Friday 27 April 2018

मुसाफ़िर

क्या बताऊँ क्या मंज़िल का पता दूँ
मैं सफर में हूँ मील का पत्थर होने को

#तुषारापात®

Wednesday 25 April 2018

ठूँठ

एक पेड़ था मैं हरा भरा
तेज आंधी ने धरा में औंधा धरा
मैंने देखा है सिसकते हुए
अपने फलों को नुचते हुए
हरी हरी छोटी टहनियाँ
चर गईं मुझे बकरियाँ
काट न पाए
क्योंकि था जड़ीला बड़ा
ठूँठ का संबोधन मुझे मिला
इधर उधर लुढ़कते
सागर किनारे पहुँच गया
ठूँठ हूँ पर पेड़ का
सागर पे उगते सूरज को देख
हर्षित हुआ
लोगों ने खेल खेल कर सागर में गिरा दिया 
एक लठ्ठ सा तैरता हूँ अब
नाव बनता तो कोई देता दिशा
तुम्हें लगता है बनूगा एक दिन जहाज मैं
मुझे पता है ठूंठ हूँ मैं
अभी दिख रहा हूँ तुम्हें तैरता हुआ
मगर क्षितिज पे दूर सागर में
दिखूँगा नजर में तुम्हारी डूबता हुआ।

#ठूँठ
#तुषारापात®

Tuesday 24 April 2018

चुगलियाँ

चुगलियाँ वो चिट्ठियाँ हैं जिस पते की होती हैं उसके दाएं बाएं के मकान में भेजी जातीं हैं।

~तुषारापात®

Sunday 22 April 2018

बग़ावत

क्या कलम ने ही सारी लिखावट की है
कहकर मेरी उंगलियों ने बग़ावत की है

-तुषारापात®

Thursday 19 April 2018

मन्नत

"तो क्या माँगा तुमने भगवान से" आभास ने अपने पैर पे दूसरा पैर चढ़ाया और उसकी ओर घूमते हुए पूछा

"मन्नतें..किसी को ..बताईं नहीं जाती..वरना पूरी नहीं होतीं..ये तो भक्त और भगवान के बीच की बात है" अमितिभा बस के झटकों के साथ अपने स्वर को बिठाते हुए चुलबुलाहट से बोली

आभास पहले तो बनावटी मुँह बनाता है फिर झूठे रौब के साथ कहता है "पता है मेरे लिए ही कुछ माँगा होगा..अब जिसके लिए माँगा है उसे बताने में क्या हर्ज...वैसे भी पति को सबकुछ जानने का हक़ है..शास्त्र कहता है"

"बस बस..'गुप्ता' साहब..धोती कुर्ता और केसरिया गमछा पहनके खुद को ज्यादा 'पंडित' मत समझो.." अमितिभा उसकी धोती खींचने की एक्टिंग करते हुए बोली

"अरे यार..ज्यादा भाव मत खाओ..बताओ न..नहीं तो मैं अपनी मन्नत सबको बता दूँगा.. आभास ने उसे डराया

अमितिभा ने हँसते हुए कहा "अच्छा अच्छा..मैंने माँगा.. मैंने माँगा कि मेरे जिद्दी पति की..गंदे पति की..सिगरेट पीने की गंदी आदत छूट जाए.."

"चल झूठी..." आभास ने कहा और उन दोनों की नोंकझोंक यूँ ही चलती रही

बालाजी के दर्शन करके दोनो जयपुर से आगरा जाती बस को हाई-वे से पकड़ के भरतपुर जा रहे थे और गर्म दोपहरी के इस सफर को अपनी नोकझोंक के छींटों से भिगो रहे थे कुछ देर में बस एक ढाबे पे रुकती है,कंडक्टर की आवाज आती है कि दस मिनट का स्टॉप है जिन्हें चाय नाश्ता करना है कर लें

"तुम कुछ खाओगी." आभास ने पूछा

"नहीं..अभी आधे घंटे पहले ही दर्शन करके तो लंच किया है" अमितिभा ने कहा

"ठीक है..मैं अभी आता हूँ..अब ये मुँह मत बनाओ..दर्शनों के चक्कर मे सुबह से नहीं पी..बस एक दो कश मारकर आता हूँ..कोल्डड्रिंक पियोगी?"
आभास ने उसके चेहरे पे नाराजगी का भाव देख के पूछा

"अरे ये क्या है..ये लोग क्या खा रहे हैं आइसक्रीम है शायद...मेरे लिए ये ला दो" कुछ लोग दोने में कुल्फी जैसी कुछ चीज लाकर खा रहे थे वही अमितिभा ने भी उसे लाने को कह दिया

आभास ने सोचा कि जब तक ये कुल्फी खायेगी तब तक वो आराम से सिगरेट फूँक लेगा वो जल्दी से कुल्फी के ठेले पे गया,ठेला पान की गुमटी से सटा हुआ ही था,पता नहीं गर्मी ज्यादा होने के कारण ठेले पे भीड़ थी या मात्र दस रुपये की कुल्फी की एक प्लेट होने के कारण ऐसा था जो भी हो,ठेले पे बस की आधी सवारियों की भीड़ जमा थी, उसने दस रुपये का नोट हाथ में लेकर आगे बढ़ाया और व्यस्त ठेले वाले से बोला "भइया.. एक देना.."

