Friday, 8 April 2016

पाकिस्तानी ऊँट

हर भारतीय बच्चे की तरह बचपन में मुझे भी क्रिकेट खेलने का बहुत शौक हुआ करता था पर मेरे पास न खुद का बल्ला होता था और न ही वो पीली हरी कॉस्को वाली टेनिस बॉल,जो उन दिनों एक ऊँचे स्टैण्डर्ड की तरह देखी जाती थी तो खेलने के लिए हम मित्रों के रहमोकरम पे रहते थे और आप मेंसे जिन्होंने गली क्रिकेट खेला होगा वो बहुत अच्छी तरह जानते होंगे कि गली क्रिकेट में जिस लड़के का बैट होता है उसकी कुछ न कुछ दादागिरी पूरे खेल के दौरान बनी ही रहती है

फिर भी मेरे जैसे लोग तो चाहिए ही होते हैं इस खेल में जो फील्डिंग के और इधर उधर गई गेंद को उठा लाने के बड़े काम आते हैं और हमारे जैसों की बैटिंग भी सबसे अंत में आती है फिर भी हम वसुधैव कुटुंबकम की नीति के तहत खेला करते थे इसके अतिरिक्त और चारा भी नहीं हुआ करता था

ऐसे ही मुझे याद आता है मेरा एक मित्र हुआ करता था जिसके साथ अपने घर की गैलरी में मैं क्रिकेट खेला करता था सिर्फ वो और मैं हुआ करते थे खेल में ,गैलरी से बाहर गेंद जाने की संभावना न के बराबर और पीछे तो दीवार ही हुआ करती थी जिसपे कोयले या किसी पत्थर के टुकड़े से तीन स्टम्प का वो ऐतिहासिक निशान हुआ करता था जो परमानेंट बना रहता था आखिर रोज ही खेलते जो थे

अब चूँकि बैट भी मेरे मित्र का और बॉल भी उसकी तो एक सर्वमान्य नियम ये था ही कि वो पहले बैटिंग करेगा कभी हम कुछ ओवर्स की सीमा बना के खेलते तो कभी अनलिमिटेड ओवर्स (टेस्ट क्रिकेट की तरह) का खेल हुआ करता था इसमें लिमिटेड ओवर्स के खेल में तो मेरी बैटिंग जैसे तैसे आ जाती थी हालाँकि उसमें भी मेरा मित्र तीन चार बार से पहले खुद को आउट नहीं घोषित करता था कभी गेंद स्टंप के ऊपर लगी कभी बाएं से बाहर लगी आदि आदि लेकिन असली समस्या आती थी जब हम अनलिमिटेड यानी जब तक मित्र या मैं आउट नहीं होऊँगा तब तक दूसरे को बैटिंग नहीं मिलेगी अब मेरा मित्र पहले बैटिंग करता और चूँकि वो ही अंपायर होता तो मैं घंटों बॉलिंग करते रहता और वो खेलता रहता आउट होने पर भी आउट नहीं मानता फलतः मेरी बैटिंग आने के कोई आसार नहीं बनते थे और जब वो खेलते खेलते ऊब जाता था या थक जाता था तो बगैर मेरी बैटिंग दिए अपना बैट बॉल लेकर चला जाता था कि मम्मी बुला रही है या पापा गुस्सा रहे होंगे और मैं ठगा सा रह जाता था

ऐसा मेरे साथ कई बार होता था फिर भी मैं उसके साथ खेला करता था अब आप सोच रहे होंगे कि भाई तुषार सिंह तुम तो बहुत बड़े बेवकूफ थे जब जानते हो कि वो हर बार तुम्हारे साथ ऐसा ही करता है तो तुम उसके साथ खेलते ही क्यों थे ?

इसका उत्तर मेरे पास नहीं है...पर जरा रुकिए...मैं आपका ये प्रश्न भारत सरकार की ओर भेजता हूँ...

"हाँ तो भाई भारत सरकार..पठानकोट आतंकी हमले की जाँच के लिए पाकिस्तान के कुछ 'विशेषज्ञ' यहाँ आये..खाये पिए और जाँच के नाम पे कुछ स्वांग कर वापस चले गए..और जब तुम्हें बुलाने की बारी आई तो हमेशा की तरह ठेंगा दिखा दिया...और तुम मेरी तरह ठगे रह गए तो साहब मेरे पास तो बैट बॉल खुद का नहीं हुआ करता था...पर ये बताओ तुम्हें किस चीज की कमी है..जो तुम बारबार खुद को ठगवाते रहते है?"

#पाकिस्तान_का_ऊँट_हमेशा_एक_ही_करवट_बैठता_है
-तुषारापात®™

Thursday, 7 April 2016

सिंहासन

"पिताश्री...पिताश्री अनर्थ हो गया...काल ने आर्यस्थान पर अपना आघात कर दिया..." राजकुमारी आर्यसेना विक्षिप्तावस्था में इन्हीं शब्दों को बारम्बार कहते हुए दरबार में प्रवेश करती है और आर्याधिराज के सिंहासन के अत्यंत समीप पहुँच जाती है

"आर्यसेना...ये क्या दुःसाहस है...कदाचित राजकुमारी को राजदरबार की मर्यादा का स्मरण नहीं ...आर्यस्थान के राजदरबार में राजकुमारियों का प्रवेश वर्जित है..." आर्याधिराज ने क्रोधित हो कहा

"मर्यादा और अभिवादन के शिष्टाचार का विपत्ति काल में लोप हो जाता है महाराज..युवराज आर्यमन नहीं रहे महाराज...आर्यस्थान का अंतिम उत्तराधिकारी भी काल का ग्रास बन गया.."आर्यसेना ने अश्रु विस्फोट कर रूदन आरम्भ कर दिया

यह सूचना सुनते ही आर्याधिराज मानो मूर्छित से हो गए...सभी राजदरबारी उठ खड़े हुए...महामंत्री ब्रह्मार्य ने सेनापति से कहा "सिंहार्य..आप राजकुमारी के साथ जाइये...और स्थिति की पड़ताल कीजिये मैं महाराज के साथ उपस्थित होता हूँ " और सभा समाप्ति की घोषणा कर ब्रह्मार्य महाराज के समीप गए

राजकुमारी और सेनापति राजदरबार से मृत युवराज के कक्ष की ओर अग्रसर थे तभी आर्यसेना कहती है "सेनापति प्रथम हमें स्वर्गीय ज्येष्ठ युवराज के कक्ष की ओर चलना चाहिए..युवराज आर्यमन की हत्या का सम्बन्ध उस कक्ष से अवश्य है ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है"

"परंतु वह कक्ष तो ज्येष्ठ युवराज की हत्या के पश्चात से आज तक बंद है... क्या आप भी राजपुरोहित की तरह विश्वास करती हैं कि ज्येष्ठ युवराज की आत्मा ने ही उनके अनुज युवराजों की हत्या की है?" सेनापति ने अपने पगों को गति देते हुए कहा

"आर्यस्थान की राजकुमारी..अंधविश्वासी नहीं है सेनापति...राजदरबार में आते हुए..ज्येष्ठ युवराज के कक्ष की ओर से कुछ कोलाहल सुनाई दिया था...आप शीघ्र चलें" कहकर वो और गतिमान हुई

ज्येष्ठ युवराज का कक्ष राजभवन के उत्तरी ओर था..वह पूरा क्षेत्र अछूता अस्वच्छ और अंधकार तथा दुर्गन्ध में डूबा था...आर्यसेना और सिंहार्य कक्ष के मुख्य कपाट पे पहुँचते हैं

"देवी इस बंद कपाट की कुंजी तो महाराज के पास रहती है...इसके भीतर जाना सम्भव कैसे होगा?" विशाल कपाट को धकियाते हुए सेनापति ने राजकुमारी से पुछा

इतना समय नहीं है सेनापति...आप शीघ्र इस कक्ष के एक मात्र दुसरे कपाट पे पहुँचिये..जो इसके ठीक पीछे है..अगर भीतर कोई है तो हम उसे भागने का अवसर न दें" राजकुमारी ने सेनापति को आदेश सा दिया

सेनापति लगभग दौड़ते हुए दूसरे कपाट की ओर भागे और कपाट पे पहुँच के कान लगाकर भीतर कुछ सुनने का प्रयत्न करने लगे उन्होंने सुना भीतर किसी की पदचाप स्पष्ट सुनाई दे रही थी इधर आर्यसेना कक्ष का मुख्य कपाट अपनी पूरी शक्ति से खटखटाए जा रही थी तभी सेनापति ने कपाट के पीछे प्रकाश देखा उसे ऐसा लगा जैसे कक्ष में कोई दीपक प्रज्ज्वलित हुआ है

सेनापति ने तलवार हाथ में निकाल पुकारा "कौन है भीतर...उत्तर दो ...कक्ष का कपाट खोलो..नहीं तो मृत्यु के भागी होगे... मैं सेनापति सिंहार्य तुम्हें आदेश देता हूँ..कपाट शीघ्र खोलो..." कक्ष से कोई उत्तर नहीं मिला किसी के सरपट भागने का पदचाप सुनाई दिया

सेनापति की पुकार सुनकर महल के दक्षिणी सिरे के पहरेदार कई सारे सैनिक सेनापति के समीप आ गए सेनापति ने उनमें से कुछ सैनिकों को राजकुमारी की ओर भेजा और शेष सैनिकों से कपाट को तोड़ने का आदेश दिया

उधर राजकुमारी आर्यसेना सैनिकों को कक्ष के मुख्य कपाट पे स्थिर कर सेनापति की ओर आ गई...सैनिकों ने कुछ ही समय में कपाट धराशाई कर दिया.. सेनापति और आर्यसेना कक्ष के भीतर दौड़े पर उन्हें कोई नहीं मिला...एक दीपक अवश्य प्रकाशित था.. सेनापति ने सैनिकों की सहायता से कक्ष का चप्पा चप्पा छान मारा पर वहाँ किसी मनुष्य क्या मूषक का भी चिन्ह न था

सेनापति और राजकुमारी ने अच्छे से जांचा कि कक्ष में कोई गुप्त रास्ता तो नहीं जिससे कोई पलायन कर गया हो या कोई खिड़की खुली हो पर उन्हें घोर निराशा हुई ये जानकर कि कक्ष में कोई भी गुप्त दरवाजा नहीं था और सारी खिड़कियों की लौह चौखट मजबूती से अपनी जगह स्थिर थीं उससे सिर्फ वायु का प्रवेश ही सम्भव था मनुष्य का नहीं..कक्ष में जलता रहस्यमयी दीपक बुझ चुका था..सैनिकों को दोनों कपाटों में पहरा देने का आदेश देकर दोनों युवराज आर्यमन के कक्ष की ओर बढ़े

युवराज आर्यमन के कक्ष में रूदन और कोलाहल की गूँज अंतरिक्ष तक जा रही थी आर्याधिराज अपने मृत पुत्र युवराज आर्यमन के शव को गोद में लिए संताप कर रहे थे राजमाता आर्यमणिका पुत्र शोक में बारम्बार मूर्छित हो जातीं थीं सेविकाएं उन्हें संभाल रहीं थीं महामंत्री ब्रह्मार्य सेनापति और राजकुमारी को आते देख उनकी ओर हुए।

"मुझे ज्ञात न था आर्यस्थान के सेनापति स्त्रियों की भाँति मध्यम चाल से भ्रमण करते हैं" महामंत्री ब्रह्मार्य ने रोष प्रकट किया

"महामंत्री...स्त्रियाँ कोमल अवश्य हैं पर शक्तिहीन नहीं...सेनापति मेरे आदेश पे राजभवन के उत्तरी छोर पे थे" आर्यसेना ने उसी भाव से उत्तर दिया

" सेनापति क्या आर्यस्थान का महामंत्री जान सकता है कि राजभवन में क्या घटित हो रहा है?" ब्रह्मार्य ने आर्यसेना को अनसुना करते हुए सिंहार्य से प्रश्न किया, सेनापति ने ज्येष्ठ राजकुमार के कक्ष का सम्पूर्ण वृतांत विस्तार से कहा सुनकर ब्रह्मार्य बोले "असम्भव! यह नहीं हो सकता, उस कक्ष से कोई अदृश्य कैसे हो सकता है...क्या राजपुरोहित का कथन ही सत्य है " वो जैसे स्वयं से ही प्रश्न कर रहे हों फिर संभल के उन्होंने सिंहार्य को संबोधित कर कहा "सेनापति राज्य की समस्त सीमाओं पे सक्रियता का स्तर उच्च कर दो....नगर से बाहर कोई बगैर अपनी पहचान दिए जाने न पाये...जाओ....मेरे आदेश का पालन शीघ्र हो" सेनापति तत्काल कूच कर गए

"महामंत्री मुझे इन सभी हत्याओं के भेद की कुंजी ज्येष्ठ राजकुमार का कक्ष ही प्रतीत हो रहा है..क्या रात्रि के द्वितीय पहर में आप मेरे साथ उस कक्ष का निरीक्षण करने चल सकेंगे "आर्यसेना ने अपने अधरों से अधिक अपने पुष्ट उभारों से प्रश्न किया

ब्रह्मार्य ने अपने नयन सर्पों से वक्षों को चखा और उत्तर दिया "अवश्य देवी हम एकांत में ही निरीक्षण करेंगे सैनिकों को आदेशित करे देता हूँ....रात्रि प्रथम पहर के बाद वहाँ किसी का पहरा न रहेगा" यह तयकर दोनों मृत युवराज के शव की ओर चले ।

रात्रि के द्वितीय पहर में ज्येष्ठ युवराज के कक्ष में महामंत्री ने प्रवेश किया उनके पीछे आर्यसेना थी ब्रह्मार्य ने पीछे आती आर्यसेना से कहा "देवी मुझे तो यहाँ कुछ भी संदिग्ध नहीं दिख रहा..." "प्रिय....क्या तुम्हें अपना...काSSSSल नहीं दिखाई दिया.." कहकर आर्यसेना ने अपने कटिबन्ध से विषाक्त कटार निकाल कर महामंत्री की पीठ में उतार दी

"आह....दुष्टा..तूने मुझे काम के मद में....आह..ह..तू पाप की भागी.."इससे अधिक ब्रह्मार्य कुछ बोल नहीं पाये

"जा ऊपर मेरे सभी भ्राता तुझसे भेंट करेंगे" कहकर वो अपने कक्ष की ओर प्रस्थान कर गई

अगले दिवस भोर से ही राजभवन में हाहाकर मच गया आर्यधिराज राजपुरोहित,आर्यसेना और सेनापति अपने कुछ सैनिकों के साथ ज्येष्ठ युवराज के कक्ष में थे

"महाराज देखिये महामंत्री की पीठ में ज्येष्ठ युवराज आर्यजीत की कटार है...और ये कक्ष भी उन्हीं का है..आर्यस्थान राजवंश उन्हीं की आत्मा से श्रापित है" राजपुरोहित धर्मार्य ने महाराज को अपनी कही वाणी का पुनः स्मरण कराया, महाराज के समीप खड़े सेनापति सिंहार्य
किसी गहन मंथन में चले गए

"हाँ धर्मार्य..कदाचित कुल के दीपक से ही कुल भस्म हो रहा है"..दुखी आर्यधिराज ने राजपुरोहित से कहा "महामंत्री का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाय"आदेश देकर वो आर्यसेना के साथ अपने कक्ष की ओर अग्रसर हुए

एक और हाहाकारी दिवस गत हुआ रात्रि का तीसरा पहर था आर्यसेना अपने कक्ष में निद्रा मग्न थीं...तभी कोई कक्ष में प्रवेश करता है हस्त में तलवार लिए हुए वह आर्यसेना की ओर बढ़ता है और सिंह की तरह वार करता है परन्तु ये क्या..यहाँ तो कोई नहीं था ...आर्यसेना उसके पीछे खड़ी थी उसने विषाक्त कटार उसकी पीठ से सटा दी...और..क्रोध में बोली "अपने बाजुओं को आकाश की ओर उठाओ..या स्वयं आकाश लोक में जाओ...सेनापति सिंहार्य.."

"दुष्टा...तू जीवित न रहेगी...तेरे सारे भ्राताओं के पास आज तुझे भी विदा करूँगा...उसके बाद उस वृद्ध राजन को....सेनापति अभी भी शक्ति के मद में था

"विदाई तो...आपकी होगी सेनापति...उस महामंत्री के पास..आप दोनों का षड़यंत्र मैं जान चुकी थी...इसी लिये युक्ति से पहले आपको भ्रमित किया ..ज्येष्ठ युवराज के कक्ष में मुख्य कपाट से भीतर जाकर अपनी पदचाप सुनाई और तत्काल बाहर आकर कपाट खटखटाया....कहकर उसने कटार सेनापति में उतार दी और मुड़कर बोली "महराज आपके राज्य का अंतिम शत्रु भी देवलोक को प्रस्थान कर गया

कक्ष के दूसरी ओर छुपे महाराज जिन्हें आर्यसेना ने आज ही सारी बात बताई थी और स्वयं परीक्षण करने को कहा था,बाहर निकल आये "आह आर्यस्थान ने सर्पों का पालन किया...आर्यसेना हम तुमसे अति प्रसन्न हैं तुमने सेनापति और महामंत्री के षड़यंत्र से आर्यस्थान की रक्षा की...और महामंत्री को प्रथम समाप्त कर ये भी सिद्ध किया कि बुद्धि और शक्ति में से पहले बुद्धि को समाप्त करना चाहिए"

"महाराज...शक्ति को पहले मारने से बुद्धि दूसरी शक्ति खोज सकती है... परन्तु बुद्धि का वध प्रथम करने से शक्ति अस्त व्यस्त अनाथ सी हो जाती है" आर्यसेना ने उन्हें प्रणाम किया

"आह...राजनीति का इतना अच्छा ज्ञान...यह वृद्ध महाराज तुमसे आर्यस्थान का सिंहासन सुशोभित करने का आग्रह करता है" आर्यधिराज ने राज्य को उत्तराधिकारी देना चाहा

"रानी होने पे भी क्या मैं राज दरबार में जा सकूँगी...महाराज...राज दरबार की अति प्राचीन परम्परा और मर्यादा का..." आर्यसेना ने व्यंग्य बाण छोड़ा

"आह...कटाक्ष...आर्यसेना...जिस वृद्ध राजा के चारों पुत्रों को युवराज बनाने की आकांक्षा पे नियति ने 'तुषारापात' कर दिया हो..वह इसी व्यवहार का पात्र है...."आर्यधिराज के कंधे झुक गए

"जहाँ शक्ति (सेनापति)...बुद्धि (महामंत्री)...और.धर्म (राजपुरोहित) ने स्त्री का मान न किया हो उस राज्य का हश्र आप (आर्याधिराज) के जैसा ही होता है महाराज...सिंहासन सिंहिनियों के लिए बना ही कब है..मैं आपके राज्य को त्यागती हूँ..आपका 'आर्य' आपको लौटा रही हूँ पिताश्री...आज से 'आर्यसेना' 'देवदासी' के नाम से जानी जायेगी" कहकर वो संन्यास को चली।

