Thursday 9 July 2015

मंडे मॉर्निंग : सन्दर्भ संग व्याख्या

"उठो भी अब....सोती ही रहोगी क्या...चलो..अब जाग जाओ" चादर खींचते हुए सन्दर्भ ने फुसफुसाते हुए कहा

"हूँ....हूँ... सोने दो न ...कभी कभी तो कोई मंडे...छुट्टी का होता है" व्याख्या चादर से मुंह ढकते हुए आलस में डूबी आवाज में बोली

सन्दर्भ ने बड़े प्यार से चादर से निकली उसकी लटों में उंगलियाँ पिरोते हुए कहा "9 बज गए हैं...बदली छाई है...मौसम ने आज सूरज को भी छुट्टी दे दी है और मेरा चाँद मुंह छुपा के सो रहा है"

"हाँ...क्योंकि ....चाँद रात में निकलता है सुबह नहीं...और वैसे भी घर में पहले आदमी लोग ही उठते हैं औरते बाद में" व्याख्या ने उसे चिढ़ाया

"अरे...मैडम..ये कहाँ देख लिया..ये तो कहीं कह मत जाना..ऐसा कहीं नहीं होता"

"होता है..मेरे घर में ही ..पापा सबसे पहले उठते हैं..पूजा करते हैं...फिर मम्मी उठती हैं" व्याख्या करवट बदल के कहती है

"अच्छा अच्छा ..होता होगा..इतनी रोमैन्टिक सुबह...मैं तुम्हारे पापा को याद नहीं करना चाहता" इस बार सन्दर्भ ने निशाना लगाया

"राइटर बाबू ...तुम कभी मेरे पापा जैसे बन भी नहीं सकते......अच्छा पहले मुझे तुम्हारे हाथ की चाय पीनी है...बना लाओ न प्लीज" व्याख्या ने दुलार दिखाते हुए चादर को ढके ढके ही कहा

"अच्छा जिससे तुम्हे और टाइम मिल जाओ पसरे रहने का...ठीक है बना के लाता हूँ...पर उठ के बैठो..मैं यूँ गया और यूँ आया"

"हूँ...हूँ...जाओ तो पहले"

कुछ देर बाद सन्दर्भ चाय बेड के साइड टेबल पे रखते हुए उसे फिर जगाता है "लेक्चरर साहिबा....प्याली में गर्मागर्म इश्किया चाय ....तुम्हारे शक्करी होंठ छूने को बेताब है"

व्याख्या भावुक सी हो जाती है "सन्दर्भ जानते हो...तुम्हारी तीखी तीखी कोहनी की चुभन से....जब तुम मुझे उठाते हो तो..तो...सुबह और मीठी हो जाती है....." फिर आवाज़ कुछ यूँ बदलती है उसकी जिसे सन्दर्भ बहुत अच्छी तरह से जानता है "आ जाओ......फिर से सो जाते हैं...मंडे की छुट्टी रोज रोज नहीं मिला करती " कहकर उसने उसे भी अपनी चादर में खींच लिया

और फिर सन्दर्भ व्याख्या में विस्तारित हो गया।
-तुषारापात®™

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