Friday 15 May 2020

लॉक इज फीलिंग डाउन

"तुम इतना बदल जाओगी मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था ...पहले..हर रात...जाने से ठीक पहले...तुम..दुनिया से अपनी नज़रें चुराती हुईं...मुझे कितनी कसके.. प्यार से छूतीं थीं... मानो.. तसल्ली करतीं थीं कि मैं रात भर की तुम्हारी जुदाई बर्दाश्त कर भी पाऊँगा...या कहीं तुम्हारी यादों के ग़म के बोझ से टूट तो नहीं जाऊँगा..कभी कभी तो तुम मुझे दो दो बार छूकर अपना हाथ माथे पर लगातीं थीं.. उफ्फ... उस समय ऐसा लगता था जैसे कोई नवविवाहिता अपने पति के पैर छूकर अपना हाथ माथे पर लगा रही हो..  लेकिन अब.. अब तो तुम मुझे छूने क्या ...देखने भी नहीं आतीं।"

"तुम्हारे जाने के बाद..पूरी रात मैं गर्दन टेढ़ी किये लेटा हुआ बस चाँद को देखता रहता था...और चाँद की चाल देखकर हिसाब लगाया करता था कि सुबह होने में और कितनी देर है.. तुम वहाँ गुलगुले बिस्तर पर चैन से सोती थीं और मुझे यहाँ किसी कंकड़ पत्थर की तकिया लगानी पड़ती थी... लेकिन वो कंकड़ भी मुझे उम्मीद के चमकते किसी सितारे से कम नहीं लगा करता था... कोई कोई रात तो बारिश इतनी ज्यादा हो जाया करती थी कि भरे पानी के कारण साँस लेना दूभर हो जाता था लेकिन.. तब भी सुबह के बाद तुम जब आती थीं तो मैं तुम्हें मुस्कुराता हुआ मिलता था..।"

"उफ्फ वो सुबहें कितनी हसीन हुआ करतीं थीं.. जब तुम मेरी नाभि में गुदगुदी करके मुझे जगाया करती थीं और मैं जकड़ी हुई अपनी बाँह को खोलकर एक भरपूर अंगड़ाई लेते हुए तुम्हारे हाथों में हुआ करता था... लेकिन तुम निष्ठुर! मेरी बाँह को फिर से मरोड़कर बाँध दिया करतीं थीं और मुझे एकदम से उठा देतीं थीं.. इतने भर से मैं मानो सातवें आसमान पर हो जाया करता था.. तुम्हें भले ही वो ऊँचाई ज्यादा न लगे लेकिन आसपास गुजरते लोगों के कद से भी मैं ऊँचा हो जाया करता था.. रातभर आते जाते चंद लोगों के गंदे जूते चप्पलों के देखने के बाद..लोगों के सिरों को अपने से नीचे देखने का वो नज़ारा मेरे लिए जन्नत सा हुआ करता था इसलिए मैं तुम्हारा शुक्रिया मन ही मन अदा करता न थकता था.."

"चौबीस घण्टो में बस दो बार की तुम्हारी वो छुअन मुझमें इतनी लहरें पैदा कर दिया करती थी... कि मैं दिन में..शान से हवा में झूमा करता था और..रातों को.. चौकीदार के डंडे फटकने की आवाज़ के साथ अपने सिर से शटर को थपक थपक के रोज एक नया संगीत बनाया करता था.. लेकिन हाय रे मेरी फूटी किस्मत.. मेरा विरह भरा वो संगीत तुम्हारे कानों तक कभी पहुँचा ही नहीं.. मेरे दर्द भरे संगीत को बस भौंकते हुए कुत्तों के स्वर ही मिले।"

"तुम्हें याद तो होगा...एक बार तुम्हारी सहेली ने मुझे छूने की कोशिश की थी... लेकिन मैंने एक बार भी उसके लिए अपनी बाहें नहीं खोली....उसने कसके मुझे अपनी गिरफ्त में ले लिया था और जब मैं उसकी गिरफ्त से निकलने की कोशिश करने लगा था तो.. तो गुस्से में आकर उसने मुझपर पर एक बड़े पत्थर से हमला कर दिया था.. मैं अपना सर जोर जोर से पटकने लगा था जिसकी तेज होती आवाज़ को सुनकर वो डरकर भाग गई थी.. बाद में तुमने अपनी उस सहेली को पुलिस में दे दिया था.. हाय कितना प्यार किया करतीं थीं तुम मुझसे.. लेकिन अब क्या हुआ.. आज पचासवाँ दिन हो गया तुम्हें देखे हुए... कहाँ हो तुम.. इतनी बेरुखी अच्छी नहीं.. मेरी बाँह जकड़ के रह गयी है... अंगड़ाई लिए भी एक अरसा हो गया... तुम्हारे ग़म में मैं बहुत डाउन  फील करने लगा हूँ.. मेरा उतरा हुआ चेहरा देखकर लोग अब मुझे चिढ़ाने लगे हैं.. आज ही एक आवारा सा दिखने वाला लड़का तुम्हारी दुकान का बोर्ड पढ़कर मुझे लात मारते हुए यह सुना के चला गया... साला ब्यूटी पार्लर का इतना बदसूरत ताला।"

~ तुषार सिंह #तुषारापात