Friday 4 March 2016

आविष्कार का पिता

"अ..देखिये मिसेज...अरर..मिस...मेरा मतलब...आवश्यकता जी.. ये बम्बई दिल्ली के जैसा कोई बड़ा शहर तो है नहीं..ये एक छोटा सा मगर अपनी संस्कृति से बहुत गहराई के साथ जुड़ा हुआ शहर है...और आप अपनी स्थिति तो बेहतर जानती ही हैं..तो इस तरह की बातों को एक कान से सुनिए और दूसरे से निकाल दिया कीजिये ...इसी में आपकी भलाई है"..अधेड़ चतुर्वेदी ने मीठी चाशनी में पगी मिर्च जैसे ये शब्द आवश्यकता से कहे

"लेकिन...चतुर्वेदी साहब..आते जाते हर रोज मोहल्ले वालों के ताने सुनना अब बर्दाश्त नहीं होता...आप मेरे लिए किसी और मोहल्ले में मकान ढूँढिये..यूँ यहाँ रहना मुश्किल है मेरा" आवश्यकता ने चतुर्वेदी की निगाहों का निशाना देखते हुए अपना आँचल ठीक करते हुए कहा

"आप समझ ही नहीं रहीं हैं..मैं जो कह रहा हूँ...अच्छा आप खुद ही बताइये..अब तक आप कितने मकान बदल चुकी हैं... कुछ दिन के बाद वहाँ भी यही सब शुरू होता है...बेहतर है आप किसी पॉश इलाके में मकान किराये पर लीजिये..पर उसके लिए आपका बजट नहीं है...अब इतने पैसे में तो..ऐसी ही जगह मिलेगी..और बड़ी मुश्किल होती है..मकान ढूँढने में..एक बिन बाप के बच्चे की माँ..." चतुर्वेदी कहते कहते चुप हो गया पर उसकी सांस्कृतिक आँखें आवश्यकता का पर्यटन कर रही थीं

"हाँ चतुर्वेदी साहब...पैसे की समस्या तो है ही..इतने कम किराये को भी समय से नहीं दे पाती..पर क्या करूँ..दिल छिल के रह जाता है जब लोग मेरे बेटे आविष्कार को...नाजायज और न जाने ऐसी कितनी गालियाँ सुना सुना के उसका मजाक बनाते हैं...नाजायज का ये ताना वो मासूम क्या जाने..." आवश्यकता की आवाज भर्रा गयी पर उसने खुद पे नियंत्रण किया पराये मर्द के सामने वो खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी

"हम्म..अच्छी तरह समझता हूँ...वैसे आपका बेटा आविष्कार बहुत प्यारा लड़का है..और तेज दिमाग का भी है...अगर उसको कोई धनवान पिता का साया मिल जाए..जो उसको अच्छे स्कूल में पढ़ा लिखा सके..तो बहुत नाम करेगा..आपसे एक बात कहता हूँ..बुरा न मानियेगा..किसी पैसे वाले से शादी कर लीजिये..अभी तो आप जवान हैं...तीस से ज्यादा की नहीं होंगी..अगर आप कहें तो मैं आपसे..."चतुर्वेदी ने बड़ी धूर्तता से अपनी विधुरता को बदलने का प्रयास किया

"शायद आप ठीक ही कहते हैं...आवश्यकता आविष्कार की जननी है मगर धन उसका वो पिता है जिसके अभाव में आविष्कार जुगाड़ या कबाड़ बन के रह जाता है" उसने डूबी आवाज में चतुर्वेदी से कहा और इस बार कंधे से थोड़ा सरक आये आँचल को ठीक करने का कोई प्रयास नहीं किया।

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