चाय पानी तो कर लेने दीजिये" आयोजक के दबाव में और थोड़ा मन बदलने के इरादे से वो उसके साथ चल देता है।

कोई कहीं का डायरेक्टर, कोई सचिव तो कोई कहीं का बड़ा अधिकारी कोई बिल्डर है, कोई छोटा तो कोई बड़ा राजनेता और कोई व्यापारी,शहर के सभी लोग उससे मिलते हैं और हाथ मिलाके उसका अभिवादन करते हैं, किसी को चुनाव जीतना है,कोई बड़ी बिल्डिंग बनाने का शुभमुहूर्त जानना चाहता है, किसी के बच्चे विदेश में सेटल हैं क्या वो वापस आएंगे ये जानना है,किसी का डाइवोर्स अटका है तो कोई व्यापार बढ़ाने को बड़ी से बड़ी पूजा कराना चाहता है वो उन सबकी समस्याओं का हल बताता जाता है बदले में उसे फूल, फल और अनेक उपहार मिलते जाते हैं और साथ ही घर आने का निमंत्रण भी और धन इत्यादि की पेशकश भी, जिसे हँस के टाल के वो सबसे विदा लेता है अब आठ बज चुके थे, परामर्श कक्ष से भी लोगों को कल आने के लिए कहकर वापस भेजा जा चुका था।

उसका लेखक मन लोगों के अलग अलग दुख सुनके पहले से ही बहुत विचलित था किसी तरह भोजन कर वो अपने होटल की ओर बढ़ जाता है। रास्ते भर वो सोच में डूबा रहता है विक्रमादित्य और राजा भोज की सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ उसे याद आ रहीं हैं, गाइड फिल्म के देवानंद के जैसी स्थिति में वो स्वयं को पा रहा है,अपनी शक्ति और ज्योतिष की सीमा वो जानता है उसे ऐसा लग रहा है मानो उसे किसी ऊँचे सिंहासन पर बैठा दिया गया हो और उसके पैर जमीन न छू पा रहे हों और उसे न्याय करना है,उसे चिंता हो रही है,मन में अनेक भय पैदा हो रहे हैं वो किताबों में डूब जाना चाहता है वो अपना कद और बढ़ाना चाहता है  ताकि वो अपने पैर धरा पे टिका के इस सिंहासन का संतुलन बना सके।

दिन भर की गतिविधियों से विचलित हुआ उसका संवेदनशील मन गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपने गुरु को फोन करने को व्याकुल हो उठता है वो गुरु को प्रणाम कर पूरी बात बताता है और उनसे मार्गदर्शन माँगता है
उधर से गुरुजी आशीर्वाद देते हुए गंभीर स्वर में कहते हैं "पुत्र आज तूने सामान्य लोगों के दुःख भी सुने और तथाकथित विशिष्टजनों के सुख से उत्पन्न दुःख भी...तेरे एक ओर इस समय प्रतिष्ठा,मान-सम्मान,नाम-प्रसिद्धि और अपार धन का मार्ग है और दूसरी ओर मैले कुचैले लोगों की श्रद्धा, आस्था,विश्वास, और दुआएं राह में कंकड़ों की तरह पड़ी हैं जिसपर तुझे नग्न पैर भी चलना पड़ सकता है...तू दोनो मार्गों का उत्तम पथिक सिद्ध हो सकता है परंतु दोनो मार्गों पे एक साथ नहीं चल सकता... सरस्वतीपुत्र प्रायः गुमनाम रहते हैं और लक्ष्मीपुत्र प्रायः बदनाम..आज आषाढ़ पूर्णिमा भी है और चंद्रग्रहण भी..चुनाव तेरे हाथ में हैं..आशीर्वाद"

गुरु की अंतिम पंक्ति सुनकर वो आश्चर्य से भर जाता है,उन्हें प्रणाम करता है और फोन बंद कर तुरंत स्नानघर की ओर जाता है वो अपने दोनो हाथों को रगड़ रगड़ के साफ करने लगता है,वो स्वयं को शुद्ध कर रहा है परन्तु क्यों? क्या वो मैले कुचैले लोगों के स्पर्श और चुम्बनों को  धो रहा है या फिर उससे हाथ मिलाने वाले सफेद कॉलर वालों के निशानों को साफ कर रहा है? या ज्योतिषी खुद अपने भविष्य को लेकर दोराहे पर है?

~तुषारापात®