Monday 29 February 2016

उन्तीस फरवरी

"तू शायर है..मैं तेरी शायरी..तू आशिक है..मैं तेरी आशिकी..तुझसे मिलने का मन करता है..ओ मेरे साजन" सन 1992 की हल्की सर्दियों की शाम थी चौपटियाँ चौराहे पे पुत्तन पान वाले के यहाँ गाना बहुत जोरों से बज रहा था पुत्तन की दुकान से सटी मुन्ना की किराने की दुकान पे निर्मला सकुचाई सी खड़ी थी दुकान पे भीड़ बहुत थी बहुत से धनवान लोग मुन्ना की दुकान से महीने भर का राशन ले रहे थे

"हाँ बताओ..तुम्हें क्या चाहिए.." मुन्ना ने गंदे कपड़े पहने खड़ी निर्मला को देखा और उसे जल्द रफा दफा करने के उद्देश्य से पूछा

"भइया.. एक किलो आटा... और अठन्नी का कड़वा तेल दे दो..और चवन्नी का नमक मिर्ची..." धीमी आवाज में निर्मला ने कहा

मुन्ना एक किलो आटा एक पन्नी में बाँध चूका था..और नमक की पुड़िया बाँधते हुए उसने पूछा "तेल के लिए शीशी लाइ हो?"

निर्मला ने अपने हाथ में पकड़ी पुरानी दवा की एक खाली शीशी उसकी ओर बढ़ाई मुन्ना ने झट से उसमे तेल नापा और उसे शीशी पकड़ाने के बाद दोनों हाथों को अपने बालों में पोछा और हिसाब लगा कर बोला " साढ़े सात रुपैये" निर्मला ने अपने पल्लू में बंधे नोट को निकालने के लिए गाँठ खोलने लगी

"अरे..पहले से नहीं निकाल पाई..हद है..बांधे ऐसे हो जैसे बड़ा खजाना होवे..जल्दी करो.."मुन्ना ने झुंझलाते हुए उससे कहा और अगले ग्राहक का परचा ले सामान निकालने लगा,किसी तरह पल्लू की गाँठ खुली और निर्मला ने उसे पैसे दिए और सामान ले घर की ओर चली रास्ते में उसने सब्जी के नाम पे अठन्नी के आलू भी खरीद लिए

ये उसका रोज का काम था..हर शाम जब उसका पति कमलेश दिहाड़ी करके आता..और उसे आठ रुपये देता..तब वो मुन्ना की दुकान दौड़ती सौदा लाने को..रोज कुआँ खोदना और रोज पानी पीने वाली हालत थी उनकी

निर्मला घर पहुँच के खाना बनाने लगी उसने अभी लाई आटे की पन्नी से एक मुट्ठी आटा निकालकर डालडा के एक बड़े प्लास्टिक के डिब्बे में डाला और बाकी आटे को गूंथने लगी

"निम्मो..सेठ ने कल छुट्टी रखी है मंडी में..कह रहा था काम गोदाम में होगा पर हिसाब के लिए मुनीम नहीं आएगा..तो..कल पैसा न मिलेगा..पता नहीं ई साले सेठ 29 फरवरी को कौन सा जश्न मनाते हैं" कमलेश ने बीड़ी सुलगाते हुए कहा

"ओह्ह..पर फरवरी में अबकी एक दिन बढ़ कैसे गया..वैसे तो 28 दिन की ही फरवरी होती है न" निर्मला ने आलू काटते हुए पूछा

"अरे..यहाँ मैं परेशान हूँ..कल खाएंगे क्या..और तुझको..फरवरी की गणित की पड़ी है..अच्छा सुन मुनीम जी बताये थे कि..धरती सूर्य का चक्कर एक साल और चौथाई दिन में लगाती है..तो ई ससुरा चौथाई दिन बढ़ते बढ़ते चार साल में एक दिन के बराबर हो जाता है..तो इसको उसी साल की फरवरी में जोड़ देते हैं...जिससे हिसाब किताब ठीक रहता है..अब क्या हिसाब किताब ठीक रहता है..ये हमको नहीं पता.. यहाँ अपना हिसाब तो गड़बड़ा गया है...लगता है कल भूखा रहना पड़ेगा"

