चक्षु कमंडल से मेरे
छलकते,ये
श्राप के छींटे
तुझ पर पड़ जाएं
सात तहों के
अम्बर के
परिधान तेरे जल जाएं
जनम मरण
काल अकाल से परे
ओ भाग्यविधाता
जा इस क्षण ही
करतल रेखाओं में तेरी
समय चक्र पड़ जाएं
नहीं स्वीकार,तेरी
निरंकुश सत्ता,मैं
विद्रोह करता हूँ
भंग में लीन भगवान
निर्दयी,तुझसे,भंग
अपना मोह करता हूँ
मोक्ष का मेरा भाग
संसार से गुणन करता हूँ
तेरा सब ऋण,धन करता हूँ
ईश्वर तुझे क्षमा,मैं
अपना यह जनम करता हूँ।
~तुषारापात®