कुल्फी वाले ने उसे देखा पर अपने काम मे लगा रहा पहले से खड़े लोगों को वो अल्युमिनियम कम टीन के छोटे छोटे डिब्बों से कुल्फी निकाल के चाकू से दो पीस में काट काट के दे रहा था आभास खड़ा अपनी बारी का इंतजार करने लगा एक दो मिनट के बाद उसने फिर कहा "अरे भाई एक मुझे भी दे दो"

कुल्फी वाला मशीन की रफ्तार से टीन के डब्बे मटके से निकालता और चाकू से कुल्फी काटके देता जा रहा था पर भीड़ ज्यादा होने के कारण समय तो लगना ही था आभास ने सोचा कि शायद ये एक कुल्फी के कारण उसकी बात नहीं सुन रहा है तो उसने पर्स से एक दस का नोट और निकालकर कहा.."भाई दो कुल्फी दे दो..बस छूट जाएगी.."

कुल्फी वाले ने फिर उसे देखा और अपना काम जारी रखा आभास अब बेचैन होने लगा सिगरेट की तलब भी बढ़ रही थी और घड़ी की सुइयां भीं,कुल्फी वाले ने जब उसके बाद आए आदमी को तीन कुल्फी निकालकर दीं तो उसके सब्र का बाँध टूटने ही वाला था उसके भीतर अहम की आग जाग रही थी,वो बस अब किसी भी क्षण इस कुल्फी वाले को गालियां देने वाला था ठेले पे आए उसे पाँच मिनट से ज्यादा हो चुके थे भीड़ अब छँट चुकी थी वो बस इंतज़ार कर रहा था कि अब ये क्या करता है और सोचता है कि अगर अब इसने नहीं दी तो दो हाथ तो इस नालायक के लगा ही दूँगा

ठेले वाले ने मटके से दो अल्युमिनियम के डब्बे छाँट के निकाले,ठेले पे रखे उसके बाद जाँच परखकर दो दोने उठाए उसके बाद चाकू को अच्छे से धोया और उसी धोए हुए चाकू से डिब्बे से कुल्फी निकालकर,कुल्फी को चार पीसों में काटा और दोनों में सजा के सम्मान की मुद्रा में आभास को देते हुए बोला "लीजिये पंडित जी!"

आभास अवाक रह गया उसका ध्यान एक बार अपने पहनावे की ओर गया और दूसरी ओर उसकी श्रद्धा की ओर, उसने ठेले वाले को रुपए दिए और दोनों हाथों में कुल्फी लेकर बस की ओर चल पड़ा पता नहीं क्यों वो अब सिगरेट नहीं पीना चाहता था।

~तुषार_सिंह तुषारापात®

Wednesday 11 April 2018

बब्बर मूषक

होती होंगी तुम्हारे पास ज़माने भर की डिग्रियाँ
5 रुपैये में 10 निकाल देते हैं हम उनकी फोटोकॉपियाँ

-तुषारापात®

Tuesday 10 April 2018

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

उसके
एक हाथ में किताब
और दूसरे में
छोटा सा एक झोला है

चलते हुए उसकी बाहें
लक्ष्य की ओर जाती नाव की
दो पतवारों की तरह
उल्टी धारा को चीरतीं जा रहीं हैं

उसकी
कॉटन साड़ी की करारी प्लेटें
आदम ज़माने की हवा काट
हव्वा के झंडे की तरह लहरा रहीं हैं

कल लड़ी थी पढ़ी थी
अब अपने जैसी सभी को पढ़ा रही है
दलदल निचोड़ के उसमें कैद पानी को
कलकल बहा रही है कल बना रही है।

~तुषारापात®

Monday 9 April 2018

खोटे सिक्के

सुना है टूटते हुए सितारे मुराद पूरी करते हैं
किस्मत की टकसाल के खोटे सिक्के चलते हैं?

~तुषारापात®

Monday 2 April 2018

कबीरा

पति खड़ा मॉल में बचावे कैसे अपनी जेब
पकड़े पत्नी का हाथ विंडो शॉपिंग है सेफ

-तुषारापात®