Wednesday, 30 September 2015

हिसाब

हिसाब के कच्चे तो नहीं हैं हम आप बताइये ?

'पूरे चाँद की एक आधी रात उधार ली थी तुमने हमारी
चौथ की दो चांदनी रातों से कभी कर्ज़ा अदा कर जाओ'

-तुषारापात®™

Tuesday, 29 September 2015

पिज्जा

जोर की भूख में
पहला दूसरा टुकड़ा
फटाफट खत्म होता है
तीसरा टुकड़ा भी
धीरे धीरे किसी तरह टूँग ही लेता हूँ
पर चौथा न खाया जाता है न फेंका
प्लेट में पड़ा पड़ा
ख़राब हुआ करता है
तुम्हारे बिन
सुबह दोपहर शाम और रात
दिन के मेरे ये चार हिस्से
मानो उसी
लार्ज पिज्जे के चार टुकड़े हों ।

-तुषारापात®™
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Sunday, 27 September 2015

पितृदोष

पितृपक्ष शुरू हो गया है मैंने कई लोगों को पितृदोष के उपाय पूछते देखा है और उसके लिए तरह तरह के उपाय करते भी देखा है लेकिन बगैर इसे जाने हुए कि ये है क्या ? क्या ये वाकई कोई दोष है ? या ये महज एक भ्रम मात्र है ?
पितृदोष का स्वरुप वैसा नहीं है जैसा कि आपकी कुंडली देख के कोई बता देता है और आप लग जाते हैं पूजा पाठ में या कौओं को खाना खिलाने में या किसी अमावस्या को पानी में कुछ बहाने में
हम अपनी मान्यताएं और मूल विचार भूलते जा रहे हैं और इसी मूल से हमारे विचलन का नाम है पितृदोष और ये व्यक्तिगत न होकर सामूहिक है मैं तो कहूँगा कि ये दोष पूरे भारत को लगा हुआ है हम अपनी परम्पराओं और विचारों को अपनाना छोड़ते गए और पराजित होते गए अब यहाँ ये समझना आवश्यक है कि प्राचीन ज्ञान को उसकी उसी अवस्था में छोड़ देना उस ज्ञान को विकसित न करना ही अपनी परम्परा छोड़ना है अब आप में से कई कहेंगे कि पुरानी और सड़ी गली मान्यताओं को ढोना कहाँ की समझदारी है तो मैं ये कहूँगा उन्हें विकसित करने की जिम्मेदारी हम सब की ही थी क्या कोई बाहर से आकर उन्हें विकसित करेगा ? पुरानी मान्यता थी कि सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता था और इसी मान्यता को जब और अधिक विकसित किया गया तब पाया गया कि नहीं पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है इसलिए हर मान्यता हर विचार का महत्व है जरुरत है उसे विकसित करने की अगर आप ऐसा नहीं करते तो आप पर दोष लगेगा ही आप इससे बच नहीं सकते
हमारी संस्कृति और धर्म जो कि पूर्णतया वैज्ञानिक है हमें यही सिखाती है कि आपने इस संसार के जितने संसाधन प्रयोग किये या कहूँ भोगे तो उनके बदले में आप भी कुछ कीजिये उन संसाधनों का संरक्षण और विकास भी कीजिये (इसी लिए नदियों को देवी और सूर्य आदि को भगवान का स्थान दिया गया) अगर आप ऐसा नहीं करते तो आप दोषी हैं
अगर आप पितृदोष से मुक्त होना चाहते हैं तो इसका बहुत साधारण सा उपाय है कि अपने आने वाली पीढ़ी में पुरानी पीढ़ियों के विचारों का बीजारोपण कीजिये और उन्हें उनमे सुधार लाने और उन विचारों को विकसित करने की दिशा दिखाइए हर एक व्यक्ति को ये करना होगा और एक दूसरे को जागरूक करना होगा तभी ये दोष राष्ट्र से हटेगा और खुशहाली आएगी वरना व्यक्तिगत कष्ट भी दूर नहीं होगा आप चाहे जितना उपाय कर लें
अपने बच्चों को उचित संस्कार देकर सही वैज्ञानिक सोच देकर ही आप अपने पुरखों को तृप्त कर सकते हैं क्यूंकि उनके द्वारा उत्पन्न विचार और उन विचारों के आविष्कार व्यर्थ जा रहे हैं वो अतृप्त हैं और यही आप पर दोष है और इसका यही एक मात्र उपाय है जो ऊपर बताया गया है वरना चाहे करोड़ों कौओं को आप खाना खिलाते रहें और पेड़ काटते रहें ये दोष नहीं हट सकता और इसका भुगतान पूरे राष्ट्र को करना पड़ेगा।

