Friday 11 March 2016

गुल्लक की कैद

आज फिर एक पार्टी में उससे मुलाकात हो गई..हमेशा की तरह हदीस कंपनी के हॉट शॉट्स के साथ अपने कॉन्टैक्टस बनाने के लिए उनके आगे पीछे घूम रहा था..और वो एक फिरोजी रंग की साड़ी में अपनी खूबसूरती छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए बॉस की मैम के साथ इधर उधर की बातें कर रही थी..उसके चेहरे से साफ था..कि वो बोर हो रही थी..तभी मैम किसी दूसरे गेस्ट का वेलकम करने चली गईं..एक सॉफ्ट ड्रिंक का गिलास ले मैं उसकी तरफ बढ़ा

"आज तो कोई आसमान लपेट के जमीं पे उतरा है..पर चाँद से चेहरे पे ये ग्रहण क्यों" मैंने उसे ग्लास देते हुए कहा

उसने मेरे हाथ से ग्लास लिया एक सिप लगाया और बोली "हम्म... शायरी... लगता है ये सितारा शराब में डूब के आया है..वैसे थैंक्स मेरी नहीं..मेरी साड़ी की तारीफ ही सही.."

"आसमान से टूटा सितारा..अक्सर नशे के समन्दर में गिरता है.. खैर मेरी छोड़ो तुम बताओ...आयत..कॉलेज की सबसे ब्रिलियंट लड़की आज एक हाउस वाइफ बन के कैसे रह गई...याद है कितना झगड़ा किया था तुमने मुझसे ये कहकर कि मैं अभी शादी नहीं करना चाहती मुझे ये करना है वो बनना है ऑल दैट.." पिछली यादों की रौ मैं थोड़ा तल्ख़ हो उठा

उसने एक सांस में ग्लास खाली किया...ग्लास पास की टेबल पे रखा और बोली "ओह इतनी कड़वाहट वेद...कॉलेज टाइम पे हम सपनों में जीते हैं...बाद में पता चलता है हमें कि..दुनिया के कटोरे में सपने रेजगारी की तरह होते हैं.. जो खनकते खूब हैं पर उनसे कुछ खरीदा नहीं जा सकता.. भूल जाते हैं दुनिया नोटों से चलती है चिल्लर से नहीं.."

"पर तुम्हारे जैसे नायाब सिक्के को सहजने के लिए ये गुल्लक हमेशा थी" मैंने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा

उसने अपना हाथ मेरे हाथ में रहने दिया एक नजर हदीस को देखा और मुझसे बोली" वेद..जानते हो नायाब होना या लाजवाब होना बहुत बेबस भी बनाता है..खासतौर पे एक लड़की को...लड़की जितनी ज्यादा ब्यूटीफुल हो..टैलेंटेड हो..उतने ही ज्यादा लड़के उसे अपना बनाने के लिए लगे रहते हैं"

"अच्छा..तो अब मैं तुम्हारे लिए उस भीड़ का एक हिस्सा भर हो गया.. आयत...खूब दुनियादारी सीख ली तुमने भी"मैं उसकी बात काटते हुए बोला

"बात पूरी न होने देने की आदत अब तो छोड़ दो..." उसने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा

"हम्म..बताओ...सुनूँ तो बेमिसाल बेबस कैसे हो जाता है" मैंने डिब्बी से एक सिगरेट निकाली पर सुलगाई नहीं

"तुमने कॉइन्स कलेक्टर देखे हैं...जो अनोखे अनोखे सिक्के इकठ्ठा करते हैं.. वेद...सिक्के का अनोखा होना ही उसकी मुसीबत बनता है ..उसे पकड़ के गुल्लक में बंद कर दिया जाता है...और...बाजार की खुली हवा से महरूम कर दिया जाता है..अनोखे सिक्के को गुल्लक में बंद होना ही है...फिर क्या फर्क पड़ता है वो वेद की गुल्लक हो या हदीस की" कहकर वो चली गई

"आयत..तो कम से कम इस खाली गुल्लक को तोड़ती ही जाओ.." मैं चीख के उससे ये कहना चाहता था पर वो जा चुकी थी...गुल्लक के मुंह में सिक्के की जगह सुलगती सिगरेट लग चुकी थी और धुआँ खनकने लगा था।

-तुषारापात®™

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