Tuesday, 26 July 2016

लव ऐट फर्स्ट साइट

वो अपने दोस्त को बी4 में बिठा के अपने कोच बी1 में आया है,डिब्बे में हल्का सा उजाला है ज्यादातर लोग सो रहे हैं जो लोग अभी कुछ देर पहले कानपूर से चढ़े हैं वो भी लेट चुके हैं और क्यों न लेटें रात के साढ़े बारह से ऊपर का टाइम जो हो चूका है,ट्रेन भी अपनी रफ़्तार में है।

वो अपना सीट नम्बर ढूँढता धीरे धीरे आगे बढ़ता है हाँ ये रही 16 नम्बर अरे पर ये क्या इसपर तो कोई और सो रहा है वो थोड़ा तैश में आकर उसे जगाने वाला होता ही है कि सोने वाले का एक पैर कम्बल से बाहर आता है डिब्बे में जल रही एक मात्र लाइट के रिफ्लेक्शन से उस पैर में पड़ी पायल चमकने लगती है हल्के अँधेरे में भी वो पंजे की गुलाबी रंगत देख लेता है फिर कुछ हिचकते हुए कहता है "एक्सक्यूज़ मी... मिस.. अ..मैडम.. सुनिये ये मेरी बर्थ है.."

कम्बल हटता है वो हलकी नींद से जागी चेहरे पे बिखरे बाल लिए उठती है और एक सिस्का एल ई डी सा चमकता चेहरा देखके वो ठगा सा खड़ा रह जाता है कुछ बोल नहीं पाता वो कुछ देर तक उसे देखती है फिर पूछती है "ओ हेल्लो...इतनी रात को क्या मुझे ताकने के लिए उठाया है?"

वो हड़बड़ाते हुए जल्दी से कहता है "अ.. आप मेरी बर्थ पे हैं...ये बी1 16 ही है न.. ये मेरी सीट है"

"व्हाट रबिश...ऐसा कैसे हो सकता है...अपना टिकेट चेक करो.."उसने अपने बालों को बाँधते हुए थोड़ा जोर से कहा आसपास के लोग भी अब इंटरेस्ट से उनकी बात सुनने लगे

उसने 15 नम्बर की सीट पे लगा स्विच ऑन कर कूपे में लाइट जलाई और अपना टिकेट निकाल कर उसे पढ़के सुनाने लगा "अबोध श्रीवास्तव मेल 28 कोच बी1 सीट नम्बर 16 कानपूर सेंट्रल टू न्यू डेल्ही प्रयागराज एक्सप्रेस...ये देखिये" कहकर अबोध ने उसके हाथ में टिकेट दे दिया उसने उलट पुलट कर टिकेट देखा फिर अपने पर्स से अपना टिकेट निकाल कर उसे सुनाया "प्रयागराज एक्सप्रेस...बी1..16..कानपूर सेंट्रल टू न्यू देहली.. चैतन्या मिश्रा..24" कहकर चैतन्या ने अबोध को अपना टिकेट दिखाया और वापस रख लिया

अबोध हल्का सा परेशान हुआ पर उसके हिलते गुलाबी होंठ और चमकते दाँतों में खुद को गुम होता भी महसूस कर रहा था खुद को संभाल के वो कहता है "पर ऐसा कैसे हो सकता है...मैं तो प्लेटफॉर्म पे लगे चार्ट में भी अपना नाम देख के चढ़ा हूँ..मेरा एक फ़्रेंड भी बी5 में सफर कर रहा है... उसका सामान चढ़वाने में मुझे जरा सी देर हो गई..और इतनी देर में आप मेरी सीट.."

"भई.. आप लोग टी टी से बात करिये..ये साला रेलवे डिपार्टमेंट का सर्वर कुछ भी कर सकता है..एक ही सीट पे दो दो लोगों को टिकेट वाह" 15 नम्बर की सीट पे लेटे इलाहाबादी अंकल आखिर कब तक बीच में न बोलते,इतने में टी टी आ जाता है अबोध उसे सारी बात बताता है टीटी चार्ट में नाम चेक करता है और वो चैतन्या से टिकेट माँगता है वो अपना टिकेट दिखाती है टिकेट देख कर टीटी मुस्कुराते हुए कहता है "मैडम आपका टिकेट इसी ट्रेन..इसी कोच..इसी सीट का है..पर..बस एक छोटी सी समस्या है..आपको कल इस ट्रेन से सफर करना था"

"क्या मतलब...टिकेट आज का ही तो है..26 जुलाई..देखिये डेट भी पड़ी है इसपर.."चैतन्या ने हड़बड़ाते हुए कहा

"मैडम...प्रयागराज कानपूर सेंट्रल 12 बजकर पाँच मिनट पर पहुँचती है.. और रात 12 बजे के बाद डेट बदल जाती है..टेक्निकली..आज 27 है.. आपकी ट्रेन कल जा चुकी है..अब आप इन्हीं के साथ सीट शेयर करिये ट्रेन पूरी फुल है..सीट नहीं है...मैं अभी लौट के आता हूँ आपके पास" टीटी ने कहा और आगे टिकेट चेक करने चला गया

स्थिति बदल चुकी थी अभी जो मास्टर था वो अब बेग्गर हो चुका था "सॉरी.. आई एम सो स्टुपिड..बट मेरा दिल्ली पहुँचना बहुत जरूरी है.. कैन आई शेयर विद यू......" चैतन्या ने अपनी बड़ी बड़ी आँखें नचाते हुए अबोध से कहा,अबोध के मन में कैडबरी वाले न जाने कितने लड्डू फूटे उसने कहा "श्योर..बट वेट अ मिनट...अंकल आप ऊपर वाली सीट पे चले जायेंगे प्लीज हमें थोड़ी सुविधा हो जायेगी" उसने 15 नम्बर की साइड लोवर वाले अंकल से कहा और वो मान गए चैतन्या ऊपर से उतर के नीचे आई गुलाबी सूट में उसकी सुंदरता और निखर रही थी अबोध उसे देखता ही रह गया दोनों आधी आधी सीट पे बैठ गए और आपस में बातें करने लगे,अबोध तो उसपर दिल ही हार बैठा था उनके बीच मोबाइल नम्बर एक्सचेंज हुए और बात करते करते दोनों दिल्ली आने से थोड़ा पहले सो गए।

ट्रिंग ट्रिंग...ट्रिंग...मोबाइल की घंटी बजती है..चैतन्या मोबाइल पर अबोध का नम्बर देखती है और म्यूट करके एक तरफ रख देती है उसकी रूममेट उससे पूछती है "किसका फोन है जो उठा नहीं रही..?"

"आज ही ट्रेन में साथ आया है...थोड़ा भाव दिखाना जरूरी है..वही अपनी पुरानी कानपूर सेंट्रल से प्रयागराज वाली ट्रिक में फँसा नया मुर्गा है... पिछली बार फँसा अंकल तो बस चार महीने टिका था...पर ये यंग है और रिच भी...आठ दस महीने तो ऐश कराएगा ही" चैतन्या ने आँख मारते हुए कहा और फिर अबोध को फोन कर कहा "हाई.. वो मैं न..मैं..नहा रही थी.........."

