Monday 15 February 2016

त्रिवेणी

"अरे..अरे..ये क्या..मुझे सर्दी लग गई तो" आयत ने अपने सर के ऊपर आई पानी की बूंदे पोछते हुए वेद से कहा

"गंगा के जल को तुम्हारी माँग में भर रहा हूँ.." वेद ने उसकी ओर एक और छींटा मारते हुए कहा

"क्यों गंगा को अपवित्र कर रहे हो...आयत गंगा में घुल गई तो काशी में तुम्हारे पापा इससे स्नान भी न करेंगे" आयत ने हँसी हँसी में कड़वी सच्चाई कह दी

"जिस गंगा के किनारे बड़े बड़े वेद पुराण विकसित हुए हों वो क्या एक आयत से अपवित्र हो सकती है...खैर...आज वैलेंटाइन डे पर...संगम की ये हसीं शाम..नाव पे तुम्हारा साथ... कम से कम आज तो ख्वाबों में तैरने दो...यथार्थ की जमीन पे तो रोज चलते ही हैं" वेद ने चुभी हुई सच्चाई के काँटे को गंगा में बहा देना चाहा

"हाँ ये तो है..पर वैलेंटाइन डे पर कोई लड़का किसी लड़की को तीर्थ पे लेकर आता है क्या..बुढऊ हो तुम तो.." आयत ने ठिठोली की

"देखो...प्रेम का इससे अच्छा उदाहरण और कहाँ मिलेगा... देखो इस संगम को... यहाँ रोज ये नजारा रहता है.. ये किसी खास दिन का मोहताज नहीं.. रोज ही गंगा यमुना का संगम होता है यहाँ.. यमुना अपना सबकुछ गंगा में समाहित कर देती है..सबकुछ...अपना नाम तक.. पवित्र प्रेम की पराकाष्ठा है यहाँ" कहकर वेद उसका हाथ अपने हाथ में लेकर संगम के जल में डुबो देता है..ठंडा पानी उनके हाथों की गर्मी सोखने लगा

आयत चप्पू की तरह जल में अपना और उसका हाथ चलाने लगती है.."हाँ..पर इससे आगे कोई इसे संगम का जल नहीं कहता... सब इसे गंगा ही कहते हैं... शायद लोग 'गंगा' में 'जमुना' का मिलन नहीं स्वीकार करना चाहते.. यमुना गंगा से मिलकर..गंगा होकर पवित्र हो जाती है..मगर आयत कभी ऋचाओं जैसी पवित्रता नहीं पा सकती...आयत और वेद का संगम समाज को स्वीकार नहीं है....आयत ने डबडबाई आँखों से डूबते सूरज को देखते हुए कहा

"हाँ ये संगम उन्हें स्वीकार नहीं है..पर जानती हो क्यों..क्यों ये संगम स्वीकार नहीं है ?"वेद ने ऐसे कहा जैसे उससे पूछ न रहा हो बल्कि खुद को बता रहा हो

"क्यों" आयत की आँखें किसी भी क्षण बस पिघलने वाली थीं

"क्योंकि सही ज्ञान देने वाली सरस्वती बहुत पहले ही विलुप्त हो चुकी है" कहकर वेद अपने दोनों हाथों में संगम का जल भर के आयत की ठोड़ी के पास ले गया आयत की बाँयी आँख से एक धारा पिघल आई और संगम के जल में जा मिली त्रिवेणी पूर्ण हो चुकी थी ।

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