Tuesday 19 January 2016

बीमार : ठाकुर या लोकतंत्र

"माफ कर दीजिये..मालिक..मालिकन जाते जाते हमसे कह गईं थीं..कि कि...मालिक का हाजमा दुरुस्त नहीं है...खाना हल्का बना के ही देना" रसोइये ने जमींदार साहब के बेंत से खुद को बचाते हुए कहा

"सूअर की औलाद...हमारा हाजमा सही नहीं है...या तू अपनी मर्जी से काम करने लगा है...कुत्ते के पिल्ले..हमें...जमींदार ..ठाकुर भवानी सिंह को... तू ये लौकी टमाटर की सब्जी परोसता है...रसोइये जो तू बाहमन न होता तो आज तेरी खाल खिंचवा लेता मैं" ठाकुर गुस्से से उसपे बेंत बरसाते हुए बोला

"गलती हुई गई...अरर..आगे से नहीं होगी..मालिक" रसोइया ठाकुर के पैर पकड़ के बोला,ठाकुर ने फिर भी उसे पीटना बंद नहीं किया मारते मारते उससे कहा "तू हमारा नौकर है...या मालिकन का...तुझे हमसे पूछना चाहिए था...तू भूल गया ठाकुरों के यहाँ चाहे औरतें हो या दलित दोनों की कीमत इन लौकी तुरई से ज्यादा कुछ नहीं है..और तू हमें यही सब्जियां खिलाने चला था..दूर हो जा हमारी नजरों से नहीं तो..."

रसोइया जल्दी से उठा और जैसे कोई हिरन शेर के जबड़े से निकल कर भागता है उससे भी तेजी से वो अपने लड़के को लेकर हवेली से बाहर दौड़ गया, जमींदार की क्रूरता और शौक का ये अद्भुत रूप घर के सभी नौकर चाकर और घर की औरतें भी देख रहीं थीं पर सब चुप थे सहमे थे पर मन ही मन आक्रोशित थे

और जैसे कि कहते हैं वक्त के पैर नहीं होते वो एक साँप की तरह रेंगते रेंगते अपनी केंचुल उतार के बदल जाता है वैसे ही अब ठाकुर भवानी सिंह बुढ़ा चुके हैं जमींदारी खत्म हो चुकी है देश आजाद हो चूका है धन सम्पदा की स्थिति बूढ़ी वैश्या के कोठे सी है ठाकुर अपनी बीमारी के कारण एक तीन टाँगों वाले अपने खानदानी पलंग पे पड़े हैं और एक दलित डॉक्टर के रहमोकरम पे हैं

"ठाकुर साहब..आपके इलाज में दवा से ज्यादा..परहेज की जरूरत है.. आप अपने खान पान में विशेष सावधानी बरतिये...सिर्फ उबली लौकी खाइये जरा सा भी मिर्च मसाला आपको भवानी माँ से मिलवा सकता है" चेहरे पे एक कुटिल मुस्कान लिए वो उनसे कहता है और ठाकुर असहाय से उसे जाते हुए देखता रह जाता है

डॉक्टर ठाकुर की पुरानी हवेली से बाहर निकल के कुछ दूर चलता है और एक विशाल मकान में आ जाता है एक व्यक्ति उससे पूछता है "क्या हाल है ठाकुर के..मरा नहीं अभी तक... खाने में लौकी ही बताई है न ...हमारे बाबूजी को इसी लौकी के कारण ...पीट पीट कर निकाल दिया था ससुरे ने.. "

"राम बाबू ..चिंता न करो..सब कुछ तुम्हारे बताये अनुसार ही कर रहा हूँ..ठाकुर को न मरने दूँगा..और न ही..जीने दूँगा.. मैं जानता हूँ कि उसके ठीक होने के लिए ये...लौकी तुरई के साथ साथ ...प्याज लहसुन और हल्के मसाले की सब्जी भी बहुत जरुरी है....पर मैं ये बात उसे कभी नहीं बताऊँगा..बस तुम हमारा ख्याल रखो आखिर हमारे जैसों दलितों के नाम पे ही तुम विधायकी जीते हो " डॉक्टर ने सच बात चापलूसी वाली जबान में हँसते हुए कही

"अपनी चिंता तुम हमपे छोड़ दो...बिल्कुल न डरो....बस इस ठाकुर को ऐसे ही तड़पाओ..और इसकी भनक भी इसे बिलकुल न लगने देना...कि इसकी सेहत के लिए सारी सब्जियाँ बहुत जरुरी हैं... इसके यहाँ लौकी तुरई..दलित के जैसे अछूत थे न...अब तुम प्याज लहसुन जैसे सवर्ण को उसके यहाँ ऐसे ही दलित बनाये रहो...बस तुम ठाकुर को बीमार बनाये रखो ..और मैं इस लोकतंत्र को.."

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