लव ऐट फर्स्ट साइट जैसी घटना लाखों में किसी एक की सच्चाई बनती है और मेरे लाल तुम बाकी के 99999 में हो जिन्हें लड़कियाँ__________ बनाती हैं (रिक्त स्थान की पूर्ति अपने मन में करें,कमेंट में नहीं)

मन करे तो शेयर करो,जनहित में जारी द्वारा-
-तुषारापात®™

Friday, 22 July 2016

विश्वास...आस्था का

"याद है पिछले साल जब हम लोग शिमला घूमने गए थे तो कुफरी में मौसम अचानक खराब होने से..कितनी बुरी तरह...घंटों..वहाँ फँसे रहे थे..गॉड कितना भयानक तूफान था..."आस्था बिस्कुट को चाय में डुबोती हुई बोली

"हाँ..याद है...पर मैडम..सुबह सुबह वो सब कहाँ से याद आ गया...अरे देखो...ये लो..गया तुम्हारा बिस्कुट चाय में" विश्वास उसके कप की ओर इशारा करते हुए तेजी से बोला

आस्था ने उस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया वो उँगलियों में फँसे बचे हुए बिस्कुट के टुकड़े को फिर से चाय में डुबोने लगी और बोली "विश्वास कल रात मैंने न...एक बहुत ही अजीब सपना देखा.."

"सपना...कैसा सपना" विश्वास चाय का एक सिप लगाता है और प्लेट से एक बिस्कुट उठाते हुए उससे पूछता है

"मैंने देखा कि हम लोग वैसी ही किसी बहुत ठंडी जगह में फँस गए हैं... चारों ओर सिर्फ बर्फ ही बर्फ हैं...और हम..दो तीन दिनों से वहाँ भटक रहे हैं...खाने पीने का सारा सामान खत्म हो चुका है..भूख से बेहाल हम दोनों थक के एक जगह निढाल होकर पड़ गए हैं...और अब दोनों में से किसी एक से एक कदम भी उठाया नहीं जा रहा" आस्था ऐसे बोलती गई जैसे अभी भी वो वहाँ फँसी हो,डर उसकी आवाज से साफ महसूस किया जा सकता था

विश्वास सुनता गया और शरारती अंदाज में बोला "वैसे जान बड़ा रोमैंटिक सीन होगा न...दूर दूर तक..सिर्फ सफेद उजली बर्फ..और हम दोनो बिल्कुल अकेले...वो भी 'भूखे'...."कहकर उसने हलकी सी आँख मारी और मुस्कुराया

आस्था भी हल्के से मुस्कुरा दी और आगे कहने लगी "आगे तो सुनो....हम लोगों का बेस कैंप वहाँ से लगभग दस ग्यारह किलोमीटर दूर है..ये बात मैं तुम्हें बताती हूँ..पता नहीं सपने में अचानक से तुम इतने स्मार्ट कहाँ से हो गए..जो कहते हो कि अगर कुछ खाने को मिल जाए तो.. हममें ताकत आ जायेगी और हम अपने बेस कैंप तक पहुँच सकते हैं...और मजे की बात मुझे तुरंत ही..अचानक से..एक पैकेट में दो रोटियाँ घी से चुपड़ी हुई मिल भी जाती हैं..मगर..."कहते कहते वो चुप हो जाती है और चाय में बिस्कुट का वो बचा टुकड़ा भी छोड़ देती है

"मगर..मगर क्या...आगे तो बोलो.." विश्वास उतावला हो उससे पूछता है

"मगर वो दोनों रोटियाँ...तुम मुझसे छीन के खा जाते हो...मुझे एक टुकड़ा भी नहीं देते..और तभी मेरी आँख खुल जाती है" आस्था ने मायूस आवाज में कहा

"हा हा हा हा..तुम औरतें सपनो में भी अपने पति को ऐसे ही देखती रहती हो..कमाल है...वैसे सपना है सपने में तो हम कुछ भी देखते हैं.."विश्वास हँसते हँसते ही बोला

"हँसों नहीं...मैं सीरियस हूँ...भूख तो हम दोनों से ही नहीं सधती है...ऊपर से तुमने उस समय जब मैं तीन दिन से भूखी थी..अकेले ही वो दोनों रोटियाँ खा लीं...एक तो मुझे दे सकते थे न...कभी अगर ऐसा कुछ रियल वर्ल्ड में हो तब भी क्या तुम ऐसा ही करोगे? बताओ न..क्यों किया तुमने ऐसा ?" आस्था मोस्ट कॉमन स्त्री चिंता मोड में आ चुकी थी

"तुमने सपना अधूरा ही छोड़ दिया...पूरा देखती तो पता चलता न...अच्छा सुनो...मैंने क्यों किया ऐसा..हमें बेस कैंप तक पहुँचने की ताकत चाहिये थी..एक एक रोटी खाने से हमारी ताकत बँट जाती...इसलिए वो दोनों रोटी मैंने खाईं...और..तुम्हें..अपनी बाहों में उठाकर..ग्यारह किलोमीटर चलकर ...बेस कैंप में ले आता हूँ और इस तरह हम दोनों सेफ हो जाते हैं और हमारी जान बच जाती है" कहकर वो आस्था को झट से अपनी बाहों में उठा लेता है और दोनों की खिलखिलाहट कमरे में गूँजने लगती है।

आस्था की चाय में पड़े बिस्कुट के दोनों टुकड़े घुल चुके थे।

-तुषारापात®™ 

Monday, 18 July 2016

गिरहबान

उसने अपना टॉप उतारा और दरवाजे पे लगी खूँटी पे टाँग दिया बालों में लगा क्लच निकालकर बेसिन पे रखा और नल खोल दिया पानी बाल्टी में भरने लगा अपना लोवर उतारने ही वाली थी कि उसे दरवाजे और बाथरूम की जमीन के बीच की दराज से एक रुकी हुई परछाई नजर आई उसने झट से अपना लोवर ऊपर किया और टॉप वापस पहनकर तुरंत दरवाजा खोला परछाई जा चुकी थी उसने बाहर निकल कर भी देखा कोई नहीं था मम्मी किचेन में थी पापा पूजा कर रहे थे और भाई लॉबी में बैठा मोबाइल पे लगा हुआ था
अजीब से एक डर के साथ वो धड़कते दिल से वापस बाथरूम में आई और जल्दी जल्दी नहाने की रस्म सी पूरी की

कई दिनों से उसे लग रहा था कि कोई उसे नहाते हुए देखने की कोशिश करता है उसके अंतः वस्त्रों के साथ भी खिलवाड़ हो रहा था एक बार तो कुछ चिपचिपा सा...उफ़्फ़ सोच के ही उसे उबकाई आई

कॉलेज जाने की पब्लिक बस की कई गन्दी छुहन उसके लिए अब आम हैं राह चलते उसके यौवन का मापन करती नजरें उसे पहले चुभती थीं अब नहीं ,अपने टीचरों और साथ पढ़ने वाले लड़कों के 'सहयोगी' रवैये को भी खूब समझती है उनके इस अति सहयोगात्मक रवैये से वो अपने कई काम निकलवाने की खूबी भी ईजाद कर चुकी थी अपने बॉयफ्रेंड के साथ वो ओपन थी ये सब तो उसे आम लगता था पर अपने घर में हो रहीं हरकतें उसे बहुत परेशान करती थीं

रात में खाना पीना निपटा के हर युवा की तरह अपने कमरे का दरवाजा बंद कर वो भी इंटरनेट पे आ जाती कुछ देर फेसबुक पे रहती उसके लिए लार टपकाते लोगों के मैसेज देखती कुछ के साथ थोड़ी बहुत चुहलबाजी करती और फिर अपने बॉयफ्रेंड के साथ रात भर वीडियो चैट पे बतियाती रहती

