Tuesday 26 April 2016

लाल चूड़ियाँ

"बापू अबकी जो फसल हुइहए..तो हमका लाल चूड़ी दिलाय देहउ..के बापू..दखिन देविन के मेला महियां..अब कित्ते दिन बाकी हईं...हमऊ मेला सेरे अम्मा जइसि लालह चूड़ीयाँ लीबो" कुन्नो ने अपनी मासूमियत से भरी आवाज में खिलावन से कहा

"बिटिया..अबहिं ढेर दिन हईं..मेला महियां..बस भोलेनाथ सेरे या प्रार्थना करउ...अबकी पानी टाइम सेरे गिर गिर जावइ..तो तुम्हरे लिए चूड़ी का..लाल फिराकउ आई जहिहई" खिलावन हाथ धोते हुए बोला और अपनी 11 साल की बेटी कुन्नो के पास आकर खाने की पोटली खोलने लगा

जितने दिन वो खेत में काम करता था कुन्नो आज ही की तरह रोज दोपहर में उसके लिए खाना लाती थी खिलावन की बीवी सुरमई घर से रोटी साग इत्यादि की एक पोटली बना के कुन्नो के हाथ भेज देती थी और कुन्नो पूरे गाँव का चक्कर लगाती उछलती खेलती खेत पहुँच जाया करती थी

खिलावन ने खाना खाकर दूर खेलती कुन्नो को बुलाया "बिटिया...ओ.. बिटिया.. लेव..बर्तन लइके घर चली जाव.." कुन्नो दौड़ के उसके पास आ जाती है और अपने दोनों हाथों में जमा किये हुए पत्थर फेंकती है और खिलावन से पोटली ले लेती है खिलावन उसके सर पे प्यार से हाथ फेरता है और बनावटी गुस्से में कहता है "अपनी अम्मा से कहेउ...थोड़ो नमक कम झोंकईं साग महिया.."

शाम होते ही खिलावन घर पहुँचता है सुरमई उसके हाथ पैर धुलवाती है और धुला हुआ साफ गमझा उसे देकर चाय बनाने लगती है
"सुमइ..या सारी चाह चूल्हो पहियां बनन पर बड़ो टाइम लेत हई.. भोलेनाथ केरी क्रिपा हुई गई यइ बार..तो गेस लाइ दिबो.." चारपाई पे बैठ बीड़ी सुलगाते हुए उसने सुरमई से कहा

चाय छानते हुए सुरमई बोली "यउ सब हवाई बात छोड़उ..कल तहसील जाइकेरे बेंक सेरे कुछ पइसा निकाल लाउ...एक पाई नाइ हई.. हमाये पास.."उसने चाय का गिलास खिलावन की ओर बढ़ाया

"बेंक महियां तुम्हरे बाप पइसा भेजत हईं का..कित्ती बार कहो..चाह पियत टाइम..दुखड़ा न रोवउ करइ" खिलावन बैंक में बचे बहुत कम रुपैयों का ध्यान करते हुए झल्लाके बोला और चाय का गिलास लेकर चारपाई के पाये के पास रख देता है और एक और बीड़ी सुलगाता है

ऐसे ही एक के बाद एक दिन गुजरते जाते हैं आषाढ़ सावन भादों सब महीनो में नाम की भी बारिश नहीं होती है पूरे प्रदेश में सूखा पड़ा है मगर खिलावन के बैंक का जमा सारा धन नदी की तरह बहता जाता है ,भुखमरी से बचने के लिए गाय बैल समेत जो भी कुछ बेचा जा सकता था बेच दिया जाता है और कुन्नो भी बीमार पड़ जाती है उसकी दवा-दारू तक भी नहीं हो पाती है

"कहाँ जाइ रहि हउ..इहाँ बिटिया भूखी हई..और तुम उहाँ महाटीला पर दूध बहाये जाइ रहि हउ.. बैठउ..चुपचाप" सुरमई को एक छोटे सी गिलसिया में दूध लेकर शिव मंदिर जाते देख बिलबिलाते हुए खिलावन ने कहा

"पंडित जी कहिन हईं.. अकाल केरो दोष हई.. कोई कुँआरी कन्या केरी बलि लइके ही जहिहई..कहीं कुन्नो.....यहि लिये जाइ रहेन.. हमाओ कलेजो पत्थर केरो नाइ हई..जो बिटिया कहियां भूखो रखके..दूध बहान चलि जइबो" सुरमई कुन्नो के पास आकर बैठ गई और रोते रोते बोली

"अरे..पूरो सावन..गिलास भर भर दूध भोलेनाथ डकार गए..गंगा जी केरी एक बूँद नाइ खोलिन अपने बालन सेरे ..खुद तो पत्थर केरे बने बइठे हईं.. अउर हमइ कलेजा दई दीन माँ बाप केरो" खिलावन ने जैसे अपने सीने की चीत्कार खोल दी, गरीब आदमी अपना गुस्सा या तो अपनी पत्नी पे दिखा पाता है या भगवान को कोस कोस के निकालता है

कुन्नो भूख और बीमारी के कारण पीली पड़ गई है बीच बीच में बेहोश सी हो जाती है जब होश आता है तो कभी कभी बड़बड़ाती है पर वो 11 साल की लड़की समझदारी का स्वांग भी करती दिखती है और अपनी अम्मा बापू को परेशान देखकर इधर उधर की बात करके उन्हें बहलाने की कोशिश करती है "बापू तुमका तो सब अन्नदाता काहत हईं फिर भगवान तो तुमसे छोटो हुओ न"

"बिटिया..यही विडम्बना हई..इहाँ जो अन्न उपजात हई वो किसान हई ..अउर जो भूख उपजात हई वउ भगवान हई" अपनी आँखों में आये पानी को वो रोक न सका और कुन्नो का हाथ पकड़ कर बैठ गया एक बेबस पिता अपने सामने अपनी मासूम बेटी को मरता देख रहा था