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Wednesday, 6 April 2016

सूखी नदी

किसी ज्योतिषी को
न दिखाना हाथ अपना
मैं यूँ ही बताये देता हूँ
तुम्हारे हाथों की लकीरें
कुछ नहीं बस
सूखी हुयी नदियों के निशान हैं
कभी यहाँ भी बहुत लोग आबाद रहें होंगे
कई कई हाथ इन हाथों में डूबे रहते होंगे
तुम्हारे यौवन का मानसून सूख गया
तो लोगों ने अपनी बस्तियाँ भी उठा ली
सुना है ऐसे ही एक दिन
सिंधु घाटी सभ्यता भी खत्म हुयी थी
तुम्हारे हाथों की लकीरें सूखी हुयी नदियों के निशान हैं
और सूखी नदियों के किनारे 'आदमी' नहीं रहा करते

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Saturday, 2 April 2016

जीवित ज्यामिति

नारी एक केंद्र बिंदु है और पुरुष उस बिंदु से एक निश्चित दूरी पे भ्रमण करता दूसरा बिंदु,जिससे आकर्षण के वृत्त का निर्माण होता है पुरुष को मर्यादा की त्रिज्या को अल्प करने का प्रयास नहीं करना चाहिए ये अधिकार प्रकृति ने नारी को दिया है वो ही समय समय पर त्रिज्या का मान न्यून या अधिक करती है जब त्रिज्या का मान शून्य होता है तब दोनों बिंदु एक दूसरे पे आरोपित होते हैं और एक नए बिंदु का आविष्कार होता है तत्पश्चात दो केंद्र बिंदु वाले गृहस्थी का दीर्घवृत्त आकर लेने लगता है और पुरुष का पहले से अधिक मान की परिधि का भ्रमण आरम्भ होता है।

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Friday, 1 April 2016

अप्रैल का फूल स्वीकार कीजिये

कमाल की तारीख है 1 अप्रैल, 31 मार्च की आधी रात से, पूरी पहली अप्रैल तक ये सोच सोच के परेशान रहो कि न जाने कौन किस मोड़ पे अपने किस दाँव से आपका मुर्गा बना दे और आप मूरख मंडली में अपने को शामिल पाएं।

मुझे लगता है इतनी सजगता रखना या आज के दिन इतना जागरुक होना अपने आप में खुद एक बहुत बड़ी मूर्खता है।

वैसे मुझे ऐसी कोई समस्या नहीं है हमें कोई मूर्ख नहीं बना सकता जो काम भगवान ने इतना बखूबी किया हो उसमें कौन माई का लाल या लाली अपनी टांग अड़ा सकता/सकती है।

आज के दिन आप सभी बुद्धिमानों को हम जैसे मूर्खों को धन्यवाद देना चाहिए क्योंकि बाबा न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार हम मूर्ख हैं तभी तो आप जैसे बुद्धिमानो की बुद्धिमानी है।

तो अप्रैल में खिलने वाले इस 'फूल' का लुत्फ़ उठाइये और बुद्धू बनके किसी को बुद्धिमान बनाने की ख़ुशी महसूस कीजिये।

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Thursday, 31 March 2016

धुआँ

धुआँ उठता है
तो हम डर जाते हैं
सभी अवगत जो हैं
उस कहावत से कि
बगैर आग के धुआँ नहीं होता
पर कहीं ये धुआँ
खुशियाँ भी लाता है
खुशहाली और धुआँ ?
अकाल पड़े किसी गाँव के
एक आँगन से उठता धुआँ
भूखे चेहरों को खुश कर जाता है ।

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Tuesday, 22 March 2016

शगुन फागुन का

तोरी नजर पिचकारी से हाय बलम मैं लाल भई
ढीली पड़ी मोरी करधनी ऊपर ऊपर सांस चढ़ी

भंग में डूबी तोरी अँखिया इन अखियन संग खूब लड़ीं
अंग अंग हरियाये गवा जइसे सिल पे पिसी भंग गई

छेड़ें सखियाँ पूछें कलमुँही चुनरी तोरी कहाँ गई
तीर के जैसे देखे देवर हाय देह मोरी कमान भई

मैदा जइसी गोरी चिट्टी तुम्हरी नजर मा भूनी गई
तोरी मीठी बातन के खोओ से गुझिया जैसी भरी

भीजत भीजत ताप चढ़ो लावो ठंडाई थोड़ी पीई
तोरे रंग में रंग के सजन जी मैं भी अब रंगीन भई

रास में तोरे रास बिहारी लोक लाज सब भुलाई दई
अंग लगी यों तुझसे जइसे सागर द्वारका समाई गई
-तुषारापात®™

Sunday, 20 March 2016

जन गण मन

कल कुछ पुराने दोस्तों के साथ यहाँ के एक मशहूर लॉउन्ज में भारत पाकिस्तान टी 20 मैच देखने का प्रोग्राम बना हम लोगों को थोड़ी देर हो गई थी पर कोलकाता में बारिश होने के कारण मैच शुरू नहीं हुआ था इसलिये देर से पहुँचने पर भी मैच की एक भी एक्टिविटी हमने मिस नहीं की

लॉउन्ज के अंदर गया तो देखा कि न जाने कितने टीवी और प्रोजेक्टर स्क्रीन्स लगे हुए हैं और उनपे एशिया कप के भारत पाकिस्तान मुकाबले की हाइलाइट्स चल रही हैं कमेंट्री की आवाज फुल वाल्यूम पे थी लॉउन्ज अपने आप में एक स्टेडियम बना हुआ था जबरदस्त भीड़ थी पर हमारी बुकिंग थी तो हमें अपनी जगह मिल गई थी

मैच स्टार्ट होने से पहले के घटनाक्रम पे बाद में आऊँगा तो मैच शुरू होता है धोनी टॉस जीतते हैं पहले फील्डिंग का चुनाव करते हैं तो पाकिस्तान की बैटिंग शुरू होती है और पहली बॉल से लॉउन्ज में जो शोर शुरू हुआ वो मैच की आखिरी गेंद तक बढ़ता ही गया पाकिस्तान के एक एक विकेट गिरने पे तालियों और सीटियों की आवाज आपके कान को विकलांग बना सकती थी अश्विन की घूमती गेंदों पे यहाँ लॉउन्ज के लोग झूम उठते थे किसी तरह पाकिस्तान ने 118 रन बनाये और भारत को 119 का टारगेट दिया

और जब भारत की बल्लेबाजी शुरू हुई तब तक लॉउन्ज पूरा पैक हो चूका था विराट ने अपने नाम को चरितार्थ करते हुए भारत को जीत दिलाई उनकी एक एक शॉट इतनी परफेक्ट थी इतना सधा हुआ हाथ जैसे कोई बेहतरिन कारीगर चिकन की कढ़ाई कर रहा हो और उनका अपने पचासे पे सचिन तेंदुलकर को प्रणाम करना दिल को छु गया और ये सन्देश दे गया कि आप चाहे जितने सफल हों शिखर पे हों अपने से बड़ों का सम्मान नहीं छोड़ना चाहिए हमेशा की तरह धोनी के बल्ले से जीत का रन निकला और क्रिकेट के भगवान ने तिरंगा लेकर फहराना शुरू किया पर उनके बाजू में खड़े वृद्ध लेकिन युवाओं से भी अधिक सक्रीय हम सबके प्रिय अभिनेता अमिताभ बच्चन जी को जोश में तिरंगा फहराते देख मन गर्व से भर उठा दाँत पीस पीस कर जिस तरह उन्होंने अपनी खुशी जाहिर की वो टीम इंडिया को मैच की जीत पे मिला सबसे बड़ा तोहफा था

एक बहुत अच्छा और अनोखा अनुभव रहा ये मेरे लिए ऐसा लगा मैं भी स्टेडियम में ही हूँ खैर अब आते हैं उस बात पे जिसके लिए इतनी लंबी कहानी कही तो कल जब मैच शुरू होने जा रहा था तो आपको पता ही है दोनों देशों के राष्ट्रगान गाये जाते हैं पहले पाकिस्तान का राष्ट्रगान गया गया स्टेडियम में सन्नाटा हो चूका था और अब सदी के महानायक द्वारा अपना राष्ट्रगान गाया जाना था जैसे ही धुन बजी मैं अपनी सीट से खड़ा हो गया मेरे साथ मेरे सारे दोस्त खड़े हो गए लॉउन्ज का स्टाफ और लॉउन्ज में आये ज्यादातर लोग खड़े हो गए वहाँ सिर्फ अमिताभ बच्चन की आवाज सुनाई दे रही थी और राष्ट्रगान की एक एक पंक्ति एक एक रोम में जोश और गर्व भर रही थी उस समय की अनुभूति मैं बयाँ नहीं कर सकता

राष्ट्रगान खत्म होता है और फिर से हो हल्ला शुरू हो जाता है राष्ट्रगान के दौरान जो लोग खड़े नहीं हुए थे वे मोटी खाल के अधेड़ उम्र के पढ़े लिखे लोग थे जो अपने सोफे पे पसरे रहे और हम लोगों को देखकर खींसे निपोरते रहे उनके अलावा लॉउन्ज में ज्यादातर युवा ही थे हाँ वही युवा पीढ़ी जिसपे आरोप लगता रहता है वो नशे में डूबी नालायक नश्ल है वही लोग कल राष्ट्रगान के समय सबसे पहले खड़े हुए और उनसे एक पीढ़ी पहले के लोग बैठे दाँत दिखाते रहे उन्हें आखिर में शर्म जरूर आई होगी जब उन्होंने इतनी उम्र होने के बावजूद अमिताभ बच्चन को एक बच्चे की तरह जोश में तिरंगा फहराते देखा होगा

नई पीढ़ी बिंदास है बेबाक है बेफिक्र है पर जिम्मेदार है उन्हें कोसना छोड़ कर और अपने प्रवचनो के बजाय अपने आचरण से उन्हें दिशा निर्देश दें तभी कोई बात बनेगी वरना इंडिया इंडिया का नारा लगाते सब दिखेंगे पर इंडिया बनाता कोई नहीं दिखेगा ।

वैसे आपमें से कौन कौन कल टीवी पे राष्ट्रगान सुनकर खड़ा हुआ था ? उत्तर मुझे नहीं खुद को दीजियेगा ।

-तुषारापात®™

Friday, 11 March 2016

गुल्लक की कैद

आज फिर एक पार्टी में उससे मुलाकात हो गई..हमेशा की तरह हदीस कंपनी के हॉट शॉट्स के साथ अपने कॉन्टैक्टस बनाने के लिए उनके आगे पीछे घूम रहा था..और वो एक फिरोजी रंग की साड़ी में अपनी खूबसूरती छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए बॉस की मैम के साथ इधर उधर की बातें कर रही थी..उसके चेहरे से साफ था..कि वो बोर हो रही थी..तभी मैम किसी दूसरे गेस्ट का वेलकम करने चली गईं..एक सॉफ्ट ड्रिंक का गिलास ले मैं उसकी तरफ बढ़ा

"आज तो कोई आसमान लपेट के जमीं पे उतरा है..पर चाँद से चेहरे पे ये ग्रहण क्यों" मैंने उसे ग्लास देते हुए कहा

उसने मेरे हाथ से ग्लास लिया एक सिप लगाया और बोली "हम्म... शायरी... लगता है ये सितारा शराब में डूब के आया है..वैसे थैंक्स मेरी नहीं..मेरी साड़ी की तारीफ ही सही.."

"आसमान से टूटा सितारा..अक्सर नशे के समन्दर में गिरता है.. खैर मेरी छोड़ो तुम बताओ...आयत..कॉलेज की सबसे ब्रिलियंट लड़की आज एक हाउस वाइफ बन के कैसे रह गई...याद है कितना झगड़ा किया था तुमने मुझसे ये कहकर कि मैं अभी शादी नहीं करना चाहती मुझे ये करना है वो बनना है ऑल दैट.." पिछली यादों की रौ मैं थोड़ा तल्ख़ हो उठा

उसने एक सांस में ग्लास खाली किया...ग्लास पास की टेबल पे रखा और बोली "ओह इतनी कड़वाहट वेद...कॉलेज टाइम पे हम सपनों में जीते हैं...बाद में पता चलता है हमें कि..दुनिया के कटोरे में सपने रेजगारी की तरह होते हैं.. जो खनकते खूब हैं पर उनसे कुछ खरीदा नहीं जा सकता.. भूल जाते हैं दुनिया नोटों से चलती है चिल्लर से नहीं.."

"पर तुम्हारे जैसे नायाब सिक्के को सहजने के लिए ये गुल्लक हमेशा थी" मैंने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा

उसने अपना हाथ मेरे हाथ में रहने दिया एक नजर हदीस को देखा और मुझसे बोली" वेद..जानते हो नायाब होना या लाजवाब होना बहुत बेबस भी बनाता है..खासतौर पे एक लड़की को...लड़की जितनी ज्यादा ब्यूटीफुल हो..टैलेंटेड हो..उतने ही ज्यादा लड़के उसे अपना बनाने के लिए लगे रहते हैं"

"अच्छा..तो अब मैं तुम्हारे लिए उस भीड़ का एक हिस्सा भर हो गया.. आयत...खूब दुनियादारी सीख ली तुमने भी"मैं उसकी बात काटते हुए बोला

"बात पूरी न होने देने की आदत अब तो छोड़ दो..." उसने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा

"हम्म..बताओ...सुनूँ तो बेमिसाल बेबस कैसे हो जाता है" मैंने डिब्बी से एक सिगरेट निकाली पर सुलगाई नहीं

"तुमने कॉइन्स कलेक्टर देखे हैं...जो अनोखे अनोखे सिक्के इकठ्ठा करते हैं.. वेद...सिक्के का अनोखा होना ही उसकी मुसीबत बनता है ..उसे पकड़ के गुल्लक में बंद कर दिया जाता है...और...बाजार की खुली हवा से महरूम कर दिया जाता है..अनोखे सिक्के को गुल्लक में बंद होना ही है...फिर क्या फर्क पड़ता है वो वेद की गुल्लक हो या हदीस की" कहकर वो चली गई

"आयत..तो कम से कम इस खाली गुल्लक को तोड़ती ही जाओ.." मैं चीख के उससे ये कहना चाहता था पर वो जा चुकी थी...गुल्लक के मुंह में सिक्के की जगह सुलगती सिगरेट लग चुकी थी और धुआँ खनकने लगा था।

-तुषारापात®™

Monday, 7 March 2016

नमः शिवाय

एक बहुत बड़े शहर का नक्शा एक छोटे से कागज़ पे बनाया जा सकता है पर क्या उस नक़्शे में एक जगह से दूसरी जगह उँगली रखने मात्र से आप वहां पहुँच जायेंगे नहीं न उसके लिए तो आपको स्वयं ही यात्रा करनी पड़ेगी नक्शा सिर्फ आपकी मदद करता है ।

भगवान् की मूर्तियों/चित्र/कथाओ को भी एक नक़्शे की तरह लेना चाहिए और अपनी जीवन यात्रा अपना कर्म नैतिकता से करना चाहिए तभी आप सच्चे धार्मिक हैं।

भगवान शिव के स्वरुप की बहुत ही व्यवहारिक और वैज्ञानिक विवेचना के इस एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है है शिव जी के माथे पे चन्द्रमा का मतलब है अपने मन मस्तिष्क में क्रोध नहीं आने देना शीतलता धारण करना, ऐसे ही जटाओं से गंगा का निकलना प्रतीक है कि अपने मस्तिष्क से हमें सदैव ऐसे सद व सात्विक विचारों का ही प्रवाह करना चाहिए जैसे गंगा पावन है। तीसरी आँख से अभिप्राय ,आज्ञा चक्र का जागृत होना और संहार में या कहूँ निर्णय लेते समय निस्पक्ष होने से है।महादेव के शरीर पे भस्म से हमें ये सीख लेनी चाहिए कि मृत्यु शाश्वत सत्य है जीवन के मद में हमें ये कभी नहीं भूलना चाहिए।धर्म और परोपकार के पथ पे निंदा और आलोचना को भी विष समझ के सहज स्वीकार लेना चाहिए। शिव जी हर समय नारायण या राम राम क्यों जपते हैं वो इसलिए की सब कुछ करते हुए भी अपने नाम की चाह नहीं करना चाहिए वरन् दूसरों के नाम को आगे बढ़ाने के काम से आप बहुत बड़े बन जाते हो
प्रकृति के संहार की शक्ति का प्रतीक हैं शिव और संहार पालन का ही एक रूप है

अगर ऊपर बताये गए तरीकों का पालन आप करते हैं तभी आप शिव भक्त हैं नहीं तो शिव की फ़ोटो मूर्ति के आगे चाहे धूप जलाओ चाहे चन्दन लगाओ या फिर दूध बहाओ सब व्यर्थ है।
परंतु हर सामान्य और साधारण व्यक्ति इसे नहीं समझ सकता उसे समय लगता है पहले वो भी सिर्फ चित्र पूजता है धीरे धीरे उसके चरित्र को समझ पाता है हम आप और जितने लोग आज इस बात को समझ चुके हैं वो भी पहले इसी अवस्था से गुज़र चुके हैं इसलिए हमें किसी का उपहास नहीं उड़ाना चाहिए वरन् ऐसे लोगों को समझाना चाहिए की सच क्या है।
आप चाहे जितनी ऊँची मंजिल पे पहुँच जाये पर ये मत भूलिए कि आये आप भी पहली मंजिल से हैं।

-तुषारापात®™ 

Friday, 4 March 2016

आविष्कार का पिता

"अ..देखिये मिसेज...अरर..मिस...मेरा मतलब...आवश्यकता जी.. ये बम्बई दिल्ली के जैसा कोई बड़ा शहर तो है नहीं..ये एक छोटा सा मगर अपनी संस्कृति से बहुत गहराई के साथ जुड़ा हुआ शहर है...और आप अपनी स्थिति तो बेहतर जानती ही हैं..तो इस तरह की बातों को एक कान से सुनिए और दूसरे से निकाल दिया कीजिये ...इसी में आपकी भलाई है"..अधेड़ चतुर्वेदी ने मीठी चाशनी में पगी मिर्च जैसे ये शब्द आवश्यकता से कहे

"लेकिन...चतुर्वेदी साहब..आते जाते हर रोज मोहल्ले वालों के ताने सुनना अब बर्दाश्त नहीं होता...आप मेरे लिए किसी और मोहल्ले में मकान ढूँढिये..यूँ यहाँ रहना मुश्किल है मेरा" आवश्यकता ने चतुर्वेदी की निगाहों का निशाना देखते हुए अपना आँचल ठीक करते हुए कहा

"आप समझ ही नहीं रहीं हैं..मैं जो कह रहा हूँ...अच्छा आप खुद ही बताइये..अब तक आप कितने मकान बदल चुकी हैं... कुछ दिन के बाद वहाँ भी यही सब शुरू होता है...बेहतर है आप किसी पॉश इलाके में मकान किराये पर लीजिये..पर उसके लिए आपका बजट नहीं है...अब इतने पैसे में तो..ऐसी ही जगह मिलेगी..और बड़ी मुश्किल होती है..मकान ढूँढने में..एक बिन बाप के बच्चे की माँ..." चतुर्वेदी कहते कहते चुप हो गया पर उसकी सांस्कृतिक आँखें आवश्यकता का पर्यटन कर रही थीं