आज की रात भी वो अपने बॉयफ्रेंड के साथ मूड में आगे बढ़ रही थी कि उसके कमरे के दरवाजे पे दस्तक होती है वो जल्दी से अपने कपड़े ठीक करती है और मोबाइल तकिये के नीचे छुपाकर दरवाजा खोलती है उसका भाई कमरे में घुस आता है दरवाजा बंद करता है और उसे पकड़ के कहने लगता है कि उसे सब पता है कि वो अपने बॉयफ्रेंड के साथ क्या क्या गुल खिलाती है और मोबाइल पे क्या क्या दिखाती रहती है वो भी उससे सब कुछ दिखाने की डिमांड करने लगता है धक्का मुक्की होने लगती है और अचानक भाई के धक्के से उसका सर टेबल से टकराता है और वो सिसक सिसक के मरने लगती है

उसका भाई मम्मी पापा को बताता है कि वो किस तरह परिवार की इज्जत खराब कर रही थी उसका मोबाइल उठाकर चैट की पहले से ऑन विंडो पर उसकी सारी करतूतें उन्हें दिखाता है

केस मीडिया में भी उछलता है लोग चटकारे लगा लगा के खबर देखते हैं कुछ उसकी फेसबुक प्रोफाइल ढूंढते हैं कुछ नए जोक्स भी बनते हैं कई इंसेस्ट पॉर्न वीडियो देखने वाले ,लड़कियों के इनबॉक्स में नंगी फोटो भेजने वाले और आपसी रिश्तों में सम्बन्ध वाली मस्तराम की कहानियाँ पढ़ने वाले भी यही कहते हैं "उसके भाई ने जो किया सही किया ऐसी गन्दी लड़कियों के साथ ऐसा ही होना चाहिए।"

पुरुष अपने गिरहबान में नहीं झाँकते क्योंकि उन्हें स्त्रियों के गिरहबानो में झाँकना पसंद है।

-तुषारापात®™

Friday, 15 July 2016

छोटू

"जिज्जी...मुकुंद को सुबह दस..साढ़े दस बजे के बीच तुम्हारे घर इसीलिए भेज देती हूँ... यहाँ तो एक टाइम (रात) का खाना ही बन जाए तो बहुत है...मोहल्ले की औरतों से सिलाई कढ़ाई का काम कभी कभी ही मिलता है" रजनी ने घर आई अपनी बड़ी ननद कुसुम के एक सवाल के जवाब में ये कहा और उससे अपनी आँखें चुराते हुए थोड़ी दूर बैठे अपने सबसे छोटे बेटे मुकुंद को देखने लगी

"भाभी...भईया ने तो शराब में अपने को बर्बाद कर डाला है.. समझती हूँ तभी तो तुमको अपनी गली के बगल वाली गली में मकान दिलवाया..... किराये वगैरह की चिंता मत करना...वो मैं देख लूँगी" कुसुम ने उसका हाथ दबाते हुए कहा

रजनी अपने एक कमरे के मकान में चारो ओर नजर दौड़ाती हुई,ग्लानि और कृतज्ञता से दबी भर्राई आवाज में बोली "जिज्जी तुम्हारा ही सहारा है ...बस मुकुंद जब सुबह आया करे...तो तुम खुद ही उससे खाने का पूछ लिया करो.....और अपने से उसे खाना दे दिया करो....वो माँगने में शरमाता है...कई बार भूखा ही लौट आता है...सात साल का ये लड़का अपना स्वाभिमान अच्छी तरह समझने लगा है"

"हाँ..मुझे ही ध्यान रखना था...पर नहीं पता था...भाभी...हालात इतने..." कुसुम के रुंधे गले से आगे आवाज न निकल पाई ,अपने को सँभालते हुए उसने आगे कहा "अच्छा भाभी चलती हूँ...हिम्मत रखना..भगवान दिन फेरेगा जरूर" रजनी उठी कुसुम के पैर छूकर उसने उसको विदा किया और घर के कामकाज में लग गई

कम पढ़ी लिखी रजनी के पति ने अपना सबकुछ शराब में भस्म कर डाला था,वो मोहल्ले में तुरपाई और फाल आदि लगाने का काम कर किसी तरह अपने तीनो बच्चों को पाल रही थी

इसी तरह दिन बीत रहे थे कि गर्मी की छुट्टियों में उसकी छोटी बहन किरण अपने पति के साथ उससे मिलने आई और उसकी स्थिति जानकर दुखी हुई किरण के पति जो पैसे से मजबूत माने जाते थे (उनकी दवा की दुकान थी) सबकुछ सुनकर एकदम से निर्णायक स्वर में बोले "दीदी..एक काम करो ये मुकुंद को हम अपने साथ लिए जाते हैं...यहाँ तो ये कुछ पढ़ लिख भी नहीं पायेगा...वहाँ आगरा में हम इसका एक स्कूल में एडमिशन करा देंगे आराम से पढ़ेगा और खा पीकर मस्त भी रहा करेगा" किरण को भी अपने पति का ये सुझाव बहुत पसंद आया उसने भी अपनी दीदी को इसके लिए राजी हो जाने को कहा

"पर ऐसे कैसे भेज दूँ...मेरे बगैर तो ये कभी एक दिन भी...कहीं नहीं रहा" रजनी ने सशंकित मन से कहा ,एक माँ चाहे जितनी मजबूर हो अपने बच्चे अपने कलेजे के टुकड़े को अपने से अलग करना उसके लिए आसान नहीं होता लेकिन मुकुंद के सुनहरे भविष्य के लिए वो किसी तरह हाँ कह देती है रजनी के पति को इसपे क्या ऐतराज होता उसकी तो एक बला ही छूटी थी

"नहीं माँ...माँ..माँ..मैं कहीं नहीं जाऊँगा... माँ मुझे खुद से दूर मत करो...मैं वादा करता हूँ...कभी खाने के लिए..तुम्हें..तंग नहीं करूँगा.."मुकुंद चिल्ला रहा था पर किरण और उसके पति ने उसे जबरदस्ती कार में बिठा लिया और रजनी से विदा ली,रजनी चौराहे पे खड़ी सुबक रही थी और जाती हुई कार को तब तक देखती रही जब तक वो आँख से ओझल न हो गई

आगरा में किरण का ससुराल एक संयुक्त परिवार था उसके पति और उनके भाइयों के भरे पूरे परिवार थे सास ससुर आदि सब एक साथ ही एक विशाल भवन में रहते थे मुकुंद का एक सस्ते मद्दे सरकारी स्कूल में पहली कक्षा में नाम लिखवा दिया गया और उसे नए कपड़े और भर पेट भोजन भी मिलने लगा पर वो अपनी माँ की याद में दुखी रहता था,धीरे धीरे वो नए माहौल में ढलने लगा

"छोटू... छोटू...ये ले जरा ये गर्म पानी की बाल्टी ऊपर छत पे नरेश चाचा को दे आ.." छोटी चाची की आवाज आई

"अरे..छोssटूss...कहाँ मर गया...स्कूल से आया और गायब हो गया...बहू ओ किरण...जरा छोटू को भेज बाजार...मेरी तंबाखू तो मँगवा दे..."किरण के ससुर चिल्ला रहे थे

स्कूल से वापस आकर वो अपना बस्ता भी नहीं रख पाता था कि उसके कानों में रोज ऐसी ही आवाजें...नहीं नहीं..चीखें सुनाई देने लगती थीं, वो उसे पढ़ा रहे थे,खिला पिला रहे थे,पर वे सब उसे उसके नाम से क्यों नहीं बुलाते हैं,साढ़े सात साल का लड़का अब ये अच्छी तरह समझ चुका था