-तुषारापात®™
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Thursday, 24 September 2015

सच्चा लेखक

दो लफ्ज़ लिखने को सौ लोगों को पढता हूँ
सच्चे किस्सों से झूठी कहानियां गढ़ता हूँ

-तुषारापात®™

Monday, 21 September 2015

मूर्ती पूजा से मोक्ष तक

अजब है बंदगी तेरी
तू पहले ही घर में दस्तक दिया करता है
दो कदम चल के तो देख
उस बंद गली के
आखिरी मकाँ का दरवाजा खुला रहता है

-तुषारापात®™
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Sunday, 20 September 2015

नसीब

अपनी पूरी दावात उड़ेल कर
खुदा ने नीले आसमान को स्याह किया
फिर चमकती कलम से कुछ लिख दिया
हाँ तुम्हें यकीन नहीं होगा
मगर ये चाँद तारे उसकी ही लिखावट हैं
मैं पढ़ता हूँ इन्हें हर्फों और लफ़्ज़ों की तरह
किसी रात जब आसमान साफ़ हो
मेरे साथ बैठना
नक्षत्रों की इबारतें तुम्हारी हथेली में दिखा दूँगा
तुम्हारा नसीब बता दूँगा
अपना नसीब बना लूँगा।

-तुषारापात®™
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Thursday, 17 September 2015

माँ

नहीं जानता,नहीं मानता कि
खाली बर्तन देख के निकलो
तो अपसगुन होता है या नहीं
गंगाजल देख के जाओ तो
काम बनता है या नहीं
पर जब किसी खास काम पे जाना होता था मुझे
तो माथा मेरा चूम लिया करती थी
हाँ अब कुछ कुछ समझा हूँ आखिर क्यों
माँ, तू भरी आँखों से मुझे विदा किया करती थी

-तुषारापात®™

Tuesday, 15 September 2015

शक्कर का टुकड़ा और चींटे

सुबह सुबह
चाय बना रहा हूँ
शक्कर का एक टुकड़ा
चम्मच से छिटक कर
जमीं पे गिर गया
चार पाँच चींटे
उस टुकड़े के पास चक्कर काटने लगे
और चीनी के उस टुकड़े को
खींचते हुए कहीं ले गए
ऐसा ही कुछ देखा था
कल शाम बस स्टॉप पे
जब ऑफिस से लौट रहा था
चाय बन गई है
चुस्कियों के साथ
अखबार का तीसरा पन्ना पढ़ रहा हूँ
'बस स्टॉप के पास बलात्कार!'

-तुषारापात®™
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Monday, 14 September 2015

ब्लैकबोर्ड का मुंह काला

चरित्र की सफ़ेद चॉक
लिखती है कई अक्षर
पल में उन्हें मिटाकर
कामना का डस्टर
ब्लैक बोर्ड का मुँह काला कर देता है।

-तुषारापात®™
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Sunday, 13 September 2015

कुत्ता कौन ?

ग्यारहवें माले के फ्लैट से 'भट्टाचार्या' साहब का पालतू कुत्ता पेडिग्री को मन लगाकर खूब चबा चबा के खाकर अपनी भूख शांत कर बिल्डिंग से बाहर के फूटपाथ पे आया ।
शंका समाधान के उपरांत उसने देखा की कुछ उसके जैसे ही चार पैर, एक दुमधारी जीव लुटे पिटे भूखे नंगे से 'फुटपाथ' पे लोट रहे हैं उसने कड़क आवाज़ में उनसे पूछा "ऐ कौन हो तुम लोग और यहाँ क्या कर रहे हो चोरी के इरादे से हो क्या ? लुच्चे कहीं के"

