Tuesday 20 September 2016

16 मोहरे 32 खाने

"उफ़ इस बार सत्रह शहीद...भगवान जाने कब तक और कितने सैनिक यूँ ही मारे जाते रहेंगे.....सरकार से अपना डिफ़ेन्स तक तो सही से होता नहीं...अटैक क्या खाक करेंगे" सेना पर आतंकवादी हमले की खबर देख पापा मायूसी और आक्रोश से मिली जुली आवाज में बड़बड़ाने लगे

"पापा..सरकार में हमसे और आपसे तो बेहतर ही लोग बैठे होंगे...वो समझते होंगे कब क्या और कैसे करना है...वैसे भी हम इंडियंस डिफ़ेन्स में बिलीव रखते हैं अटैक में नहीं "मन ही मन मुझे भी इस हमले को लेकर एक कड़वाहट थी तो उसी भावना में उनसे तल्खी से ये कह गया

पापा ने एक पल मुझे देखा,मुस्कुराये फिर बोले "डिफ़ेन्स... हूँSS....चलो एक बाजी शतरंज की हो जाए"

"अचानक शतरंज...अच्छा ठीक है...हो जाए" वैसे मेरी हार तो तय है क्योंकि मैंने शतरंज अभी अभी ही सीखा है और पापा इसके मंझे हुए खिलाड़ी हैं पर फिर सोचा चलो मन की थोड़ी भड़ास शतरंज पे मारकाट मचा के ही शांत की जाए,मैंने शतरंज का बोर्ड उठाया सारे मोहरे बिछाए और उनसे कहा "पहली चाल आप चलें आज मैं डिफ़ेन्स पे ज्यादा ध्यान दूँगा"

"ठीक है ये लो" कहकर पापा ने एक पैदल आगे कर दिया,बदले में अपनी चाल में मैंने भी एक पैदल आगे किया,देखते ही देखते कई चालें हो गईं पापा के कई मोहरे मेरे मोहरों के नजदीक आ गए और मेरा डिफ़ेन्स कमजोर होने लगा

"आज तो आपका अटैक बहुत तेज है...मैं डिफ़ेन्स ही करता रह गया.. और आप मेरे किले तक पहुँच गए..."मैंने अपनी अगली चाल चलते हुए कहा

"बेटा जी..पूरी शतरंज में चौंसठ खाने हैं...सोलह पे तुम्हारे मोहरे और सोलह पे मेरे मोहरें हैं...लेकिन खेल की शुरुआत में ही तुम्हें ये समझना चाहिए था...कि...अपने सोलह मोहरों की दो लाइनों के आगे की दो लाइनों तक यानी कुल बत्तीस खानो तक तुम्हें अपना डिफ़ेन्स कायम करना था... जो तुमने नहीं किया..और देखो मैंने तुम्हारे मोहरों पे मार करने की जगह बनाने को अपने कई मोहरे सेट कर दिए... अब मैं तुम्हारी ही जमीन पे युद्ध कर तुम्हें हराऊँगा... क्या समझे?...तुम्हें लाइन ऑफ़ कंट्रोल...अपने मोहरों तक नहीं बल्कि आधी शतरंज तक समझनी चाहिये थी तब तुम्हारा डिफ़ेन्स बढ़िया कहा जाता...." उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा,मैं कसमसा के रह गया

फिर उन्होंने अपना एक पैदल बढ़ा के मेरे पैदल की मार की रेंज में रख दिया मैं झट से बोल उठा "लेकिन पिताश्री...जोश में आपने ये चाल गलत चल दी...आपके इस पैदल पे किसी और मोहरे का जोर नहीं है...इसे तो...ये लीजिये..मेरा प्यादा खा गया" व्यंग्य में कहकर मैंने अपने प्यादे से उनके प्यादे पे तिरछा मार की और उसे हटा दिया
पापा मुस्कुराये जा रहे थे और मुझे उनकी ये मुस्कुराहट बहुत खतरनाक लगने लगी,उन्होंने अपने ऊँट से मेरे उस घोड़े को मार दिया जो पैदल हटने से उनके ऊँट की रेंज में आ गया था,और मजे की बात ये कि घुस आए उनके इस ऊँट पे मेरे किसी मोहरे की मार भी न थी मैं दर्द से बिलखते हुए बोला "ओफ्फो...मैं भी कितना बेवकूफ हूँ...पैदल के बदले...अपना घोड़ा मरवा बैठा..."

"हूँS..यही होता आ रहा है...हम घुस आए पैदल को मारने के चक्कर में अपने घोड़े मरवाते जा रहे हैं" कहकर उन्होंने खेल बंद कर दिया उनके चेहरे से मुस्कुराहट जा चुकी थी, अचानक से उनकी शतरंज खेलने की बात का मतलब अब मुझे समझ आ चुका था।

-तुषारापात®™