"आप परेशान मत होइए..इतनी गणित तो हम नहीं जानते....पर हमारी माँ ने हमको सिखाया था..जब भी आटा लाओ..तो एक मुठ्ठी आटा अलग निकाल के एक बर्तन में डाल दो...अब घड़ी दो घड़ी की खुरचन से भगवान एक पूरा दिन बना देते हैं..तो हम भी...रोज की एक मुठ्ठी आटा से..कल अपने लिए..एक दिन का खाना बना देंगे" कहकर निर्मला ने डालडे का वो पीला डिब्बा कमलेश को दिखाया जिसमे रोज का बचाया आटा था

"वाह..निम्मो रानी..कमाल कर दिया तूने तो..अब जबकि एक दिन अधिक हो गया है तो तुझे और अधिक प्यार तो करना होगा" कमलेश के दिल से बोझ उतर गया और वो निर्मला को गले लगाने को आगे बढ़ा

"धत" कहकर निर्मला ने अपना मुँह पल्लू में छुपा लिया।

29 फरवरी हमें सिखाती है कि आज की छोटी छोटी बचत कल हमारे बहुत काम आ सकती है ।

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Friday 26 February 2016

कारोबार

के कोई तो चाहिए जिसके नाम पे बाज़ार लगे
चल तुझे ईसा बना के सलीबों का कारोबार करें


-तुषारापात®™

Tuesday 23 February 2016

मौन

तुम्हारे खोखले शब्दों से ज्यादा मुझे तुम्हारा ठोस मौन पसंद है ।

-तुषारापात®™

Monday 22 February 2016

हासिल

जो दहाई तक न पहुँचे उन्हें सब हुआ 'हासिल'

#आरक्षण_की_गणित
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Thursday 18 February 2016

कुंडली मिलान

"चिनॉय सेठ ! ..जिन घरों की छतें..आपस में मिली हुई होती हैं..उन घरों के लड़के लड़कियों की...कुंडलियाँ नहीं मिलायी जाती"

-तुषारापात®™

Monday 15 February 2016

त्रिवेणी

"अरे..अरे..ये क्या..मुझे सर्दी लग गई तो" आयत ने अपने सर के ऊपर आई पानी की बूंदे पोछते हुए वेद से कहा

"गंगा के जल को तुम्हारी माँग में भर रहा हूँ.." वेद ने उसकी ओर एक और छींटा मारते हुए कहा

"क्यों गंगा को अपवित्र कर रहे हो...आयत गंगा में घुल गई तो काशी में तुम्हारे पापा इससे स्नान भी न करेंगे" आयत ने हँसी हँसी में कड़वी सच्चाई कह दी

"जिस गंगा के किनारे बड़े बड़े वेद पुराण विकसित हुए हों वो क्या एक आयत से अपवित्र हो सकती है...खैर...आज वैलेंटाइन डे पर...संगम की ये हसीं शाम..नाव पे तुम्हारा साथ... कम से कम आज तो ख्वाबों में तैरने दो...यथार्थ की जमीन पे तो रोज चलते ही हैं" वेद ने चुभी हुई सच्चाई के काँटे को गंगा में बहा देना चाहा

"हाँ ये तो है..पर वैलेंटाइन डे पर कोई लड़का किसी लड़की को तीर्थ पे लेकर आता है क्या..बुढऊ हो तुम तो.." आयत ने ठिठोली की

"देखो...प्रेम का इससे अच्छा उदाहरण और कहाँ मिलेगा... देखो इस संगम को... यहाँ रोज ये नजारा रहता है.. ये किसी खास दिन का मोहताज नहीं.. रोज ही गंगा यमुना का संगम होता है यहाँ.. यमुना अपना सबकुछ गंगा में समाहित कर देती है..सबकुछ...अपना नाम तक.. पवित्र प्रेम की पराकाष्ठा है यहाँ" कहकर वेद उसका हाथ अपने हाथ में लेकर संगम के जल में डुबो देता है..ठंडा पानी उनके हाथों की गर्मी सोखने लगा