"हाँ चतुर्वेदी साहब...पैसे की समस्या तो है ही..इतने कम किराये को भी समय से नहीं दे पाती..पर क्या करूँ..दिल छिल के रह जाता है जब लोग मेरे बेटे आविष्कार को...नाजायज और न जाने ऐसी कितनी गालियाँ सुना सुना के उसका मजाक बनाते हैं...नाजायज का ये ताना वो मासूम क्या जाने..." आवश्यकता की आवाज भर्रा गयी पर उसने खुद पे नियंत्रण किया पराये मर्द के सामने वो खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी

"हम्म..अच्छी तरह समझता हूँ...वैसे आपका बेटा आविष्कार बहुत प्यारा लड़का है..और तेज दिमाग का भी है...अगर उसको कोई धनवान पिता का साया मिल जाए..जो उसको अच्छे स्कूल में पढ़ा लिखा सके..तो बहुत नाम करेगा..आपसे एक बात कहता हूँ..बुरा न मानियेगा..किसी पैसे वाले से शादी कर लीजिये..अभी तो आप जवान हैं...तीस से ज्यादा की नहीं होंगी..अगर आप कहें तो मैं आपसे..."चतुर्वेदी ने बड़ी धूर्तता से अपनी विधुरता को बदलने का प्रयास किया

"शायद आप ठीक ही कहते हैं...आवश्यकता आविष्कार की जननी है मगर धन उसका वो पिता है जिसके अभाव में आविष्कार जुगाड़ या कबाड़ बन के रह जाता है" उसने डूबी आवाज में चतुर्वेदी से कहा और इस बार कंधे से थोड़ा सरक आये आँचल को ठीक करने का कोई प्रयास नहीं किया।

-तुषारापात®™
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Monday, 29 February 2016

उन्तीस फरवरी

"तू शायर है..मैं तेरी शायरी..तू आशिक है..मैं तेरी आशिकी..तुझसे मिलने का मन करता है..ओ मेरे साजन" सन 1992 की हल्की सर्दियों की शाम थी चौपटियाँ चौराहे पे पुत्तन पान वाले के यहाँ गाना बहुत जोरों से बज रहा था पुत्तन की दुकान से सटी मुन्ना की किराने की दुकान पे निर्मला सकुचाई सी खड़ी थी दुकान पे भीड़ बहुत थी बहुत से धनवान लोग मुन्ना की दुकान से महीने भर का राशन ले रहे थे

"हाँ बताओ..तुम्हें क्या चाहिए.." मुन्ना ने गंदे कपड़े पहने खड़ी निर्मला को देखा और उसे जल्द रफा दफा करने के उद्देश्य से पूछा

"भइया.. एक किलो आटा... और अठन्नी का कड़वा तेल दे दो..और चवन्नी का नमक मिर्ची..." धीमी आवाज में निर्मला ने कहा

मुन्ना एक किलो आटा एक पन्नी में बाँध चूका था..और नमक की पुड़िया बाँधते हुए उसने पूछा "तेल के लिए शीशी लाइ हो?"

निर्मला ने अपने हाथ में पकड़ी पुरानी दवा की एक खाली शीशी उसकी ओर बढ़ाई मुन्ना ने झट से उसमे तेल नापा और उसे शीशी पकड़ाने के बाद दोनों हाथों को अपने बालों में पोछा और हिसाब लगा कर बोला " साढ़े सात रुपैये" निर्मला ने अपने पल्लू में बंधे नोट को निकालने के लिए गाँठ खोलने लगी

"अरे..पहले से नहीं निकाल पाई..हद है..बांधे ऐसे हो जैसे बड़ा खजाना होवे..जल्दी करो.."मुन्ना ने झुंझलाते हुए उससे कहा और अगले ग्राहक का परचा ले सामान निकालने लगा,किसी तरह पल्लू की गाँठ खुली और निर्मला ने उसे पैसे दिए और सामान ले घर की ओर चली रास्ते में उसने सब्जी के नाम पे अठन्नी के आलू भी खरीद लिए

ये उसका रोज का काम था..हर शाम जब उसका पति कमलेश दिहाड़ी करके आता..और उसे आठ रुपये देता..तब वो मुन्ना की दुकान दौड़ती सौदा लाने को..रोज कुआँ खोदना और रोज पानी पीने वाली हालत थी उनकी

निर्मला घर पहुँच के खाना बनाने लगी उसने अभी लाई आटे की पन्नी से एक मुट्ठी आटा निकालकर डालडा के एक बड़े प्लास्टिक के डिब्बे में डाला और बाकी आटे को गूंथने लगी

"निम्मो..सेठ ने कल छुट्टी रखी है मंडी में..कह रहा था काम गोदाम में होगा पर हिसाब के लिए मुनीम नहीं आएगा..तो..कल पैसा न मिलेगा..पता नहीं ई साले सेठ 29 फरवरी को कौन सा जश्न मनाते हैं" कमलेश ने बीड़ी सुलगाते हुए कहा

"ओह्ह..पर फरवरी में अबकी एक दिन बढ़ कैसे गया..वैसे तो 28 दिन की ही फरवरी होती है न" निर्मला ने आलू काटते हुए पूछा

"अरे..यहाँ मैं परेशान हूँ..कल खाएंगे क्या..और तुझको..फरवरी की गणित की पड़ी है..अच्छा सुन मुनीम जी बताये थे कि..धरती सूर्य का चक्कर एक साल और चौथाई दिन में लगाती है..तो ई ससुरा चौथाई दिन बढ़ते बढ़ते चार साल में एक दिन के बराबर हो जाता है..तो इसको उसी साल की फरवरी में जोड़ देते हैं...जिससे हिसाब किताब ठीक रहता है..अब क्या हिसाब किताब ठीक रहता है..ये हमको नहीं पता.. यहाँ अपना हिसाब तो गड़बड़ा गया है...लगता है कल भूखा रहना पड़ेगा"

"आप परेशान मत होइए..इतनी गणित तो हम नहीं जानते....पर हमारी माँ ने हमको सिखाया था..जब भी आटा लाओ..तो एक मुठ्ठी आटा अलग निकाल के एक बर्तन में डाल दो...अब घड़ी दो घड़ी की खुरचन से भगवान एक पूरा दिन बना देते हैं..तो हम भी...रोज की एक मुठ्ठी आटा से..कल अपने लिए..एक दिन का खाना बना देंगे" कहकर निर्मला ने डालडे का वो पीला डिब्बा कमलेश को दिखाया जिसमे रोज का बचाया आटा था

"वाह..निम्मो रानी..कमाल कर दिया तूने तो..अब जबकि एक दिन अधिक हो गया है तो तुझे और अधिक प्यार तो करना होगा" कमलेश के दिल से बोझ उतर गया और वो निर्मला को गले लगाने को आगे बढ़ा

"धत" कहकर निर्मला ने अपना मुँह पल्लू में छुपा लिया।

29 फरवरी हमें सिखाती है कि आज की छोटी छोटी बचत कल हमारे बहुत काम आ सकती है ।

-तुषारापात®™

Friday, 26 February 2016

कारोबार

के कोई तो चाहिए जिसके नाम पे बाज़ार लगे
चल तुझे ईसा बना के सलीबों का कारोबार करें


-तुषारापात®™

Tuesday, 23 February 2016

मौन

तुम्हारे खोखले शब्दों से ज्यादा मुझे तुम्हारा ठोस मौन पसंद है ।

-तुषारापात®™

Monday, 22 February 2016

हासिल

जो दहाई तक न पहुँचे उन्हें सब हुआ 'हासिल'

#आरक्षण_की_गणित
-तुषारापात®™

Thursday, 18 February 2016

कुंडली मिलान

"चिनॉय सेठ ! ..जिन घरों की छतें..आपस में मिली हुई होती हैं..उन घरों के लड़के लड़कियों की...कुंडलियाँ नहीं मिलायी जाती"

-तुषारापात®™

Monday, 15 February 2016

त्रिवेणी

"अरे..अरे..ये क्या..मुझे सर्दी लग गई तो" आयत ने अपने सर के ऊपर आई पानी की बूंदे पोछते हुए वेद से कहा

"गंगा के जल को तुम्हारी माँग में भर रहा हूँ.." वेद ने उसकी ओर एक और छींटा मारते हुए कहा

"क्यों गंगा को अपवित्र कर रहे हो...आयत गंगा में घुल गई तो काशी में तुम्हारे पापा इससे स्नान भी न करेंगे" आयत ने हँसी हँसी में कड़वी सच्चाई कह दी

"जिस गंगा के किनारे बड़े बड़े वेद पुराण विकसित हुए हों वो क्या एक आयत से अपवित्र हो सकती है...खैर...आज वैलेंटाइन डे पर...संगम की ये हसीं शाम..नाव पे तुम्हारा साथ... कम से कम आज तो ख्वाबों में तैरने दो...यथार्थ की जमीन पे तो रोज चलते ही हैं" वेद ने चुभी हुई सच्चाई के काँटे को गंगा में बहा देना चाहा

"हाँ ये तो है..पर वैलेंटाइन डे पर कोई लड़का किसी लड़की को तीर्थ पे लेकर आता है क्या..बुढऊ हो तुम तो.." आयत ने ठिठोली की

"देखो...प्रेम का इससे अच्छा उदाहरण और कहाँ मिलेगा... देखो इस संगम को... यहाँ रोज ये नजारा रहता है.. ये किसी खास दिन का मोहताज नहीं.. रोज ही गंगा यमुना का संगम होता है यहाँ.. यमुना अपना सबकुछ गंगा में समाहित कर देती है..सबकुछ...अपना नाम तक.. पवित्र प्रेम की पराकाष्ठा है यहाँ" कहकर वेद उसका हाथ अपने हाथ में लेकर संगम के जल में डुबो देता है..ठंडा पानी उनके हाथों की गर्मी सोखने लगा

आयत चप्पू की तरह जल में अपना और उसका हाथ चलाने लगती है.."हाँ..पर इससे आगे कोई इसे संगम का जल नहीं कहता... सब इसे गंगा ही कहते हैं... शायद लोग 'गंगा' में 'जमुना' का मिलन नहीं स्वीकार करना चाहते.. यमुना गंगा से मिलकर..गंगा होकर पवित्र हो जाती है..मगर आयत कभी ऋचाओं जैसी पवित्रता नहीं पा सकती...आयत और वेद का संगम समाज को स्वीकार नहीं है....आयत ने डबडबाई आँखों से डूबते सूरज को देखते हुए कहा

"हाँ ये संगम उन्हें स्वीकार नहीं है..पर जानती हो क्यों..क्यों ये संगम स्वीकार नहीं है ?"वेद ने ऐसे कहा जैसे उससे पूछ न रहा हो बल्कि खुद को बता रहा हो

"क्यों" आयत की आँखें किसी भी क्षण बस पिघलने वाली थीं

"क्योंकि सही ज्ञान देने वाली सरस्वती बहुत पहले ही विलुप्त हो चुकी है" कहकर वेद अपने दोनों हाथों में संगम का जल भर के आयत की ठोड़ी के पास ले गया आयत की बाँयी आँख से एक धारा पिघल आई और संगम के जल में जा मिली त्रिवेणी पूर्ण हो चुकी थी ।

-तुषारापात®™
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Thursday, 11 February 2016

नाजायज औलादें

"हाय हाय...पापा गो बैक ...पापा गो बैक..पड़ोसी अंकल हमारा बाप है.. हम नजायज औलाद साबित होने तक लड़ेंगे...हर घर से नाजायज निकलेंगे"

कल को जब कोई तुम्हारी माँ का बलात्कार करने का प्रयास करे और जब उसे पकड़ के फाँसी दे दी जाय तो तुम उसका भी खूब जोर शोर से शहीद दिवस मनाना और जोर जोर से यही चिल्लाना यही नारे लगाना

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो इसका मतलब ये नहीं कि तुम राष्ट्रद्रोही बातें करो जिस आतंकवादी ने देश पे हमला किया और जिसे न्यायिक व्यवस्था ने दोषी सिद्ध किया उसे तुम हीरो बनाओ शहीद का दर्जा दो मैं पूछता हूँ
क्या ये न्यायपालिका की अवमानना नहीं ?
देश के लिए शहीद हुए सैनिकों का अपमान नहीं ?
और सबसे बड़ी बात क्या ये राष्ट्र का अपमान नहीं ?

कभी कश्मीर में ISIS के झंडे फहराये जाते हैं तो कभी JNU में भारत विरोधी नारे लगते हैं आखिर इन घटनाओ को बर्दाश्त क्यों किया जा रहा है मैं पहले भी अपने कई लेखों/कहानियों के माध्यम से कह चूका हूँ कि राष्ट्रविरोधी किसी भी गतिविधि और आतंकवाद का किसी भी रूप में यहाँ तक की मौखिक समर्थन करने वालों पे कड़ी कार्रवाई शीघ्र होनी चाहिए एक दो बार ऐसी कार्रवाई होगी तो अपने आप इन जैसे लोगों के दिमाग ठिकाने लग जाएंगे और इनका अप्रत्यक्ष समर्थन करने वाले भी चुप बैठ जायेंगे

जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं बहुत ज्यादा जरूरत है ऐसे लोगों के सरों में छेद बना देने की, रोग सर्प और शत्रु को उनकी प्रारम्भिक अवस्था में ही दमन कर देना चाहिए नहीं तो वो विकराल रूप धर लेता है
अगर सही समय पे कार्रवाई नहीं की गई तो हम नपुंसक ही सिद्ध होंगे लोकतंत्र के नाम पे ओढ़ी हुई इस नपुंसकता का त्याग करने का ये उचित समय है वरना बहुत देर हो जायेगी

ये एक सुनियोजित बौद्धिक आतंकवाद है सेक्युलरिज्म,सोशल जस्टिस, ह्यूमन राइट्स, समानता, वीवेन् एम्पावरमेंट अधिकार आदि के नाम पे युवाओं का ब्रेन वाश किया जा रहा है उनके दिमाग में जहर बोकर उन्हें बाग़ी बनाया जा रहा है देश में ही देश के विरोधी तैयार किये जा रहे हैं जिसके लिए सोशल मीडिया का भी खूब गलत प्रयोग हो रहा है पर एक बात युवाओं को बहुत अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए इच्छाधारी सर्प अगर नेवले का रूप ले लें तो भी वो भीतर से सांप ही रहते हैं वे नागों का पोषण ही करते हैं चाहे वो ऊपर से कितना भी ये दिखाएँ कि वो साँपों का संहार कर रहे हैं

आज बहुत आवश्यकता है कि हम ऐसे रूप बदलने वाले नागों को जो नेवला बन साँपों को तैयार कर रहें हैं उन्हें तुरंत कुचल दें और उनके लिए जो जरा सी भी बीन बजाता दिखे उसे तुरंत पोटली में बंद करें और इतना मारें कि अगली बार कोई बीन उठाने की हिम्मत न कर सके।

-तुषारापात®™

Tuesday, 9 February 2016

अधूरा वाक्य

"तुम्हारा दिमाग तो ठीक है....ऐसी बाजारू लड़की के साथ घूमते फिरते हो...पूरी सोसायटी में नाक कटवाते फिर रहे हो...अपनी नहीं तो..कम से कम अपने इस इज्जतदार बाप की तो परवाह की होती...लोग क्या कहेंगे इतना बड़ा पत्रकार का बेटा...एक वेश्या के यहाँ आता जाता है.." एक बहुत बड़े पत्रकार जो टीवी पे आते हैं अपने जवान बेटे पे सुबह सुबह भड़क रहे थे

"पर पापा...मैं रागिनी से प्यार करता हूँ..और वो वैश्या नहीं है..लोगों ने उसे यूँ ही बदनाम कर रखा है मैं तो उसे सहारा दे रहा हूँ..." बेटे ने कहा

"चुप रह नालायक...जबान लड़ाता है...मुझे समझायेगा तू कौन क्या है..." रिपोर्टर साहब बेटे पे गरजे और अपनी पत्नी से बोले" सुनो इसे अच्छी तरह से समझा दो...अगर इसने ये सब हरकतें बंद नहीं की तो..मैं इसे घर से बाहर निकाल दूँगा...मैं स्टूडियो जा रहा हूँ" कहकर वो घर से बाहर अपनी कार में बैठ स्टूडियो आ गए

स्टूडियो में पहुँचते ही पत्रकार महोदय ने स्क्रिप्ट हाथ में ली और असिस्टेंट से पूछा "वो आ गई ?"