अचानक से कुन्नो की तबियत बिगड़ने लगती है वो बड़बड़ाने लगती है.."अम्मा..अम्मा...बापू..पू...लाल चूड़ी...छन छन...छन छन ..लाल..चू.."और उसके प्राण चूड़ी पूरा बोले बगैर ही निकल जाते हैं

"आअह्ह...आआह्ह.. हाय हमरे महादेव...यउ.. का कर दिउ.. हाय हमरी बिटिया...कुन्नोSSSSSS............................................" एक माँ की छाती फट जाती है अपनी बच्ची को मिटटी होते देख उसका रूदन शिव के तांडव से भी विकराल है खिलावन सन्न रह जाता है उसकी लाल आँखें नम हैं पर वो धारा नहीं बहा रहीं हैं

करीबन आधे घंटे बैठा वो एक टक मृत कुन्नो को देखता रहता है और सुरमई का आकाशीय बिजली सा रूदन सुनता रहता है फिर अचानक से उठता है एक फटी पुरानी सी चादर में घर के टेढ़े मेढ़े सारे धातु के बर्तन बांधता है और घर से निकल जाता है सुरमई को होश नहीं था पर इतना समझ रही थी कि शायद वो अंतिम संस्कार की लकड़ी के लिए बर्तन बेचने गया है

काफी देर के बाद हाथ में फावड़ा लिए खिलावन आता है और कुन्नो के मृत शरीर को सुरमई के हाथों से छीन कर अपने काँधे पे रखकर बाहर जाने लगता है सुरमई रोते चीखते हाय दइया हमरी बिटिया कहते कहते उसके पीछे दौड़ती है

खिलावन अपने खेत में पहुँचता है और वहाँ पहले से खोदे हुए एक विशाल गढ्ढे में कुन्नो के मृत शरीर को लिटाता है और अपने कुर्ते की जेब से एक पैकेट निकालता है उसमे बर्तन बेच कर लाइ हुईं....बाजार की सबसे महंगी लाल चूड़ियाँ थीं...वह फफक फफक के रोते रोते अपनी बच्ची कुन्नो के दोनों हाथों में चूड़ियाँ पहना देता है....पास खड़ी सुरमई चीख चीख के विलाप कर रही है अपने हाथ पैर पटक रही है पर खिलावन एक मशीनी व्यक्ति की तरह फावड़े से मिटटी डाल डाल के उस गढ्ढे को भरता जाता है

गड्ढे को भर के वो फावड़ा आसमान की ओर करके जोर जोर से चिल्लाता है "अब तउ तुम्हरे कलेजा महियां ठंडक पड़ गई हुइए...दूध के साथ हमाइ बिटिया कहिहउँ हजम कर गेउ तुम..अबहूँ शिराप पूरो नाइ हुओ का तुम्हारो...हाँ कइसे हुइए..किसान केरे इहाँ कबहुँ सुखो नाइ पड़त..काहे सेरे किसान केरी आँखे हमेशा गीली राहत हईं...."
आसमान भगवान् के इंसाफ की तरह ही पूरा साफ है एक भी बादल का कोई नामोनिशान तक नहीं......दूर कहीं से दखिन देवी के मन्दिर से कुछ स्त्रियों के भजन की आवाज आ रही है "लाली लाली लाल चुनरिया....... कैसे न माँ को भावे...................................................."

-तुषारापात®™

Friday 22 April 2016

विचारधारा

किसी फोटो में पत्नी के बाएं दायें खड़ी उसकी दो  सुन्दर सहेलियों में से आप जिसे ज्यादा ध्यान से देखते हैं उससे आपकी विचारधारा स्पष्ट होती है कि आप दक्षिणपंथी हैं या वामपंथी
और यदि आप दोनों सहेलियों को छोड़ के पत्नी को ही देखते हैं तो आप कट्टरपंथी हैं
तुषारापात®™


Thursday 21 April 2016

लिवर ट्रांसप्लांट

पचपन साल की विनीता गुर्दे की एक गंभीर बीमारी से लड़ रही थी और उसके साथ लखनऊ के मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर भी इस लड़ाई में अपनी पूरी ताकत से लगे थे,विनीता का इलाज बहुत लंबा चला जिसके दौरान उसने बहुत कष्ट उठाये पर कल वो जिंदगी और मौत के इस खेल में मौत के पाले में चली गई,डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया ।

विनीता के भाई जो खुद एक डॉक्टर हैं उन्होंने विनीता के अंगदान का निर्णय लिया उन्होंने सोचा कि उनकी बहन ने तो बहुत कष्ट उठाये पर उसके मृत शरीर के कई अंग अभी जिन्दा हैं जो किसी और तड़पते मरीज की जान बचा सकते हैं पता चला कि दिल्ली में एक मरीज की जान बचाने के लिए लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है तो डॉक्टर्स ने विनीता का लिवर निकाल कर उसे दिल्ली भिजवाने के लिए लखनऊ एअरपोर्ट भेजा ।

चूँकि निकाले गए लिवर को सिर्फ 6 घंटे तक ही सुरक्षित रखा जा सकता है तो इसको जल्दी से जल्दी दिल्ली पहुँचाने के लिए मेडिकल कॉलेज के एक अस्पताल से लखनऊ एयरपोर्ट तक के 28 किलोमीटर के अति व्यस्त ट्रैफिक वाले रूट पर 'ग्रीन कॉरिडोर' बना कर मात्र 24 मिनट में भेजा गया जो अपने आप में बहुत बड़ी बात है

