Thursday 9 July 2015

आलोचना या निंदा

"क्या हुआ व्याख्या बेटा ?......अरे....तुम रो रही हो क्या......क्या हुआ बहु ? ...सन्दर्भ से कुछ झगड़ा हुआ.....?" आने तो दो उसे ऑफिस से......ठीक करता हूँ उसे" संवाद ने व्याख्या से कहा

"नहीं पापा जी ....कुछ नहीं हुआ सब ठीक है " व्याख्या ने जल्दी से अपने दुपट्टे से अपने आंसू पोछे और जबरन मुस्कुराते हुए ससुर जी से बोली

"तो क्या...आलोचना जी ने तुमसे कुछ कहा.?" संवाद ने फिर पूछा

"नहीं पापा जी ....मम्मी जी तो बहुत अच्छी हैं...वो तो मुझे बहुत प्यार करती हैं...आप..न..परेशान मत होइए...मैं बिलकुल ठीक हूँ" व्याख्या ने खुद को समेटने की कोशिश की

"ठीक है बेटा....कोई भी परेशानी हो...तो...तुम मुझसे बेहिचक शेयर कर सकती हो..चलो अब मैं अपने रूम में जाता हूँ" कहकर संवाद आलोचना के पास अपने कमरे में आ जाता है और आलोचना से कहा

"आलोचना जी!...अभी जब मैं आया तो....लॉबी में..व्याख्या बहुत उदास बैठी थी..आपसे कुछ बात हुई क्या?"

आलोचना पलंग पे उठ के बैठ गई और बोली " देखिये जी.....अरे अब क्या बताऊँ..हम लोगों को यहाँ...सन्दर्भ के यहाँ आये ...हफ्ता भर हो चूका है...और एक भी दिन ऐसा नहीं गया..जब साथ आई आपकी ...निंदा बुआ जी ने ...व्याख्या के किसी न किसी काम में ..उसकी गलती निकाल के मीन मेंख न निकाला हो...आज भी उससे बोलीं कि तुम्हारी जगह...अगर सन्दर्भ ने उनकी बताई लड़की से ..शादी की होती तो आज इस घर में....संवाद के पुरखों के संस्कार तो होते.....और भी अनाप शनाप जो मन में आया बोलती गईं ......मैं तो कहती हूँ कि...आप बेकार में इन्हें साथ ले आये..खैर मैं अभी जा के व्याख्या से बात करती हूँ......बेचारी को तो परेशान कर दिया है इन्होंने"

"हाँ ...ये निंदा बुआ की बहुत बुरी आदत है...जिसके पीछे पड़ जाएँगी बस जीना हराम कर देती हैं..खैर मैं उनसे तो बाद में बात करूँगा..पर तुम्हें तो व्याख्या से बात करनी चाहिए थी...आखिर तुम उसकी सास हो...तुम्हारी बातों से उसे भी हिम्मत रहती न " संवाद ने अपनी सलाह दी

"अरे मैं तो बात करने जाने वाली ही थी ....सोचा था ..कि......जरा..निंदा बुआ..अपनी दोपहर की नींद में चलीं तो जायें...चलो मैं उससे बात करके आती हूँ...आप आराम करिये ....." आलोचना ने सफाई पेश की

"व्याख्या बेटी! आ जाऊँ मैं?" आलोचना ने व्याख्या के कमरे के दरवाजे से ही पूछा

"ओह्ह मम्मी जी....आइये न...आपको कोई पूछने की जरूरत है क्या" व्याख्या ने जल्दी से उठकर पलंग पे उनके लिए जगह बनाई

" देख बहु....मुझे पता है..कि...तुम निंदा बुआ की बात से बहुत अपसेट हो पर....मैं बस इतना ही कहना चाहती हूँ...बिलकुल भी परेशान मत हो...कोई कुछ भी बोले ...मुझे तो पता है न....कि तुमने कितनी अच्छी तरह से ..इस घर को संभाला है.....और बेटा ...मैंने तुम्हे आज तक ...जब भी किसी बात में टोका ..या ...कुछ कहा होगा तो बस... इसलिए कि उससे तुम्हारा काम और अच्छा हो सके..कोई बाहर वाला...कोई कमी न निकाल सके" आलोचना ने व्याख्या का हाथ पकड़ के कहा

"मैं जानती हूँ मम्मी जी....आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला है मुझे ....बहुत सुधार आया है मुझमे...आप जैसी सासू माँ किस्मत से मिलती हैं"
व्याख्या की आँखों में भावुकता की नमी आने लगी

"अरे किस्मत वाली तो मैं हूँ....जो मुझे तुझ जैसी इतनी समझदार बहु मिली है ...छोड़ अब ...निंदा बुआ की बातों को दिल से मत लगा..वो तो कुछ भी बोलती रहती हैं...वो तो मुझे भी नहीं छोड़ती..तूने तो देखा ही है...
बस बेटा यूँ ही हँसते मुस्कुराते रहा कर...मैं हूँ न साथ में तेरे...तेरे हर डिसीजन में...और वैसे भी जब व्याख्या और आलोचना एक साथ हैं तो निंदा क्या कर सकती है" आलोचना की ये बात सुनते ही व्याख्या की आँखों के बाँध टूट गए और वो अपनी सास के गले लग गई दोनों सास बहु नम आँखों के साथ न जाने कितनी देर एक दूसरे को गले लगाये रहीं।

' आलोचना सुधार की दिशा दिखाती है जबकि निंदा उपहास की। व्याख्या और आलोचना के बीच स्वस्थ संवाद होना चाहिए या ये कहना चाहूँगा किसी भी रिश्ते में चाहे वो सास बहु का हो या कोई भी रिश्ता हो समस्या तब ही आती है जब संवाद टूट जाता है और तभी निंदा हावी होने लगती है'

-तुषारपात®™

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