Friday 22 January 2016

सड़क का सीना

आज हमारे लखनऊ में माननीय प्रधानमंत्री जी आये जिससे हमारे यहाँ की सड़कें 56 इंच ज्यादा चौड़ी देखीं गईं

-तुषारापात®™

इत्र

"आयत..इश्क इत्र की तरह होता है..ये..जिससे होता है वो तो महकता है...पर जिसे होता है वो ...बस...खाली शीशी सा रह जाता है" अपने हाथ में पकडे खाली ग्लास को उसे दिखाते हुए मैंने कहा

"एक पैग लगाने के बाद...ये शायराना होने की आदत गयी नहीं तुम्हारी... वेद..जानते हो खुश्बू की भी एक उम्र होती है..लगती है..खूब महकती है और.. फिर हवा में गुम हो जाती है..उसे बाँध के नहीं रखा जा सकता.."उसने मेरे हाथ से ग्लास लेकर टेबल पे रखते हुए सूनी आँखों से कहा

"शायद..पर इतने सालों बाद..आज फिर ये खुश्बू मेरे सामने है..और इत्र की खाली शीशी उसे भर लेना चाहती है.." मैंने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की

"वेद..नो..कंट्रोल...योर सेल्फ..मुझे भी बड़ा अजीब लगा था ये जानकर कि तुम और हदीस दोनों एक ही कंपनी में हो...और देखो..एक ही शहर... यहाँ लखनऊ में पोस्टेड हो..आई मीन....मतलब यार..ये कोई फिल्म है क्या... आये दिन किसी न किसी पार्टी में तुमसे सामना हो जाता है.." हदीस पे अपनी नजर जमाये हुए उसने कहा

"जानती हो अब मन करता है...शादी कर लूँ.. तुमसे भी सुन्दर किसी लड़की से ..शायद उसकी कमर में मेरी बाहें देखकर तुम्हें अहसास होगा कि मुझे कैसा लगता है जब हदीस..."बात अधूरी छोड़ के मैंने एक सिगरेट सुलगा ली और उसकी उस लट को देखने लगा जो उसे हमेशा परेशान करती थी

"अच्छा लगेगा..मुझे बहुत खुशी होगी..जल्दी शादी कर लो..तब शायद तुम मेरा दर्द बेहतर समझ पाओगे...शायद...तब भी नहीं" उसने अपनी उस लट को कान पे चढाने की नाकाम कोशिश की..हमेशा की तरह...और मेरे हाथ से सिगरेट छीन के फेंक दी

"वैसे यूँ भी मिलना बुरा नहीं है..इतने सालों बाद फिर से वही कशमकश होती है...कौन सी साड़ी पहनूँ..कैसा मेकअप करूँ...दिल में हल्की ही सही पर एक गुदगुदी तो होती है..कि पार्टी में तुम्हारी आँखें मुझे देख रही होंगी" उसने दाँतो से अपने निचले होठ को हलके से चुभलाते हुए कहा...ये वो तब किया करती थी जब थोड़ा सा शरमाती थी और किसी बात पे थोड़ी अनमनी सी होती थी


"पर मुझे तो तुम विद आउट मेकअप ज्यादा अच्छी लगती हो जैसे सुबह सुबह उठती थीं बिलकुल रॉ ब्यूटी..." पुरानी यादों में चला गया था मैं

"मेरे लिए अभी भी तैयार होती हो..खाली शीशी से...उसकी बची हुई.. खुश्बू भी चुराई जा रही है" मैंने बनावटी शिकायत की

"वेद... एक कबाड़ी के लिए सेन्ट की खाली शीशी बड़ी कीमती होती है"
एक पुकार सी लगी मुझे उसकी इस बात में

मेरी आँखे उसकी आँखों में थीं और मेरे मुंह से बड़ी धीमी आवाज निकली
"काश..ये आयत..मुझपे उतरती"

उसकी पलकों पे ओस उतर आई...उसके होठ मानो मेरे होठों से लगकर.. मुझमें ....इत्र ही इत्र भर देना चाहते थे..पर दूर खड़े हदीस को देखते हुए उसने बस मुझसे ये कहा और मेरे पास से उठकर उसके पास चली गई "आयतें...वेद की नहीं हुआ करती"

#वेद_की_आयत_:_01

-तुषारापात®™