ग्रीन कॉरिडोर मानव अंग को एक निश्चित समय के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए बनाया जाता है। पुलिस एम्बुलेंस के रूट को खाली करवाती है एम्बुलेंस के आगे आगे पुलिस वाहन चलते हैं जिससे स्पीड में ब्रेक न लगे, इसी प्रक्रिया को 'ग्रीन कॉरिडोर' कहा जाता है ।
यह सुविधा दिल्ली,मुम्बई,चेन्नई,कोच्ची और बेंगलुरु में उपलब्ध है और लखनऊ में यह चौथी बार कल किया गया। आज के पेपर में ये खबर बड़ी हेडिंग के साथ है 'लिविर बचाने को 24 मिनट ठहर गया लखनऊ'।

मैं विनीता की आत्मा की शांति की प्रार्थना करता हूँ उनके डॉक्टर भाई के इस निर्णय से लोगों में अंगदान की जागरूकता बढ़ेगी और कष्ट में डूबे मरीजों को बीमारी से छुटकारा मिल सकेगा उनकी इस सोच के लिए सलाम करता हूँ साथ ही डॉक्टर्स की टीम जिन्होंने अंग प्रत्यारोपण में अपनी महारत बनाई की जितनी तारीफ की जाय उतनी कम है और साथ ही साथ लखनऊ पुलिस और प्रशाशन और यहाँ के नागरिकों को साधुवाद!

पर एक बात मुझे बार बार खटक रही है कि इस पूरी प्रक्रिया में क्या हेलीकॉप्टर का प्रयोग नहीं किया जा सकता था? 24 मिनट तक लगने वाले जाम से शहर की ट्रैफिक व्यवस्था अस्त व्यस्त हुई आखिर सड़क पे भी न जाने कितने लोग अपने कितने ही जरूरी काम से कहीं जा रहे होंगे मान लो उस भीड़ में ही कोई गंभीर बीमार अस्पताल जाने को भाग रहा हो और ये होने से जाम में फंस के रह गया हो और अपने जीवन को खो बैठा हो तो?

नेताओं के फर्जी दौरों उनकी मीटिंग,रैलियों के लिए चुटकियों पे हेलीकॉप्टर उपलब्ध रहते हैं परन्तु आम जनता के ऐसे केस के लिए भी क्या एक हेलिकॉप्टर उपलब्ध नहीं कराया जा सकता था? मेडिकल कॉलेज को ऐसे समय के लिए अपने लिए हेलिकॉप्टर आदि की व्यवस्था की माँग करनी चाहिए
बड़े बड़े मुद्दों के बीच ऐसे ही कितने छोटे पर बहुत अहम मुद्दे हम सा छोड़े रहते हैं जिनका कहीं जिक्र नहीं होता जिनपे कोई प्रश्न नहीं उठाता पर मैं आदत से मजबूर हूँ कुछ उल्टी बात ढूंढ ही लेता हूँ हर सीधी बात में ।

-तुषारापात®™

Friday 15 April 2016

राम राम बैंक

क्या आप 32 साल पुराने किसी ऐसे बैंक को जानते हैं जिसमें न तो कोई रुपैये पैसे जमा करता है और न ही निकालता है मतलब उस बैंक में आर्थिक लेनदेन जैसा कुछ होता ही नहीं..कोई चेकबुक,विड्राल फॉर्म एटीएम कार्ड जैसा कुछ भी नहीं..फिर भी बैंक है और पिछले 32 वर्षों से चल रहा है...सुनने में अजीब लगता है न...?
आइये आपको साल के 365 दिन खुलने वाले और पूरे चौबीसों घण्टे काम करने वाले इस बैंक की सैर पे ले चलता हूँ

लखनऊ में अलीगंज और जानकीपुरम इलाकों के ठीक बीच में अर्थात अलीगंज और जानकीपुरम की सीमा रेखा पर एक चौराहा है जिसका नाम है 'राम-राम बैंक चौराहा' अब अगर चौराहा किसी बैंक के नाम पे है तो ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि चौराहे पे या उसके आसपास कोई इस नाम का बैंक भी होगा..पर इस बैंक के विचित्र नाम से पहले से असमंजस में फँसा व्यक्ति जब चौराहे पे बने शौपिंग काम्प्लेक्स और चारों ओर इस बैंक को ढूँढने का प्रयास करता है तो वो और चक्कर में पड़ जाता है कि ऐसा कोई बैंक कहीं दिख ही नहीँ रहा

दरअसल उस चौराहे से थोड़ा हटकर सीतापुर रोड के पास सेक्टर ए में स्थित है ये अनोखा बैंक जहाँ पैसा नहीं बल्कि उससे भी बहुत कीमती निधि राम नाम लेखन की पुस्तिका जमा होती है।अब तक इस राम राम बैंक में राम नाम के 80 करोड़ शब्द लिखकर श्रद्धालु जमा कर चुके हैं

इसके संस्थापक हैं श्री लवलेश तिवारी जिन्होंने 32 वर्ष पहले इस बैंक की स्थापना की थी उन्होंने बताया कि अपने शहर के हजारों लोग तो यहाँ राम नाम की पुस्तिका भर के जमा करते ही हैं बल्कि बहुत दूर दूर से लोग अपने हाथों से लिखकर राम नाम के हजारों शब्दों से भरी पत्रिकाएं यहाँ डाक द्वारा भेजते हैं जिसमें एक क्रिकेटर गौतम गंभीर के पिता जी भी हैं
साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि ये सारी प्रक्रिया निशुल्क है ।

