Monday 15 August 2016

दो शब्द

"और अब मैं मंच पर मुख्य अतिथि महोदय को बुलाना चाहूँगी...जो...इसी विद्यालय के छात्र रहे हैं ..और..आज एक बहुत मशहूर गीतकार और बड़े लेखक हैं...जोरदार तालियों के साथ स्वागत कीजिये श्री सत्तार अहमद जी का" काजमैन जूनियर हाईस्कूल के स्वतंत्रता दिवस समारोह में मंच संचालिका जो कि एक नई अध्यापिका ही थीं ने मुझे मंच पे कुछ इस अंदाज में आमंत्रित किया,मैं कम् ऊंचाई के उस छोटे से मंच पे पहुँचा उन्होंने मुझे माइक दिया और आग्रह किया कि मैं विद्यार्थियों से दो शब्द कहूँ मैंने उनका शुक्रिया अदा किया,तथा प्रिंसिपल और सभी अध्यापकों का अभिवादन कर बच्चों से मुखातिब हुआ

"बच्चों...मुझे 15 अगस्त और 26 जनवरी बिलकुल भी पसंद नहीं थे... जब भी..इनमें से कोई त्यौहार आने वाला होता...तो एक अनजाना सा डर मेरे अंदर पैदा होने लगता था.. मैं जब पाँचवी कक्षा में था तब से ही देशप्रेम की कवितायें और छोटे छोटे लेख लिखा करता था...और जैसे आज आप में से कुछ बच्चों ने..अपनी बहुत सुंदर सुंदर कविताएं सुनाई मैं भी उसी तरह मंच पे आकर अपनी लिखी कविताएं पढ़ना चाहता था मगर..." कहकर मैं रुक गया मेरे सामने 30 साल पहले के दृश्य उभरने लगे दिल में वही बचपन वाली धुकधुक होने लगी सब मेरी ओर उत्सुकता से देख रहे थे तो जल्दी से आगे कहना शुरू किया

"मगर मुझे कविता या लेख पढ़ने की परमिशन नहीं दी जाती थी..क्योंकि मेरे पास फुल यूनिफार्म..अ...ड्रेस नहीं हुआ करती थी.. सफेद बुशर्ट तो थी पर खाकी पैंट नहीं थी.. उसकी जगह काली पैंट थी और वो भी कुल जमा एक ही..जिसे दो तीन दिन के गैप पे रात में धोता था और सुबह तक सुखाकर फिर से पहन लेता था...तो...तो आप सब तो जानते ही हैं कि ऐसे मौकों पे जब कई अतिथि भी आते हैं जैसे कि आज मैं आया हूँ..तो बच्चों का फुल यूनिफार्म में आना जरुरी होता है.. नहीं तो स्कूल का नाम खराब होता है तो इसीलिए उस समय के प्रिंसिपल साहब ने मुझे कभी अलाऊ नहीं किया...हालाँकि मैं पढ़ने में तेज था तो उन्होंने काली पैंट में ही मुझे क्लास में बैठने की अनुमति दे रखी थी..तो कहाँ थे हम..हाँ...तो 15 अगस्त और 26 जनवरी को मैं यहीं..इस खंबे के पास..साइड में खड़े होकर दूसरे बच्चों को अपनी ही लिखी कविताएं पढ़ते और लोगों को तालियाँ पीटते मायूस मन से देखा करता था" कहते कहते गला कुछ रुंधा तो मैंने रुककर पानी पिया और जारी हुआ

"फीस तो उस समय बहुत ही कम हुआ करती थी..उसे तो देर सबेर मेरे बेहद गरीब माता पिता जमा करा देते थे पर हम सात भाई बहनों के कपड़े-लत्ते खाने-पीने की....जरूरतें...बस किसी ही तरह पूरी हो पाती थीं.. सातों भाई बहनों में सिर्फ मैं ही स्कूल आता था वो भी अपनी जिद से... खैर...तो ऐसे ही दो साल बीत गए और एक दिन आठवीं कक्षा के मेरे नए कक्षाध्यापक सूबेदार सिंह सर ने मेरी एक दो कविताएं पढ़ीं और मुझे आने वाले 15 अगस्त पर इन्हें पढ़ने को कहा मेरी सकुचाहट देख वो पहले तो चौंके पर बाद में पूरी स्थिति जानकर उन्होंने मुझे एक जोड़ी सफेद शर्ट और खाकी पैंट सिलवा दी और कहा कि अब तुम्हें रुकना नहीं है बेधड़क होके कविता पढ़ना तुम बहुत अच्छा लिखते हो...अगर उन्होंने उस समय वो नहीं कहा होता और आगे तक मेरी पढाई का बोझ न उठाया होता तो आज मैं यहाँ आपके सामने यूँ न खड़ा होता" मेरी आँखें कहते कहते डबडबाने लगीं

खुद को संभाला और आगे कहने लगा "बच्चों..यही है भारत..और यही है इसकी एकता.. देश को लेकर बड़ी बड़ी बातें जो करें उन्हें करने देना तुम बस ऐसी ही छोटी छोटी बातें पकड़ना..और निभाना...कभी भी मजहब के नाम पे बाँटने वाले चंद लोगों की बातों को सच मत मानना.. आपस में प्यार और विश्वास रखना...खुद भी बड़े हो जाओगे और देश भी ....." बच्चों ने जोर की तालियाँ बजाई तो मैं हल्का ठहर गया फिर बोला

"वैसे मुझसे दो शब्द बोलने के लिए कहा गया था..मगर...30 साल से दबी दास्ताँ थी..कुछ लंबी हो गई...आखिर तीस साल बाद इस मंच पे मैं आ ही गया और वो भी बिना यूनिफार्म के" ये सुनकर बच्चे खिलखिला दिए मैंने आगे बस ये कहा और सबको सलाम करते हुए मंच से उतर आया

"बाकी इससे बेहतर दो शब्द और क्या हो सकते हैं....जयSS हिंद"

प्रतिउत्तर में बच्चों ने पूरा विद्यालय परिसर जय हिंद से गुंजायमान कर दिया।

-तुषारापात®™