"नहीं सर..अभी नहीं आई..मेरी बात हो गई है वो रास्ते में हैं" असिस्टेंट ने जवाब दिया

"राजीव..आज का इसका इंटरव्यू आग लगा देगा..देखना तू..आज अपने चैनल की टी आर पी आसमान छुएगी...एक काम करना इंटरव्यू के बीच बीच में इसकी हॉट वाली ...मतलब वैसी वाली फोटो धुंधली करके लगा देना..समझ गए न" रिपोर्टर साहब खुशी से उछल रहे थे इतनी ही देर में वो मोहतरमा आ गईं जिनका इंटरव्यू होना था सब कुछ तैयार था इंटरव्यू शुरू हो गया

"सनी जी एक बात बताइये...आप एक बहुत प्रसिद्ध पॉर्न स्टार रही हैं.. फिर ये बॉलीवुड में आने का कैसे सोचा आपने...आई मीन टू से...आपको हिचक नहीं हुई... कि भारत जैसे एक सांस्कृतिक देश में आपको स्वीकार कर लिया जाएगा" उन्होंने एक एक शब्द पे बड़ा जोर देते हुए पूछा

"लुक... मुझे कोई हिचक नहीं हुई क्योंकि..आपके इण्डिया में ही मैं सबसे ज्यादा पॉपुलर रही हूँ..तो यहाँ तो...मुझे आना ही था" मोहतरमा ने बोल्डली अपना उत्तर दिया

ऐसे ही तमाम प्रश्न और उत्तरों का दौर चला और इंटरव्यू खत्म हुआ रिपोर्टर साहब ने अपने केबिन में उन मोहतरमा के साथ कुछ फोटो खींचने को अपने असिस्टेन्ट को कहा और हिदायत दी की इनमे जो सबसे अच्छी फोटो आये वो फ्रेम कराकर उनके केबिन की सेलिब्रेटी वाल पे टाँग दी जाय और मोहतरमा को उनकी गाड़ी तक बिठाने आ गए

"थैंक यू...सो मच...आपने मेरी बहुत हेल्प की...मैं अगर आपके किसी काम..."मोहतरमा ने बड़ी अदा से कार में बैठते हुए जानबूझकर अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया

"जिस काम में मैं एक्सपर्ट था वो मैंने किया...अब आप जिसमे एक्सपर्ट.."रिपोर्टर ने भी अपना मतलब पूरा होते देख अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया

"जरूर...आई विल काल यू.." कहकर मोहतरमा चली गईं

इधर रिपोर्टर का बेटा ये इंटरव्यू देख कर ये समझने की कोशिश कर रहा था कि बंद कमरे में एक समय में एक पुरुष के सामने धन के लिए नग्न होने वाली को वैश्या कहते हैं और सम्पूर्ण विश्व के सामने नग्न होने वाली को.....उसने भी अपने मन में ये वाक्य अधूरा छोड़ दिया।

-तुषारापात®™
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Tuesday, 2 February 2016

नास्तिक

"आप से कुछ पूछना चाहता हूँ"

"हाँ हाँ पूछिये"

"हो सकता है मेरी बातों से आपको अच्छा न लगे..पर मेरे मन में ये बात बार बार उठती है..तो..अगर आपको बुरा लगे तो मैं पहले ही क्षमा माँगता हूँ"

"अरे..ऐसी कोई बात नहीं आप निंसंकोच पूछिये"

"देखिये..मैं एक नास्तिक हूँ..ईश्वर में विश्वास नहीं करता..मूर्ती पूजा धार्मिक कर्मकाण्ड पूजा पाठ इबादत नमाज इन सबको नहीं मानता ...मैंने इससे जुड़े सारे विचारों और सारी मान्यताओं का गहन अध्ययन भी किया है बहुत सारा विरोध भी सहा है...स्वामी विवेकानंद जी का राजा साहब को उनकी तस्वीर के लिए दिया गया वो उत्तर भी जानता हूँ और बुद्ध को मानने वालों को उनकी ही मूर्ति बनाते और पूजते भी देखा है...और ये भी सुना है कि ईश्वर को न मानना भी उसको स्वीकार करने जैसा है"

"मैं आपकी बात तो समझ रहा हूँ..पर ये समझ नहीं पा रहा हूँ कि आप मुझसे क्या पूछना चाह रहे हैं आप खुद ही अपने प्रश्न रख रहे हैं और उत्तर भी स्वयं रख रहे हैं"

"देखिये मैंने पहले ही आपसे कहा था..कि.शायद आपको अच्छा न लगे... पर मेरी परेशानी समझिये...मैं जानता हूँ कि आप धार्मिक और आध्यात्मिक इंसान हैं इसलिए सोचा आपसे...मैंने देखा है आप रोजमर्रा की बातों से कई कहानियाँ बनाते हैं और वो बड़ी कमाल की होती हैं कई बार उन्हें पढ़के मुझे राह सूझ जाती है...मैं बहुत बड़ी बड़ी बातों से ऊब चूका हूँ...ग्रंथों को पढ़ पढ़ कर भी समझ नहीं सका कि इस वक्त मेरी स्थिति क्या है मैं नास्तिक हूँ या नहीं बस यही मैं आपसे समझना चाहता हूँ वो भी कोई ऐसी रोजमर्रा की चीज से समझा दीजिये जो बहुत साधारण सी हो...प्लीज"

"हम्म...लीजिये चाय आ गई...मैं बनाता हूँ आपके लिए...चीनी कितनी एक चम्मच?"

"नहीं मुझे डायबिटीज है...शक्कर नहीं लेता...ऐसे मौकों के लिए सुगर फ्री रखता हूँ जेब में हमेशा...मैं इसकी दो गोलियाँ मिला लूँगा"

"ओह्ह...अच्छा अगर मैं ये कहूँ कि चीनी मात्र एक माध्यम है मीठे स्वाद को पाने के लिए और ये जो मिठास है वही ईश्वर है तो?...आपने चीनी छोड़ दी और स्वयं को नास्तिक घोषित कर दिया पर मिठास तो आप अभी भी चख रहे हैं बस माध्यम बदल दिया है...यही है आपकी स्थिति...लीजिये बिस्किट लीजिए।"

-तुषारापात®™

Sunday, 31 January 2016

मध्यान्ह

अभिमान का सूर्य,सर पे चढ़ के,विनम्रता की परछाई छोटी कर देता है ।

-तुषारापात®™

Friday, 29 January 2016

adultery warning

Seeing of 'MASALA' is injurious to sex -adultery warning

-तुषारापात®™

Thursday, 28 January 2016

साड़ी vs दाढ़ी

'तेल' : 'खाड़ी युद्ध' करवा चुका है और अब 'साड़ी vs दाढ़ी युद्ध' करवा रहा है ।

#शनि_ शिंगणापुर
-तुषारापात®™

Wednesday, 27 January 2016

कुछ नहीं हो सकता इस देश का

"कुछ नहीं हो सकता इस देश का...एक सरकार कुछ कड़े कदम उठाती है ..तो दूसरी पार्टी उन्हीं नियमों का....मुद्दा बनाके ....अगले चुनाव में अपनी सरकार बना लेती है और .....वो सारे कायदे कानून ठन्डे बस्ते में डाल दिए जाते हैं...लोग खुद सुधार नहीं चाहते "तुषार सिंह ड्राइंग रूम में बैठे अपने घनिष्ठ मित्र संजय से बड़ी ज्ञान ध्यान की बातें कर रहे थे

"हाँ..बिल्कुल सही कह रहे हो...तुम तो खूब लिखते रहते हो इन सब बातों पे...दरअसल मैं इसलिए तुम्हारे पास आया था...ऐसे ही एक मुद्दे पे...तुम्हारा एक लेख मिल जाता मुझे तो काम... बन जाता..." संजय ने कहा

"पर तुम्हें क्या जरूरत पड़ गई..मेरे लेख की.." तुषार सिंह ने आश्चर्य से पूछा

"यार..26 जनवरी के एक फंक्शन में चीफ गेस्ट बनके जाना है.. अरे वो अपना मिश्रा है न..उसके ही स्कूल में..तो तेरी लिखी स्पीच मार दूँगा.. और तालियाँ बटोर लूँगा हा हा हा " संजय ने आँख मारते हुए कहा

"हा हा हा...ठीक है ..रुक...अभी लिख देता हूँ..." तुषार सिंह ने हँसते हुए अभी ये कहा ही था कि उनकी पत्नी ट्विंकल की किचेन से आवाज आई

"कुछ जरुरी सामान ला दो पहले..फिर लिखने बैठना..राहुल भी आज नहीं आया है..चार पाँच चीजें हैं..तुम ले आओ प्लीज़..और हाँ भूल न जाओ इसलिए पर्चा बना दिया है"

"क्या यार..तुम्हारा भी न..अच्छा लाओ ला देता हूँ..संजय तू बैठ..चाय पी..मैं अभी आता हूँ..कहकर उन्होंने परचा लेकर जेब में डाला और और टहलते हुए पास की किराने की दुकान पे पहुँच गए और पर्चे की लिखी दस बारह चीजें निकलवा लीं दुकानदार ने पैसे काटे और दूसरा ग्राहक देखने लगा

"अरे..भाई ले कैसे जाऊँगा..कुछ पन्नी वन्नी तो दो.." तुषार सिंह ने दुकानदार से कहा

"भाई साहब..सरकार ने पॉलिथीन पे बैन लगा दिया है...पलूशन बहुत होता है इससे..और कितने पशु इनको खाकर मर जाते हैं"दुकानदार ने कहा

"अरे यार..वो सब तो ठीक है..देखो एक आध पड़ी हो तो दो.." उन्होंने कहा

"न साहब..झोला लेकर चलने की आदत डालिये..वैसे भी पन्नी देने और लेने वाले पर अब सजा भी लागू है..आपकी एक पन्नी के लिए अपनी दुकानदारी चौपट कर लूँ क्या.." दुकानदार और ग्राहकों को डील न कर पाने के कारण झुँझला के बोला

"बात कैसे कर रहा है तू...मुझे क़ानून मत समझा..चुपचाप एक पन्नी में सारा सामान डाल के दे" तुषार सिंह तैश में आ गए और लगे दुकानदार को हड़काने लगे "तू मुझे जानता नहीं..मैं कौन हूँ..बड़ा आया कानून समझाने वाला.. कितने लोगों को मैं ज्ञान देता रहता हूँ..और तू मुझे समझा रहा है"

"ये लो..आप अपने पैसे वापस पकड़ो..पन्नी होती भी तो अब नहीं देता.. और अब सामान भी नहीं दूँगा.. दूसरों को सब ज्ञान देते हैं..पर खुद मानने पे आये तो धौंस दिखाते हैं..."दुकानदार ने गुस्से में पैसे उनको वापस कर दिए और सामान वापस अंदर रख लिया

तुषार सिंह अपना सा मुंह लेकर वापस घर में आ गए..उनकी पत्नी ने पूछा
"अरे सामान नहीं लाये..क्या हुआ ?"

"यार दिमाग मत खराब करो..अभी थोड़ी देर में जाऊँगा..एक कप चाय पिलाओ पहले..और हाँ..एक झोला देना मुझे...कुछ नहीं हो सकता इस देश का" आखिरी पंक्ति बुदबुदाते वो ड्राइंग रूम में चले गए ।

-तुषारापात®™

Saturday, 23 January 2016

नेताजी अमर रहें

नेताजी को सच्ची श्रद्धांजलि देनी है तो ये मत कहिये

"तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा"

ये तो उन्होंने हमसे कहा था अब हम उन्हें अपने जवाब में ये कहें जो वो हम सबसे सुनना चाहते थे

"मैं तुम्हें खून देता हूँ सुभाष! तुम मुझे आजादी दो"

जय हिन्द!

-तुषारापात®™

Friday, 22 January 2016

सड़क का सीना

आज हमारे लखनऊ में माननीय प्रधानमंत्री जी आये जिससे हमारे यहाँ की सड़कें 56 इंच ज्यादा चौड़ी देखीं गईं

-तुषारापात®™

इत्र

"आयत..इश्क इत्र की तरह होता है..ये..जिससे होता है वो तो महकता है...पर जिसे होता है वो ...बस...खाली शीशी सा रह जाता है" अपने हाथ में पकडे खाली ग्लास को उसे दिखाते हुए मैंने कहा

"एक पैग लगाने के बाद...ये शायराना होने की आदत गयी नहीं तुम्हारी... वेद..जानते हो खुश्बू की भी एक उम्र होती है..लगती है..खूब महकती है और.. फिर हवा में गुम हो जाती है..उसे बाँध के नहीं रखा जा सकता.."उसने मेरे हाथ से ग्लास लेकर टेबल पे रखते हुए सूनी आँखों से कहा

"शायद..पर इतने सालों बाद..आज फिर ये खुश्बू मेरे सामने है..और इत्र की खाली शीशी उसे भर लेना चाहती है.." मैंने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की

"वेद..नो..कंट्रोल...योर सेल्फ..मुझे भी बड़ा अजीब लगा था ये जानकर कि तुम और हदीस दोनों एक ही कंपनी में हो...और देखो..एक ही शहर... यहाँ लखनऊ में पोस्टेड हो..आई मीन....मतलब यार..ये कोई फिल्म है क्या... आये दिन किसी न किसी पार्टी में तुमसे सामना हो जाता है.." हदीस पे अपनी नजर जमाये हुए उसने कहा

"जानती हो अब मन करता है...शादी कर लूँ.. तुमसे भी सुन्दर किसी लड़की से ..शायद उसकी कमर में मेरी बाहें देखकर तुम्हें अहसास होगा कि मुझे कैसा लगता है जब हदीस..."बात अधूरी छोड़ के मैंने एक सिगरेट सुलगा ली और उसकी उस लट को देखने लगा जो उसे हमेशा परेशान करती थी

"अच्छा लगेगा..मुझे बहुत खुशी होगी..जल्दी शादी कर लो..तब शायद तुम मेरा दर्द बेहतर समझ पाओगे...शायद...तब भी नहीं" उसने अपनी उस लट को कान पे चढाने की नाकाम कोशिश की..हमेशा की तरह...और मेरे हाथ से सिगरेट छीन के फेंक दी

"वैसे यूँ भी मिलना बुरा नहीं है..इतने सालों बाद फिर से वही कशमकश होती है...कौन सी साड़ी पहनूँ..कैसा मेकअप करूँ...दिल में हल्की ही सही पर एक गुदगुदी तो होती है..कि पार्टी में तुम्हारी आँखें मुझे देख रही होंगी" उसने दाँतो से अपने निचले होठ को हलके से चुभलाते हुए कहा...ये वो तब किया करती थी जब थोड़ा सा शरमाती थी और किसी बात पे थोड़ी अनमनी सी होती थी


"पर मुझे तो तुम विद आउट मेकअप ज्यादा अच्छी लगती हो जैसे सुबह सुबह उठती थीं बिलकुल रॉ ब्यूटी..." पुरानी यादों में चला गया था मैं

"मेरे लिए अभी भी तैयार होती हो..खाली शीशी से...उसकी बची हुई.. खुश्बू भी चुराई जा रही है" मैंने बनावटी शिकायत की

"वेद... एक कबाड़ी के लिए सेन्ट की खाली शीशी बड़ी कीमती होती है"
एक पुकार सी लगी मुझे उसकी इस बात में

मेरी आँखे उसकी आँखों में थीं और मेरे मुंह से बड़ी धीमी आवाज निकली
"काश..ये आयत..मुझपे उतरती"

उसकी पलकों पे ओस उतर आई...उसके होठ मानो मेरे होठों से लगकर.. मुझमें ....इत्र ही इत्र भर देना चाहते थे..पर दूर खड़े हदीस को देखते हुए उसने बस मुझसे ये कहा और मेरे पास से उठकर उसके पास चली गई "आयतें...वेद की नहीं हुआ करती"

#वेद_की_आयत_:_01

-तुषारापात®™

Tuesday, 19 January 2016

बीमार : ठाकुर या लोकतंत्र

"माफ कर दीजिये..मालिक..मालिकन जाते जाते हमसे कह गईं थीं..कि कि...मालिक का हाजमा दुरुस्त नहीं है...खाना हल्का बना के ही देना" रसोइये ने जमींदार साहब के बेंत से खुद को बचाते हुए कहा

"सूअर की औलाद...हमारा हाजमा सही नहीं है...या तू अपनी मर्जी से काम करने लगा है...कुत्ते के पिल्ले..हमें...जमींदार ..ठाकुर भवानी सिंह को... तू ये लौकी टमाटर की सब्जी परोसता है...रसोइये जो तू बाहमन न होता तो आज तेरी खाल खिंचवा लेता मैं" ठाकुर गुस्से से उसपे बेंत बरसाते हुए बोला

"गलती हुई गई...अरर..आगे से नहीं होगी..मालिक" रसोइया ठाकुर के पैर पकड़ के बोला,ठाकुर ने फिर भी उसे पीटना बंद नहीं किया मारते मारते उससे कहा "तू हमारा नौकर है...या मालिकन का...तुझे हमसे पूछना चाहिए था...तू भूल गया ठाकुरों के यहाँ चाहे औरतें हो या दलित दोनों की कीमत इन लौकी तुरई से ज्यादा कुछ नहीं है..और तू हमें यही सब्जियां खिलाने चला था..दूर हो जा हमारी नजरों से नहीं तो..."

रसोइया जल्दी से उठा और जैसे कोई हिरन शेर के जबड़े से निकल कर भागता है उससे भी तेजी से वो अपने लड़के को लेकर हवेली से बाहर दौड़ गया, जमींदार की क्रूरता और शौक का ये अद्भुत रूप घर के सभी नौकर चाकर और घर की औरतें भी देख रहीं थीं पर सब चुप थे सहमे थे पर मन ही मन आक्रोशित थे

और जैसे कि कहते हैं वक्त के पैर नहीं होते वो एक साँप की तरह रेंगते रेंगते अपनी केंचुल उतार के बदल जाता है वैसे ही अब ठाकुर भवानी सिंह बुढ़ा चुके हैं जमींदारी खत्म हो चुकी है देश आजाद हो चूका है धन सम्पदा की स्थिति बूढ़ी वैश्या के कोठे सी है ठाकुर अपनी बीमारी के कारण एक तीन टाँगों वाले अपने खानदानी पलंग पे पड़े हैं और एक दलित डॉक्टर के रहमोकरम पे हैं

"ठाकुर साहब..आपके इलाज में दवा से ज्यादा..परहेज की जरूरत है.. आप अपने खान पान में विशेष सावधानी बरतिये...सिर्फ उबली लौकी खाइये जरा सा भी मिर्च मसाला आपको भवानी माँ से मिलवा सकता है" चेहरे पे एक कुटिल मुस्कान लिए वो उनसे कहता है और ठाकुर असहाय से उसे जाते हुए देखता रह जाता है

डॉक्टर ठाकुर की पुरानी हवेली से बाहर निकल के कुछ दूर चलता है और एक विशाल मकान में आ जाता है एक व्यक्ति उससे पूछता है "क्या हाल है ठाकुर के..मरा नहीं अभी तक... खाने में लौकी ही बताई है न ...हमारे बाबूजी को इसी लौकी के कारण ...पीट पीट कर निकाल दिया था ससुरे ने.. "

"राम बाबू ..चिंता न करो..सब कुछ तुम्हारे बताये अनुसार ही कर रहा हूँ..ठाकुर को न मरने दूँगा..और न ही..जीने दूँगा.. मैं जानता हूँ कि उसके ठीक होने के लिए ये...लौकी तुरई के साथ साथ ...प्याज लहसुन और हल्के मसाले की सब्जी भी बहुत जरुरी है....पर मैं ये बात उसे कभी नहीं बताऊँगा..बस तुम हमारा ख्याल रखो आखिर हमारे जैसों दलितों के नाम पे ही तुम विधायकी जीते हो " डॉक्टर ने सच बात चापलूसी वाली जबान में हँसते हुए कही

"अपनी चिंता तुम हमपे छोड़ दो...बिल्कुल न डरो....बस इस ठाकुर को ऐसे ही तड़पाओ..और इसकी भनक भी इसे बिलकुल न लगने देना...कि इसकी सेहत के लिए सारी सब्जियाँ बहुत जरुरी हैं... इसके यहाँ लौकी तुरई..दलित के जैसे अछूत थे न...अब तुम प्याज लहसुन जैसे सवर्ण को उसके यहाँ ऐसे ही दलित बनाये रहो...बस तुम ठाकुर को बीमार बनाये रखो ..और मैं इस लोकतंत्र को.."