चौराहे का नाम राम राम बैंक कैसे पड़ा इसका भी मजेदार किस्सा है वो बताते हैं कि शुरू शुरू में हमने राम राम बैंक का बोर्ड चौराहे पे लगाया पर नगर निगम उसे हटा देता था इस तरह ये प्रक्रिया कई बार हुई कई बार बोर्ड लगा कई बार हटा,इसी लगने हटने की प्रक्रिया से इसे लोकप्रियता मिल गई और ये चौराहा राम राम बैंक चौराहा के नाम से प्रसिद्ध हो गया और अब नगर निगम खुद इसे अपने रिकॉर्ड में यही लिखता है।

इस बैंक में हिन्दू मुस्लिम सभी धर्म के लोग अपने अपने राम नाम जमा कराते हैं यह अनोखा बैंक सभी धर्मों के लोगों के लिए आदर व श्रद्धा का केंद्र है और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है साथ ही गरीब से गरीब आदमी का भी यहाँ खाता है और उसके खाते में लाखों राम जमा हैं
सोचिये जिसके खाते में हजारों लाखों राम जमा हों क्या उसकी पुण्य की चेक कभी बाउंस हो सकती है नहीं कभी नहीं ,सच है राम से बड़ा राम का नाम।

इसी के साथ सभी बड़े बुजर्गों को प्रणाम करते हुए आप सभी को रामनवमी की अनेकों शुभकामनाएं देता हूँ और प्रार्थना करता हूँ हम सबमें राम के चित्र की बजाय राम के चरित्र का जन्म हो ।

-तुषारापात®™

Monday 11 April 2016

हाशिये का तिरेसठ

"भुला चुका था तुम्हें..हमेशा के लिए...बहला लिया था खुद को ये यकीन दिलाकर कि कुछ कलम ऐसे ही सूख जाते हैं..उन्हें कागज नहीं मिलता जिंदगी की रंगीन इबारत लिखने को...पर जब दोबारा से तुम्हें देखा...मेरे अंदर की स्याही उबलने लगी..आयत..बिखर जाना चाहता हूँ...तुम्हारे पन्नों पे..." दोनों कन्धों से उसे पकड़ते हुए मैंने कहा

"संभालो खुद को..वेद...वेद..लीव मी" उसने खुद को मुझसे छुड़ाया और सामने वाले सोफे पे जाकर बैठ गई और गहरी साँस लेकर आगे बोली "किसी और की इबारतों से भरे कागज पे जब.... स्याही बिखरती है तो नई इबारत नहीं लिखती....कागज का मुँह काला होता है.."

मैंने देखा उसने ये कहते हुए अपने ऊपर के होंठ को दाँत से दबाया ये उसके कशमकश में होने की निशानी हुआ करती थी वो केटल से चाय कप में निकालने लगी,हदीस आज आउट ऑफ़ स्टेशन था..ऑफिस से मैं आयत के घर ही आ गया था वो भी उससे..पूछे बिना

"और कब तक यूँ अनछपे फ्रस्ट्रेटेड राइटर से घूमते रहोगे..तलाश करो..तुम्हें बहुत से कोरे कागज मिल जाएंगे...किसी एक पे अपनी जिंदगी की गजल लिखो..कविता लिखो....आगे बढ़ो पुरानी बातों से...अब इस कागज पे किसी और की कहानी है"अपने गले पे आये पसीने की बूँदे उसने अपनी साड़ी से पोछी और मुझे चाय का कप पकड़ाते हुए कहा

"कोरे कागज...हा हा हा...आयत.. अधूरी कहानियों को कोरे कागज नहीं ....बासी कागज मिलते हैं... जानती हो...मुझे ये बात बहुत तकलीफ देती है कि इस कागज ने मुझे हाशिये पे डाल दिया" मैंने उसकी ओर ऊँगली का इशारा किया और उसपे नजर जमाये हुए चाय का एक सिप लगाया

अपनी गहरी आँखों में उसने मेरी आँखों को डुबाये रखा और भीगी सी आवाज में बोली "वेद..हाशिये पे लिखा हुआ एक छोटा सा शब्द या नम्बर...अक्सर कागज पे लिखी इबारतों की पहचान होता है..उसी से पता चलता है क्या पहला है क्या दूसरा"

"तो मैं तुम्हारी जिंदगी में..बस एक सीरियल नम्बर हूँ..तुम नहीं समझोगी आयत....इस सीरियल नम्बर को कितनी तकलीफ होती है..जब वो हाशिये से देखता है..किसी और कलम को इस कागज पे चलते हुए.." वो मेरी बात सुनके कुछ नहीं बोली,सोफे से उठकर ड्राइंग रूम के खुले दरवाजे की तरफ खड़ी हो गई दरवाजे की बाईं तरफ की दीवार की ओर सरका हुआ पर्दा पंखे की हवा से उड़ रहा था मैं उसके पास गया और दरवाजे की तरफ जिधर पर्दा था उसे खींच लिया,दरवाजे के पल्ले के पीछे वाली दीवार के सहारे उसे टिकाकर उसके सामने सट के ऐसे खड़ा हो गया जैसे हाशिये में ६३ लिखा हो

"याद करो आयत..ऐसे ही कितने ६३..हम बनाया करते थे.." उसके होंठो के बहुत पास जाकर मैंने कहा ,उसकी साँसे तेज होने लगीं..होंठ सुर्ख होने लगे..कांपती हुई..मेरी आँच से खुद को पिघलने से बचाते हुए उसने मुझे जोर का धक्का दिया..और गुस्से से भरी रूआंसी आवाज में बोली "अक्सर ६३ बनाने वाले ही ३६ बनकर रह जाते हैं" कहकर वो अंदर के कमरे में चली गई

