Friday 20 May 2016

फिर तेरी कहानी याद आई

"वाह क़तील शिफ़ाई...क़त्ल कर दिया तुमने..." म्यूजिक प्लेयर पे रिपीट मोड पे चल रहे गाने 'तेरे दर पे सनम चले आये..तू न आया तो हम चले आये..'को सुनते सुनते मेरे मुंह से अपने आप ये शब्द निकल गए ,किसी राइटर के लिखे की तारीफ वही खुल के करता है जिसके दिल की छुपी बात को राइटर अपने कलाम में बयां कर दे और ये गाना...ये गाना..तो मेरे दिल जिगर की पुकार है..मेरा सपना है...मेरी तमन्ना...काश कभी आयत कहीं से आ जाये..और..और ये गाना बज उठे

तकरीबन रोज की तरह ही अवध की शाम मनाता मैं आज भी लाउड वॉल्यूम पे ये गाना सुनता हाथ में जाम लिए उसके ख्यालों में खोया हुआ था...हाँ आयत..'फिर तेरी कहानी याद आई'...न जाने कितनी बार बजने के बाद कुमार शानू ने अभी मुखड़े को पूरा ही किया था कि मुझे डोरबेल सुनाई दी कोई दरवाजा भी पीट रहा था,मैंने म्यूजिक प्लेयर पॉज किया और उठकर दरवाजे को खोला और मुझे अपनी आँखों पे भरोसा नहीं हुआ मेरे हाथ से ग्लास छूट गया

"वापस जाने वाली थी...बहुत देर हो गई घंटी बजाते.." उसने मुझसे आँख चुराते चुराते कहा, मैंने देखा उसकी आँखें आषाढ़ से पहले भटक आई बदली लिए हुयें थीं जो जेठ में बरसना भी नहीं चाहती थी और टिकना भी नहीं चाहती थीं मैंने उसे अंदर बुलाया और सोफे पे बैठने को कहा वो इधर उधर देख रही थी सकुचाहट भी थी...और कुछ सुकून की तलाश भी थी उसे शायद.. और यहाँ आने का..लोगों को पता लगने का डर भी साफ़ दिख रहा था उसके चेहरे से

"दिल को धड़का लगा था पल पल का..शोर सुन ले न कोई पायल का" मैंने उसकी ओर देखते हुए मन में गुनगुनाया और उसे पानी का ग्लास दिया उसने एक साँस में पानी खत्म किया और ग्लास टेबल पे रख के चुप बैठी रही मैं समझ रहा था कुछ बात है लेकिन क्या इसके लिए पूछना तो पड़ेगा
"क्या हुआ...अचानक ..यूँ...फोन कर दिया होता..सब ठीक तो है..बहुत परेशान दिख रही हो..क्या बात है"

"कुछ नहीं" उसने कहा,अच्छी तरह उसकी आदत जानता हूँ एक बार में तो कभी बता ही नहीं सकती कि क्या हुआ मैंने कई बार अलग अलग तरीके से पुछा तो कुछ देर बाद हमेशा की तरह पहले उसकी आँखों ने बोला फिर उसके लब हिले

"वो..वो..हदीस..हदीस चाहता है कि मैं उसके साथ सीनियर्स की पार्टी में जाया करूँ..कुछ ओपन ड्रेसेज एंड ओपन फ्रेंडली एट्टीट्यूड में.." उसने बहुत धीमे से कहा मैं अंदर ही अंदर सुलग के रह गया पर चुप रहा उसने आगे कहा "इसी बात पे आज फिर बहुत झगड़ा हुआ ..और मैं थोड़ी देर के लिए बाहर निकल आई..फिर...पता नहीं कैसे तुम्हारे घर तक आ गई"

और उसके बाद जितनी देर तक वो हदीस की बातें कर सकती थी करती गई..साथ साथ रोती गई...बिलखती गई..गुस्सा दिखाती गई...अपने दिल का पूरा गुबार निकाल के शान्त हुई..और आखिर में बोली.."वेद..तुम चुप क्यों हो..क्या मैंने यहाँ आके गलती की"

"नहीं..मैं चुप इसलिए हूँ.. अ..हदीस की बात गलत है..पर ये तुम मियां बीवी का मामला है..मैं बोल भी क्या सकता हूँ..और किस हक़ से...मैं उसकी आँखों में गहरे देखते हुए बोला उसने मेरी बात समझते हुए कहा "हाँ तुम तो उलटे खुश ही होंगे..जिसके लिए मैंने तुम्हें छोड़ा..आज उसके साथ मेरी न बनते देख..लेकिन एक बात बताओ क्या एक दोस्त के काँधे पे दूसरा दोस्त रो नहीं सकता"

"पता है आयत... इस दिन की मैंने बरसों से तमन्ना की है..मगर तुम्हारे इस तरह आने की..नहीं..जहाँ तुम आओ अपना गम हल्का करो..और चली जाओ..जिस काँधे की तुम बात कर रही हो..उस काँधे के एक बालिश्त नीचे एक दिल भी है..उसे कभी महसूस किया तुमने..आयत मैं सिर्फ एक काँधा नहीं हूँ...तुम्हें पता है मैं तुम्हारे ही ख्यालों में खोया हुआ था..लेकिन वो मेरी आयत थी..और यहाँ जो आई है...हदीस की आयत है..उसकी पत्नी है..और तुम्हीं ने कहा था "आयतें कभी वेद की नहीं हुआ करतीं"

मैं नशे में था और मेरा पूरा दर्द उभर आया था पता नहीं वो दर्द किस बात का था...अपनी परेशानी का..या उसे परेशान देख के..या शायद हाँ हदीस की ये हरकत मुझे गहरे तक चुभी है..और मैं अपना गुस्सा उसपर नहीं निकाल सकता..काश तुम मेरी होतीं आयत तो मैं ऐसा कहने वाले का मुँह तोड़ देता...ओह्ह आयत मैं तुमको भी दुःख नहीं पहुँचाना चाहता पर..मैं सिर्फ काँधा बन के भी नहीं रहना चाहता

"रात ज्यादा हो रही है..मुझे लगता है अब तुम्हें जाना चाहिए.." मेरी शुष्कता देख वो उठी और एक झटके में निकल गई मैंने दरवाजा बंद किया एक पैग बनाया सोफे पे वहीं बैठ गया जहाँ वो बैठी हुई थी उसकी खुश्बू से लिपट के रोने लगा और अपनी आवाज छुपाने को म्यूजिक प्लेयर का प्ले बटन पुश कर दिया गाना आगे बजने लगा....

"बिन तेरे कोई आस भी न रही...इतने तरसे की प्यास ही न रही"

-तुषारापात®™