माँ का लाडला 'मुकुंद' माँ-सी के यहाँ 'छोटू' हो चुका था।

-तुषारापात®™

Saturday, 9 July 2016

मलाई की गिलौरी

"देख बहु...तू नई नई आई है...इन नौकरों को ज्यादा सर पे मत चढ़ाना...सुवरिया का बाल होता है इनकी आँखों में"सासू माँ ने अंतरा को गृहस्थी की बागडोर सौंपते हुए नसीहत दी

"जी मम्मी जी" अंतरा ने हामी भरी

"और सुन ये लक्ष्मी से एक टाइम खाने की बात हुई है...जो भी बचा-खुचा हुआ करे दे दिया करना उसको...हाँ पहले बर्तन और पूरा झाड़ू पोछा करवा लिया करना...बहुत नालायक है एक काम ढंग से नहीं करती कम्बख्त" सासू माँ ने काम निकलवाने की तकनीक समझाई,अंतरा ने हाँ के अंदाज में सर हिलाया और उनके पैर छूकर उन्हें तीर्थ यात्रा पे विदा किया

अब आज से खाना बनाना और नौकरों से काम करवाने के सारे काम-धाम उसके जिम्मे हो चुके थे पंद्रह दिन में ही उसने पूरे घर का काया कल्प कर दिया,सबके पसंद का खाना घर में बनने लगा वो भी बिना खाना बर्बाद हुए और लक्ष्मी भी अपना काम अब अच्छे से करने लगी

"अरे अंतरा...ये क्या लक्ष्मी के आते ही तू उसे खाना दे देती है...वो भी आज का बना ताजा खाना.." सासू माँ तीर्थ से लौट चुकी थीं और आज पहली बार बदली हुई व्यवस्था और चमकते हुए घर को देख रहीं थीं

"हाँ मम्मी जी...बेचारी धूप में..थकी हुई और भूखी प्यासी आती है...खाना खिला दो तो.. फ्रेश मूड से खुशी खुशी मन लगाकर सारे काम अच्छे से करती है.."अंतरा ने मुस्कुराते हुए कहा

"पर उसे ताजा खाना देने की क्या जरूरत है...बासी बचा खाना बेकार जाएगा...मेरे बेटे की कमाई बर्बाद कर रही है तू तो"सासू माँ ने नकली चिंता में अपना पक्ष लपेट कर पेश किया

"मम्मी जी...खाना उसी हिसाब से बनाती हूँ कि ज्यादा खाना बेकार न् जाए...और...जब खाना सबके मन का बनता है तो बचता भी बहुत कम है ..अगर.थोड़ा बहुत बचता है तो हम सब मिलके उसे खत्म कर लेते हैं..लक्ष्मी को भी दे देते हैं...अब जब लक्ष्मी को रोज खाना खिलाना ही है...तो.. जबरदस्ती खाना ज्यादा बना के उसे एक दिन का बासी खिलाने से अच्छा है.. घरवालों की तरह उसका भी खाना ताजा ही बना लिया जाए" अंतरा ने उनके हाथ में एक प्लेट देते हुए कहा जिसमे मलाई की गिलौरी (लखनऊ की मशहूर मिठाई) के दो पीस थे

"अच्छा सुन...ये गिलौरी बहुत जल्दी खराब हो जाती है...सबको आज ही खिला देना...फ्रिज में रखने पर भी कल तक इनका मजा मर जायेगा"

"मम्मी जी...पर ये तो बहुत सारी हैं...सबके खाने के बाद भी बचेंगी" फिर उसने प्रश्नवाचक मगर मुस्कुराती नजरों से उनसे पूछा "नौकरों को आज ही दूँ...या......"

सासू माँ के चेहरे पे एक जोर की मुस्कान आ गई "तू तो मेरी सास हो गई है" कहकर खिलखिलाते हुए उन्होंने एक गिलौरी अंतरा के मुँह में भर दी।

-तुषारापात®™

Wednesday, 6 July 2016

आवास विकास योजना

"अमाँ आवास..बताये दे रहें हैं..बात बहुत अच्छी तरह दिमाग में बिठा लो...इस बार बीच में ना आना... मामला बहुत सीरियस है इस बार..कसम इमामबाड़े की..तुम्हारे यार को सच्चा वाला प्यार हो गया है" विकास ने अपनी दोनों आँखें पूरी गोल बनाते हुए कहा

आवास भी तैश में आ गया पान को चुभलाते हुए उसने जवाब दिया "वो तुमने घंटाघर वाला तिराहा देखा है न...तो ये समझ लो विकास मियाँ... मामला उसी तिराहे जैसा है..अब ये तो वही बताएंगी कि वो छोटे इमामबाड़े की तरफ (अपनी ओर इशारा करता है) मुड़ेंगी या बड़े इमामबाड़े (उसकी ओर इशारा किया) की तरफ जाएंगी"

"मतलब तुम अपनी भौजी को हमारी भाभी बनाने पे लगे हो...बस यही है तुम्हारी दोस्ती...अमाँ भाई मान जाओ...रास्ते से हट जाओ.....पहली बार जब उसका बस नाम ही सुने थे तभी से मोहब्बत हो गई थी उससे... हाय...योजना पांडे... और तुम तो जानते हो यार...ये 'पांडे' लड़कियाँ तुम्हारे इस भाई पे मर मिटती हैं... तुम्हारी कसम अगर ई पांडे नहीं होती तो हम बीच में न आते..." विकास गले पे चुटकी काटके कसम खाते हुए उससे बोला

"हाँ हाँ पता है ...तुम और तुम्हारा पांडे प्रेम...पिछली वाली पंडाइन के बच्चों के प्रिय मामा तुम्हीं हो.."आवास ने चटकारा मारा तभी सामने से योजना को अपने कुत्ते के साथ आते देख वो उसकी तरफ बढ़ा,विकास ने भी योजना को आते देखा वो भी उसके साथ हो लिया

"कैसी हो योजना...पांडे.."विकास ने पांडे पे जोर देते हुए मीठे स्वर में कहा

"जी माई सेल्फ वेरी मच फाइन..."उसने नए लखनऊ की अंग्रेजी में जवाब दिया और आवास से कुछ कहने ही जा रही थी कि विकास उसे थोड़ा किनारे ले जाकर कहने लगा "अरे कहाँ लफंगों के मुँह लगती हैं आप...कोई भी काम हो इस शरीफ बन्दे से कहिये...ये सब तो छिछोरे लड़के हैं.. लड़की को बस एक ही.. समझीं न.. एक ही नजर से देखते हैं"

"हाँ हाँ और ये भाई तो इतने शरीफ हैं कि 'टिप टिप बरसा पानी..पानी ने आग लगाई' वाले गाने में भी रवीना टंडन को नहीं..बस अक्षय कुमार को ही एकटक देखते हैं" आवास ने थोड़ा जोर से मजा लेते हुए कहा आसपास ठहाके गूँज गए

योजना उसे अनसुना करते हुए अपनी आँखें चमका के मीठी आवाज में विकास से बोली "मुझे न..अम्मा ने..मतलब मम्मी ने..इसे टहलाने भेज दिया है...मुझे बहुत 'इंसल्टी' फील होती है... वो...क्या...आप हमारे टॉमी को जरा पॉटी करवा देंगे..हम यहीं आपका इंतजार करते हैं"विकास का मुँह उतर गया पर जनाब कहते क्या खुद ही आगे बढ़कर बोले थे तो बस उसके हाथ से पट्टा लेकर कुत्ते को लेकर जाने लगा