आयत चप्पू की तरह जल में अपना और उसका हाथ चलाने लगती है.."हाँ..पर इससे आगे कोई इसे संगम का जल नहीं कहता... सब इसे गंगा ही कहते हैं... शायद लोग 'गंगा' में 'जमुना' का मिलन नहीं स्वीकार करना चाहते.. यमुना गंगा से मिलकर..गंगा होकर पवित्र हो जाती है..मगर आयत कभी ऋचाओं जैसी पवित्रता नहीं पा सकती...आयत और वेद का संगम समाज को स्वीकार नहीं है....आयत ने डबडबाई आँखों से डूबते सूरज को देखते हुए कहा

"हाँ ये संगम उन्हें स्वीकार नहीं है..पर जानती हो क्यों..क्यों ये संगम स्वीकार नहीं है ?"वेद ने ऐसे कहा जैसे उससे पूछ न रहा हो बल्कि खुद को बता रहा हो

"क्यों" आयत की आँखें किसी भी क्षण बस पिघलने वाली थीं

"क्योंकि सही ज्ञान देने वाली सरस्वती बहुत पहले ही विलुप्त हो चुकी है" कहकर वेद अपने दोनों हाथों में संगम का जल भर के आयत की ठोड़ी के पास ले गया आयत की बाँयी आँख से एक धारा पिघल आई और संगम के जल में जा मिली त्रिवेणी पूर्ण हो चुकी थी ।

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Thursday 11 February 2016

नाजायज औलादें

"हाय हाय...पापा गो बैक ...पापा गो बैक..पड़ोसी अंकल हमारा बाप है.. हम नजायज औलाद साबित होने तक लड़ेंगे...हर घर से नाजायज निकलेंगे"

कल को जब कोई तुम्हारी माँ का बलात्कार करने का प्रयास करे और जब उसे पकड़ के फाँसी दे दी जाय तो तुम उसका भी खूब जोर शोर से शहीद दिवस मनाना और जोर जोर से यही चिल्लाना यही नारे लगाना

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो इसका मतलब ये नहीं कि तुम राष्ट्रद्रोही बातें करो जिस आतंकवादी ने देश पे हमला किया और जिसे न्यायिक व्यवस्था ने दोषी सिद्ध किया उसे तुम हीरो बनाओ शहीद का दर्जा दो मैं पूछता हूँ
क्या ये न्यायपालिका की अवमानना नहीं ?
देश के लिए शहीद हुए सैनिकों का अपमान नहीं ?
और सबसे बड़ी बात क्या ये राष्ट्र का अपमान नहीं ?

कभी कश्मीर में ISIS के झंडे फहराये जाते हैं तो कभी JNU में भारत विरोधी नारे लगते हैं आखिर इन घटनाओ को बर्दाश्त क्यों किया जा रहा है मैं पहले भी अपने कई लेखों/कहानियों के माध्यम से कह चूका हूँ कि राष्ट्रविरोधी किसी भी गतिविधि और आतंकवाद का किसी भी रूप में यहाँ तक की मौखिक समर्थन करने वालों पे कड़ी कार्रवाई शीघ्र होनी चाहिए एक दो बार ऐसी कार्रवाई होगी तो अपने आप इन जैसे लोगों के दिमाग ठिकाने लग जाएंगे और इनका अप्रत्यक्ष समर्थन करने वाले भी चुप बैठ जायेंगे

जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं बहुत ज्यादा जरूरत है ऐसे लोगों के सरों में छेद बना देने की, रोग सर्प और शत्रु को उनकी प्रारम्भिक अवस्था में ही दमन कर देना चाहिए नहीं तो वो विकराल रूप धर लेता है
अगर सही समय पे कार्रवाई नहीं की गई तो हम नपुंसक ही सिद्ध होंगे लोकतंत्र के नाम पे ओढ़ी हुई इस नपुंसकता का त्याग करने का ये उचित समय है वरना बहुत देर हो जायेगी

ये एक सुनियोजित बौद्धिक आतंकवाद है सेक्युलरिज्म,सोशल जस्टिस, ह्यूमन राइट्स, समानता, वीवेन् एम्पावरमेंट अधिकार आदि के नाम पे युवाओं का ब्रेन वाश किया जा रहा है उनके दिमाग में जहर बोकर उन्हें बाग़ी बनाया जा रहा है देश में ही देश के विरोधी तैयार किये जा रहे हैं जिसके लिए सोशल मीडिया का भी खूब गलत प्रयोग हो रहा है पर एक बात युवाओं को बहुत अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए इच्छाधारी सर्प अगर नेवले का रूप ले लें तो भी वो भीतर से सांप ही रहते हैं वे नागों का पोषण ही करते हैं चाहे वो ऊपर से कितना भी ये दिखाएँ कि वो साँपों का संहार कर रहे हैं

