Thursday 24 December 2015

बड़ा दिन

"छोटू...छोSSटू..जाग बेटा..देख तेरे लिए कितना अच्छा अच्छा खाना लाइ हूँ मैं" सुबह के चार बजे कुसुमिया अपनी झोपड़ी में वापस आकर अपने बेटे को जगा रही थी

"खा..ना...माँ..खाना बन गया.." पिछली रात से भूखा सोया छोटू खाने के नाम पे ओढ़े हुए चीथड़े हटाकर एकदम से उठकर बैठ गया

कुसुमिया पन्नी में भरी नान,पूड़ी,कचौड़ी आलू,पनीर की सब्जी,सलाद और भी जो था सब कुछ जल्दी से एक अखबार पे पलटकर उसे खिलाने लगती है "ये ले..खूब पेट भर के खा मेरे लाल"

"अरे वाह माँ..आज तो बहुत अच्छा खाना है..अरे इसमें तो पनीर भी है..माँ देखो इत्ते सारे पनीर" छोटू खुशी के मारे खाने पे टूट पड़ा कुसुमिया उसे प्यार भरी नजरों से खाना खाते देखती रही

"माँ..इत्ता अच्छा खाना कहाँ से मिला..." छोटू ने उँगलियाँ चाटते हुए पूछा

"आज बड़ा दिन है बेटा..वही की दावत से लाइ हूँ " कहकर याद करने लगी कि अभी थोड़ी देर पहले चढ्ढा साहब के बंगले के बाहर फेंकी गई पत्तलों से कितनी मुश्किल से वो अपने जैसे कितने लोगों से झगड़ते हुए ये सब उठा के लाइ है

"माँ ये बड़ा दिन क्या होता है..कोई त्यौहार है क्या.." छोटू ने पूछा

"हाँ..लल्ला..आज के दिन संता भगवान आते हैं और सबको खाना देकर जाते हैं" अपने को सँभालते हुए उसने जवाब दिया

"पर..अपने यहाँ..कोई संता भगवान क्यों नहीं आते माँ..छोटू पनीर का टुकड़ा कुतरते हुए बोला

कुसुमिया एक पुरानी रात को याद करते हुए आह से भरी आवाज में बोली "आते हैं न बेटा..एक रात आये थे..मेरी झोली में तुझे डाल कर चले गए थे..25 दिसंबर की वो रात ऐसी ही थी" (मन ही मन सोचती है कि हम जैसे लोगों का बड़ा दिन 26 दिसंबर को होता है जब 25 दिसंबर को बड़े साहबों का फेंका हुआ खाना हमें मिलता है और कभी कभी उनकी जबरदस्ती से..बच्चे भी...)

"पच्चीस दिगम्बर को ही बड़ा दिन होता है क्या माँ...तुम क्यों नहीं मनाती ये वाला त्यौहार..माँ..और त्यौहार पे तो सब अच्छे अच्छे कपड़े पहनते हैं न माँ तुम कब अच्छे कपड़े पहनोगी" छोटू खाना खाते ही जा रहा था और साथ साथ बोलता भी जा रहा था "माँ..मैं जब बड़ा हो जाऊंगा तो तेरे लिए नए नए खूब सारे कपड़े लाऊँगा..बिलकुल चढ्ढा साहब वाली मेम साहब के जैसे"

"गरीबों के छोटू..बड़े तो होते हैं पर कभी...बड़े आदमी नहीं हो पाते.......... बेटा..दुनिया के इस कैलेंडर में तेरी माँ गरीब फरवरी की तरह है उसके यहाँ कभी कोई 25 दिसंबर पैदा नहीं होता" कड़वा सच बुदबुदाते हुए उसने मीठे छोटू को गले से लगा लिया ।

-तुषारापात®™