Friday 20 January 2017

वो रात कुछ अजीब थी

वो रात कुछ अजीब थी ये रात भी अजीब है
वो कल भी पास पास था वो आज भी करीब है

मेरा नाम बुलाए वो या मैं उसे पुकार लूँ
नजर में उठा लूँ या नजर मैं उतार दूँ
मैं सोचती थी मुझसे निगाह चुरा रहा है वो
न जाने क्यों लगा मुझे दिल बहला रहा है वो

वो रात कुछ अजीब थी.......................

कई जवाब हैं मेरे न उसका इक सवाल था
मेरी आँखों में था पर बाँहों को मलाल था
मैं जानती हूँ अपनी निगाह जमा रहा है वो
धीरे धीरे खामोशी से दिल मिला रहा है वो

वो रात कुछ अजीब थी.......................

धधकती आग है कहीं मिली हुई सी साँस से
गीली भाप भी है मुंदी मुंदी सी आँख में
मैं मानती हूँ कि सुहागा सुलगा रहा है वो
यही ख्याल है मुझे कि माँग सजा रहा है वो

वो रात कुछ अजीब थी ये रात भी अजीब है
वो कल भी पास पास था वो आज भी करीब है.......

#वो_शाम_कुछ _अजीब_थी(फीमेल वर्जन)
#तुषारापात®™