Wednesday 1 November 2017

अनलकी सेवेन

"लेकिन सर...ये देखिए इसमें..इस क्वेश्चन में भी मुझे सिर्फ सात नम्बर दिए गए हैं ..आश्चर्य की बात है कि सवाल को पूरा सही सॉल्व करने के बाद भी मुझे बीस में सात नंबर दिए गए जबकि..मैथ्स में तो..एक्यूशन सॉल्व करने के पूरे पूरे नंबर मिलते हैं" ज्ञान ने आर.टी.आई के तहत अपनी सिद्धान्त ज्योतिष के पहले पेपर की कॉपी निकलवाई थी और जानबूझकर दिए गए कम नंबरों पर वह अपने कोर्स कॉर्डिनेटर और सीनियर टीचर प्रोफेसर मिश्रा से इसी पर बहस कर रहा था

कोर्स कॉर्डिनेटर प्रोफेसर मिश्रा ने पान की पीक को ऐसे निगला मानो उसने खून का घूँट पिया हो पर बहुत ही डिप्लोमेटिक अंदाज में मुस्कुराते हुए उससे बोला "बेटा ज्ञान प्रताप ... देखो ये ज्योतिष का विषय है और तुम तो जानते हो कि ज्योतिष आर्ट्स सब्जेक्ट के अंडर आता है..अब आर्ट्स में कहीं किसी को पूरे पूरे नम्बर मिलते हैं"

"सही कहते हैं सर ट्रिग्नोमेट्री..ज्योतिष के अंडर आके गणित नहीं रहती बल्कि कला हो जाती है" ज्ञान अपने साथ हुए पक्षपात को बहुत अच्छी तरह समझ चुका था अभी उसे यहीं आगे और पढ़ना भी था तो वो व्यंग्यात्मक टोन में ये कहकर कॉर्डिनेटर के रूम से बाहर निकल आता है

उसके साथ पढ़ने वाला उसका दोस्त शरद उसे बाहर खड़ा मिलता है "क्या हुआ ज्ञानप्रताप सिंह..कुछ नहीं हुआ न..अबे तुम शिक्षा पांडे नहीं हो जो तुम्हें ये पूरे पूरे नंबर देंगे...पिछले सेमेस्टर तुमने आर टी आई दाखिल की थी तो तबसे और चिढ़ गया है ये प्रोफेसर"

"यार..थ्योरी में नंबर काटते तो अलग बात होती..पर यहाँ तो इन्होंने चापजात्य त्रिकोणमिति की पाँचवी प्रतिज्ञा पे नम्बर कम दिए हैं..जो मैंने उत्पत्ति सहित पूरी सही हल की थी ..हर सेमेस्टर की तरह इस सेमेस्टर भी मेरे साथ ये किया गया..और अब ये लोग कुछ मानने को भी तैयार नहीं..ये साला सात का नंबर ही मेरे लिए हमेशा अनलकी रहा है..इस क्वेश्चन का सीरियल नम्बर भी सातवाँ था..ज्ञान ने मायूस हो खीजते हुए कहा

"छोड़ बे..जानते हो ही तुम यहाँ का हाल.. ये सब सिद्धांत ज्योतिष की पी एच डी की सीट पे शिक्षा को सेट करने के लिए गोलमाल किया जा रहा है..वैसे भी तुम्हें आगे फलित में प्रैक्टिस करनी है..डिग्री लो और आगे बढ़ो..ये चापीय त्रिकोणमिति घंटा काम आएगी फलित में...जाने दो एक दिन जब तुम बड़े ज्योतिषी बन चुके होगे..तो ये सब भूल भी चुके होगे.." शरद ने उसे हिम्मत देते हुए कहा

हुआ भी यूँ ही..डिग्री लेने के सात साल बाद ज्ञान आज एक बड़ा ज्योतिषी है और शहर में अपना एक अच्छा नाम रखता है एक दिन वो रात को टीवी देख रहा था कि कौन बनेगा करोड़पति के रिपीट शो में उसे उसके साथ पढ़ने वाली वही शिक्षा पांडे हॉट सीट पे दिखाई दी और कुछ ही देर में गणितीय ज्योतिष के एक आसान सवाल का जवाब न दे पाने के कारण छह लाख चालीस हजार पे क्विट करते भी दिखती है