मैंने दरवाजे के बंद होने की तेज आवाज सुनी,उसके घर से बाहर निकल के सड़क पे आया और एक सिगरेट सुलगाई,एक गहरा कश लगाया
धुएं का एक छल्ला छोड़ा और काफी देर तक उस छल्ले को बड़ा होते और ऊपर उठते हुए देखता रहा..बिल्कुल मेरी ही तरह दिख रहा था वो खाली और शून्य..शायद यही मेरा सीरियल नम्बर था..मैं मुस्कुराया और कार में आकर बैठ गया।

-तुषारापात®™

Friday 8 April 2016

पाकिस्तानी ऊँट

हर भारतीय बच्चे की तरह बचपन में मुझे भी क्रिकेट खेलने का बहुत शौक हुआ करता था पर मेरे पास न खुद का बल्ला होता था और न ही वो पीली हरी कॉस्को वाली टेनिस बॉल,जो उन दिनों एक ऊँचे स्टैण्डर्ड की तरह देखी जाती थी तो खेलने के लिए हम मित्रों के रहमोकरम पे रहते थे और आप मेंसे जिन्होंने गली क्रिकेट खेला होगा वो बहुत अच्छी तरह जानते होंगे कि गली क्रिकेट में जिस लड़के का बैट होता है उसकी कुछ न कुछ दादागिरी पूरे खेल के दौरान बनी ही रहती है

फिर भी मेरे जैसे लोग तो चाहिए ही होते हैं इस खेल में जो फील्डिंग के और इधर उधर गई गेंद को उठा लाने के बड़े काम आते हैं और हमारे जैसों की बैटिंग भी सबसे अंत में आती है फिर भी हम वसुधैव कुटुंबकम की नीति के तहत खेला करते थे इसके अतिरिक्त और चारा भी नहीं हुआ करता था

ऐसे ही मुझे याद आता है मेरा एक मित्र हुआ करता था जिसके साथ अपने घर की गैलरी में मैं क्रिकेट खेला करता था सिर्फ वो और मैं हुआ करते थे खेल में ,गैलरी से बाहर गेंद जाने की संभावना न के बराबर और पीछे तो दीवार ही हुआ करती थी जिसपे कोयले या किसी पत्थर के टुकड़े से तीन स्टम्प का वो ऐतिहासिक निशान हुआ करता था जो परमानेंट बना रहता था आखिर रोज ही खेलते जो थे

अब चूँकि बैट भी मेरे मित्र का और बॉल भी उसकी तो एक सर्वमान्य नियम ये था ही कि वो पहले बैटिंग करेगा कभी हम कुछ ओवर्स की सीमा बना के खेलते तो कभी अनलिमिटेड ओवर्स (टेस्ट क्रिकेट की तरह) का खेल हुआ करता था इसमें लिमिटेड ओवर्स के खेल में तो मेरी बैटिंग जैसे तैसे आ जाती थी हालाँकि उसमें भी मेरा मित्र तीन चार बार से पहले खुद को आउट नहीं घोषित करता था कभी गेंद स्टंप के ऊपर लगी कभी बाएं से बाहर लगी आदि आदि लेकिन असली समस्या आती थी जब हम अनलिमिटेड यानी जब तक मित्र या मैं आउट नहीं होऊँगा तब तक दूसरे को बैटिंग नहीं मिलेगी अब मेरा मित्र पहले बैटिंग करता और चूँकि वो ही अंपायर होता तो मैं घंटों बॉलिंग करते रहता और वो खेलता रहता आउट होने पर भी आउट नहीं मानता फलतः मेरी बैटिंग आने के कोई आसार नहीं बनते थे और जब वो खेलते खेलते ऊब जाता था या थक जाता था तो बगैर मेरी बैटिंग दिए अपना बैट बॉल लेकर चला जाता था कि मम्मी बुला रही है या पापा गुस्सा रहे होंगे और मैं ठगा सा रह जाता था

ऐसा मेरे साथ कई बार होता था फिर भी मैं उसके साथ खेला करता था अब आप सोच रहे होंगे कि भाई तुषार सिंह तुम तो बहुत बड़े बेवकूफ थे जब जानते हो कि वो हर बार तुम्हारे साथ ऐसा ही करता है तो तुम उसके साथ खेलते ही क्यों थे ?

इसका उत्तर मेरे पास नहीं है...पर जरा रुकिए...मैं आपका ये प्रश्न भारत सरकार की ओर भेजता हूँ...

"हाँ तो भाई भारत सरकार..पठानकोट आतंकी हमले की जाँच के लिए पाकिस्तान के कुछ 'विशेषज्ञ' यहाँ आये..खाये पिए और जाँच के नाम पे कुछ स्वांग कर वापस चले गए..और जब तुम्हें बुलाने की बारी आई तो हमेशा की तरह ठेंगा दिखा दिया...और तुम मेरी तरह ठगे रह गए तो साहब मेरे पास तो बैट बॉल खुद का नहीं हुआ करता था...पर ये बताओ तुम्हें किस चीज की कमी है..जो तुम बारबार खुद को ठगवाते रहते है?"

#पाकिस्तान_का_ऊँट_हमेशा_एक_ही_करवट_बैठता_है
-तुषारापात®™

Thursday 7 April 2016

सिंहासन

"पिताश्री...पिताश्री अनर्थ हो गया...काल ने आर्यस्थान पर अपना आघात कर दिया..." राजकुमारी आर्यसेना विक्षिप्तावस्था में इन्हीं शब्दों को बारम्बार कहते हुए दरबार में प्रवेश करती है और आर्याधिराज के सिंहासन के अत्यंत समीप पहुँच जाती है

"आर्यसेना...ये क्या दुःसाहस है...कदाचित राजकुमारी को राजदरबार की मर्यादा का स्मरण नहीं ...आर्यस्थान के राजदरबार में राजकुमारियों का प्रवेश वर्जित है..." आर्याधिराज ने क्रोधित हो कहा

