Thursday 5 October 2017

अय्याशी

"वाह मेरे राजा...आज तो पहली तनख़्वाह पाए हो..चल चलके कहीं अय्याशी मारते हैं" विकास के साथ काम करने वाले उसके दोस्त मनोज ने कहा पर विकास के न के अंदाज़ में सर हिलाने पर मनोज आगे बोला "क्यूँ बे..माँ तेरी रही नहीं..बीवी अभी है नहीं..अठ्ठारह के हो चुके हो..पइसा का ब्याह के लिए बचाना है...चल न ठेके पे चलते हैं..सुना है आज शा..लू की म..स्तत नौटंकी भी है"

विकास तनख़्वाह के पैसे जेब मे संभालते हुए बोलता है "नहीं यार आज नहीं वैसे भी मुझे इस तरह की अय्याशी का शौक नहीं" वो किसी तरह उससे पीछा छुड़ा के तेज कदमों से चल देता है पीछे से मनोज आवाज़ देता है "तो किस तरह की अय्याशी पसन्द है तुझे"

वो मनोज की बात को अनसुना करके कदमों को और तेज कर देता है चलते हुए उसके जहन में उसके बचपन की एक याद उभरने लगती है.......................(पूर्वदृश्य/फ्लैशबैक)............................

"हिच्च..हिच्च..हिक...अम्मा..अम्म.." खाना खाते खाते अचानक से जब विकास को हिचकियाँ आने लगीं तो उसने सुषमा को पुकारा, सुषमा जल्दी से पानी का गिलास लेकर उसकी ओर दौड़ी

"कितनी बार कहा है तुमसे कि पानी लेकर खाने बैठा करो.." वो अपने आठ साल के बच्चे को डाँटती भी जा रही थी और पानी भी पिला रही थी.."रोज का तुम्हारा ये नाटक है...जब देखो तब हिच्च हिच्च..छोटा छोटा कौर काहे नहीं खाता तू"

विकास के गले मे रोटी का टुकड़ा फँस गया था इसी कारण उसे हिचकियाँ आ रहीं थी और उसकी आँखों में पानी भी आ गया था.. सुषमा के पानी पिलाने से उसे राहत हुई तो वो खिसिया के उससे कहता है " छोटा कौर...और कितना छोटा कौर खाऊँ..इतनी जरा सी दाल में पूरी रोटी कैसे खाया करूँ" अपने छोटे भाई बहनों की ओर वो गुस्से से देख के आगे कहता है "सारी दाल तो ये मुन्ना.. विजय.. और ये सुन्नु गटक जाते हैं"

ये बात सुनते ही उसके पास बैठी सुषमा ने उसे गले से लगा लिया "अरे मेरा प्यारा बेटा..कोई बात नहीं..कल तेरे लिए ढेर सारी दाल बना दूँगी..ले अब ये रोटी खत्म कर.." सुषमा ने उसे बहलाने के लिए कहा और दाल की खाली कटोरी में चुटकी भर नमक और थोड़ा पानी डाल कर उसमें रोटी का टुकड़ा डुबो के उसे खिलाने लगी

विकास ने उसके हाथ के कौर को हटाते हुए कहा "अम्मा तुम रोज यही कहती हो..बाबा जब भगवान के घर से वापस आएंगे..तो उनसे..न. तुम्हारी खूब शिकायत करूँगा"

उस वक्त उसने ये बात कह दी थी और उठ कर भाग गया था पर आज धुँधली याद में जब उसे अपनी माँ की आँखों में आए नमकीन पानी की बूँदें  उसी दाल की कटोरी में गिरते दिखाई दीं तो वो अतीत से दौड़ता हुआ वर्तमान में आ गया, वो लगभग भागते हुए अपने कमरे में पहुँचा और उखड़ती साँसों पे काबू पाने की कोशिश करने लगा छोटे भाई मुन्ना ने उसे आया देखकर कहा "दादा तरकारी नहीं है..रोटी बना लूँ..चुपड़ के खा लेंगे..या कुछ पैसे दो विजय से तरकारी मँगवा.." वो आगे कुछ और कहता कि विकास ने कहा "विजय..सुन्नु..और तुम..चलो सब फटाफट तैयार हो जाओ..आज दावत में चलना है"

वो सबको लेकर पास के एक साधारण से ढाबा कम रेस्टोरेंट में जाता है सब सहमे से थे पर खुश भी बहुत थे ,वेटर आता है आर्डर के लिए पूछता है तो विकास उसे दो अलग अलग सब्जी..कुछ रोटियां,और दाल का आर्डर करता है वेटर आर्डर सुनता है और पूछता है "चावल?"

विकास सबकी ओर देखता है किसी ने भी चावल की इच्छा नहीं जताई तो वो कहता है "नहीं"

"तुम चार लोग हो..कोई और भी आएगा क्या?" वेटर हैरानी से पूछता है

"नही" विकास ने जवाब दिया, वेटर ने कहा "तो चार आदमी और फुल दाल इतनी..."

इससे पहले कि वेटर आगे कुछ कहता विकास ने रौबीले स्वर में उससे कहा " एक आलू मटर..एक सूखी आलू गोभी...बारह रोटी..और 'छह' फुल दाल .." वेटर कंधे उचका कर आर्डर लाने चला जाता है।

-तुषारापात®