आवास जोर से हँसा और बड़ी अदब (बनावटी) दिखाते हुए उसके पास आकर बोला "जाइये बड़े नवाब साहब ...जरा कुत्ते को पाखाने खास घुमा लाइए हुजूर..तब तक आपकी बेगम साहिबा का ध्यान हम रखते हैं" कहकर वो योजना के पास आया और उससे पूछा "ठंडा पियेंगी आप...अभी उसे टाइम लगेगा...आइये उधर दुकान पे चलते हैं"

"हाँ पर आप अपने दोस्त का इतना 'जोक' क्यों उड़ाते हैं" कहकर वो आवास के साथ ठन्डे की दुकान की तरफ चलने लगती है

"वो क्या है मियाँ भूल गए हैं...ये यू पी है यहाँ योजनाबद्ध विकास कभी नहीं होता..(फिर मुस्कुराते हुए कहता है)..हाँ आवासीय योजनाएं खूब घोषित होती रहती हैं" कहकर वो दुकान वाले चचा से दो स्प्राइट माँगता है।

-तुषारापात®™

Monday, 27 June 2016

Sin२θ + Cos२θ =1

"पति महोदय...ये तो मानते हो न...मुझसे बेहतर पत्नी तुम्हें किसी जनम में नहीं मिलेगी" Sin(साइन) पीछे से अपनी बाहों का 'चाप' उसके गले में डालके उससे सटते हुए बोली

कुर्सी पे बैठा वो डूबी आवाज में बोला "हाँ ये तो है...मैं तो ये भी मानता हूँ.. मुझसे बेहतर पति तो...तुमको हर जनम में मिल जाएगा"

"Cos (कॉज)...ये क्या...इतना डिप्रेसिव आन्सर...जब वाइफ मूड हल्का करने की बात यूँ गले लग के करे तो...हसबैंड को उसे...उसे चूमके अपनी सारी परेशानी दूर कर लेनी चाहिए" कहकर Sin ने Cos के माथे को चूम लिया,उसके माथे पे Sin के लिपस्टिक लगे होठों से एक लाल 'थीटा'(θ) सा निशान बन गया
Cos ने अपने माथे पे हाथ फेरा,हाथ में लग आई लिपस्टिक को उसकी साड़ी में पोछा और उसे कमर से थाम कर बोला "क्या करूँ...हर महीने कार और मकान की EMI निकालने के बाद कुछ हाथ में रह ही नहीं पाता... सारी सेलरी तो लगता है बस बैंक वालों के लिए ही कमाता हूँ...बार बार तुमसे पैसे लेना अच्छा नहीं लगता मुझको"
"तो क्या हो गया..ये गृहस्थी हम दोनों की है..इसे निभाने की जिम्मेदारी भी हम दोनों की है...किसी एक की तो नहीं..डिअर हब्बी ये मत भूलो.. Sin२θ + Cos२θ =1... यानी अपने अपने दायित्वों के वर्ग में हम दोनों साथ हैं तो 'एक' हैं...अब अगर कभी कभी कोई एक कुछ कम पड़ेगा.. तो..दूसरे को उतना बढ़ना ही पड़ेगा तभी तो गृहस्थी का 'एका' बना रहेगा..हम दो नहीं एक यूनिट हैं" Sin ने बातों बातों में जीवन का गूढ़ सत्य बता दिया

Cos का मन अभी भी अशांत था "पर मुझे लगता है पति होने के नाते.. सारे खर्चे मुझे ही उठाने चाहिए...तुम हमारी इस गृहस्थी के और भी तो कितने काम करती हो"

"अब अगर Cos ही सब कर देगा..तो फिर Sin का मान शून्य नहीं हो जायेगा..वो पुराना जमाना अब नहीं रहा...अब पति पत्नी दोनों को घर और बाहर दोनों तरह के काम करने होते हैं और खर्चे भी साथ उठाने होते हैं... और मेरे पति परमेश्वर....गणित में Sin45° और Cos45° का मान बराबर(1/√2) यूँ ही नहीं दिया गया...दोनों के 1/√2 के होल स्कवायर करने से 1/2..1/2 मिलता है....ये आधा मेरा और आधा तुम्हारा जोड़ के  बनी 'एक' गृहस्थी ही राईट एंगल(90°) वाली गृहस्थी कहलाती है"Sin ने काँधे पे पड़ी साड़ी को यूँ उचकाया जैसे कॉलर उचकाया जाता है
"वाह...मैथ्स टीचर..वाकई में तुमसे अच्छी पत्नी मुझे नहीं मिलेगी" कहकर Cos, Sin के गाल पे एक गहरा नीला 'थीटा' बनाने में मशगूल हो गया।
-तुषारापात®™

Wednesday, 15 June 2016

अर्धवृत्त

"कहाँ थीं तुम....2 घण्टे से बार बार कॉल कर रहा हूँ...मायके पहुँच के बौरा जाती हो" बड़ी देर के बाद जब परिधि ने कॉल रिसीव की तो व्यास बरस पड़ा

"अरे..वो..मोबाइल..इधर उधर रहता है...तो रिंग सुनाई ही नहीं पड़ी..और सुबह ही तो बात हुई थी तुमसे...अच्छा क्या हुआ किस लिए कॉल किया.. कोई खास बात?" परिधि ने उसकी झल्लाहट पे कोई विशेष ध्यान न देते हुए कहा

"मतलब अब तुमसे बात करने के लिए...कोई खास बात ही होनी चाहिए मेरे पास..क्यों ऐसे मैं बात नहीं कर सकता...तुम्हारा और बच्चों का हाल जानने का हक नहीं है क्या मुझे.... हाँ अब नाना मामा का ज्यादा हक हो गया होगा" व्यास उसके सपाट उत्तर से और चिढ़ गया उसे उम्मीद थी कि वो अपनी गलती मानते हुए विनम्रता से बात करेगी

उधर परिधि का भी सब्र तुरन्त टूट गया "तुमने लड़ने के लिए फोन किया है ..तो..मुझे फालतू की कोई बात करनी ही नहीं है..एक तो वैसे ही यहाँ कितनी भीड़भाड़ है और ऊपर से त्रिज्या की तबियत.." कहते कहते उसने अपनी जीभ काट ली

"क्या हुआ त्रिज्या को...बच्चे तुमसे संभलते नहीं तो ले क्यों जाती हो.. अपने भाई बहनो के साथ मगन हो गई होगी.. ऐसा है कल का ही तत्काल का टिकेट करा रहा हूँ तुम्हारा..वापस आओ तुम...मायके जाकर बहुत पर निकल आते हैं तुम्हारे..मेरी बेटी की तबियत खराब है और तुम वहाँ सैर सपाटा कर रही हो... नालायकी की हद है...लापरवाह हो तुम......." हालचाल लेने को किया गया फोन अब गृहयुद्ध में बदल रहा था व्यास अपना आपा खो बैठा था

"जरा सा बुखार हुआ है उसे..अब वो ठीक है..और सुनो..मुझे धमकी मत दो मैं दस दिन के लिए आईं हूँ..पूरा रहकर ही आऊँगी.. अच्छी तरह जानती हूँ मेरे मायके आने से साँप लोटने लगा है तुम्हारे सीने पे...अभी तुम्हारे गाँव जाती..जहाँ बारह बारह घंटे लाइट तक नहीं आती..बच्चे गर्मी से बीमार भी होते तो तुम्हें कुछ नहीं होता..पूरे साल तुम्हारी चाकरी करने के बाद जरा दस दिन को मायके क्या आ जाओ तुम्हारी यही नौटँकी हर बार शुरू हो जाती है" परिधि भी बिफर गई उसकी आवाज भर्रा गई पर वो अपने 'मोर्चे' पे डटी रही

"अच्छा मैं नौटंकी कर रहा हूँ...बहुत शह मिल रही है तुम्हें वहाँ से..अब तुम वहीं रहो..कोई जरूरत नहीं वापस आने की... दस दिन नहीं अब पूरा साल रहो..ख़बरदार जो वापस आईं..." गुस्से से चीखते हुए व्यास ने उसकी बात आगे सुने बिना ही फोन काट दिया

परिधि ने भी मोबाइल पटक दिया और सोफे पे बैठ के रोने लगी उसकी माँ पास ही बैठी सब सुन रही थी वो बोलीं "बेटी.. वो हालचाल पूछने के लिए फोन कर रहा था..देर से फोन उठाने पे अगर नाराज हो रहा था तो तुम्हे प्यार से उसे 'हैंडल' कर लेना था..खैर चलो अब रो नहीं..कल सुबह तक उसका भी गुस्सा उतर जायेगा"

परिधि अपना मुंह छुपाये रोते रोते बोली "मम्मी.. सिर्फ दस दिन के लिए आईं हूँ.. जरा सी मेरी खुशी देखी नहीं जाती इनसे..."