"मर्यादा और अभिवादन के शिष्टाचार का विपत्ति काल में लोप हो जाता है महाराज..युवराज आर्यमन नहीं रहे महाराज...आर्यस्थान का अंतिम उत्तराधिकारी भी काल का ग्रास बन गया.."आर्यसेना ने अश्रु विस्फोट कर रूदन आरम्भ कर दिया

यह सूचना सुनते ही आर्याधिराज मानो मूर्छित से हो गए...सभी राजदरबारी उठ खड़े हुए...महामंत्री ब्रह्मार्य ने सेनापति से कहा "सिंहार्य..आप राजकुमारी के साथ जाइये...और स्थिति की पड़ताल कीजिये मैं महाराज के साथ उपस्थित होता हूँ " और सभा समाप्ति की घोषणा कर ब्रह्मार्य महाराज के समीप गए

राजकुमारी और सेनापति राजदरबार से मृत युवराज के कक्ष की ओर अग्रसर थे तभी आर्यसेना कहती है "सेनापति प्रथम हमें स्वर्गीय ज्येष्ठ युवराज के कक्ष की ओर चलना चाहिए..युवराज आर्यमन की हत्या का सम्बन्ध उस कक्ष से अवश्य है ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है"

"परंतु वह कक्ष तो ज्येष्ठ युवराज की हत्या के पश्चात से आज तक बंद है... क्या आप भी राजपुरोहित की तरह विश्वास करती हैं कि ज्येष्ठ युवराज की आत्मा ने ही उनके अनुज युवराजों की हत्या की है?" सेनापति ने अपने पगों को गति देते हुए कहा

"आर्यस्थान की राजकुमारी..अंधविश्वासी नहीं है सेनापति...राजदरबार में आते हुए..ज्येष्ठ युवराज के कक्ष की ओर से कुछ कोलाहल सुनाई दिया था...आप शीघ्र चलें" कहकर वो और गतिमान हुई

ज्येष्ठ युवराज का कक्ष राजभवन के उत्तरी ओर था..वह पूरा क्षेत्र अछूता अस्वच्छ और अंधकार तथा दुर्गन्ध में डूबा था...आर्यसेना और सिंहार्य कक्ष के मुख्य कपाट पे पहुँचते हैं

"देवी इस बंद कपाट की कुंजी तो महाराज के पास रहती है...इसके भीतर जाना सम्भव कैसे होगा?" विशाल कपाट को धकियाते हुए सेनापति ने राजकुमारी से पुछा

इतना समय नहीं है सेनापति...आप शीघ्र इस कक्ष के एक मात्र दुसरे कपाट पे पहुँचिये..जो इसके ठीक पीछे है..अगर भीतर कोई है तो हम उसे भागने का अवसर न दें" राजकुमारी ने सेनापति को आदेश सा दिया

सेनापति लगभग दौड़ते हुए दूसरे कपाट की ओर भागे और कपाट पे पहुँच के कान लगाकर भीतर कुछ सुनने का प्रयत्न करने लगे उन्होंने सुना भीतर किसी की पदचाप स्पष्ट सुनाई दे रही थी इधर आर्यसेना कक्ष का मुख्य कपाट अपनी पूरी शक्ति से खटखटाए जा रही थी तभी सेनापति ने कपाट के पीछे प्रकाश देखा उसे ऐसा लगा जैसे कक्ष में कोई दीपक प्रज्ज्वलित हुआ है

सेनापति ने तलवार हाथ में निकाल पुकारा "कौन है भीतर...उत्तर दो ...कक्ष का कपाट खोलो..नहीं तो मृत्यु के भागी होगे... मैं सेनापति सिंहार्य तुम्हें आदेश देता हूँ..कपाट शीघ्र खोलो..." कक्ष से कोई उत्तर नहीं मिला किसी के सरपट भागने का पदचाप सुनाई दिया

सेनापति की पुकार सुनकर महल के दक्षिणी सिरे के पहरेदार कई सारे सैनिक सेनापति के समीप आ गए सेनापति ने उनमें से कुछ सैनिकों को राजकुमारी की ओर भेजा और शेष सैनिकों से कपाट को तोड़ने का आदेश दिया

उधर राजकुमारी आर्यसेना सैनिकों को कक्ष के मुख्य कपाट पे स्थिर कर सेनापति की ओर आ गई...सैनिकों ने कुछ ही समय में कपाट धराशाई कर दिया.. सेनापति और आर्यसेना कक्ष के भीतर दौड़े पर उन्हें कोई नहीं मिला...एक दीपक अवश्य प्रकाशित था.. सेनापति ने सैनिकों की सहायता से कक्ष का चप्पा चप्पा छान मारा पर वहाँ किसी मनुष्य क्या मूषक का भी चिन्ह न था

सेनापति और राजकुमारी ने अच्छे से जांचा कि कक्ष में कोई गुप्त रास्ता तो नहीं जिससे कोई पलायन कर गया हो या कोई खिड़की खुली हो पर उन्हें घोर निराशा हुई ये जानकर कि कक्ष में कोई भी गुप्त दरवाजा नहीं था और सारी खिड़कियों की लौह चौखट मजबूती से अपनी जगह स्थिर थीं उससे सिर्फ वायु का प्रवेश ही सम्भव था मनुष्य का नहीं..कक्ष में जलता रहस्यमयी दीपक बुझ चुका था..सैनिकों को दोनों कपाटों में पहरा देने का आदेश देकर दोनों युवराज आर्यमन के कक्ष की ओर बढ़े

युवराज आर्यमन के कक्ष में रूदन और कोलाहल की गूँज अंतरिक्ष तक जा रही थी आर्याधिराज अपने मृत पुत्र युवराज आर्यमन के शव को गोद में लिए संताप कर रहे थे राजमाता आर्यमणिका पुत्र शोक में बारम्बार मूर्छित हो जातीं थीं सेविकाएं उन्हें संभाल रहीं थीं महामंत्री ब्रह्मार्य सेनापति और राजकुमारी को आते देख उनकी ओर हुए।