-तुषारापात®™
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Monday, 18 January 2016

नमाज या अंदाज

तू खुदा बदल/मस्जिद बदल/नमाज़ बदल
होगी दुआ पूरी/बस जरा अपने/अंदाज बदल

-तुषारापात®™

Sunday, 17 January 2016

सोया आलू

मुझे अपनी माँ के हाथ की बनी सोया आलू की सब्जी (सोया मेथी वाला सोया) लेकिन बगैर मेथी के बहुत पसंद है जब तक उसका सीजन रहता है मैं बहुत चाव से उनसे बनवा के खाता रहता हूँ।

बस मेरी उनसे हर बार एक ही शिकायत रहती है कि वो उसमे आलू कम और सोया ज्यादा से ज्यादा रखें पर वो चाहें जितना भी कम आलू रखें ज्यादा ही हो जाता है,उनसे जब भी पूछता तो वो हँस के कहतीं पता नहीं कम तो करती हूँ पर बनने के बाद सब्जी में आलू ही आलू दिखता है सोया न जाने कहाँ गायब हो जाता है । मुझे एक समय ये तक लगने लगा की वो जानबूझ कर आलू तो नहीं डाल देतीं कि शायद कहीं उन्हें ऐसी ही सब्जी पसंद हो।

आख़िरकार इसके पीछे का कारण तलाशने का मैंने सोचा और उनसे पूछा की ऐसा क्यों हो जाता है ? बातों बातों में मुझे ये रहस्य समझ में आ गया जब उन्होंने ये बताया "बेटा तुम्हारे पापा को भी ये सब्जी बहुत पसंद थी पर वो इसमें आलू ज्यादा पसंद करते थे और अगर सोया ज्यादा हो जाये तो वो काफी गुस्सा हो जाते थे यहाँ तक कि खाना छोड़ के उठ जाया करते थे तो उनके हिसाब की सब्जी 40 साल से बनाते बनाते अब आदत ऐसी पड़ गयी है कि मैं चाहे जितना भी आलू कम करना चाहती हूँ कम कर नहीं पाती।"

फिर मैंने पूछा की नाना जी के यहाँ भी तो बनती होगी ये सब्जी वहाँ कैसी बनती थी आखिर आप मायके में इतने साल रही हैं वहाँ की भी कुछ आदतें रही होंगी ? उन्होंने कहा " नहीं वहाँ ये सब्जी बनती ही नहीं थी क्यूंकि तुम्हारे नाना जी को सोया आलू बिलकुल भी पसंद नहीं था, मैं और माँ कभी कभार मेरी मौसी मतलब तुम्हारी नानी की बहन के यहाँ जब जाते थे तो वहाँ सोया मेथी आलू की सब्जी खाने को मिलती थी जो हम दोनों को बहुत पसंद थी।"

इतना कहकर वो अपने किचेन के काम में लग गयी और मैं बस सोचता रह गया की माँ को सोया मेथी आलू पसंद है एक तो ये बात ही मुझे पता नहीं थी ऊपर से मैं उनसे इस उम्र में उनकी 40 साल से पड़ी आदत के विरुद्ध जाने की एक तरह से ज़िद करता रहा और तो और खुद माँ ने पिछले 40 सालों से अपनी पसंद की सोया मेथी आलू की सब्जी चखी भी नहीं।

शायद ये बात आपको बहुत छोटी लगे पर मेरे लिए ये बहुत ही सोचने वाली बात हो गयी पूरी रात मैं भावुक होकर सोया आलू की सब्जी और दीपिका पादुकोण की माय चॉइस में उलझा रहा।

सच में एक नारी स्वयं को अपने पिता के अनुसार फिर पति के अनुरूप और उसके बाद अपने बच्चों के हिसाब से अपने को कितनी सहजता से ढाल लेती है और उसके बाद भी अपने बच्चों के बच्चों के लिए भी वो एक नया रूप ले लेती है पर हम पुरुष ये बहुत ही महत्वपूर्ण बात कभी समझ ही नहीं पाते हम बस पिता,पति और पुत्र के रूप में उसपे अधिकार जमाते रहते हैं।

अब अगर आप कभी भी महिला अधिकार/बराबरी/आरक्षण की बात को समर्थन दें तो उसे संसद में उठाने/लागू कराने की बात से बहुत पहले अपने घर से शुरू करियेगा यकीन मानिये संसद में खुद ब खुद लागू हो जायेगा।

(आज फिर से सोया आलू की सब्जी घर में बनी है तो ये पुरानी पोस्ट आप सबके साथ शेयर कर रहा हूँ आप भी इसे निसंकोच शेयर कर सकते हैं इस सोये आलू से शायद हम जाग सकें ।)

-तुषारपात®™

Saturday, 16 January 2016

जुखाम-ए-इश्क

नए साल की
ये सीली सीली जनवरी
रगों में मई-जून की आंच भर रही है
सांसों की चिलम से
छूट रहा है धुआँ ही धुआँ
संभल के रहना ए दिल
जुखाम-ए-इश्क का मौसम है
मर्ज़ से ज्यादा
इलाज़ जानलेवा है इसका ।

-तुषारापात®™

Monday, 11 January 2016

वजीर

"वजीर वजीर.."
"जी हुज़ूर..."
"इन दोनों में चोर का पता लगाओ"

ये चार पुर्चियों वाला खेल हम सबने अपने बचपन में जरूर खेला होगा,ऐसा ही एक खेल है विधु विनोद चोपड़ा की नई फ़िल्म 'वजीर' में बस अंतर इतना है कि इसमें आपको वजीर का पता लगाना है फ़िल्म में सस्पेंस बहुत साधारण रखा गया है शायद इसलिए कि सभी इसे आराम से समझ सकें

मूल कहानी विधु विनोद चोपड़ा की लिखी है और बढ़िया लिखी गई है
पूरी फिल्म शतरंज की बाजी तरह बिछाई गई है अमिताभ बच्चन साहब की अदाकारी बेहतरीन है और वो ही इस पूरी फ़िल्म की रीढ़ हैं बाकी फरहान अख्तर भी अपनी बढ़िया छाप छोड़ने में सफल रहे हैं कसा हुआ निर्देशन और सस्पेंस आपको फिल्म से जोड़े रहता है हाँ आखिर के बीस पच्चीस मिनट जो सबसे अहम होते हैं किसी भी फिल्म खासतौर पे सस्पेंसिव मूवी के लिए वहाँ फिल्म ढीली पड़ जाती है जो थोड़ा सा जायका फीका करती है

देश के दुश्मनो का पीछा करते हुए एक एंटी टेररिस्ट स्क्वाड ऑफिसर अपनी मासूम बच्ची को खो देता है उसका दुःख उसकी पीड़ा आपके मन को हिला के रख देगी आगे वो कैसे अमिताभ बच्चन अभिनीत चरित्र पंडित जी के संपर्क में आता है कैसे वो समाज में छुपे सफ़ेदपोश
आतंकवादियों की तह तक पहुँचता है और कैसे पंडित जी के व्यक्तिगत बदले को पूर्ण करता है पूरी फिल्म इसी पर दौड़ती जाती है

निर्माता/कहानीकार ने कोई भी धार्मिक टकराव न हो इसके लिए पड़ी चालाकी से एक मुस्लिम नकारात्मक चरित्र यजाद कुरैशी के सामने एक मुस्लिम नायक दानिश अली को ही रखा है वरना ये फिल्म पंडित जी और कुरैशी के टकराव के कारण हिन्दू मुस्लिम टकराव की कहानी बन सकती थी

यजाद कुरैशी जैसे चरित्र वास्तविक और यहाँ इस आभासी संसार (फेसबुक) में भरे पड़े हैं जो मुँह पे और अपनी पोस्ट में तो बड़ी भाईचारे वाली बातें कहते हैं पर असल में हद से ज्यादा कट्टर और नफरत फ़ैलाने वाले होते हैं जब आप ये फिल्म देखेंगे तो ऐसे कई फेसबुकिया चरित्र आपके सामने खुद ब खुद आ जायेंगे इस चरित्र के लिए ये फिल्म आप जरूर देखें

अमिताभ साहब के निभाए चरित्र पंडित जी का ये डॉयलाग मुझे बहुत पसंद आया :
"चाल का कोई नहीं चालचलन है
दोगलापन ही यहाँ एक नियम है"

ऐसे ही दोहरे व्यक्तितव वाले लोगों से आप स्वयं को बचाएं रखें उनकी चिकनी चुपड़ी बातों में न फंसे अपने विवेक का प्रयोग करें इसी कामना के साथ 'वजीर' को ये शब्दों का एक अदना प्यादा अपनी शह देकर सफेदपोशों को मात देता है।

-तुषारापात®™

Saturday, 9 January 2016

मसीहा मुर्गा

"कुक्डुँ.कूँ..कुक्डूँ...कूँSSSS" मुर्गे की एक बाँग के साथ ही गाँव में चहल पहल शुरू हो गई, लोगों ने बाँग लगाने वाले मुर्गे के विशाल दड़बे के सामने मत्था टेका उसे दाने खिलाये और उसके बाद चौक की तरफ तेज क़दमों से आने लगे

"मारो..मारो..इसे पत्थरों पत्थरों पीट डालो...इसने हमारे मसीहा का अपमान किया है...फाँसी..दो..फाँसी...दो"चौक पे बढ़ती जाती भीड़ रस्सियों से पूरी तरह बंधे एक आदमी को पत्थर मार मार कर नारे लगा रही थी

"तुम सब..सब पागल हो..अंधे हो चुके हो..तुम्हारी आँखों के सामने सच है..फिर भी तुमने आँखें मूँद रखी हैं..बहुत पछताओगे सबके सब..बहुत पछताओगे.."पत्थरों की चोट से लहुलुहान हुआ आदमी अपने जख्मों की परवाह किये बगैर उन सबसे चिल्ला चिल्लाकर कह रहा था

"अंधे हम नहीं तू है...तूने हमारे मसीहा..हमारे पैगम्बर...को सूरज से छोटा कहा..जानता नहीं सूरज उसका गुलाम है..तुझे तो सजाये मौत मिलेगी" भीड़ में से एक रौबदार आदमी बोला,जो चाल ढाल से गाँव का मुखिया सा लग रहा था उसकी आवाज आते ही भीड़ नारे लगाना छोड़ के चुप हो गई और उन दोनों की बातें सुनने लगी

"हा हा हा..सूरज और उसका गुलाम...उस अदने का..सूरज जिससे पूरी दुनिया में रौशनी होती है..जिससे हम सबको खाना मिलता है..जिससे दिन शुरू होता है..मूर्ख हो तुम सबके सब..मूर्ख...जाहिलों थूSSSS" न जाने उस आदमी में इतनी हिम्मत कहाँ से थी जो इतनी चोट खाने के बाद भी वो दहाड़ रहा था

मुखिया जैसा शख्श गुस्से से तिलमिला गया "तेरी इतनी हिम्मत...तू कहता है दिन सूरज से शुरू होता है..मरेगा तू..अभी और यहीं मरेगा तू.. तेरी लाश के टुकड़े टुकड़े किये जाएंगे" कहकर उसने तलवार निकाल ली और देखते ही देखते उस आदमी का सर काट डाला

"मसीहा ! मसीहा!" भीड़ ख़ुशी से हाथ उठा उठा कर आवाज लगाने लगी, मुखिया जैसे शख्श ने भीड़ की बात समझ ली,उसने मरे हुए आदमी का सर बालों से पकड़ के उठा लिया और चलने लगा भीड़ उसके पीछे पीछे चलने लगी सारे लोग मुर्गे के विशाल दड़बे के सामने जा कर रुके

"हे हमारे रहनुमा..पाक पैगम्बर..हम सबके दयालु मसीहा...एक पापी कहता था कि आपका गुलाम ये अदना सूरज आपकी नहीं बल्कि अपनी मर्जी से चलता है..उसपे आपका कोई बस नहीं है..जबकि हम सब जानते हैं कि वो आपकी एक आवाज पे निकल आता है और एक गुलाम की तरह हमारे लिए दिन भर की खुशियाँ लाता है..आपकी शान में गुस्ताखी करने वाले उस आदमी का सर हम तुझे तोहफे में देते हैं..हम सब पर तेरी रहमत यूँ ही बनी रहे..मेरे मालिक..मेरे ताकतवर मसीहा" मुखिया जैसे उस शख्श ने कटा हुआ सर दड़बे में डाल दिया

"कुकड़ूँ ..कूँ" मुर्गे ने आवाज लगाई और पूरी भीड़ ने मत्था टेक दिया।

-तुषारापात®™

Wednesday, 6 January 2016

प्रधानमंत्री और चूड़ियाँ

"प्रधानमंत्री जी...ये चूड़ियाँ...ये चूड़ियाँ..मैं नहीं तोड़ूँगी...नहीं तोड़ूँगी...
ये मेरे वीर पति ने..कुछ दिन पहले ही पहनाई थीं..ये चूड़ियाँ मैं आपको देती हूँ..मैं विधवा बनके नहीं जीना चाहती...आपको मेरे पति से भी बड़ा कोई वीर मिले तो..उससे कहियेगा मुझे पहना दे आकर.."शहीद की बेवा ने रोते रोते लेकिन घुटे हुए गुस्से में जोर से चीखते हुए मुझसे कहा और अपनी कलाइयों से चूड़ियाँ उतार कर मेरी तरफ उछाल दीं

आतंकी हमले में शहीद हुए जवानों के दुःखी परिवारों से मिलने गया था वहीँ ये घटना हुई...सारा मीडिया भी वहाँ मौजूद था...सारे चैनल पूरे दिन भर ये रिकॉर्डिंग बार बार चलाते रहे...वो भी इस पंक्ति के साथ.."शहीद की बेवा ने प्रधानमन्त्री को चूड़ियाँ पहनने को दीं"..मैं अपने कार्यालय में वापस आकर टीवी देख रहा था सारा स्टाफ सकपकाया सा बाहर था..टीवी बंद करके मैं सोचता रहा..सोचता रहा... उस चौबीस साल की शहीद विधवा की आवाज मेरे कानो में गूँजती रही.....

"नायर साहब को भेजिए..मैंने इंटरकॉम उठाया और एक नंबर दबा कर कहा..कुछ ही देर में दरवाजा हलके से थपथपाया गया.."आ जाइये" नायर साहब सामने थे उनको आगे की कार्यवाई मैंने बताई

"लेकिन..पी.एम.सर..आप समझ रहे हैं..न..इससे बहुत जन आक्रोश उछल सकता है.. खासतौर पे मुस्लिम समाज का.."उन्होंने मधुरता से मुझे चेताने का प्रयास किया

"नायर साहब..जो जवान शहीद हुए क्या वो किसी धर्म के लिए शहीद हुए थे..वो शहीद हुए थे....भारत के लिए...अपनी मातृभूमि के लिए...किसी मजहब के लिए नहीं...जिसे जो आक्रोश उठाना है उठाने दीजिये..आप मेरे इस आदेश को त्वरित रूप से लागू करने की व्यवस्था कीजिये..गृह मंत्रालय को इसकी प्रति तत्काल भेजी जाए" कहकर मैंने उन्हें जाने को कह दिया

"हाय हाय..प्रधानमन्त्री हाय हाय.." मेरा आदेश पारित हो चूका था और जैसे लोग तैयार ही बैठे थे,दिल्ली से लेकर बंगाल केरल तक पूरे देश में मेरे विरुद्ध जुलूस निकाले जा रहे हैं..विपक्षी दल भी इस स्थिति को भुनाने में लगे हैं..संसद नहीं चलने दी जा रही हैं..मेरा बयान माँगा जा रहा है.. मीडिया मुझे तानाशाह का ख़िताब दे रही है और देश का बुद्धिजीवी साहित्यकार वर्ग इसे अमानवीय व्यवहार बता बता के अपना विरोध जता रहा है पर मैंने अपना आदेश वापस नहीं लिया,मैं संसद में भी कोई बयान नहीं दूँगा..आज मन की बात कहूँगा...

"देशवासियों..इधर कुछ दिनों से..पूरे देश में मेरे एक आदेश के विरुद्ध बहुत कुछ चल रहा है...पर मैं पूछता हूँ..आप सब लोगों से...आप बताइये कि मारे गए आतंकवादियों के शवों को दफ़नाने की बजाय जलाने का आदेश देकर मैंने कौन सा अपराध कर दिया... अगर आतंकवाद का कोई मजहब नहीं है.. तो हम आतंकवादियों के शवों का अंतिम संस्कार जैसे चाहे करें.. मैं पूछता हूँ आज समुदाय विशेष से वो आतंक का मजहब बताएं.. एक आतंकवादी जब अपने जननांगों पे पत्थर बाँध कर बम के साथ खुद को उड़ा देता और सैकड़ों मासूमों की जान ले लेता है फिर भी सोचता है कि वो जन्नत में बहत्तर हूरों के साथ इश्क करेगा.. हमने उसकी इस सोच पे हमला किया है.. जब उसका अंतिम संस्कार ही..उसके मजहब के हिसाब से ...नहीं होगा तो जन्नत कैसे पहुँचेगा?..अब अगर कोई उनकी इस सोच को सहयोग दे रहा है तो क्या माना जाय... क्या ये माना जाय कि आतंक का मजहब है...उनकी सोच को साथ देने वाले लोगों को देशद्रोही माना जाय... अगर आतंकवादियों की इस सोच को समुदाय विशेष का सहयोग न मिले तो क्या इनकी इतनी हिम्मत होगी ... नहीं होगी...बिलकुल भी नहीं...
आखिर हम सब आतंक के खिलाफ एक जुट क्यों नहीं खड़े हैं....

पश्चिमी देशों में जब कोई ऐसा हमला होता है तो सारे राजनीतिक दल .. पूरी मीडिया...पूरी जनता एक सुर में उसका विरोध करती है और अपनी सरकार को पूरा समर्थन देते हैं जिससे वो अपने देश पे हुए हमले का उत्तर शीघ्र दे पाते हैं.. पर अपने यहाँ.. सरकार को उलटे घेरने का काम किया जाता है... जिन आतंकवादियों को जिन्दा जला देना चाहिए उनके शवों के जलाने पे इतना हो हल्ला..
बहनो और भाइयों..आपके प्रधानमन्त्री ने चूड़ियाँ नहीं पहनी हैं..पर उसके हाथों में...और पैरों में अपने ही लोगों की पहनाई बेड़ियां हैं.. उसे बाहर युद्ध करने से पहले अपने देश के आधे लोगों से लड़ना पड़ता है .. पर अब चाहे कुछ हो जाए इस समस्या को अब जड़ से मिटाना ही होगा.... मेरे इस आदेश से देश और सम्पूर्ण विश्व को अब पता चल गया है कि कौन कौन आतंक के विरुद्ध हैं और कौन आतंकवाद और आतंकियों के पक्ष में है... मजहब के नाम पे आतंक का किसी भी प्रकार का यहाँ तक कि मौखिक समर्थन करने वाले भी..सभी लोग गिरफ्तार होंगें .......
अब हमारी लड़ाई आसान है और इसे हम ही जीतेंगे... जय हिन्द!"