"बेटी...ये पुरुष होते ही ऐसे हैं...ये बीवी से प्यार तो करते हैं पर उससे भी ज्यादा अधिकार जमाते हैं..और बीवी के मायके जाने पे इनको लगता है इनका अधिकार कुछ कम हो रहा है तो अपने आप ही अंदर ही अंदर परेशान होते हैं..ऐसी झल्लाहट में जब बीवी जरा सा कुछ उल्टा बोल दे तो इनके अहम पे चोट लग जाती है..और बेबात का झगड़ा होने लगता है..परु(परिधि)..तेरे पापा का भी यही हाल रहता था..ये इन पुरुषों का स्वाभाविक रवैया होता है" माँ ने उसके सर पे हाथ फेरते हुए उसे चुप कराया

"पर मम्मी..औरत को दो भागों में आखिर बाँटते ही क्यों हैं ये पुरुष?...मैं पूरी ससुराल की भी हूँ और मायके की भी....मायके में आते ही ससुराल की उपेक्षा का आरोप क्यों लगता है हम पर?...ये दो जगह का होने का भार हमें ही क्यों ढोना पड़ता है..? उसने मानो ये प्रश्न माँ से नहीं बल्कि सबसे किये हों

माँ ने उसे चुप कराया और अपने सीने से लगाकर बोलीं "इनके अहम् और ससुराल में छत्तीस का आंकड़ा रहता ही है....जब...स्वयं..भोले शंकर इससे अछूते नहीं रहे तो..और किसकी बात करूँ....परु..मैंने पहले ही कहा... पुरुष होते ही ऐसे हैं ये इनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है...ये खुद नहीं जानते..
और बेटी...व्यास का काम ही है परिधि को दो बाँटो में बाँट देना..जिससे एक अर्धवृत्त मायके का और दूसरा ससुराल का अर्धवृत्त बनता है।"

#परिधि_बराबर_व्यास_गुणा_बाइस_बटे सात
-तुषारापात®™

Tuesday, 14 June 2016

मिलावट की बनावट

मुझे ये समझ नहीं आता कि ये खाने में मिलावट को लेकर भाई लोग इतना हो हल्ला क्यों करते हैं जबकि हमारे देश की संस्कृति ही मिलीजुली संस्कृति है भौगोलिक स्थिति सत्तर तरीके की है कहीं पहाड़ कहीं समुद्र कहीं रेगिस्तान साथ ही धर्म बोली भाषा रहन सहन पहनावा तक सबकुछ मिला जुला है और तो और अभी कुछ समय पहले तक मिलीजुली सरकार ही देश भी चलाती थी वो भी मिश्रित अर्थव्यवस्था के दम पे,तो पूरे देश में ऐसी कोई चीज बताओ जिसमे मिलावट न हो ?

लगता है ये आम लोगों के दिमाग ख़राब कर दिए हैं इन दो चार पूर्ण बहुमतों वाली सरकारों ने,तभी ये खाने में मिलावट जैसी 'महान उपकारी योजना' को समझ नहीं पा रहे हैं इसका एक कारण मिलावट वाली शिक्षा पद्धति भी हो सकती है पढ़ पढ़ के सब अपने को बहुत काबिल समझने लगे हैं जो खाने में मिलावट के महत्व को नकार के उसका विरोध कर रहे हैं
अरे जरा सी मिलावट क्या कर दी लगे बवाल मचाने ,विरोध करने के पहले
कभी सोचा है खाने में मिलावट कितनी बड़ी धार्मिक आर्थिक राजनैतिक और सामाजिक 'क्रांति' है'मूर्खो! तुम्हें तो ऐसे लोगों के पैर धो धो कर पीने चाहियें जो खाने पीने में मिलावट करते हैं लेकिन नहीं तुम ठहरे लकीर के फ़कीर और लकीर भी गेंहू के पेट पे बनी वाली ही तुम्हें दिखाई देती है

खाने में मिलावट करने वाला अगर खाने में मिलावट नहीं करेगा तो ये जो तुमने इतनी जनसंख्या बढ़ा रखी है इसको खाना पूरा पड़ेगा बोलो? नहीं न तो खाने पीने की चीजों में मिलावट करने से उनकी मात्रा में बढोत्तरी होती है जिससे सभी देशवासियों को भोजन मिलता है और तो और कभी कभी वो जहर मिला कर जनसंख्या कम करने जैसा महान कार्य भी करते हैं जिससे देश पर आश्रित लोगों का बोझ कम होता है और अंतिम संस्कार कराने वालों को रोजगार प्राप्त होता है वो अलग ,मतलब ये तो वो बात हो गई कि आम के आम गुठलियों के दाम हाँ अब ये न पूछना कि आम डाल का या पाल का पका था वरना मिलावट का एक और पहलु सामने आ जायेगा।

मिलावट से मरने वाले लोगों का मुद्दा उछाल उछाल के सरकारें बदल जाती हैं जिससे हमें नई सरकारों के द्वारा पिछली सरकारों के किये घोटाले काले कारनामो का पता चलता है और हम जागरूक होते हैं कि हम और कितना पीछे चले गए ,तुम क्या जानो ये मिलावट से कितने बड़े रहस्य छुपते और खुलते हैं।

खाने में मिलावटी सामान मिलाने से सबको आर्थिक फायदा होता है और जब सबका कमीशन इससे जुड़ा होता है तो सेवा भी त्वरित होती जिसके फलस्वरूप खाने पीने का सामान बहुत जल्दी हम तक पहुँच जाता है नहीं तो बैठे रहते तुम खाली झोला लेके इंतज़ार में,और एक और विशेष प्रकार का रोजगार पैदा होता है मिलावट की इस पुण्य प्रदान करने वाली क्रिया से वो है तमाम तरह की मिलावट करने वाली चीजों का जुगाड़ करना जैसे दाल में कौन से पत्थर मिलाये जाएँ अब इस तरह के न जाने कितने पत्थर पाउडर चूरन चटनी केमिकल आदि आदि बनाये और बेचे जाते हैं कितने पढ़े लिखे लोगों को रोजगार मिलता है लेकिन तुम बुद्धू ये बातें क्या जानो।

