Friday 7 August 2015

तुम इश्क और तुम्हारा शहर

तुम्हारे साथ साथ
तुम्हारे शहर से भी इश्क किया है मैंने
वो फाफामऊ पुल की तरह
मेरे दिल की थरथराहट
प्रयाग स्टेशन पे रुकी
ट्रेन पे घंटों की झुंझलाहट
आउटर से देखना
काली प्रसाद इंटर कॉलेज का मैदान
वो पंद्रह मिनट की
स्टेशन की दूरी में गिनना सारे मकान
प्लेटफार्म नंबर दस से
एक तक की वो लंबवत दूरी
लम्बे लम्बे कदमों से भी
कमबख्त होती नहीं थी पूरी
वो भारद्वाज आश्रम की मखमली घास
सरस्वती घाट पे तुमसे मिलने की आस
आनंद भवन की
चटकीली धूप और नक्षत्रशाला की छाँव
संगम में दूर तक
नैनी पुल तक जाती हंस वाली हमारी नाँव
वो लोकनाथ का डोसा
कटरे पे नेतराम की कचौड़ी
मयोहाल से
यूनिवर्सिटी तक की भागा दौड़ी
मेडिकल पे
टमाटर की वो चाट चटोरी
सिविल लाइन्स की
सोफ़िया लॉरेंस की गिलौरी
झूंसी और सोराँव की
तुम्हारी सारी सखी सहेलियाँ
खुल्दाबाद से मुड़ती
लूकरगंज की सारी गलियाँ
गंगा ने
गोमती से मिला लिया था हाथ
इन सबसे
इश्क है मुझे प्रिये तुम्हारे साथ ।

-तुषारापात®™