"मुझे ज्ञात न था आर्यस्थान के सेनापति स्त्रियों की भाँति मध्यम चाल से भ्रमण करते हैं" महामंत्री ब्रह्मार्य ने रोष प्रकट किया

"महामंत्री...स्त्रियाँ कोमल अवश्य हैं पर शक्तिहीन नहीं...सेनापति मेरे आदेश पे राजभवन के उत्तरी छोर पे थे" आर्यसेना ने उसी भाव से उत्तर दिया

" सेनापति क्या आर्यस्थान का महामंत्री जान सकता है कि राजभवन में क्या घटित हो रहा है?" ब्रह्मार्य ने आर्यसेना को अनसुना करते हुए सिंहार्य से प्रश्न किया, सेनापति ने ज्येष्ठ राजकुमार के कक्ष का सम्पूर्ण वृतांत विस्तार से कहा सुनकर ब्रह्मार्य बोले "असम्भव! यह नहीं हो सकता, उस कक्ष से कोई अदृश्य कैसे हो सकता है...क्या राजपुरोहित का कथन ही सत्य है " वो जैसे स्वयं से ही प्रश्न कर रहे हों फिर संभल के उन्होंने सिंहार्य को संबोधित कर कहा "सेनापति राज्य की समस्त सीमाओं पे सक्रियता का स्तर उच्च कर दो....नगर से बाहर कोई बगैर अपनी पहचान दिए जाने न पाये...जाओ....मेरे आदेश का पालन शीघ्र हो" सेनापति तत्काल कूच कर गए

"महामंत्री मुझे इन सभी हत्याओं के भेद की कुंजी ज्येष्ठ राजकुमार का कक्ष ही प्रतीत हो रहा है..क्या रात्रि के द्वितीय पहर में आप मेरे साथ उस कक्ष का निरीक्षण करने चल सकेंगे "आर्यसेना ने अपने अधरों से अधिक अपने पुष्ट उभारों से प्रश्न किया

ब्रह्मार्य ने अपने नयन सर्पों से वक्षों को चखा और उत्तर दिया "अवश्य देवी हम एकांत में ही निरीक्षण करेंगे सैनिकों को आदेशित करे देता हूँ....रात्रि प्रथम पहर के बाद वहाँ किसी का पहरा न रहेगा" यह तयकर दोनों मृत युवराज के शव की ओर चले ।

रात्रि के द्वितीय पहर में ज्येष्ठ युवराज के कक्ष में महामंत्री ने प्रवेश किया उनके पीछे आर्यसेना थी ब्रह्मार्य ने पीछे आती आर्यसेना से कहा "देवी मुझे तो यहाँ कुछ भी संदिग्ध नहीं दिख रहा..." "प्रिय....क्या तुम्हें अपना...काSSSSल नहीं दिखाई दिया.." कहकर आर्यसेना ने अपने कटिबन्ध से विषाक्त कटार निकाल कर महामंत्री की पीठ में उतार दी

"आह....दुष्टा..तूने मुझे काम के मद में....आह..ह..तू पाप की भागी.."इससे अधिक ब्रह्मार्य कुछ बोल नहीं पाये

"जा ऊपर मेरे सभी भ्राता तुझसे भेंट करेंगे" कहकर वो अपने कक्ष की ओर प्रस्थान कर गई

अगले दिवस भोर से ही राजभवन में हाहाकर मच गया आर्यधिराज राजपुरोहित,आर्यसेना और सेनापति अपने कुछ सैनिकों के साथ ज्येष्ठ युवराज के कक्ष में थे

"महाराज देखिये महामंत्री की पीठ में ज्येष्ठ युवराज आर्यजीत की कटार है...और ये कक्ष भी उन्हीं का है..आर्यस्थान राजवंश उन्हीं की आत्मा से श्रापित है" राजपुरोहित धर्मार्य ने महाराज को अपनी कही वाणी का पुनः स्मरण कराया, महाराज के समीप खड़े सेनापति सिंहार्य
किसी गहन मंथन में चले गए

"हाँ धर्मार्य..कदाचित कुल के दीपक से ही कुल भस्म हो रहा है"..दुखी आर्यधिराज ने राजपुरोहित से कहा "महामंत्री का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाय"आदेश देकर वो आर्यसेना के साथ अपने कक्ष की ओर अग्रसर हुए

एक और हाहाकारी दिवस गत हुआ रात्रि का तीसरा पहर था आर्यसेना अपने कक्ष में निद्रा मग्न थीं...तभी कोई कक्ष में प्रवेश करता है हस्त में तलवार लिए हुए वह आर्यसेना की ओर बढ़ता है और सिंह की तरह वार करता है परन्तु ये क्या..यहाँ तो कोई नहीं था ...आर्यसेना उसके पीछे खड़ी थी उसने विषाक्त कटार उसकी पीठ से सटा दी...और..क्रोध में बोली "अपने बाजुओं को आकाश की ओर उठाओ..या स्वयं आकाश लोक में जाओ...सेनापति सिंहार्य.."

