आकाश एक बहुत विशाल घड़ी की तरह मुझे दिखाई दे रहा है जिसका सेकण्ड का सरपट भागने वाले काँटा है चाँद, और इस समय आसमानी घड़ी का ये चलता पुर्जा, चाँद, मेरे बाएं से मेरी दाहिनी ओर आ चुका है।
सागर खुद तो पूरा काला दिखाई दे रहा है मगर गोरे चाँद को लपकने के लिए शाम से अपना पूरा दम लगाए हुए है वो अपना सर किनारे पे लाकर बार बार पटकता है और हर बार हारकर और जोर से कराह के,लौट जाता है।
किनारे पे आती सागर की सिर्फ वे लहरें ही चमक रहीं हैं जो गंगा की हैं, रेत कोयले की तरह कहीं काली तो कहीं भूरी है कहीं अगर जरा सी भी कोई रोशनी है तो बस चाँदनी की है और चाँदनी आती हुई लहरों को दूधिया मगर हल्की लालिमा सी पहना रही है।
सागर खौलती कड़ाही बना हुआ है, लाली लिए आती हर दूधिया लहर पगे दूध की मलाई की तरह इस कड़ाही के किनारे लग जाती है कोई आसमानी हलवाई है तो यहाँ जो ये रबड़ी बना रहा है लोग मुझे पागल कह सकते हैं पर मैं इस हलवाई के दर्शन साक्षात कर रहा हूँ और मैं,सिर्फ मैं उसकी बनाई ये रबड़ी चख रहा हूँ।
#तुषारापात®
(चैत्र पूर्णिमा लाइव फ्रॉम गंगासागर)