Sunday 23 August 2015

माँझी

पहाड़ों पे देवता रहते हैं अक्सर सुनता आया हूँ ये बात पर जब कोई पहाड़ों को काट के रास्ता बना दे तो खुद देवता हो जाता है आज फ़िल्म मांझी देखकर अभिभूत हो गया कहानी तो सच्ची है पर रजत पटल पे उसके प्रस्तुतिकरण के लिए केतन मेहता की जितनी तारीफ करूँ कम है साथ ही नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की अपने चरित्र में रच बस जाने की कला का लोहा मानना ही पड़ेगा उन्हें इस वर्ष का राष्ट्रिय पुरूस्कार मिले तो मुझे कतई अचरज न होगा।
दशरथ माँझी मुझे पता है तुम इतिहास में अमर नहीं हो सकोगे क्यूँकि तुम्हारा खून शाही नहीं है यहाँ तो जनता के पैसे से संगमरमर के सफ़ेद पत्थरों का ताजमहल बनाने वाले ही इतिहास में जगह बनाते हैं पर यकीन मानो तुमने इतिहास नहीं भविष्य का रास्ता बनाया है मैं अब जीवन में जब भी कभी हताश या निराश होऊँगा तुम्हें ही याद करूँगा सच में तुमने इस कहावत को बौना  साबित कर दिया कि पहाड़ तोड़ने से भी मुश्किल कोई काम है कोई नहीं
फ़िल्म देखते देखते स्वामी विवेकानंद जी की बात याद आ गई कि किसी नए कार्य को पहले जगहंसाई फिर विरोध और उसके बाद समर्थन मिलता है यहाँ भी यही हुआ कल्पना कीजिये आज से 50 60 साल पहले के भारत की तस्वीर की देश आजाद हुए अभी कुछ ही वर्ष हुए थे और छुआछूत,भेदभाव गरीबों का शोषण जैसी कुरीतियाँ समाज में अपने पैर जमाये बैठी थीं अजीब दोहरी मानसिकता थी एक तरफ तो कुछ लोगों को अछूत कहकर उन्हें छुआ भी नहीं जाता था दूसरी तरफ उन्हीं की बहु बेटियों से बलात्कार करने से कोई परहेज नहीं था मांझी जो काट रहा था वो ऐसी ही कुरीतियों का पहाड़ था चालीस किलोमीटर से चार किलोमीटर का रास्ता निकालने में सरकार को 50 साल से ज्यादा लग गए वो भी जब एक व्यक्ति 22 साल पहाड़ काटता रहा सरकार और भगवान् के सहारे बैठने से अच्छा है खुद ही तस्वीर बदलने की कोशिश की जाय..चलिए उठाइये अपने अपने छेनी हथौड़े और कीजिये एक जोरदार प्रहार भ्रस्टाचार के पहाड़ पे हाँ समय लगेगा पहले कुछ लोग हँसेंगे भी लेकिन एक दिन ये पहाड़ भरभराकर गिर जरूर जायेगा
किसी ने मुझसे पूछा था आखिर ये प्रेम है क्या जो शाहजहाँ ने ताजमहल बनवा दिया और माँझी ने पहाड़ काट दिया उनसे मैं कहना चाहता हूँ प्रेम एक शक्ति है ताकत है जो जिगर वालों के पास होती है और प्रेम करना उसे निभाना सनकियों का काम है एक सनकी ने अभी अभी आपको अपनी कलम से कोंचा है अगर आप में भी सनक है तो आप भी दूसरों को अपनी तरह से कोंचिये शायद पहाड़ खोदने से एक चूहा ही निकले पर कम से कम इतिहास में आप तो चूहे की तरह जीवन जीने वाले नहीं कहलायेंगे ।

-तुषारपात®™
© tusharapaat.blogspot.com

No comments:

Post a Comment