Wednesday 6 January 2016

प्रधानमंत्री और चूड़ियाँ

"प्रधानमंत्री जी...ये चूड़ियाँ...ये चूड़ियाँ..मैं नहीं तोड़ूँगी...नहीं तोड़ूँगी...
ये मेरे वीर पति ने..कुछ दिन पहले ही पहनाई थीं..ये चूड़ियाँ मैं आपको देती हूँ..मैं विधवा बनके नहीं जीना चाहती...आपको मेरे पति से भी बड़ा कोई वीर मिले तो..उससे कहियेगा मुझे पहना दे आकर.."शहीद की बेवा ने रोते रोते लेकिन घुटे हुए गुस्से में जोर से चीखते हुए मुझसे कहा और अपनी कलाइयों से चूड़ियाँ उतार कर मेरी तरफ उछाल दीं

आतंकी हमले में शहीद हुए जवानों के दुःखी परिवारों से मिलने गया था वहीँ ये घटना हुई...सारा मीडिया भी वहाँ मौजूद था...सारे चैनल पूरे दिन भर ये रिकॉर्डिंग बार बार चलाते रहे...वो भी इस पंक्ति के साथ.."शहीद की बेवा ने प्रधानमन्त्री को चूड़ियाँ पहनने को दीं"..मैं अपने कार्यालय में वापस आकर टीवी देख रहा था सारा स्टाफ सकपकाया सा बाहर था..टीवी बंद करके मैं सोचता रहा..सोचता रहा... उस चौबीस साल की शहीद विधवा की आवाज मेरे कानो में गूँजती रही.....

"नायर साहब को भेजिए..मैंने इंटरकॉम उठाया और एक नंबर दबा कर कहा..कुछ ही देर में दरवाजा हलके से थपथपाया गया.."आ जाइये" नायर साहब सामने थे उनको आगे की कार्यवाई मैंने बताई

"लेकिन..पी.एम.सर..आप समझ रहे हैं..न..इससे बहुत जन आक्रोश उछल सकता है.. खासतौर पे मुस्लिम समाज का.."उन्होंने मधुरता से मुझे चेताने का प्रयास किया

"नायर साहब..जो जवान शहीद हुए क्या वो किसी धर्म के लिए शहीद हुए थे..वो शहीद हुए थे....भारत के लिए...अपनी मातृभूमि के लिए...किसी मजहब के लिए नहीं...जिसे जो आक्रोश उठाना है उठाने दीजिये..आप मेरे इस आदेश को त्वरित रूप से लागू करने की व्यवस्था कीजिये..गृह मंत्रालय को इसकी प्रति तत्काल भेजी जाए" कहकर मैंने उन्हें जाने को कह दिया

"हाय हाय..प्रधानमन्त्री हाय हाय.." मेरा आदेश पारित हो चूका था और जैसे लोग तैयार ही बैठे थे,दिल्ली से लेकर बंगाल केरल तक पूरे देश में मेरे विरुद्ध जुलूस निकाले जा रहे हैं..विपक्षी दल भी इस स्थिति को भुनाने में लगे हैं..संसद नहीं चलने दी जा रही हैं..मेरा बयान माँगा जा रहा है.. मीडिया मुझे तानाशाह का ख़िताब दे रही है और देश का बुद्धिजीवी साहित्यकार वर्ग इसे अमानवीय व्यवहार बता बता के अपना विरोध जता रहा है पर मैंने अपना आदेश वापस नहीं लिया,मैं संसद में भी कोई बयान नहीं दूँगा..आज मन की बात कहूँगा...

"देशवासियों..इधर कुछ दिनों से..पूरे देश में मेरे एक आदेश के विरुद्ध बहुत कुछ चल रहा है...पर मैं पूछता हूँ..आप सब लोगों से...आप बताइये कि मारे गए आतंकवादियों के शवों को दफ़नाने की बजाय जलाने का आदेश देकर मैंने कौन सा अपराध कर दिया... अगर आतंकवाद का कोई मजहब नहीं है.. तो हम आतंकवादियों के शवों का अंतिम संस्कार जैसे चाहे करें.. मैं पूछता हूँ आज समुदाय विशेष से वो आतंक का मजहब बताएं.. एक आतंकवादी जब अपने जननांगों पे पत्थर बाँध कर बम के साथ खुद को उड़ा देता और सैकड़ों मासूमों की जान ले लेता है फिर भी सोचता है कि वो जन्नत में बहत्तर हूरों के साथ इश्क करेगा.. हमने उसकी इस सोच पे हमला किया है.. जब उसका अंतिम संस्कार ही..उसके मजहब के हिसाब से ...नहीं होगा तो जन्नत कैसे पहुँचेगा?..अब अगर कोई उनकी इस सोच को सहयोग दे रहा है तो क्या माना जाय... क्या ये माना जाय कि आतंक का मजहब है...उनकी सोच को साथ देने वाले लोगों को देशद्रोही माना जाय... अगर आतंकवादियों की इस सोच को समुदाय विशेष का सहयोग न मिले तो क्या इनकी इतनी हिम्मत होगी ... नहीं होगी...बिलकुल भी नहीं...
आखिर हम सब आतंक के खिलाफ एक जुट क्यों नहीं खड़े हैं....

पश्चिमी देशों में जब कोई ऐसा हमला होता है तो सारे राजनीतिक दल .. पूरी मीडिया...पूरी जनता एक सुर में उसका विरोध करती है और अपनी सरकार को पूरा समर्थन देते हैं जिससे वो अपने देश पे हुए हमले का उत्तर शीघ्र दे पाते हैं.. पर अपने यहाँ.. सरकार को उलटे घेरने का काम किया जाता है... जिन आतंकवादियों को जिन्दा जला देना चाहिए उनके शवों के जलाने पे इतना हो हल्ला..
बहनो और भाइयों..आपके प्रधानमन्त्री ने चूड़ियाँ नहीं पहनी हैं..पर उसके हाथों में...और पैरों में अपने ही लोगों की पहनाई बेड़ियां हैं.. उसे बाहर युद्ध करने से पहले अपने देश के आधे लोगों से लड़ना पड़ता है .. पर अब चाहे कुछ हो जाए इस समस्या को अब जड़ से मिटाना ही होगा.... मेरे इस आदेश से देश और सम्पूर्ण विश्व को अब पता चल गया है कि कौन कौन आतंक के विरुद्ध हैं और कौन आतंकवाद और आतंकियों के पक्ष में है... मजहब के नाम पे आतंक का किसी भी प्रकार का यहाँ तक कि मौखिक समर्थन करने वाले भी..सभी लोग गिरफ्तार होंगें .......
अब हमारी लड़ाई आसान है और इसे हम ही जीतेंगे... जय हिन्द!"

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