ज्ञान के मन मे पुरानी प्रतिस्पर्धा जागने लगती है और वो कौन बनेगा करोड़पति में जाने के लिए रोज बार बार मैसेज, एस एम एस आदि करने लगता है पर वो चुना नहीं जाता और कौन बनेगा करोड़पति का वो सीजन भी खत्म हो जाता है पर इस बीच ज्ञान जनरल स्टडीज ,सामान्य ज्ञान इत्यादि की तैयारी करता रहता है

समय का चक्र ढुलकते ढुलकते ही चलता हो पर चलता ही जाता है और बीतते बीतते कौन बनेगा करोड़पति का नया सीजन शुरू होने के विज्ञापन आने लगते हैं इसबार न सिर्फ ज्ञान चुन लिया जाता है बल्कि वो हॉट सीट पे भी पहुँच जाता है

"देवियों और सज्जनों..मेरे सामने हॉट सीट पे बैठे हैं लखनऊ से आये ज्ञान प्रताप सिंह जो कि बहुत बहुत अच्छा खेल रहे हैं और एक करोड़ की भारी भरकम रकम जीत चुके हैं जोर दार तालियों से हम इनका अभिनंदन करते हैं और खेल को कल छोड़े गये बिंदु से आगे बढ़ाते हैं" अमिताभ बच्चन की आवाज से स्टूडियो गूँज रहा था ज्ञान उनके सामने बैठा था

"खेल के इस पड़ाव पे मैं आपको बता दूँ कि सोलहवाँ प्रश्न जो कि सात करोड़ के लिए है उसमें आप अपनी बची हुई कोई भी लाइफ लाइन प्रयोग नहीं कर पाएंगे और अगर आपने गलत उत्तर दिया तो आप सीधे तीन लाख बीस हजार पे जाकर नीचे गिरेंगे..इसलिये भाईसाहब..बहुत सोच समझ के.." अमिताभ ने अपने अंदाज में कहा

सर सोलह के अंकों का जोड़ सात होता है और सात करोड़ के लिए ये प्रश्न भी है..और सात के अंक से मेरी अच्छी यादें नहीं हैं..पर अब यहाँ तक आकर..देखते हैं क्या होता है" ज्ञान ने धड़कते दिल के साथ चेहरे पे आत्मविश्वासी मुस्कान लाते हुए कहा

"ज्ञान प्रताप जी...जिओ जैकपॉट..सात करोड़ के लिए..ये रहा अंतिम प्रश्न..आपके कंप्यूटर स्क्रीन पे..." कहकर अमिताभ बच्चन ने सोलहवाँ प्रश्न पढ़ना शुरू किया "चापीय त्रिकोणमिति के चापजात्य अध्याय के पाँचवे साध्य के उत्पत्ति श्लोक में इनमें से कौन सा शब्द ..नहीं..है..और ये रहे आपके ऑप्शन.."

"एक मिनट सर.. आपके ऑप्शन देने से पहले आपसे एक रिक्वेस्ट है.." ज्ञान ने उन्हें रोका

यूँ ऑप्शन देने से पहले ही रोक देने पे और ज्ञान के चेहरे की मुस्कान की विशालता और आँखों की नमीं को देख आश्चर्य में डूबे अमिताभ बोल पड़े "जी..जी..बिल्कुल कहिए..क्या बात है...ज्ञान"

ज्ञान नौ साल पुरानी अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हुए कहता है "सर मैं चाहता हूँ कि आप मेरी ओर से एक घोषणा कर दें कि प्रोफेसर बालमुकुंद मिश्रा आपका शिष्य 'ज्ञान' आपकी दी हुई 'शिक्षा' से छह करोड़ तिरानबे लाख साठ हजार रुपये अधिक जीत चुका है"

-तुषार सिंह 'तुषारापात'