मिलावट नए नए आविष्कारों की जन्मदाता है इससे देश में वैज्ञानिक सोच का विकास होता है मिलावटी नित नए प्रयोग किया करते हैं कि दूध में क्या मिलाया जाय जो लगे दूध जैसा और पकड़ में न आये और तेल घी में ऐसा क्या मिलाएं जो तेल घी जैसी चिकनाहट लिए हुए हो पर तेल या घी न हो ये एक बहुत मेहनत का काम है फिर भी परोपकारी लोग इसमें लगे हुए हैं मिलावट में अपार संभावनाएं हैं न जाने कितने ऐसे पदार्थों का निर्माण इसी मिलावट के धंधे से सम्भव हो सका है जिससे पढ़ने वालों को नए नए सब्जेक्ट पढ़ने पड़ रहे हैं जिससे अलग अलग एक्सपर्ट तैयार हो रहे हैं कितने ही नर्सिंग होम इसी मिलावट के शिकार लोगों का शिकार करके अपनी जीविका चला रहे हैं बड़ी बड़ी कम्पनियाँ 'शुद्ध' 'शुद्धतम' का लोगो लगा के आम चीजों को महंगा करके अलग से एक बाजार का निर्माण कर रही हैं और देश का चहूँमुखी विकास कर रहीं हैं।

खबरदार अगर आगे से तुमने मिलावट का रोना रोया आम इंसान तू खुद दो लोगों के मेल से पैदा हुआ है तुझे मिलावट जैसी अत्यंत शुद्ध चीज पे ऊँगली उठाने की इजाजत नहीं है शुद्ध खाना तेरे और भगवान के मिलन में बहुत बड़ी बाधा है इसलिए चुपचाप मिलवाटी खाना खाता जा और जल्दी से भगवान से जाकर मिल और इस मिलावटी संसार से विदा ले।

-तुषारापात®™

Friday, 10 June 2016

तुम्हारे अधरों की कमनीय बाँसुरी पे  प्रेम का स्वर फूँकू मैं पंचमा 

आकाश है ओढ़े सुरमई कालिमा
धरती पर छाई यौवन की हरीतिमा
श्रावण की चंचल बरखा में
मिलन को तरसे मन प्रियतमा

छा जाए जब मेघों की कालिमा
देखूँ मैं तुम्हारे मुख का चंद्रमा
साथ तुम्हारे है देखनी मुझे
उगते सूर्य की भी लालिमा

नयन कटारी तीक्ष्ण करता सुरमा
कपोलों पे लाज की लालिमा
आलिंगन में जब भर लूँ तुम्हें
कहो बड़े चंचल हो बालमा

बाँहों में भर लूँ तुम्हें सुमध्यमा
लांघ जाऊँ समस्त बंधन सीमा
तुम्हारे अधरों की कमनीय बाँसुरी पे
प्रेम का स्वर फूँकू मैं पंचमा

-जब तुषारापात सिर्फ तुषार था (किशोरावस्था की कविता)

Sunday, 5 June 2016

गर हर यादव सपाई नहीं होता तो........

बात जनेऊ की नहीं लखनऊ की है जनाब
हर बाजपेई यहाँ कट्टर भाजपाई नहीं होता

-तुषारापात®™

Wednesday, 1 June 2016

दो जून

मई के खेत में फसल नहीं लहराई
'दो जून' की रोटी को तरसेगा जुलाई

-तुषारापात®™

Saturday, 28 May 2016

विराटजातक अनुष्कछेद श्लोक ६३ एवं ३६

चुम्बन एक आश्चर्य: किसी अभिनेत्री द्वारा अपनी किसी फिल्म में किसी अभिनेता को देय अथवा प्राप्त किया हुआ सार्वजनिक चुंबन अभिनेत्री के प्रेमी के लिए सामान्य होता है परन्तु यदि उस चुम्बन का आदान प्रदान एकांत में हुआ हो तो अभिनेत्री के प्रेमी के लिए वह चुम्बन अत्यंत कष्टकारी होता है।

-तुषारापात™

Thursday, 26 May 2016

तनिष्किया‬

"नहीं नहीं...रहने दीजिये...मेरे बजट से ओवर है..रोज पहनने के हिसाब से काफी महंगी हैं" उसने अपने मन को मारते हुए तनिष्क की सेल्स गर्ल से कहा
उसकी आँखों में उन चूड़ियों के लिए चमक थी पर बटुए में उतनी खनक नहीं थी,एक फोन कॉल निपटा के कॉउंटर की तरफ वापस आते हुए मैंने ये सुना,देखा और सब समझ गया
"अरे क्या हुआ..तुम्हें तो इतनी ज्यादा पसंद आई थीं..ये चूड़ियाँ..कितने की हैं ? मैंने आधी बात उससे की और आधी सेल्स गर्ल से दोनों चूड़ियाँ लगभग छीनते हुए कही, सेल्स गर्ल कुछ कहती इससे पहले ही वो बोल उठी
"रहने दो..न..अपने बजट से और 36 हजार महंगी है..इतना महंगा लेकर क्या करना" उसकी बात में यथार्थ सपनों को दबा रहा था, मैंने कुछ नहीं कहा बस वो चूड़ियाँ उसकी कलाइयों में पहना दी
"अरे मगर..सुनो तो...हमारे पास चूड़ियों पे खर्च करने के लिए बस 50 हजार का ही बजट है..हमने तय किया था न.." दुविधा में पड़ी वो सकुचाहट से बोली
"कोई नहीं... नया टैबलेट लेने के आईडिया को थोड़ा आगे शिफ्ट कर देते हैं..उसका बजट इसमें मिला देते हैं" मैंने उससे कहा और सेल्स गर्ल को चूड़ियों पे लगा टैग देते हुये बिलिंग के लिए कह दिया
"पर..तुम पिछले तीन साल से वही पुराना टैबलेट चला रहे हो..हैंग भी तो कितना होता है..." उसने मेरा पुराना टैबलेट मेरे हाथ से लेकर दिखाते हुए कहा
"पिछले दो साल से..तुम्हारी कलाइयाँ भी..बगैर सोने के सूनी देखी हैं मैंने...बेंटेक्स की चूड़ियों पे तुम्हें सहेलियों के सामने झिझकते देखा है" थोड़ी भावुकता आ गई थी मेरी आवाज में
"तो अब तुम्हारे ऑफिस के काम..इम्पॉर्टेंड इमेल्स..और फेसबुक व्हाट्सऐप कैसे चलेंगे..." ऐसा लगा अगर तनिष्क का शोरूम न होता तो वो ख़ुशी से चूम लेती मुझे
"ईमेल और फेसबुक के...हजारो नोटिफिकेशन्स की टिंग से...कहीं ज्यादा ख़ुशी...तुम्हारी कलाइयों में पड़ी इन दो चूड़ियों की खनक देगी मुझे"


-तुषारापात®™ 

Friday, 20 May 2016

फिर तेरी कहानी याद आई

"वाह क़तील शिफ़ाई...क़त्ल कर दिया तुमने..." म्यूजिक प्लेयर पे रिपीट मोड पे चल रहे गाने 'तेरे दर पे सनम चले आये..तू न आया तो हम चले आये..'को सुनते सुनते मेरे मुंह से अपने आप ये शब्द निकल गए ,किसी राइटर के लिखे की तारीफ वही खुल के करता है जिसके दिल की छुपी बात को राइटर अपने कलाम में बयां कर दे और ये गाना...ये गाना..तो मेरे दिल जिगर की पुकार है..मेरा सपना है...मेरी तमन्ना...काश कभी आयत कहीं से आ जाये..और..और ये गाना बज उठे

तकरीबन रोज की तरह ही अवध की शाम मनाता मैं आज भी लाउड वॉल्यूम पे ये गाना सुनता हाथ में जाम लिए उसके ख्यालों में खोया हुआ था...हाँ आयत..'फिर तेरी कहानी याद आई'...न जाने कितनी बार बजने के बाद कुमार शानू ने अभी मुखड़े को पूरा ही किया था कि मुझे डोरबेल सुनाई दी कोई दरवाजा भी पीट रहा था,मैंने म्यूजिक प्लेयर पॉज किया और उठकर दरवाजे को खोला और मुझे अपनी आँखों पे भरोसा नहीं हुआ मेरे हाथ से ग्लास छूट गया

