Friday 17 July 2015

तुम्हारी बिंदी

बारिश की दूधिया बूंदे यूँ
तुम्हारे चेहरे पे पड़ रही थीं
जैसे शिवजटा से निकली गंगा
अपने चाँद पे छींटे लगा रही हो
छत पे बाहें थामे न जाने हम
कितने पल पानी में बहा के  
एक दूसरे की प्यार बरसाती
तरसती नजरों में खूब नहा के
वापस मेरे कमरे में जब आये
तो एक तौलिया ले तुम अपने
बाल सुखा रहीं थीं और मैं
स्टोव पे नींबू वाली चाय बना रहा था
आदतन तौलिया बिस्तर पे फेंक
चाय पी तुम अपने घर दौड़ गयी
बारिश भी तुम्हे रास्ता दे विदा हुयी
तुम्हारी खुश्बू में पूरा डूबा,पूरा भीगा मैं
तौलिये पे चिपकी रह गयी तुम्हारी
सितारे वाली कुंवारी लाल बिंदी से
खुद को तुम्हारा साजन बना रहा हूँ..

-तुषारापात®™

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