Sunday 26 July 2015

बजरंगी भाईजान

"कहानी वो भी सलमान खान की फ़िल्म में" मुझसे जब किसी ने फ़िल्म देख आने को कहा वो भी बड़ी तारीफ करके तो मेरे मुंह से सबसे पहले ये ही शब्द निकले, फिर सोचा ये सलमान खान को नापसन्द करने वाला मेरा दोस्त अगर फ़िल्म की इतनी तारीफ कर रहा है तो कोई तो बात होगी तो जहाँ कहानी हो वहाँ राइटर को तो पहुँचना ही था तो मैं भी पहुँच गया नॉवेल्टी थियेटर में और देख आया फ़िल्म।
फ़िल्म की शुरुआत में जब बच्ची शाहिदा (असली नाम शायद हर्षिला) एक मेमने को गढ्ढे से निकालने के चक्कर में अपनी माँ से ट्रेन में बिछड़ जाती है और वो गूंगी होने के कारण अपनी माँ को आवाज नहीं लगा पाती है तो उसकी छटपटाहत देख के मन उसी मासूम के साथ बंध जाता है पूरी फ़िल्म में जब जब वो बच्ची स्क्रीन पे आती है तो मेरी आँखों में या तो नमी थी या होंठो पे मुस्कान और कभी कभी दोनों एक साथ एक तरफ मेरी आँखे सीलन पकड़े थीं और दूसरी तरफ मेरे सूखे होंठ मुस्कुराहट, भावनाओं से भरी कहानी आपको पूरी तरह बांधे रखती है और आप मन ही मन बस ये दुआ करने लगते हैं कि काश ये बच्ची पाकिस्तान अपने माँ बाप के पास पहुँच जाए आप भूल जाते हैं की वो पाकिस्तानी है मुस्लिम है या मांसाहारी है जानते हैं मन में ये जो भावना उठती है उसे ही इंसानियत कहते हैं और कबीर खान की ये फ़िल्म बहुत ही बढ़िया तरीके से इसी पे आधारित है।
जिस वक्त बजरंगी शाहिदा को ट्रेवल एजेंट के पास छोड़ के जाने लगता है और वो गूंगी मासूम बच्ची अपनी आँखों में ख़ौफ़ और आंसू लिए जब खिड़की के शीशे पे हाथ पटक पटक के उसे बुला रही होती है तो ऐसा लगा अरे ये ही तो वो इंसानियत है जिसकी आवाज़ दोनों मुल्कों के सियासत दानो ने कभी मुल्क और कभी मजहब के नाम से दबा रखी है वो बजरंगी को न बुलाकर हमें ही तो बुला रही है और आखिर में जब दोनों देशों के लोगों की इंसानियत जागती है तो वो सरहद पे लगे कांटे तोड़ देते हैं और वो प्यारी सी बच्ची बोल उठती है यानी इंसानियत जाग गई और बंटवारे की सारी हदें टूट गई।
सलमान खान चरित्र अभिनेता के रूप में अच्छा काम किया तुमने क्योंकि इस फ़िल्म की हीरो तो वो बच्ची है जो इंसानियत का रूप है।
नहीं देखी अभी तक तो देख आओ ये फ़िल्म फ़िलहाल मैं अपनी बहुत पहले लिखी दो पंक्तियों के साथ अब अल्प विराम लेता हूँ-
'क़ौम के ठेकेदारों ने एक खामोश सरहद खींची थी
  दोनों मुल्कों में आज तक बंटवारा बोल रहा है'

-तुषारापात®™




निराला से निराले तक

"जो बिकता है वो लिखिए
बेवजह कानून मत छौंकिए"

आज अगर महाकवि 'निराला' भी होते तो उन्हें भी अपनी कविता
'वो तोड़ती पत्थर
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर'
(जिन्होंने पढ़ी होगी वो जानते होंगे इस कविता का मोल, जिसने न पढ़ी हो तो पढ़ लीजिये मातृभाषा हिंदी पे थोडा अहसान तो कर ही सकते हैं न ) लिखते तो उन्हें भी कुछ यूँ लिखना पड़ता :

'वो भेजती sms टाइपकर
 देखा उसे मैंने एंड्राइड मोबाइल पर
 वो भेजती sms टाइपकर
 कई हैं whatsapp यार
 जिनके msg हैं उसे स्वीकार
 white white कलाइयां
 touch screen पे चलती उंगलिया
 नाखुनो से झटाझट प्रहार
 गर्मियों के दिन
 चढ़ रही थी धूप
 Make-up से दिव्य रूप
 प्यास बुझाती pepsi गटगटाकर
 उठी झुलसाती हुई लू
 Cotton के जैसे जलती हुई भू
 हनी सिंह का गाना बजाती
 मंगाने को boyfriend की AC कार
 वो भेजती sms टाइपकर ।

-तुषारापात®™