Saturday 9 January 2016

मसीहा मुर्गा

"कुक्डुँ.कूँ..कुक्डूँ...कूँSSSS" मुर्गे की एक बाँग के साथ ही गाँव में चहल पहल शुरू हो गई, लोगों ने बाँग लगाने वाले मुर्गे के विशाल दड़बे के सामने मत्था टेका उसे दाने खिलाये और उसके बाद चौक की तरफ तेज क़दमों से आने लगे

"मारो..मारो..इसे पत्थरों पत्थरों पीट डालो...इसने हमारे मसीहा का अपमान किया है...फाँसी..दो..फाँसी...दो"चौक पे बढ़ती जाती भीड़ रस्सियों से पूरी तरह बंधे एक आदमी को पत्थर मार मार कर नारे लगा रही थी

"तुम सब..सब पागल हो..अंधे हो चुके हो..तुम्हारी आँखों के सामने सच है..फिर भी तुमने आँखें मूँद रखी हैं..बहुत पछताओगे सबके सब..बहुत पछताओगे.."पत्थरों की चोट से लहुलुहान हुआ आदमी अपने जख्मों की परवाह किये बगैर उन सबसे चिल्ला चिल्लाकर कह रहा था

"अंधे हम नहीं तू है...तूने हमारे मसीहा..हमारे पैगम्बर...को सूरज से छोटा कहा..जानता नहीं सूरज उसका गुलाम है..तुझे तो सजाये मौत मिलेगी" भीड़ में से एक रौबदार आदमी बोला,जो चाल ढाल से गाँव का मुखिया सा लग रहा था उसकी आवाज आते ही भीड़ नारे लगाना छोड़ के चुप हो गई और उन दोनों की बातें सुनने लगी

"हा हा हा..सूरज और उसका गुलाम...उस अदने का..सूरज जिससे पूरी दुनिया में रौशनी होती है..जिससे हम सबको खाना मिलता है..जिससे दिन शुरू होता है..मूर्ख हो तुम सबके सब..मूर्ख...जाहिलों थूSSSS" न जाने उस आदमी में इतनी हिम्मत कहाँ से थी जो इतनी चोट खाने के बाद भी वो दहाड़ रहा था

मुखिया जैसा शख्श गुस्से से तिलमिला गया "तेरी इतनी हिम्मत...तू कहता है दिन सूरज से शुरू होता है..मरेगा तू..अभी और यहीं मरेगा तू.. तेरी लाश के टुकड़े टुकड़े किये जाएंगे" कहकर उसने तलवार निकाल ली और देखते ही देखते उस आदमी का सर काट डाला

"मसीहा ! मसीहा!" भीड़ ख़ुशी से हाथ उठा उठा कर आवाज लगाने लगी, मुखिया जैसे शख्श ने भीड़ की बात समझ ली,उसने मरे हुए आदमी का सर बालों से पकड़ के उठा लिया और चलने लगा भीड़ उसके पीछे पीछे चलने लगी सारे लोग मुर्गे के विशाल दड़बे के सामने जा कर रुके

"हे हमारे रहनुमा..पाक पैगम्बर..हम सबके दयालु मसीहा...एक पापी कहता था कि आपका गुलाम ये अदना सूरज आपकी नहीं बल्कि अपनी मर्जी से चलता है..उसपे आपका कोई बस नहीं है..जबकि हम सब जानते हैं कि वो आपकी एक आवाज पे निकल आता है और एक गुलाम की तरह हमारे लिए दिन भर की खुशियाँ लाता है..आपकी शान में गुस्ताखी करने वाले उस आदमी का सर हम तुझे तोहफे में देते हैं..हम सब पर तेरी रहमत यूँ ही बनी रहे..मेरे मालिक..मेरे ताकतवर मसीहा" मुखिया जैसे उस शख्श ने कटा हुआ सर दड़बे में डाल दिया

"कुकड़ूँ ..कूँ" मुर्गे ने आवाज लगाई और पूरी भीड़ ने मत्था टेक दिया।

-तुषारापात®™