फूटपाथ पे लेते एक कुत्ते ने डरते डरते कहा "दोस्त हम भी तुम्हारी तरह ही कुत्ते हैं बस देसी हैं आवारा हैं गन्दा संदा खा के यहाँ फूटपाथ पे पड़े रात बिता रहे हैं"

भट्टाचार्या के कुत्ते ने कहा "कमीनो मुझे बेवक़ूफ़ बनाते हो अगर तुम कुत्ते होते तो मेरी तरह AC लगे फ्लैट में होते यहाँ फुटपाथ पे नहीं,अच्छी तरह जानता हूँ मैं फुटपाथ पे भूखे नंगे सोने वाले 'आदमी' होते हैं कुत्ते नहीं, चलो भागो यहाँ से"

-तुषारापात®™

Saturday, 12 September 2015

अमावस

वो अपने चिमटे से
चाँद सी रोटियाँ सेंक देती
मगर
आटे के खाली कनस्तर ने
उसे बताया कि अमावस है आज

-तुषारापात®™
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Thursday, 10 September 2015

पंख

सपनो के पंख
बचपन का ये हवाई सफ़र
फिर नहीं आएगा
उड़ लो जी भर के आज
कल इन्हीं परों पे
काबिलियत का बस्ता आ जायेगा

-तुषारापात®™

Wednesday, 9 September 2015

विज्ञान आओ करके सीखें

आपको आपके इश्क की सही स्थिति तब पता चलती है :-

जब आप अपनी प्रेमिका को ,अपनी रेशमी जुल्फों में कंघी फिरा फिरा के,बड़े प्यार से दिए आपके love letters के छोटे छोटे टुकड़े, उसी कंघे से चिपका चिपका के अपने छोटे भाई को 'विद्युत् चुम्बकत्व' पढ़ाते देखते हैं।

-तुषारापात®™


Tuesday, 8 September 2015

रेतघडी


कभी महसूस किया
रेतघड़ी में बंद रेत का दर्द
जाने कितनी बार
कभी उलट के कभी पलट के
उसे वक्त के पोस्टमैन सा दौड़ाते हो
मीलों का सफर छोटी सी इक डिबिया मेँ
ज़र्रा ज़र्रा उसका गर्म होकर प्यासा है
अब तो उसे काल के इस चक्र से आज़ाद कर दो
नम होकर बिखर जाने दो
समंदर की रेत बन जाने को

-तुषारापात®™

दिल की गुल्लक

सिक्कों सी खनखनाती तुम्हारी हँसी
अपने दिल की गुल्लक में संभाल रखता हूँ
तुम किसी और को देखकर मुस्कुराने लगे
मैं आजकल बड़ा कंगाल रहता हूँ

तुषारापात®™

Monday, 7 September 2015

रौशनी की दुकान

दिख न जाये दिन में उनके ऐब
आँख पे हमारी,आस्था की पट्टी लपेटतें हैं
रात में लगाते हैं रौशनी की दुकान
सुना है वो सूरज की फ़ोटू बेचते हैं
समझ नहीं आता क्या करूँ
रोऊँ कि दिल खोल के हँसू
दीपक की लौ पे नाचने वाले पतंगे
अँधेरा मिटाने की बात करते हैं
-तुषारापात®™

Sunday, 6 September 2015

मन

कुछ बरस पहले मनगढ़ंत ये बात हुयी
बड़े जोर से मन की नाव डूब गयी
मन भर पानी आँखों से रिसता गया
एक तपता रेगिस्तान मन बनता गया
पागल मन मुसाफिर बन चलता रहा
पानी पानी पानी मन ही मन रटता रहा
चलते चलते मन को अपनी नदी मिली
अब तो मन की बरसों की प्यास बुझी
सचमुच की नदी से जब सबकुछ मन का मिलता था
बहलने को मन चाहता क्यूँ फिर एक जादूगरनी मरीचिका ?

-तुषारापात®™

मसले


नाजुक है जरा ध्यान से :-

"
यूँ बातों की एक फूँक में उड़ जाते थे
ठन्डे गरम,अपने सारे मसले
अब लफ़्ज़ों की हवा से ख़ामोशी की आग बढ़ जाती है "

-तुषारापात®™