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Tuesday, 5 January 2016

विक्रम और बेताल: लोकतंत्र

"विक्रम..फिर आ गया तू छप्पन इंच की छाती लेकर....अपनी हठ छोड़ दे..तू मुझे नहीं ले जा पायेगा..."पेड़ पे उलटे लटके लटके ही बेताल बोला

विक्रमादित्य ने जरा सी देर में ही ही उसे पकड़ लिया और सीधा करके अपने कंधे पे बिठा लिया और अपने राज्य की तरफ चल दिए,आदतानुसार बेताल एक नई कथा सुनाने लगा:

"एक विशाल राज्य जिसके अधीन बहुत सारे छोटे छोटे राज्य हुआ करते थे वहाँ बहुत सारे लोग रहते थे...वे दो वर्गों में विभाजित थे एक वर्ग था बहुसंख्यक और दूसरा था अल्पसंख्यक..और सुन विक्रम उस विशाल राज्य के राजा का चुनाव जनता के बहुमत द्वारा किया जाता था जिसे वो लोकतंत्र कहते थे" बेताल ने ऐसे कहा जैसे कोई बहुत अनोखी बात कही हो

"एक बार उन्हीं छोटे राज्यों में से एक 'उत्तर' राज्य में कुछ बहुसंख्यकों ने अपने पवित्र पशु की हत्या के आरोप में एक अल्पसंख्यक की हत्या कर दी.... राज्य में हाहाकार मच गया..नगर नगर ढिंढोरा पीटा गया...लोग राजा के शाषन पे उँगलियाँ उठाने लगे.. राज्य के विद्वानों ने विरोध स्वरुप राज्य से प्राप्त पुरुस्कार राजा को वापस कर दिए..छोटे राज्य के अधिपति ने मारे गए व्यक्ति के परिवार को एक बड़ी धनराशि प्रदान की..कई दिनों तक सम्पूर्ण राज्य में उथल पुथल रही..कुछ लोग ये भी कहते पाये गए कि आगामी चुनाव के कारण ये सब किया गया"कहते कहते बेताल ने विक्रमादित्य की तरफ देखा पर वो शांत भाव से उसे लादे लिए जा रहे थे

"फिर एक दिन उसी राज्य के अधीन 'वाम' राज्य में बहुत सारे अल्पसंख्यकों ने अपने धर्म के अपमान के विरोध लूटपाट, हत्या आदि कीं..पर इस बार कहीं कोई कोलाहल सुनाई नहीं दिया..किसी ने ढिंढोरा तो क्या मंजीरा तक न बजाया ....इस बार भी कुछ समय उपरान्त चुनाव थे..पर इस बार उस राज्य के किसी विद्वान ने कुछ भी वापस नहीं किया"

"बता..विक्रम ऐसा क्यों हुआ..राज्य में एक ही कानून था पर इस बार वहाँ कोई कोलाहल नहीं हुआ..कोई पुरुस्कार वापस क्यों नहीं हुआ....?
बता विक्रम..बता..जानते हुए भी अगर तूने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तेरे सर के सौ टुकड़े हो जायेंगे"

"बेताल...क्योंकि..लोकतंत्र में लाखों अल्पसंख्यक जब मुठ्ठी भर बहुसंख्यकों को जान से मारते हैं..तब भी वो अल्पसंख्यक ही कहलाते हैं और राज्य अल्पसंख्यकों के हित के लिए बाध्य है"

"हा हा हा हा..विक्रम तू बहुत असहिष्णु है..तुझसे चुप न रहा गया..ले मैं फिर चला...उल्टा लटकने को उसी विशाल राज्य के लोकतंत्र की तरह" अट्टहास करता बेताल उड़ चला।

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Thursday, 31 December 2015

बूढ़ा दिसंबर और इक्कीसवीं सदी का सोलहवाँ साल

"ब्लू आईज हिप्नोटाइज तेरी करती हैं मैनू......." बूफर पे धमकती हुई आवाज पास आती जा रही थी,कुण्डी लगा कर वो दरवाजे से पीठ लगाकर बैठ गई..डर के मारे उसने अपनी साँसे तक थाम सी रखी थीं कि तभी..ठक-ठक..ठक-ठक..ठक-ठक..ठक-ठक जूतों की आहट से रात चीख उठी..कार से उतर के चार लड़के दरवाजे तक आ चुके थे

"दरवाजा खोलो..नहीं तो तोड़ देंगे..तू क्या सोचती है..ये पतले लकड़ी के दो पल्ले तुझे बचा लेंगे.."नशे में धुत एक आवाज आई

"अरे...सदी..कौन..लोग...हैं..ये" खाँसते खाँसते बहुत मुश्किल से बूढ़े दिसंबर ने पूछा

"बाबा..ये वही लड़के हैं..जो रोज मुझे छेड़ते रहते हैं..आज नए साल पे..मुझे अपने साथ ले जाने आये हैं..बाबा..मुझे बचा लो..ये बहुत गंदे हैं.."डरते डरते सदी ने बूढ़े दिसंबर से कहा

"हा हा हा ..ये बूढ़ा तुझे क्या बचाएगा..ये तो साला..खुद मर रहा है.. आ जा रानी..मजा करेंगे.." कहते हुए चारों ने दरवाजे को जोर का धक्का दिया..दरवाजे की कुण्डी निकल गई और वो चारों अंदर कमरे में आ गए

"हाय..क्या लग रही है ये..देख तो.." एक लड़के ने दूसरे को कोहनी मारते हुए कहा

"लगेगी क्यों नहीं..पंद्रह की पूरी हुई है आज..फुल माल बन गई है..देखो तो क्या उठान है.." दूसरे लड़के ने उसके वक्षों को देखकर अपनी जबान से होठों को चाटते हुए कहा, चारों लड़के धूर्तता से ठहाके लगा लगा के हँसने लगे और उसकी तरफ बढ़ने लगे

"दूररररर..हटो..कमीनो मेरी..बच्ची...बच्ची...से" बूढ़ा अपनी पूरी ताकत इकट्ठी कर चिल्लाया

"हट बुढ्ढे..तेरी तो..ये ले साले.." तीसरे ने बिअर की बोतल बूढ़े के सर पे दे मारी बूढ़े के खून से कमरे की दीवार पर मौत की चित्रकारी हो चुकी थी बूढ़ा वहीँ ढेर हो गया

"न...हींSSSSSS" सदी ने चीखना चाहा पर उनमें से एक लड़के ने उसका मुँह दबा लिया चौथे ने उसकी शर्ट खोलने को हाथ आगे बढ़ाया तो तीसरा बोला " अरे नहीं यार...यहाँ नहीं..यहाँ साली बहुत गर्मी लगेगी..कार में ले चल इसे..न्यू इयर के इस गिफ्ट को ..ए सी में खोलेंगे" ड्रग्स और शराब की गर्मी के आगे सर्दी बेकार जो थी

चारों ने उसे उठा लिया और कार की पिछली सीट पे जाकर पटक दिया
.. कार स्टार्ट हुई..ए सी..चालू हुआ....और "चार बोतल वोडका काम मेरा रोजका.." गाने की तेज आवाज में चारों लड़को को लड़की की चीखें भी सुरीली लगने लगीं

रात के बारह बज चुके हैं..लोग जश्न में डूबे हैं ... पंद्रह के आसपास की उमर के चार लड़के कार में एक लड़की के साथ 'एन्जॉय' कर रहे हैं
बूढ़ा दिसम्बर मर चूका है...इक्कीसवीं 'सदी' को सोलहवाँ साल अभी अभी लगा है।

-तुषारापात®™

Tuesday, 29 December 2015

आखिरी तमन्ना

तुमने कभी कहा था मुझसे -

"यूँ तो तुम
नहीं जानते मुझे
एक रिश्ता है तो हमारे बीच
एक बार कुछ लिख के
कलम छिड़की थी तुमने
स्याही की गिरी एक बूँद
जो आवारा रह गयी
वही हूँ मैं
तुम्हारे किसी ख़त का
कोई लफ्ज़ न हो सकी
किसी कलाम में छपती
तो मुकाम पा जाती
बस एक
आखिरी तमन्ना पूरी कर दो
तुम्हारे होठों पे एक नुक़्ता बनके ठहरना चाहती हूँ"

कुछ बोल नहीं पाया था तुमसे उस दिन
बस इतना कहना था-

"तुम्हारी
आखिरी तमन्ना वाले दिन के बाद से ही
मेरी ठोड़ी पे एक काला तिल इठलाने लगा है"

- तुषारापात®™
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Thursday, 24 December 2015

बड़ा दिन

"छोटू...छोSSटू..जाग बेटा..देख तेरे लिए कितना अच्छा अच्छा खाना लाइ हूँ मैं" सुबह के चार बजे कुसुमिया अपनी झोपड़ी में वापस आकर अपने बेटे को जगा रही थी

"खा..ना...माँ..खाना बन गया.." पिछली रात से भूखा सोया छोटू खाने के नाम पे ओढ़े हुए चीथड़े हटाकर एकदम से उठकर बैठ गया

कुसुमिया पन्नी में भरी नान,पूड़ी,कचौड़ी आलू,पनीर की सब्जी,सलाद और भी जो था सब कुछ जल्दी से एक अखबार पे पलटकर उसे खिलाने लगती है "ये ले..खूब पेट भर के खा मेरे लाल"

"अरे वाह माँ..आज तो बहुत अच्छा खाना है..अरे इसमें तो पनीर भी है..माँ देखो इत्ते सारे पनीर" छोटू खुशी के मारे खाने पे टूट पड़ा कुसुमिया उसे प्यार भरी नजरों से खाना खाते देखती रही

"माँ..इत्ता अच्छा खाना कहाँ से मिला..." छोटू ने उँगलियाँ चाटते हुए पूछा

"आज बड़ा दिन है बेटा..वही की दावत से लाइ हूँ " कहकर याद करने लगी कि अभी थोड़ी देर पहले चढ्ढा साहब के बंगले के बाहर फेंकी गई पत्तलों से कितनी मुश्किल से वो अपने जैसे कितने लोगों से झगड़ते हुए ये सब उठा के लाइ है

"माँ ये बड़ा दिन क्या होता है..कोई त्यौहार है क्या.." छोटू ने पूछा

"हाँ..लल्ला..आज के दिन संता भगवान आते हैं और सबको खाना देकर जाते हैं" अपने को सँभालते हुए उसने जवाब दिया

"पर..अपने यहाँ..कोई संता भगवान क्यों नहीं आते माँ..छोटू पनीर का टुकड़ा कुतरते हुए बोला

कुसुमिया एक पुरानी रात को याद करते हुए आह से भरी आवाज में बोली "आते हैं न बेटा..एक रात आये थे..मेरी झोली में तुझे डाल कर चले गए थे..25 दिसंबर की वो रात ऐसी ही थी" (मन ही मन सोचती है कि हम जैसे लोगों का बड़ा दिन 26 दिसंबर को होता है जब 25 दिसंबर को बड़े साहबों का फेंका हुआ खाना हमें मिलता है और कभी कभी उनकी जबरदस्ती से..बच्चे भी...)

"पच्चीस दिगम्बर को ही बड़ा दिन होता है क्या माँ...तुम क्यों नहीं मनाती ये वाला त्यौहार..माँ..और त्यौहार पे तो सब अच्छे अच्छे कपड़े पहनते हैं न माँ तुम कब अच्छे कपड़े पहनोगी" छोटू खाना खाते ही जा रहा था और साथ साथ बोलता भी जा रहा था "माँ..मैं जब बड़ा हो जाऊंगा तो तेरे लिए नए नए खूब सारे कपड़े लाऊँगा..बिलकुल चढ्ढा साहब वाली मेम साहब के जैसे"

"गरीबों के छोटू..बड़े तो होते हैं पर कभी...बड़े आदमी नहीं हो पाते.......... बेटा..दुनिया के इस कैलेंडर में तेरी माँ गरीब फरवरी की तरह है उसके यहाँ कभी कोई 25 दिसंबर पैदा नहीं होता" कड़वा सच बुदबुदाते हुए उसने मीठे छोटू को गले से लगा लिया ।

-तुषारापात®™

Wednesday, 23 December 2015

विनम्रता और दक्षता

विनम्रता कहती है कि स्वयं को सबसे नीचा स्थान देना चाहिए और दक्षता कहती है हाँ मगर इस तरह के सबके आधार आप हों ।

-तुषारापात®™
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प्यार का फार्मूला

प्यार को नापने वाला सूत्र लिखिए :-
चक्रवृद्धि ब्याज प्राप्ति का सूत्र आपको याद ही होगा

A = P ( 1 + r/n )nt (nt यहाँ इसकी पॉवर है गुणन नहीं)
तो P=A/(1+r/n)nt ........................................(i)

तो दिए गए उपरोक्त समीकरण के हिसाब से
प्यार यानी P = A/(1+r/n)nt
जहाँ A ऐशोआराम,r रकम प्राप्ति की दर, n नखरों की संख्या और t बर्दाश्त करने का समय है ।
अब आप सब अपने अपने प्यार को इस सूत्र पे रख के नाप लीजिये ;)

-तुषारापात®™

Monday, 21 December 2015

कैलेंडर

एक कील पे तुमने
पूरा कैलेंडर टाँग रखा है
जिस्म के कैलेन्डर में
कुछ तारीखें चुभती हैं
यहाँ कीलों की तरह

-तुषारापात®™

नपुंसक बलात्कारी

अंग्रेजी में एक अलंकार होता है oxymoron दो विरोधी अर्थ रखने वाले शब्दों का एक साथ प्रयोग जब होता है तो उसे oxymoron अलंकार कहते हैं जैसे open secret, bitter sweet यानी इसे विरोधाभास अलंकार कह सकते हैं ।
कल मीडिया में एक शब्द सुनाई दिया तो यही अलंकार याद आया शब्द था 'नाबालिग बलात्कारी' काफी देर तक दिमाग इस शब्द में उलझ के रह गया 16 दिसंबर का वो दर्दनाक हादसा जहन में फिर जिन्दा हो गया फिर एक oxymoron मेरे मन में भी आया अब आप लोग बताइये कितना सही है :
नपुंसक समाज में बलात्कारी आते कहाँ से हैं ?

-तुषारापात®™
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Friday, 11 December 2015

ऐ मकड़ी जरा चलके दिखा

"ए मकड़ी ..चलके दिखा"-खचाखच भरे कोर्ट में वकील साहब ने अपनी मध्यम लेकिन सधी हुई आवाज में अपने हाथ में पकड़ी एक टेरेंटुला मकड़ी (आम मकड़ियों से काफी बड़ी होती है ) को जमीन पे छोड़ते हुए उससे कहा और उनका कहना मान कर मकड़ी चलने लगी अभी मकड़ी जरा सी ही चली थी कि वकील साहब ने दस्ताने पहने अपने दोनों हाथों से उसे फिर पकड़ लिया और जज साहब से बोले-"जज साहब...देखा आपने...मकड़ी पूरी तरह स्वस्थ है और मेरी बात सुनकर चल भी रही है" जज ने भी हामी भरी

अब वकील साहब ने मकड़ी की आठ टाँगों में से बायीं तरफ की सबसे आगे वाली एक टाँग तोड़ दी और उसे जमीन पे छोड़ने से एक सेकंड पहले बोले-" मकड़ी चल के दिखा" मकड़ी अपना एक पैर टूटने के कारण दर्द में थी और डर में भी तो तेजी से भागी पर वकील ने इस बार भी उसे पकड़ लिया और जज की तरफ देख के मुस्कुराया जज ने सहमति में सर हिलाया

अब वकील ने मकड़ी की दायीं तरफ वाली एक टाँग तोड़ दी और कहा -"मकड़ी रानी..चल के तो दिखा" मकड़ी इस बार भी चली मगर थोड़ा सहम के, जज साहब और आम लोग पूरी प्रक्रिया बड़े ध्यान से देख रहे थे

वक़ील ने ऐसा अगले पाँच बार और किया हर बार मकड़ी की एक टाँग तोड़ता गया और मकड़ी से कहता रहा कि मकड़ी चलो और मकड़ी किसी तरह चली भी आखिर में मकड़ी की एक टाँग बची तब वक़ील ने उससे कहा-"ए मकड़ी चलके दिखा" मकड़ी की एक ही टाँग बची थी फिर भी वो दर्द से छटपटाते हुए अपनी जगह से थोड़ी सी हिली

इसके बाद वकील ने मकड़ी को अपने हाथ में उठाया और जज से बोला- "जज साहब..अब वो पल आ गया है..जिसके लिए मैंने इतना खेल दिखाया है प्लीज अब जरा और ध्यान से देखियेगा" ऐसा कहकर उसने मकड़ी की आखिरी टाँग भी तोड़ दी उसे जमीन पे छोड़ा और कहा-"प्यारी मकड़ी..जरा चल के दिखा" मकड़ी अपनी जगह पे पड़ी रही उसने फिर थोड़ा जोर से उससे कहा-" ए मकड़ी जरा सा चल के तो दिखा" कोर्ट में पिन ड्राप साइलेन्स था सारे लोगों की नजरें जमीन पे थीं पर मकड़ी नहीं चली

वकील इस बार बहुत जोर से चिल्लाया और चिल्लाता ही गया "अरे ए मकड़ी..तू चलती क्यों नहीं..चल..जरा सा तो चल..चल्लल्लल्ल...." पर मकड़ी न चली और वो जज की तरफ देख के गर्व के साथ मुस्कुराया और दैट्स आल मीलॉर्ड बोल के अपनी कुर्सी पे बैठ गया सारे लोग सांस रोके जज की तरफ देख रहे थे

जज साहब ने अपना फैसला सुनाया-"सारी प्रक्रिया को बहुत गौर से अपने सामने देखने के बाद अदालत इस निर्णय पे पहुँची है कि मकड़ी की आठों टाँगे तोड़ देने पर वो बहरी हो जाती है।"

-तुषारापात®™
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Monday, 7 December 2015

असहिष्णुता

"अरे आबिद..रुक मैं भी चलता हूँ तेरे साथ" ऑफिस में लंच टाइम होते ही जैसे ही मैं अपनी डेस्क से उठकर शर्मा भोजनालय जाने को हुआ तो अकरम की इस आवाज ने मुझे रोक लिया, मैं वापस घूम कर उसकी टेबल पे पहुँचा और हँसते हुए बोला-"पर..तू तो अपना लंच घर से ही लाता है..आज क्या हुआ..बीवी ने लात जमा दी क्या"

" नहीं यार..मैडम दो दिन के लिए मायके गई हैं...टिफिन कौन बनाता..तो सोचा तेरे साथ ही लंच किया जाय..वो भी तेरे फेवरिट..शर्मा भोजनालय में" उसने भी हँसते हुए जवाब दिया और यूँ ही इधर उधर की बात करते हुए हम दोनों ऑफिस के बिलकुल नजदीक शर्मा जी के रेस्टॉरेंट कम ढाबे में पहुँच गए

"अच्छा बता क्या लेगा तू...मैं तो जनता थाली ही खाता हूँ कम बजट में पूरा जायका " रेस्टॉरेंट की टेबल के दोनों ओर पड़ी चार कुर्सियों में से एक कुर्सी पे बैठते हुए मैंने उससे पूछा

"तो यार ..हम कौनसे महाराजा हैं ...मेरे लिए भी थाली ही मँगा ले" मेरे ठीक सामने वाली कुर्सी पे बैठा अकरम टेबल पे तबला बजाते हुए बोला

मैंने शर्मा जी को आवाज लगाई-" शर्मा जी..भई आज दो थाली लगा दीजिये..अकरम साहब भी आज शौक फरमाने आये हैं"

"अभी लीजिये आबिद साहब" शर्मा जी अपनी चिर परिचित व्यवसायिक मुस्कान के साथ बोले

रेस्टॉरेंट के एक कोने में पुराना सा टीवी चल रहा था और ज़ी न्यूज़ पे आमिर खान के बयान का पोस्टमार्टम हो रहा था हम दोनों थोड़ी देर तक टीवी देखते रहे फिर मैंने उससे कहा-"बिलकुल सही कहा है आमिर ने..इनटॉलेरेन्स तो है ही हर जगह."