"दुष्टा...तू जीवित न रहेगी...तेरे सारे भ्राताओं के पास आज तुझे भी विदा करूँगा...उसके बाद उस वृद्ध राजन को....सेनापति अभी भी शक्ति के मद में था

"विदाई तो...आपकी होगी सेनापति...उस महामंत्री के पास..आप दोनों का षड़यंत्र मैं जान चुकी थी...इसी लिये युक्ति से पहले आपको भ्रमित किया ..ज्येष्ठ युवराज के कक्ष में मुख्य कपाट से भीतर जाकर अपनी पदचाप सुनाई और तत्काल बाहर आकर कपाट खटखटाया....कहकर उसने कटार सेनापति में उतार दी और मुड़कर बोली "महराज आपके राज्य का अंतिम शत्रु भी देवलोक को प्रस्थान कर गया

कक्ष के दूसरी ओर छुपे महाराज जिन्हें आर्यसेना ने आज ही सारी बात बताई थी और स्वयं परीक्षण करने को कहा था,बाहर निकल आये "आह आर्यस्थान ने सर्पों का पालन किया...आर्यसेना हम तुमसे अति प्रसन्न हैं तुमने सेनापति और महामंत्री के षड़यंत्र से आर्यस्थान की रक्षा की...और महामंत्री को प्रथम समाप्त कर ये भी सिद्ध किया कि बुद्धि और शक्ति में से पहले बुद्धि को समाप्त करना चाहिए"

"महाराज...शक्ति को पहले मारने से बुद्धि दूसरी शक्ति खोज सकती है... परन्तु बुद्धि का वध प्रथम करने से शक्ति अस्त व्यस्त अनाथ सी हो जाती है" आर्यसेना ने उन्हें प्रणाम किया

"आह...राजनीति का इतना अच्छा ज्ञान...यह वृद्ध महाराज तुमसे आर्यस्थान का सिंहासन सुशोभित करने का आग्रह करता है" आर्यधिराज ने राज्य को उत्तराधिकारी देना चाहा

"रानी होने पे भी क्या मैं राज दरबार में जा सकूँगी...महाराज...राज दरबार की अति प्राचीन परम्परा और मर्यादा का..." आर्यसेना ने व्यंग्य बाण छोड़ा

"आह...कटाक्ष...आर्यसेना...जिस वृद्ध राजा के चारों पुत्रों को युवराज बनाने की आकांक्षा पे नियति ने 'तुषारापात' कर दिया हो..वह इसी व्यवहार का पात्र है...."आर्यधिराज के कंधे झुक गए

"जहाँ शक्ति (सेनापति)...बुद्धि (महामंत्री)...और.धर्म (राजपुरोहित) ने स्त्री का मान न किया हो उस राज्य का हश्र आप (आर्याधिराज) के जैसा ही होता है महाराज...सिंहासन सिंहिनियों के लिए बना ही कब है..मैं आपके राज्य को त्यागती हूँ..आपका 'आर्य' आपको लौटा रही हूँ पिताश्री...आज से 'आर्यसेना' 'देवदासी' के नाम से जानी जायेगी" कहकर वो संन्यास को चली।

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Wednesday 6 April 2016

सूखी नदी

किसी ज्योतिषी को
न दिखाना हाथ अपना
मैं यूँ ही बताये देता हूँ
तुम्हारे हाथों की लकीरें
कुछ नहीं बस
सूखी हुयी नदियों के निशान हैं
कभी यहाँ भी बहुत लोग आबाद रहें होंगे
कई कई हाथ इन हाथों में डूबे रहते होंगे
तुम्हारे यौवन का मानसून सूख गया
तो लोगों ने अपनी बस्तियाँ भी उठा ली
सुना है ऐसे ही एक दिन
सिंधु घाटी सभ्यता भी खत्म हुयी थी
तुम्हारे हाथों की लकीरें सूखी हुयी नदियों के निशान हैं
और सूखी नदियों के किनारे 'आदमी' नहीं रहा करते

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Saturday 2 April 2016

जीवित ज्यामिति

नारी एक केंद्र बिंदु है और पुरुष उस बिंदु से एक निश्चित दूरी पे भ्रमण करता दूसरा बिंदु,जिससे आकर्षण के वृत्त का निर्माण होता है पुरुष को मर्यादा की त्रिज्या को अल्प करने का प्रयास नहीं करना चाहिए ये अधिकार प्रकृति ने नारी को दिया है वो ही समय समय पर त्रिज्या का मान न्यून या अधिक करती है जब त्रिज्या का मान शून्य होता है तब दोनों बिंदु एक दूसरे पे आरोपित होते हैं और एक नए बिंदु का आविष्कार होता है तत्पश्चात दो केंद्र बिंदु वाले गृहस्थी का दीर्घवृत्त आकर लेने लगता है और पुरुष का पहले से अधिक मान की परिधि का भ्रमण आरम्भ होता है।

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Friday 1 April 2016

अप्रैल का फूल स्वीकार कीजिये

कमाल की तारीख है 1 अप्रैल, 31 मार्च की आधी रात से, पूरी पहली अप्रैल तक ये सोच सोच के परेशान रहो कि न जाने कौन किस मोड़ पे अपने किस दाँव से आपका मुर्गा बना दे और आप मूरख मंडली में अपने को शामिल पाएं।

मुझे लगता है इतनी सजगता रखना या आज के दिन इतना जागरुक होना अपने आप में खुद एक बहुत बड़ी मूर्खता है।

वैसे मुझे ऐसी कोई समस्या नहीं है हमें कोई मूर्ख नहीं बना सकता जो काम भगवान ने इतना बखूबी किया हो उसमें कौन माई का लाल या लाली अपनी टांग अड़ा सकता/सकती है।

आज के दिन आप सभी बुद्धिमानों को हम जैसे मूर्खों को धन्यवाद देना चाहिए क्योंकि बाबा न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार हम मूर्ख हैं तभी तो आप जैसे बुद्धिमानो की बुद्धिमानी है।

तो अप्रैल में खिलने वाले इस 'फूल' का लुत्फ़ उठाइये और बुद्धू बनके किसी को बुद्धिमान बनाने की ख़ुशी महसूस कीजिये।

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