आज बहुत आवश्यकता है कि हम ऐसे रूप बदलने वाले नागों को जो नेवला बन साँपों को तैयार कर रहें हैं उन्हें तुरंत कुचल दें और उनके लिए जो जरा सी भी बीन बजाता दिखे उसे तुरंत पोटली में बंद करें और इतना मारें कि अगली बार कोई बीन उठाने की हिम्मत न कर सके।

-तुषारापात®™

Tuesday 9 February 2016

अधूरा वाक्य

"तुम्हारा दिमाग तो ठीक है....ऐसी बाजारू लड़की के साथ घूमते फिरते हो...पूरी सोसायटी में नाक कटवाते फिर रहे हो...अपनी नहीं तो..कम से कम अपने इस इज्जतदार बाप की तो परवाह की होती...लोग क्या कहेंगे इतना बड़ा पत्रकार का बेटा...एक वेश्या के यहाँ आता जाता है.." एक बहुत बड़े पत्रकार जो टीवी पे आते हैं अपने जवान बेटे पे सुबह सुबह भड़क रहे थे

"पर पापा...मैं रागिनी से प्यार करता हूँ..और वो वैश्या नहीं है..लोगों ने उसे यूँ ही बदनाम कर रखा है मैं तो उसे सहारा दे रहा हूँ..." बेटे ने कहा

"चुप रह नालायक...जबान लड़ाता है...मुझे समझायेगा तू कौन क्या है..." रिपोर्टर साहब बेटे पे गरजे और अपनी पत्नी से बोले" सुनो इसे अच्छी तरह से समझा दो...अगर इसने ये सब हरकतें बंद नहीं की तो..मैं इसे घर से बाहर निकाल दूँगा...मैं स्टूडियो जा रहा हूँ" कहकर वो घर से बाहर अपनी कार में बैठ स्टूडियो आ गए

स्टूडियो में पहुँचते ही पत्रकार महोदय ने स्क्रिप्ट हाथ में ली और असिस्टेंट से पूछा "वो आ गई ?"

"नहीं सर..अभी नहीं आई..मेरी बात हो गई है वो रास्ते में हैं" असिस्टेंट ने जवाब दिया

"राजीव..आज का इसका इंटरव्यू आग लगा देगा..देखना तू..आज अपने चैनल की टी आर पी आसमान छुएगी...एक काम करना इंटरव्यू के बीच बीच में इसकी हॉट वाली ...मतलब वैसी वाली फोटो धुंधली करके लगा देना..समझ गए न" रिपोर्टर साहब खुशी से उछल रहे थे इतनी ही देर में वो मोहतरमा आ गईं जिनका इंटरव्यू होना था सब कुछ तैयार था इंटरव्यू शुरू हो गया

"सनी जी एक बात बताइये...आप एक बहुत प्रसिद्ध पॉर्न स्टार रही हैं.. फिर ये बॉलीवुड में आने का कैसे सोचा आपने...आई मीन टू से...आपको हिचक नहीं हुई... कि भारत जैसे एक सांस्कृतिक देश में आपको स्वीकार कर लिया जाएगा" उन्होंने एक एक शब्द पे बड़ा जोर देते हुए पूछा

"लुक... मुझे कोई हिचक नहीं हुई क्योंकि..आपके इण्डिया में ही मैं सबसे ज्यादा पॉपुलर रही हूँ..तो यहाँ तो...मुझे आना ही था" मोहतरमा ने बोल्डली अपना उत्तर दिया

ऐसे ही तमाम प्रश्न और उत्तरों का दौर चला और इंटरव्यू खत्म हुआ रिपोर्टर साहब ने अपने केबिन में उन मोहतरमा के साथ कुछ फोटो खींचने को अपने असिस्टेन्ट को कहा और हिदायत दी की इनमे जो सबसे अच्छी फोटो आये वो फ्रेम कराकर उनके केबिन की सेलिब्रेटी वाल पे टाँग दी जाय और मोहतरमा को उनकी गाड़ी तक बिठाने आ गए