"हाँ यार..सही कह रहा है तू ...हम मुस्लिमों के साथ ज्यादती हर जगह हो रही है" अकरम ने भी आमिर का बयान सही बताया

हम बात कर ही रहे थे और इतनी देर में माथे पे तिलक लगाये एक लंबा चौड़ा आदमी हमारी टेबल पे खाली पड़ी एक कुर्सी पे अकरम के बाजू में आकर बैठ गया छोटा सा रेस्टॉरेंट और कुर्सियाँ भी कम होने के कारण ये एक आम बात थी उसपे हमने कोई विशेष ध्यान नहीं दिया हम अपनी बात करते रहे

"और क्या..सरकार भी उनका ही साथ दे रही है..दादरी में देखो सरेआम क्या हुआ..खुलेआम ज्यादती हमपर की जा रही है और अगर उसकी मुखालफत में कोई कुछ कहे तो...ये साला 'सहिस्नुता' 'असहिनुस्ता' चिल्ला चिल्लाकर हमारी आवाज दबा देना चाहते हैं" मैं हलके गुस्से में आ गया था अकरम के पड़ोस में बैठा शख्श टीवी देख रहा था उसके पहनावे वैगेरह से मैंने समझ लिया था कि हिन्दू है ,हम थोड़ी तेज आवाज में अपना नाम ले ले कर बात कर रहे थे,पता नहीं क्यों,पर मैं चाहता था कि वो हमारी ये बातें सुने,उसने सुना या नहीं मुझे पता नहीं चला वो चुपचाप बैठा टीवी देखता रहा और इसी बीच रामू हमारी दोनों थालियाँ टेबल पे लगा गया और उस बन्दे ने भी थाली ही आर्डर की, मैं और अकरम खाना खाने लगे

"अरे भाई...ओ...लड़के..रोटी ले आओ..अकरम के बाजू में बैठा वही बंदा रामू को आवाज लगा रहा था भीड़ होने के कारण रामू उसकी थाली में दो रोटी दे गया था और भी कई लोग खाना खा रहे थे इसलिए रोटी आने में टाइम लग रहा था हाँ हम दोनों की थाली में शर्मा जी ने चार चार रोटियाँ ही भेजी थीं क्योंकि मैं रोज खाने वालों में से था और वो जानते थे कि मुझे जल्दी रहती है ऑफिस वापस पहुँचने की

"यार आबिद..ये दो रोटियाँ तुम खा लो..मेरा तो दो में ही पेट भर गया" अकरम अपनी थाली से मेरी थाली में रोटियाँ रखते हुए बोला

मुझे किसी की थाली से कुछ भी बचा कु्चा खाना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता है तो मैंने बात घुमाते हुए कहा-"अरे न भाई न...मैं तो चार रोटी में फुल हो गया..और अभी तो चावल भी खाना है तुम्हें नहीं खाना है तो छोड़ दो"

जैसे ही मैं रोटियाँ वापस उसकी थाली में रखने जा रहा था अकरम के बाजू में बैठे शख्स ने मुझसे कहा-"भाई साहब..अगर आप लोग न खा रहे हों तो ये रोटियाँ मुझे दे दें"

मैं और अकरम दोनों ये सुनकर भौंचक्के रह गए एक अनजान हिन्दू मुझ मुसलमान की थाली से रोटी माँग रहा था,थोड़ा सम्भलते हुए मैं उससे बोला-" हाँ हाँ क्यों नहीं..पर अगर आप थाली में दो रोटी कम भी लोगे तब भी आपको पैसे तो पूरी थाली के ही चुकाने होंगे..फिर आप मेरी थाली की रोटियाँ...

वो मेरी बात बीच में ही काटते हुए बोला-"हाँ जानता हूँ पैसे पूरे देने होंगे पर ऐसे दो रोटी फिंकने से बच जाएंगी...और..मेरी थाली की बची रोटियाँ किसी और की भूख मिटा सकेंगी हाँ अब ये मत कहियेगा कि जहाँ फेंकी जायेगी वहाँ कोई भिखारी या भूखा इन्हें बीन के खा लेगा..आखिर किसी इंसान को कूड़े से बीनकर खाना खाते देखना कहाँ की सहिष्णुता है?"

हम दोनों को सांप सूंघ गया मैंने उसे रोटियाँ दी और चुपचाप खाना खाकर जाने ही वाले ही थे कि वो आदमी मुझसे बोला -"बरसों कोई आबिद.. किसी शर्मा के होटल में खाना खाता रहता है..पर एक दिन अचानक..... किसी के कहने से उसे क्यों लगने लगता है कि पूरे देश में भेदभाव है .... आबिद साहब... कभी आराम से सोचियेगा कि..मुल्क में चालीस रुपैये की थाली खाने वाले को असहिष्णुता कहीं नहीं दिखाई देती..पर उसी मुल्क में चार सौ करोड़ कमाने वाला इनटॉलरेन्स की बात करता है क्यों ?"

(सौ फीसदी सच्ची घटना पे आधारित)
-तुषारापात®™
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Sunday, 6 December 2015

वक्त का प्लास्टर

पुराने जख्मों पे हम/न जाने कितनी/मुस्कुराहटें ओढ़ते हैं
वक्त के प्लास्टर को/फिर भी /कुछ लम्हे तो खरोंचते हैं

-तुषारापात®™
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Saturday, 5 December 2015

धुलाई वाला

वाशिंग मशीन में कपड़े धोते धोते ये तुषारापात उत्पन्न हुआ (हाँ अपने कपड़े मैं खुद ही धोता हूँ क्योंकि मेरा मानना है की अपना जितना काम हो सके स्वयं करना चाहिए कई सारे ग्रह इससे मजबूत रहते हैं ;) खासतौर पे पत्नी जी वाला ग्रह सबसे ज्यादा)
तो वाशिंग मशीन (सेमी ऑटोमैटिक) में धोने के लिए हरा कुर्ता, अपनी भगवा धोती, नीली शर्ट,काली पैंट आदि कई कपड़े डाल के टाइमर सेट कर दिया और रिलैक्स हो के कुछ लिखने लगा। थोड़ी देर के बाद टाइमर जी ने अपनी चीखों से मुझे बताया की आपके डाले कपड़े बाहर निकलने के लिए बेक़रार हैं (हाँ ड्रेन करके पानी भी निकाला था) उसके बाद जब स्पिनर में डालने के लिए वाशर से कपड़े निकालने के लिए हाथ बढ़ाया तो देखा की सारे कपड़े आपस में उलझे हुए हैं, हरा कुर्ता भगवा धोती से दो दो हाथ कर रहा है और भगवा धोती ने हरे कुर्ते के साथ साथ नीली शर्ट का भी गला जकड़ रखा है काली पैंट भी पीछे नहीं थी उसने भी जहाँ जगह पाई वहां अपनी टांगे फंसा रखी थीं कुल मिला के हर महंगा सस्ता कपड़ा अपनी अपनी औकातानुसार जम के एक दूसरे से उलझा हुआ था।
अब जरा अपने अपने धर्मग्रन्थ केे पन्ने उलटिये और सोचिये की इस दुनिया की वाशिंग मशीन में हम सब अपनी शुद्धि और उन्नति के लिए भेजे नहीं गए थे क्या? और हम करते क्या हैं एक दूसरे से उलझते रहते हैं अपना रंग/धर्म एक दूसरे पे थोपते रहते हैं।
अच्छा एक बात और है कपड़े धोते समय हम सफ़ेद कपड़ों को अलग से धोते हैं कि कहीं दूसरे कपडे का रंग उनपर न लग जाये। हाँ सफ़ेद कपड़े हर रंग के साथ पहने खूब जाते हैं और अच्छे भी लगते हैं जैसे सफ़ेद शर्ट काली पैंट या सफ़ेद कुर्ता नीली जीन्स और भी न जाने कितने रंग के जोड़ीदार हैं सफ़ेद कपड़ों के।
आपको पता ही होगा सफ़ेद रंग सात रंगों से मिलकर बनता है यानी सफ़ेद रंग अपने में कई रंग समाहित करे रहता है और ऊपर से बिलकुल सादा बगैर कोई तड़क भड़क के बना रहता है,अब यही मैं कहना चाहता हूँ की सच्ची आध्यात्मिकता/सच्चा धर्म भी इसी सफ़ेद रंग की तरह है अगर आपको आपको अपनी आध्यतामिक उन्नति करनी है सच्चे धार्मिक बनना है तो इसी तरह अपने अंदर सभी रंगों को सोखना पड़ेगा मतलब सभी धर्मो को सम्मान देना होगा और उनकी सारी अच्छाइयाँ अपने अंदर समाहित करनी होगी सिर्फ लाल हरा या कोई और रंग पकड़ के आप कभी भी सफ़ेद रंग नहीं बना सकते और न ही सच्चे धार्मिक।
एक मित्र ने बहुत पहले कहा था की धार्मिकता और आध्यात्मिकता पे कुछ लिखिए उनसे इस लेख के माध्यम से यही बहुत साधारण सी बात कहना चाहता हूँ कि कट्टर धार्मिकता मात्र एक धर्म विशेष (वो चाहे जो कोई भी धर्म/मज़हब हो ) की रूढ़िवादिता को बढ़ावा देती है सिर्फ एक रंग को पकड़ने का मौका देती है और आध्यात्मिकता के अंतर्गत सभी पंथों की उत्कृष्ट मान्यताएं जो प्रयोगों द्वारा आप स्वयं सत्य सिद्ध करते हैं, समाहित होती हैं।
तो अब देखते हैं कौन कौन सभी रंगों को मिलाकर अपनी सफेदी पूरी करते हैं और कौन कौन अपना एक रंग विशेष का झंडा फहराते फिरते हैं।
-तुषारापात®™

विधाता

वो कहतें हैं :-
"लेखक हो, नकारा हो
बंद कमरे में बेकार से बैठे
न जाने अला बला क्या लिखते हो
घंटो की तुम्हारी कागज़ रंगाई से
एक रंगीन नोट भी नहीं छपा आज तक तुमसे
घड़ी और कैलेंडर देखो कभी तो पता लगे
स्याह बालों में कितनी सफ़ेद धारियां पड़ गयी"
मैं कहता हूँ ज़रा महसूस तो करो इसे
"जब कुंवारे सफ़ेद कागज़ से
मदहोश कलम का आलिंगन कराता हूँ
तो कितनी चिंगारियाँ सुलगती हैं
सुनो ये किलकारी सुनो
अभी अभी जन्मीं इस रचना की
ये बांटेगी किसी को ख़ुशी तो बाँट लेगी किसी का ग़म
डायरी मेरी है मेरा कैलेंडर/मेरी घड़ी
इसका हर एक अक्षर है एक सेकंड,
एक एक मिनट है हर एक शब्द
हर वाक्य एक घंटा है मेरा
पन्ना बदलता हूँ तो दिन बदल लेता हूँ
बंद कमरा है मेरा ब्रह्माण्ड,रचयिता हूँ मैं यहाँ
और कभी देखा है तुमने विधाता को कमाते हुए?"

-तुषारापात®™

Sunday, 29 November 2015

जा तू खुदा हो जाए

खुदा ने कहा इबादतगार जा तू खुदा हो जाए
फरिश्तों* का भी तेरे आगे सजदा हो जाए
शर्त इतनी है बस किसी मासूम बच्चे की तरह
एक बार मेरे आगे तेरी नमाज अदा हो जाए

(*इस फोटो में फरिश्ते=superhero)

-तुषारापात®™



Saturday, 28 November 2015

फेसबुकिया नशा

फेसबुक का नशा इतना है कि पूछिये मत,देखिये ये सच्चा किस्सा-

एक फंक्शन में जाने को मैं और पत्नी जी तैयार हो रहे थे

पत्नी जी -"आप बताइये कि कौन सी साड़ी पहनू ?वरना कहोगे ऐसे कैसे तैयार होके चल रही हो"

मैं -" अरे वो चिकन वाली सफ़ेद और नीली साड़ी है न ,जो कमल की सगाई में तुमने पहनी थी बड़ी जंच रहीं थी उस दिन तुम,ऐसा करो आज वही पहन लो "

पत्नी जी - "पर वो तो राधिका भाभी देख चुकी हैं वो भी आ रही हैं इस पार्टी में,मन ही मन सोचेंगी की मैं साड़ी रिपीट कर रही हूँ"

मैं -"अरे तो कोई नहीं राधिका भाभी को 'ब्लाक' कर देना फिर नहीं देख पाएंगी"

-तुषारापात®™ (जरा मुस्कुराइए)

Friday, 20 November 2015

नवम्वर याद आता है

नवम्बर की गुलाबी शाम का
तुम्हारे छूने से
सुर्ख लाल रात हो जाना
याद आता है,

सुरमई बादल में लपटा चाँद
और चाँदिनी रंग की
रिमझिम बारिश का होना
याद आता है,

मखमली काले बादल की ओट में
सितारे का टूट के
चाँद पे ज़ार ज़ार हो जाना
याद आता है

बिजली की चमकती आवाज़ पे
मदहोश पड़े पड़े अचानक
तुम्हारा चौंक के मुझे थामना
याद आता है

चाय की प्याली हाथ में लिए
खिड़की खोल के
तुम पर सूरज फेंकना
याद आता है

चले भी आओ अब
ज़िन्दगी की सफेदी
यादों से रंगीन नहीं होती
बिस्तर की नीली चादर पे
बनाया हमारा इंद्रधनुष
याद आता है ।

-तुषारापात®™

Thursday, 19 November 2015

मदिरा मंथन

मदिरा सेवन कर्ता के प्रथम कुछ वर्षों में 100 Pipers बजता है उसे लगता है कि उसका जीवन NO 1 है पर शनेः शनेः उसके जीवन का सूर्य 8PM पे अस्त होने लगता है तब उसकी 'देशी माधुरी' उसका 'सुमिरन करना ऑफ' कर देती है और वो एक असहाय old monk बन के रह जाता है :)

जनहित में जारी -
-तुषारापात®™

Wednesday, 18 November 2015

लाजवाब

उनके इस जवाब कि "लाजवाब हो तुम" का कोई जवाब नहीं
ख्वाब देखूँ जो कहीं उनका तो  सोंचू ये तो कोई ख्वाब नहीं

गिनने चलती हैं मेरी धड़कनें सीने पे रख के हाथ अपना
बढ़ जाएं जो धड़कनें तो कहती हैं इनका कोई हिसाब नहीं

लफ्ज़ लफ्ज़ पढता हूँ तो हर्फ़ हर्फ़ वो खुलती हैं
उसपे ये कहना के जल्दी में पढ़ी जाने वाली मैं किताब नहीं

सुलगती आँखों की छुअन से भाप उठती है शबनमी बदन से
गिरा के आँचल वो कहना उनका के एक तुम ही बेताब नहीं

लाल होंठों के लफ़्ज़ों पे है नुक्ते सा एक काला तिल
एक ग़ज़ल जैसा वो चेहरा जिसपे आज नकाब नहीं

कोरे कागज़ को आहिस्ता से रंगीन किया जाता है
बेसबर होके ग़ज़ल पढ़ना महफ़िल का आदाब नहीं

मीर ने भी कहा और खूब असद भी कह गए उर्दू फ़ारसी में
'तुषार' से कहना उनका मगर हिंदी में तुम्हारा कोई जवाब नहीं

उनके इस जवाब कि "लाजवाब हो तुम" का कोई जवाब नहीं.....
-तुषारापात®™
© tusharapaat.blogspot.com

Monday, 16 November 2015

चोर

दिन के वक्त जब तुम मिली थीं
तो थोड़ा सा तुमको चुरा लाया था
तुम्हारी खुश्बू तुम्हारा अक्स
चाय की प्याली से टकराती तुम्हारी अँगूठी की खनक
सुरमई आँखों में तुम्हारी डूबते दो सूरजों की चमक
घर आकर चोरी का ये सारा सामान
बंद आँखों से देख रहा था कि
पलकों के पल्लों पे कोई दस्तक देता है
खोलकर देखता हूँ तो
अपनी वर्दी में कई सितारे टाँकें
रात एक इन्स्पेक्टर की तरह
तुम्हारे ख्वाबों की हथकड़ी लिए खड़ी है
चाँद के पुलिस स्टेशन में
चोरी की रपट तुमने तो नहीं लिखवाई ?

-तुषारापात®™

Sunday, 15 November 2015

बुद्ध

कई किस्से सुनाता रहा
वो बूढ़ा मुझे
शायद कई दिनों से तरस रहा था
किसी से दो शब्द बतियाने को/
दवा की दो पुड़ियों से
बीमार का तीमारदार बन गया मैं
शर्मा रहा था भूख और मर्ज में से
किसी एक को पहले बताने को/
और लावारिस मुर्दे को फूँक आया मैं
शायद हिन्दू ही था वो
अब समझा क्यों कहा जाता था
कलाई पे नाम अपना गुदवाने को/
एक बूढ़े
एक बीमार और
एक मुर्दे के साथ
गुरु ने कहा था मुझे एक दिन बिताने को/
लेकिन मैं 'बुद्ध' नहीं बन पाया
चलो अच्छा ही हुआ
बेवजह क्यूँ जाता मैं
एक नया मजहब बनाने को/

-तुषारापात®™

Tuesday, 10 November 2015

ताश के आध्यात्मिक पत्ते

दिवाली का त्यौहार और ताश के खेल का कॉम्बिनेशन तो सभी रात्रि जागरण करने वाले बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। ताश के बदनाम पत्तों को देखकर अचानक ख्याल आया की इसमें तो पूरी दुनिया का ज्ञान छुपा है।
ताश के 52 पत्तों की एक अपनी पूरी दुनिया है जो हमारी दुनिया से बहुत मिलती जुलती है बादशाह और बेगम,हमारी दुनिया के शाषन करने वालों जैसे हैं और गुलाम कहने को ही बस गुलाम है वास्तव में वो 10 पत्तों को अपने नीचे दबा के रखता है और व्यवस्था बनाये रहता है जैसे हमारे IAS या PCS अधिकारी आदि ।बाकी 10 से 2 तक के पत्ते आम इंसानों जैसे अपनी अपनी हैसियत अनुसार रहते हैं।
अब बात करते हैं इक्के की कि वो क्या है ? इक्के की हैसियत बादशाह के भी ऊपर है और दुक्की के नीचे भी है तो उसे क्या कहा जा सकता ? मेरे हिसाब से इक्का उस ईश्वर या उपरवाले का प्रतीक है जिसकी हम अलग अलग रूप में इबादत करते हैं,उसे सबसे बड़ी शक्ति भी मानते हैं और सबका आधार भी,यानि बादशाह के भी ऊपर और दुक्की के नीचे का भी ,ताश का पहला और आखिरी पत्ता भी इक्का ही है।
पत्तों के अलग रंग और प्रकार अलग अलग मजहब और रहन सहन को दिखाते हैं जिनके अपने अपने ख़ुदा हैं (हुकुम,ईंट,चिड़ी और पान और उनके इक्के),रूप रंग में अलग होते हुए भी मूल रूप से सब एक ही व्यवस्था का पालन करते हैं।
अच्छा आप सबने ये भी देखा होगा की ताश की गड्डी में दो या तीन जोकर भी मिलते हैं जो आमतौर पे खेल में काम नहीं आते और गड्डी की डिब्बी में बेकार पड़े रहते हैं और हम उन्हें भूल भी जाते हैं,हाँ जब कोई पत्ता गुम हो जाता है और पूरी गड्डी बेकार हो सकती है तब उनका इस्तेमाल होता है,अब सवाल उठता है उन्हें क्या नाम दूं फिर अचानक ख्याल आया की ये शायद उस ब्रह्म शक्ति उस सबसे बड़ी ताकत को दिखाते हैं जिन्हें हम जानते भी नहीं क्यूंकि इक्के तो हमारी कल्पना के खुदा हुए पर ये जोकर वास्तविक सर्वोच्च शक्ति के अवतार के रूप में आते हैं जब गड्डी यानि संसार खतरे में होता है।
और जनाब जरा गौर से देखिएगा,सारे पत्तों का असली रंग हम माया में पड़े लोगों की तरह हल्का पड़ जाता है पर इन जोकरों का रंग वैसा ही पाएंगे जैसी नई गड्डी के पत्तों का होता है
जाइये देखिये रंग जाँचिये और हाँ मुझे बताइएगा जरुर ,इस गड्डी का कौनसा ताश का पत्ता आपसे मिलता है ?

