Monday 24 July 2017

बिरहम्मा

दिल में लहू की बगावत के जैसे
तुम मुझमें हो मेरी ख़िलाफ़त के जैसे

पैरों में बाँध के जरूरत के घुँघरू
ज़िंदगी नाचती है तवायफ़ के जैसे

वो बुदबुदाता है पाँचों वक्त आयतें
ख़ुदा के कानों में शिकायत के जैसे

लगके गले पीठ ख़ंजर से थपथपा के
मोहब्बत दिखाता है अदावत के जैसे

चढ़ती जवानी का है ये मुआमला
दबे पाँव उतरती शराफत के जैसे

दफ़्न है मुमताज़ शाहे जहाँ के सीने में
दिल है ताजमहल की बनावट के जैसे

के काफ़िरों ने ईज़ाद करके इक नया ख़ुदा
मोमिनों से किया हिसाब क़यामत के जैसे

तू शायिर है 'तुषार' बिरहम्मा तो नहीं
लिखेगा ख़ाक उसकी लिखावट के जैसे

#तुषारापात®