"थैंक यू...सो मच...आपने मेरी बहुत हेल्प की...मैं अगर आपके किसी काम..."मोहतरमा ने बड़ी अदा से कार में बैठते हुए जानबूझकर अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया

"जिस काम में मैं एक्सपर्ट था वो मैंने किया...अब आप जिसमे एक्सपर्ट.."रिपोर्टर ने भी अपना मतलब पूरा होते देख अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया

"जरूर...आई विल काल यू.." कहकर मोहतरमा चली गईं

इधर रिपोर्टर का बेटा ये इंटरव्यू देख कर ये समझने की कोशिश कर रहा था कि बंद कमरे में एक समय में एक पुरुष के सामने धन के लिए नग्न होने वाली को वैश्या कहते हैं और सम्पूर्ण विश्व के सामने नग्न होने वाली को.....उसने भी अपने मन में ये वाक्य अधूरा छोड़ दिया।

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Tuesday 2 February 2016

नास्तिक

"आप से कुछ पूछना चाहता हूँ"

"हाँ हाँ पूछिये"

"हो सकता है मेरी बातों से आपको अच्छा न लगे..पर मेरे मन में ये बात बार बार उठती है..तो..अगर आपको बुरा लगे तो मैं पहले ही क्षमा माँगता हूँ"

"अरे..ऐसी कोई बात नहीं आप निंसंकोच पूछिये"

"देखिये..मैं एक नास्तिक हूँ..ईश्वर में विश्वास नहीं करता..मूर्ती पूजा धार्मिक कर्मकाण्ड पूजा पाठ इबादत नमाज इन सबको नहीं मानता ...मैंने इससे जुड़े सारे विचारों और सारी मान्यताओं का गहन अध्ययन भी किया है बहुत सारा विरोध भी सहा है...स्वामी विवेकानंद जी का राजा साहब को उनकी तस्वीर के लिए दिया गया वो उत्तर भी जानता हूँ और बुद्ध को मानने वालों को उनकी ही मूर्ति बनाते और पूजते भी देखा है...और ये भी सुना है कि ईश्वर को न मानना भी उसको स्वीकार करने जैसा है"

"मैं आपकी बात तो समझ रहा हूँ..पर ये समझ नहीं पा रहा हूँ कि आप मुझसे क्या पूछना चाह रहे हैं आप खुद ही अपने प्रश्न रख रहे हैं और उत्तर भी स्वयं रख रहे हैं"

"देखिये मैंने पहले ही आपसे कहा था..कि.शायद आपको अच्छा न लगे... पर मेरी परेशानी समझिये...मैं जानता हूँ कि आप धार्मिक और आध्यात्मिक इंसान हैं इसलिए सोचा आपसे...मैंने देखा है आप रोजमर्रा की बातों से कई कहानियाँ बनाते हैं और वो बड़ी कमाल की होती हैं कई बार उन्हें पढ़के मुझे राह सूझ जाती है...मैं बहुत बड़ी बड़ी बातों से ऊब चूका हूँ...ग्रंथों को पढ़ पढ़ कर भी समझ नहीं सका कि इस वक्त मेरी स्थिति क्या है मैं नास्तिक हूँ या नहीं बस यही मैं आपसे समझना चाहता हूँ वो भी कोई ऐसी रोजमर्रा की चीज से समझा दीजिये जो बहुत साधारण सी हो...प्लीज"

"हम्म...लीजिये चाय आ गई...मैं बनाता हूँ आपके लिए...चीनी कितनी एक चम्मच?"

"नहीं मुझे डायबिटीज है...शक्कर नहीं लेता...ऐसे मौकों के लिए सुगर फ्री रखता हूँ जेब में हमेशा...मैं इसकी दो गोलियाँ मिला लूँगा"

"ओह्ह...अच्छा अगर मैं ये कहूँ कि चीनी मात्र एक माध्यम है मीठे स्वाद को पाने के लिए और ये जो मिठास है वही ईश्वर है तो?...आपने चीनी छोड़ दी और स्वयं को नास्तिक घोषित कर दिया पर मिठास तो आप अभी भी चख रहे हैं बस माध्यम बदल दिया है...यही है आपकी स्थिति...लीजिये बिस्किट लीजिए।"

-तुषारापात®™