(वैधानिक चेतावनी:- जुआ खेलना आप और समाज दोनों के लिए हानिकारक है।)

-तुषारापात®™

Monday, 9 November 2015

नया कटोरा और धनतेरस

के ये सोचकर/जो आज खरीदे बर्तन/खुदा उसको बरकत देता है
नुक्कड़ का/एक भिखारी/हर धनतेरस/नया कटोरा खरीद लेता है

-तुषारापात®™

Sunday, 8 November 2015

बिहार चुनाव

सूरज जब दीपक बनने का प्रयास करता है तो लालटेन से पराजित होता है
इति सिद्धम्

-तुषारापात®™

Friday, 6 November 2015

दिवाली की सफाई

दिवाली आने वाली है,बचपन में तो त्यौहार का मतलब नए नए कपड़े, मिठाई और पटाखों का मिलना भर होता था,10 दिन पहले से रोज माँ से पूछना कब है दिवाली,कब है दिवाली ?
ताऊ जी और दादी को देखता था तो उनके लिए दिवाली का त्यौहार मतलब पूजन,लक्ष्मी पूजा की तैयारी वो बड़ी जोर शोर से किया करते थे।
खैर मैं अब न उतना छोटा रहा और न ही ताऊ जी के जितना बड़ा हो पाया हूँ तो उम्र के इस मुकाम पे मेरे लिए दिवाली का मतलब है घर की सफाई, हाँ भाई दिवाली पे सबसे ज्यादा मजा आता है पूरे घर को साफ़ करने में और वो भी पत्नी जी के special comments and guidelines के साथ,
तो साहब सबसे पहले बारी आती है उस जरुरी सामान की जिसे हर बार की सफाई के बाद सहेज के इसलिए रख लिया जाता है की वो कभी आगे काम आएगा ( जो शायद ही कभी काम आता है ) और हाँ अभी उसे हम कबाड़ नहीं कह सकते क्यूंकि अभी वो भविष्य में कभी काम आ सकने वाले सामान की स्थिति में है ,हर बार की तरह इस बार भी हम उसमे से कुछ सामान छाँट के निकाल देते हैं मतलब उसे कबाड़ घोषित कर कबाड़ी की राह देखते हैं और बाकी सामान को बड़ी अच्छी तरह झाड़ पोछ के अगली बार की दिवाली की सफाई में फेंकने के लिए रख देते हैं ।
भई हमारी आदत है हम कोई नयी चीज़ इसलिए इस्तमाल नहीं करते कि इस्तमाल करने से वो पुरानी हो जाएगी इसलिए उसे रखे रहते हैं फिर जब रखे रखे वो पुरानी हो जाती है तो उसे कबाड़ के रूप में कभी आँगन तो कभी दुछत्ती पे डाल देते हैं कि 5 साल तो काम आई नहीं पर आगे शायद कभी काम आये, फिर उसके साथ वही होता है जो ऊपर लिखा है ।
हम सोफा हो या साईकिल की गद्दी पहले तो मनपसंद रंग की बड़ा सर खपा के पसंद करते हैं फिर एक गन्दा सा कवर लाकर उसे ढके रहते हैं और तब तक ढके रहते हैं जब तक की अन्दर वाली गद्दी फट नहीं जाती मजाल है कि कभी अन्दर की गद्दी का असली रूप रंग कोई देख पाए।
हमारे आपके सबके घरों में ऐसे सामान भरे पड़े हैं जो कभी कोई काम नहीं आते पर हम मोह नहीं छोड़ पाते और उसे रखे रहते हैं
अरे भई हटाइए ऐसे सामान को ,बहुतों के वो बहुत काम आ सकता है उन्हें दे दीजिये और उस सामान की अच्छी हालत में दीजिये नाकि घर में रखे रखेे जब ख़राब हो जाये तब आप उसे किसी को दें और वो किसी के काम न आ सके,उसे कबाड़ न बनने दें ऐसा करके आप किसी की दिवाली खुशियों से भर सकते हैं
एक बात कहूँ दिवाली न धन की पूजा है,न पटाखों का शोर ,न रौशनी की सजावट और न ही मिठाइयों की लज्जत,दिवाली तो है सफाई का त्यौहार
मन की सफाई का और विचारों की सफाई का और ज्ञान रूपी लक्ष्मी का स्वागत करने का
तो इस दिवाली जलन,कुढ़न,लालच आदि के पटाखे फोड़तें हैं और कुत्सित विचारों को जलाकर खुद की सफाई करते हैं और सदविचारों के दियों की रौशनी में दिवाली मनाते हैं देखिये फिर कितना आनंद मिलता है।
(पिछले वर्ष fm रेनबो पर मेरा ये लेख RJ aparajita द्वारा प्रसारित हुआ था हमेशा की तरह डेट मुझे याद नहीं है पर पिछली दिवाली के कुछ दिन पहले की बात है )

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Tuesday, 3 November 2015

बेटी बचाओ

'ऋचाओं'को मिटाते जाओगे तो 'वेद' कोरे रह जायेंगे।

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Sunday, 1 November 2015

लफ्ज़

बेपर्दा होकर
बहुत मुश्किल से निकले थे
बड़ी हिफाजत से
चिट्ठियों का लिबास पहनाया था इन्हें
तुम्हारे होठों को छूकर पाकीज़ा होना था इन्हें
इसीलिए
डाक के उस काफ़िर लाल डिब्बे में नहीं भेज पाया
आज पुरानी बकस से खनक के बाहर आ गए
कुछ सील से गएँ हैं
मुलायम ठंडी धूल में लिपटे हुए
झाड़ पोछ के सोचा थोड़ी गर्माहट कर दूं इनपे
आँगन की डोरी पे टांग दिए हैं सारे
पर तेज़ आंच में सख्त न होने पायें
इसलिए
पिछली मार्च के उन 'लफ़्ज़ों' को
जाते हुए अक्टूबर की नर्म धूप लगा रहा हूँ

-तुषारापात®™


Tuesday, 20 October 2015

"एक थाली दो प्लेट और पाँच गिलास"

बाबू विश्वनाथ तखत पे बैठे बैठे अपनी छड़ी से कच्ची जमीन को कुरेदे जा रहे थे और उनका मन यादों की सुरंग के भीतर और भीतर कहीं चला जा रहा था••••••••••••••••••••

•••आह..कितनी भव्य हुआ करती थी ये शारदीय नवरात्र की महाष्टमी पूजा, अष्टमी की पूजा क्या..कुलदेवी की पूजा, सारे इसे बस 'पूजा' कहते थे
पूरा खानदान इस दिन यहाँ,पुरखों के इस घर में,इकठ्ठा होता था..
मेरे सातों सगे भाई,भाइयों के बीवी बच्चे,सारे चाचा ताऊ और उनके पुत्र और उनके पुत्रों के बच्चे भी कानपूर लखनऊ और अन्य जगहों से पूजा में जरूर आते थे ऐसा लगता था मानो कोई विवाह जैसा बड़ा आयोजन हो रहा हो पूरे कस्बे में लोग चर्चा करते कि परिवार में एकता हो तो विश्वनाथ ठाकुर के परिवार जैसी•••••
खानदान में सबसे बड़े होने के नाते इस पूजा का उत्तरदायित्व विश्वनाथ बाबू को ही प्राप्त था घर का सबसे बड़ा बेटा या सबसे छोटा पुत्र ही इस पूजा के लिए भवानी माँ का सेवक हो सकता था और पुरे खानदान के सिर्फ लड़के ही इस पूजा में शामिल हो सकते थे घर की लड़कियों के लिए ये पूजा देखना तक वर्जित था, हाँ घर की बहुएँ वगैरह पूजा के कार्यों जैसे प्रसाद बनाना और भोजन बनाना आदि कार्य करती थीं क्योंकि पूजा में हवन के तुरंत बाद ही भोजन ग्रहण करने की परम्परा थी घर के पुरुष हवन स्थान से थोड़ा दूर पंगत में बैठते थे और घर की औरतें भोजन से सजी थालियां लगाती थीं
विश्वनाथ बाबू के पिताजी अपने कुल में सबसे बड़े पुत्र थे उनके बाद उनके सारे चाचा ताऊ के परिवार में विश्वनाथ बाबू ही सबसे बड़े थे सो उन्हीं को अपने घर में नौ दिनों के लिए जगदम्बा को कलश में थामने का सौभाग्य मिला था
पर धीरे धीरे समय बदलता गया और उनके भाइयों में कुछ रहे कुछ चल बसे,भाइयों और चाचा ताऊ के बाद उनके पुत्रों का आना पहले तो कम हुआ और फिर न के बराबर हो गया फिर भी विश्वनाथ बाबू अपने पुत्रों के साथ इसका आयोजन करते रहे हाँ अब इसका वो विशाल स्वरूप न रहा था
आज भी महाष्टमी है पर अब विश्वनाथ बाबू पचहत्तर वर्ष के हो चुके हैं उनके अपने पाँचों पुत्र अब उनकी रत्ती भर नहीं सुनते उनका सबसे बड़ा लड़का सोमनाथ घर का पहला पुत्र होने के नाते बहुत लाड़ प्यार से पला था फलतः वो निरंकुश हो शराब आदि दुर्व्यसन में लिप्त रहने लगा, आज भी वो नशे में पड़ा हुआ है एक अरसा हुआ विश्वनाथ बाबू उससे कोई आशा रखना छोड़ चुके हैं , चूँकि मझले बेटों को पूजा का दायित्व दिया नहीं जा सकता था तो छोटे बेटे ओमनाथ के गले में ये घंटी उन्होंने बाँधी
उनके सारे पुत्रों के बीच मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के पुत्रों की तरह जबरदस्त झगड़ा फसाद हुआ करता है कोई दूसरे को फूटी आँख न सुहाता है घर में ही पाँच भोजनालय खुल गए हैं (सबके चूल्हे अलग हो गए हैं)
घर की ये दुर्दशा देखकर विश्वनाथ बाबू को काफी पहले की एक बात रह रह कर याद आती रहती है जब उनके भाई की पाँच साल की पोती ने बड़े भोलेपन से उनसे पुछा था-" दादाजी..दादाजी..ये बताइये हम ये पूजा क्यों नहीं देख सकते?"
हालाँकि विश्वनाथ बाबू इस रसम को पसंद नहीं करते थे पर खानदान के रिवाज में बंधे थे सो उन्होंने उससे कहा था-"वो इसलिए मेरी रानी बेटी क्योंकि ये कुल देवी की पूजा है और इसे सिर्फ लड़के करते हैं लड़कियाँ तो दूसरे घर की होती हैं न"
तब वो बच्ची तपाक से बोली थी-" पर दादाजी..हम लड़कियाँ ही तो देवियाँ हैं और आप हमको ही हमारी पूजा से दूर रखते हैं तो क्या आपकी पूजा पूरी होगी ?" विश्वनाथ बाबू को आज भी यही लगता है कि उस दिन माँ जगदम्बा ही उनसे ये कह गईं थीं और उन्होंने उनका कहना नहीं माना इसलिए माँ का श्राप उनके कुल पे लग गया जो इतने बड़े परिवार की आज ये दशा है
खैर ओमनाथ ने पूजा आयोजित की,बड़े भाई को छोड़ के उसके सारे भाई अपने पुत्रों समेत शामिल हुए क्योंकि अभी विश्वनाथ बाबू ने वसीयत जो नहीं की थी हाँ ओमनाथ का एक चचेरा भाई भी पूजा में आया है,
हवन हो चुका है सब प्रसाद चख चुके हैं आज किसी भी लड़के के यहाँ भोजन नहीं बना है सब खाने की आस में बैठे हैं
पर ओमनाथ मन ही हिसाब लगा रहा है..एक पिताजी की, एक चचेरे भाई रामनाथ की, मैं और मेरे दोनों लड़के तो पम्परा के अनुसार एक ही में हो जायेंगे और जोर से चिल्लाके अपनी पत्नी को आवाज लगाता है-"पार्वती..एक थाली..दो प्लेट..और पाँच गिलास लगाओ"

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Wednesday, 14 October 2015

फलाहारी चिकन तंदूरी

व्रत की पकोड़ी, व्रत के चिप्स,पापड़,और तो और फलाहारी पूरी थाली बाजार में अब उपलब्ध हैं
थोड़े दिन और रुकिए सेंधा नमक से बने चिकन तंदूरी और व्रती मटन कोरमा भी मार्केट में जल्दी मिलेंगे।

नवरात्रि स्पेशल फलाहारी -'तुषारापात'®™

Sunday, 11 October 2015

कार्बन का पर्दा

कलम और ऐतबार ?
वो लिखता है एक कागज पे,दो पे छपता है
कलम दो कागजों के बीच कार्बन का पर्दा रखता है

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Saturday, 10 October 2015

दाँतों के निशान

तारीफ में कह जाते हो तुम जिसे वाह बड़ा 'गहरा' लिखा है
कागज के सफ़ेद गालों पे कलम के दाँतों के नीले निशान हैं वो

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सलवटें

तुम्हें दिखती हैं जो इबारतें
कलम की अंगड़ाइयों से बनी
कागज की सलवटें हैं वो

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Wednesday, 7 October 2015

कुछ मीठा हो जाए


आप लोगों ने वो कहानी तो सुनी/पढ़ी ही होगी जिसमे सारस और लोमड़ी एक दुसरे को दावत पर बुलाते हैं सारस लोमड़ी को दावत देता है तो खाना परोसता है सुराही में (सुराही अपनी जगह fix रही होगी ) अब सारस तो अपनी चोंच से खाना खा जाता है पर लोमड़ी बेचारी सुराही में कैसे खाती खैर फिर लोमड़ी ने दावत दी सारस को और खाना परोसा थाली में अबकी सारस बाबु भूखे रह जाते हैं,बचपन में सबने सुनी होगी ये कहानी
अब आते हैं असली कहानी पे

भई मेरी और पत्नी ट्विंकल की खाने पीने की पसंद और आदतें बहुत अलग अलग हैं उन्हें हद से ज्यादा रसीली सब्जी पसंद है (शायद वो प्रयाग से हैं जहाँ तीन तीन नदियों का संगम है इसलिए ऐसा हो ;) ) और मुझे पसंद है सूखी सब्जी खूब भुनी हुयी (हमारे यहाँ की गोमती नदी की भी हालत आजकल ऐसी ही है) तो एक दिन मेरी पसंद का खाना बनता है तो दूसरे दिन पत्नी जी की पसंद का (ये नहीं बताऊंगा की बनाता कौन है शादीशुदा सब समझदार हैं समझ ही लेंगे) तो जिस दिन जिसके मन का खाना नहीं बनता तो वो उस दिन थोड़ा कम खाना खाता है और उसकी भरपाई के लिए kitchen में कुछ मीठा ढूंढता है मिठाई हो या बिस्किट वैगरह वैगरह।

कल रात परवल आलू की रसीली सब्जी बनी,यकीन मानिये इतनी रसदार कि कटोरी में गंगा माँ साक्षात् थीं खैर हम चुपचाप हर हर गंगे कर लिए और कुछ मिठाई ढूंढी वो भी न मिली (badluck बड़ा अच्छा है हमारा)
अब भाई आज बनी सूखी सब्जी वो भी सोया-मेथी आलू की और साथ में पराठे अब अपने राम तो फटाफट मन से पूरा खाना खा गए अब बारी ट्विंकल जी की थी जो बेचारी बड़ी मुश्किल से एक एक कौर निगल रहीं थी फिर बड़ी मासूमियत से बोलीं (इसी बात से ये पोस्ट लिखने का विचार इस नाचीज को आया) कि "सोन पापड़ी घर में रखी जा सकती है वो जल्दी ख़राब भी नहीं होती", इतना सुनना था की हम दोनों पूरी बात समझते हुए खिलखिला के हँसते हँसते खाने की मेज पे लोटपोट हो गए ,
इन्ही खट्टे मीठे लम्हों से गृहस्थी का सुख है।
फिर मन में विचार आया की यही हम जिंदगी के साथ करते हैं जो मन का होता जाये वो तो ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करते हैं और जो मन का नहीं उससे भागते हैं और दुःख का रोना रोते हैं और मिठाई वाले (किसी ज्योतिषी/ताबीज वाले बाबा) के पास जाते हैं। मिठाई भोजन का छोटा सा विकल्प हो सकती है परन्तु सम्पूर्ण भोजन नहीं बन सकती । तो ज्यादा मीठा खाओगे तो डाईबीटीज हो जाएगी भईया फिर न कहना की बोले नहीं थे।
तो इसी बात पे कुछ मीठा हो जाए ;)

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Monday, 5 October 2015

चाँद की रिश्वत

कहना चाहा स्याह रात ने जब उजले दिन का सच
ख़ुदा ने उसके होंठो पे चमकीला चाँद रखा और खामोश कर दिया

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Sunday, 4 October 2015

अपमान के काँटे और सफलता के फूल

कदम कदम पे अपमान के काँटे चुभोने वालों से मैं खूब बदला लेता हूँ
मैं उन्हें अपनी हर सफलता के फूल भेज देता हूँ।

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Wednesday, 30 September 2015

हिसाब

हिसाब के कच्चे तो नहीं हैं हम आप बताइये ?

'पूरे चाँद की एक आधी रात उधार ली थी तुमने हमारी
चौथ की दो चांदनी रातों से कभी कर्ज़ा अदा कर जाओ'

-तुषारापात®™

Tuesday, 29 September 2015

पिज्जा

जोर की भूख में
पहला दूसरा टुकड़ा
फटाफट खत्म होता है
तीसरा टुकड़ा भी
धीरे धीरे किसी तरह टूँग ही लेता हूँ
पर चौथा न खाया जाता है न फेंका
प्लेट में पड़ा पड़ा
ख़राब हुआ करता है
तुम्हारे बिन
सुबह दोपहर शाम और रात
दिन के मेरे ये चार हिस्से
मानो उसी
लार्ज पिज्जे के चार टुकड़े हों ।

-तुषारापात®™
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