Thursday 2 July 2020

हो गए कलंदर निकले जब घर से

वक़्त का अच्छा पता चलता है ग़ज़र से 
कटता है बुरा वक्त दुआओं के असर से 

बेटों ने सिखाया के परिंदे छोड़ जाते हैं 
आख़िरी पत्ता जब ख़र्च हो जाये शजर से 

खट्टा हो जाता है मन गाँव के गन्नों का 
टॉफियाँ लाते हो जब भर भर के शहर से 

आँगन में बन गये उसके चार गुसलख़ाने 
ज़िंदगी कट रही है उसकी अच्छी बसर से 

पहुँच जाता है जब नई मंज़िलों पे कोई
तो नाता तोड़ लेता है पुरानी हर डगर से 

पूरे कहाँ हुये अभी उसके नौ सौ चूहे 
उसे अभी क्या मतलब हज के सफ़र से 

सीने से लिपटा के थे सोये किताब 'तुषार'
हरजाई लिखे जाओगे क़लम की नज़र से

~#तुषारापात