Friday, 10 July 2015

इश्क की घड़ी

घड़ी देखनी आती हो तो पढ़ना :-

'इश्क का अलार्म बज उठा था तब
दिसंबर की एक सुबह देखा था जब
दस बजके दस मिनट की तरह तुम्हें
अलसाई सी अंगड़ाई लेते हुए

खड़े रहते थे एक झलक को
छह बजे की तरह सीधे साधे से
दिन बिताये सेकंड की सुई की तरह
पीछे पीछे चक्कर लगाते हुए

गर्म दिल का लहू सर्द पड़ गया
अचानक रुककर जब पूछा था
कितना बजा है तुम्हारी घडी में
तुमने आँख मिलाकर मुस्कुराते हुए

घड़ियाँ मिल चुकी थी अपनी अब
वक्त बन रहा था देखा तुम्हें जब
सवा नौ बजे की तरह बाहें फैला के
अपने आगोश में मुझे बुलाते हुए

तीन परों की उड़नतश्तरी सी
बनायीं थी इश्क की घड़ी भी
बारह बजे की तरह तुमने
मुझको अपने गले लगाते हुए

फिर अचानक कुछ हुआ बेशक
सर्दी में जम गया दौड़ता इशक
जनवरी की एक शाम देखा तुम्हे
एक नयी घड़ी में चाबी भरते हुए

किसी और को नया वक्त बताके
मुझे सात बजके बीस मिनट बनाके
कहाँ चले गए तुम ?
आओ जरा देखो तो,अपाहिज वक्त को मेरे
घड़ी की सुइयों की बैसाखियों पे लंगड़ाते हुए'

-तुषारपात®™

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