Thursday 28 November 2019

कर्म-फल

"यदि जय-पराजय का कोई अर्थ ही नहीं है तो भगवन युद्ध क्यों?" अर्जुन ने पूछा

कृष्ण ने भी एक प्रश्न कर दिया "तुम जब किसी लक्ष्य का संधान करते हो तो तुम क्या देखते हो...लक्ष्य या बाण?

अर्जुन ने हाथ जोड़ उत्तर दिया "केशव.. संधान का अर्थ ही है बाण की नोक से लक्ष्य का मिलान करना...मैं बाण की नोक पे लक्ष्य देखता हूँ"

"क्या बाण की नोक से लक्ष्य का मिलान कर लेने मात्र से लक्ष्य साधित हो जाता है" कृष्ण ने एक और प्रश्न किया

अर्जुन और दुविधा में आ गया "नहीं उसके लिए तो बाण को धनुष से छोड़ना होगा"

"तो इससे यह स्पष्ट हुआ कि लक्ष्य भेदन से पहले धनुष का जितना महत्त्व है लक्ष्य भेदन के उपरांत उतना महत्त्व नहीं रह जाता.. तो क्या यह कहा जा सकता है कि लक्ष्य भेदने के लिए मात्र बाण ही महत्त्वपूर्ण है?"

अर्जुन ने शीघ्रता से उत्तर दिया "नहीं केशव यह मैं कैसे कह सकता हूँ...वास्तव में लक्ष्य भेदन हेतु धनुष-बाण और सिद्ध धनुर्धर तीनों ही महत्त्वपूर्ण हैं"

"तीन नहीं..चार..धनुष,बाण और सिद्ध धनुर्धर के साथ धनुर्धर के लक्ष्य भेदने का कर्म..कहने को मैं ये भी कह सकता था कि युद्ध का ही कोई अर्थ नहीं है...हे अर्जुन! जय पराजय का मेरी ओर से देखने पर कोई महत्त्व नहीं है परन्तु इस युद्ध की नोक पर जय है या पराजय इसकी चिंता छोड़ कर तुझे युद्ध करना है ऐसा मेरा तात्पर्य है.. तुझे बाण छोड़ना है अर्थात लक्ष्य की दिशा में कर्म करना है..मुझे लक्ष्य भेदना है..फल देना है" कृष्ण ने कहा और चुप हो गए।

#तुषारापात®