Wednesday 27 January 2016

कुछ नहीं हो सकता इस देश का

"कुछ नहीं हो सकता इस देश का...एक सरकार कुछ कड़े कदम उठाती है ..तो दूसरी पार्टी उन्हीं नियमों का....मुद्दा बनाके ....अगले चुनाव में अपनी सरकार बना लेती है और .....वो सारे कायदे कानून ठन्डे बस्ते में डाल दिए जाते हैं...लोग खुद सुधार नहीं चाहते "तुषार सिंह ड्राइंग रूम में बैठे अपने घनिष्ठ मित्र संजय से बड़ी ज्ञान ध्यान की बातें कर रहे थे

"हाँ..बिल्कुल सही कह रहे हो...तुम तो खूब लिखते रहते हो इन सब बातों पे...दरअसल मैं इसलिए तुम्हारे पास आया था...ऐसे ही एक मुद्दे पे...तुम्हारा एक लेख मिल जाता मुझे तो काम... बन जाता..." संजय ने कहा

"पर तुम्हें क्या जरूरत पड़ गई..मेरे लेख की.." तुषार सिंह ने आश्चर्य से पूछा

"यार..26 जनवरी के एक फंक्शन में चीफ गेस्ट बनके जाना है.. अरे वो अपना मिश्रा है न..उसके ही स्कूल में..तो तेरी लिखी स्पीच मार दूँगा.. और तालियाँ बटोर लूँगा हा हा हा " संजय ने आँख मारते हुए कहा

"हा हा हा...ठीक है ..रुक...अभी लिख देता हूँ..." तुषार सिंह ने हँसते हुए अभी ये कहा ही था कि उनकी पत्नी ट्विंकल की किचेन से आवाज आई

"कुछ जरुरी सामान ला दो पहले..फिर लिखने बैठना..राहुल भी आज नहीं आया है..चार पाँच चीजें हैं..तुम ले आओ प्लीज़..और हाँ भूल न जाओ इसलिए पर्चा बना दिया है"

"क्या यार..तुम्हारा भी न..अच्छा लाओ ला देता हूँ..संजय तू बैठ..चाय पी..मैं अभी आता हूँ..कहकर उन्होंने परचा लेकर जेब में डाला और और टहलते हुए पास की किराने की दुकान पे पहुँच गए और पर्चे की लिखी दस बारह चीजें निकलवा लीं दुकानदार ने पैसे काटे और दूसरा ग्राहक देखने लगा

"अरे..भाई ले कैसे जाऊँगा..कुछ पन्नी वन्नी तो दो.." तुषार सिंह ने दुकानदार से कहा

"भाई साहब..सरकार ने पॉलिथीन पे बैन लगा दिया है...पलूशन बहुत होता है इससे..और कितने पशु इनको खाकर मर जाते हैं"दुकानदार ने कहा

"अरे यार..वो सब तो ठीक है..देखो एक आध पड़ी हो तो दो.." उन्होंने कहा

"न साहब..झोला लेकर चलने की आदत डालिये..वैसे भी पन्नी देने और लेने वाले पर अब सजा भी लागू है..आपकी एक पन्नी के लिए अपनी दुकानदारी चौपट कर लूँ क्या.." दुकानदार और ग्राहकों को डील न कर पाने के कारण झुँझला के बोला

"बात कैसे कर रहा है तू...मुझे क़ानून मत समझा..चुपचाप एक पन्नी में सारा सामान डाल के दे" तुषार सिंह तैश में आ गए और लगे दुकानदार को हड़काने लगे "तू मुझे जानता नहीं..मैं कौन हूँ..बड़ा आया कानून समझाने वाला.. कितने लोगों को मैं ज्ञान देता रहता हूँ..और तू मुझे समझा रहा है"

"ये लो..आप अपने पैसे वापस पकड़ो..पन्नी होती भी तो अब नहीं देता.. और अब सामान भी नहीं दूँगा.. दूसरों को सब ज्ञान देते हैं..पर खुद मानने पे आये तो धौंस दिखाते हैं..."दुकानदार ने गुस्से में पैसे उनको वापस कर दिए और सामान वापस अंदर रख लिया

तुषार सिंह अपना सा मुंह लेकर वापस घर में आ गए..उनकी पत्नी ने पूछा
"अरे सामान नहीं लाये..क्या हुआ ?"

"यार दिमाग मत खराब करो..अभी थोड़ी देर में जाऊँगा..एक कप चाय पिलाओ पहले..और हाँ..एक झोला देना मुझे...कुछ नहीं हो सकता इस देश का" आखिरी पंक्ति बुदबुदाते वो ड्राइंग रूम में चले गए ।

-तुषारापात®™

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