कुछ बरस पहले मनगढ़ंत ये बात हुयी
बड़े जोर से मन की नाव डूब गयी
मन भर पानी आँखों से रिसता गया
एक तपता रेगिस्तान मन बनता गया
पागल मन मुसाफिर बन चलता रहा
पानी पानी पानी मन ही मन रटता रहा
चलते चलते मन को अपनी नदी मिली
अब तो मन की बरसों की प्यास बुझी
सचमुच की नदी से जब सबकुछ मन का मिलता था
बहलने को मन चाहता क्यूँ फिर एक जादूगरनी मरीचिका ?
-तुषारापात®™
बड़े जोर से मन की नाव डूब गयी
मन भर पानी आँखों से रिसता गया
एक तपता रेगिस्तान मन बनता गया
पागल मन मुसाफिर बन चलता रहा
पानी पानी पानी मन ही मन रटता रहा
चलते चलते मन को अपनी नदी मिली
अब तो मन की बरसों की प्यास बुझी
सचमुच की नदी से जब सबकुछ मन का मिलता था
बहलने को मन चाहता क्यूँ फिर एक जादूगरनी मरीचिका ?
-तुषारापात®™