"वापस जाने वाली थी...बहुत देर हो गई घंटी बजाते.." उसने मुझसे आँख चुराते चुराते कहा, मैंने देखा उसकी आँखें आषाढ़ से पहले भटक आई बदली लिए हुयें थीं जो जेठ में बरसना भी नहीं चाहती थी और टिकना भी नहीं चाहती थीं मैंने उसे अंदर बुलाया और सोफे पे बैठने को कहा वो इधर उधर देख रही थी सकुचाहट भी थी...और कुछ सुकून की तलाश भी थी उसे शायद.. और यहाँ आने का..लोगों को पता लगने का डर भी साफ़ दिख रहा था उसके चेहरे से

"दिल को धड़का लगा था पल पल का..शोर सुन ले न कोई पायल का" मैंने उसकी ओर देखते हुए मन में गुनगुनाया और उसे पानी का ग्लास दिया उसने एक साँस में पानी खत्म किया और ग्लास टेबल पे रख के चुप बैठी रही मैं समझ रहा था कुछ बात है लेकिन क्या इसके लिए पूछना तो पड़ेगा
"क्या हुआ...अचानक ..यूँ...फोन कर दिया होता..सब ठीक तो है..बहुत परेशान दिख रही हो..क्या बात है"

"कुछ नहीं" उसने कहा,अच्छी तरह उसकी आदत जानता हूँ एक बार में तो कभी बता ही नहीं सकती कि क्या हुआ मैंने कई बार अलग अलग तरीके से पुछा तो कुछ देर बाद हमेशा की तरह पहले उसकी आँखों ने बोला फिर उसके लब हिले

"वो..वो..हदीस..हदीस चाहता है कि मैं उसके साथ सीनियर्स की पार्टी में जाया करूँ..कुछ ओपन ड्रेसेज एंड ओपन फ्रेंडली एट्टीट्यूड में.." उसने बहुत धीमे से कहा मैं अंदर ही अंदर सुलग के रह गया पर चुप रहा उसने आगे कहा "इसी बात पे आज फिर बहुत झगड़ा हुआ ..और मैं थोड़ी देर के लिए बाहर निकल आई..फिर...पता नहीं कैसे तुम्हारे घर तक आ गई"

और उसके बाद जितनी देर तक वो हदीस की बातें कर सकती थी करती गई..साथ साथ रोती गई...बिलखती गई..गुस्सा दिखाती गई...अपने दिल का पूरा गुबार निकाल के शान्त हुई..और आखिर में बोली.."वेद..तुम चुप क्यों हो..क्या मैंने यहाँ आके गलती की"

"नहीं..मैं चुप इसलिए हूँ.. अ..हदीस की बात गलत है..पर ये तुम मियां बीवी का मामला है..मैं बोल भी क्या सकता हूँ..और किस हक़ से...मैं उसकी आँखों में गहरे देखते हुए बोला उसने मेरी बात समझते हुए कहा "हाँ तुम तो उलटे खुश ही होंगे..जिसके लिए मैंने तुम्हें छोड़ा..आज उसके साथ मेरी न बनते देख..लेकिन एक बात बताओ क्या एक दोस्त के काँधे पे दूसरा दोस्त रो नहीं सकता"

"पता है आयत... इस दिन की मैंने बरसों से तमन्ना की है..मगर तुम्हारे इस तरह आने की..नहीं..जहाँ तुम आओ अपना गम हल्का करो..और चली जाओ..जिस काँधे की तुम बात कर रही हो..उस काँधे के एक बालिश्त नीचे एक दिल भी है..उसे कभी महसूस किया तुमने..आयत मैं सिर्फ एक काँधा नहीं हूँ...तुम्हें पता है मैं तुम्हारे ही ख्यालों में खोया हुआ था..लेकिन वो मेरी आयत थी..और यहाँ जो आई है...हदीस की आयत है..उसकी पत्नी है..और तुम्हीं ने कहा था "आयतें कभी वेद की नहीं हुआ करतीं"

मैं नशे में था और मेरा पूरा दर्द उभर आया था पता नहीं वो दर्द किस बात का था...अपनी परेशानी का..या उसे परेशान देख के..या शायद हाँ हदीस की ये हरकत मुझे गहरे तक चुभी है..और मैं अपना गुस्सा उसपर नहीं निकाल सकता..काश तुम मेरी होतीं आयत तो मैं ऐसा कहने वाले का मुँह तोड़ देता...ओह्ह आयत मैं तुमको भी दुःख नहीं पहुँचाना चाहता पर..मैं सिर्फ काँधा बन के भी नहीं रहना चाहता

"रात ज्यादा हो रही है..मुझे लगता है अब तुम्हें जाना चाहिए.." मेरी शुष्कता देख वो उठी और एक झटके में निकल गई मैंने दरवाजा बंद किया एक पैग बनाया सोफे पे वहीं बैठ गया जहाँ वो बैठी हुई थी उसकी खुश्बू से लिपट के रोने लगा और अपनी आवाज छुपाने को म्यूजिक प्लेयर का प्ले बटन पुश कर दिया गाना आगे बजने लगा....

"बिन तेरे कोई आस भी न रही...इतने तरसे की प्यास ही न रही"

-तुषारापात®™

Wednesday, 18 May 2016

परिधि बराबर व्यास गुणे बाइस बटा सात

"तुम्हारे पास अब टाइम ही कहाँ है मेरे लिए... या तो तुम घर के काम में उलझी रहोगी.. या फिर काम से होने वाली अपनी थकावट का रोना रोती रहोगी.. ऐसे में अगर मैं अपने दोस्तों के साथ समय न बिताऊँ तो क्या करूँ... रोज बारह बारह घंटे मर खप के काम करने के बाद...क्या मुझे हक नहीं है जरा सा खुश होने का.." व्यास ने चिल्लाते हुए कहा

"तुम तो बारह घंटे काम के बाद फ्री हो जाते हो...पर मेरा क्या...बोलो.. मुझे तो हफ्ते के 'सातों रोज बाइस घंटे' गृहस्थी में खटना पड़ता है... 'पाई' 'पाई' बचाने में मेरी मति लगी रहती है...मेरी खुशी के लिए कौन सोचता है यहाँ... मैं क्या कोई बंधुवा मजदूर हूँ.." परिधि ने गुस्से में अपना पल्लू खोंसा और बिलखते हुए तेज आवाज में आगे बोली

"इतना सब करने के बाद..प्यार के दो मीठे बोल तक को तरसती हूँ मैं ...बाकी तो जाने ही दो..केंद्र के होने के बाद तो फिर भी कभी कभार.. बिस्तर पे ही सही तुम्हें मेरी याद आ जाती थी...मगर त्रिज्या के होने के बाद..तो तुम भूल ही गए हो कि तुम्हारी एक बीवी भी है.... उसे भी तुम्हारे साथ प्यार के दो पल चाहिए हो सकते हैं.. मैं क्या समझती नहीं आजकल उस निगोड़ी बिंदु के घर के चक्कर क्यों लगाये जाते हैं..दोस्तों के घर जाने के नाम पे.."

व्यास इस हमले से थोड़ा घबड़ाया पर सम्भलते हुए कॉउंटर अटैक पर आया "तो क्या करूँ.. कैसे प्यार करूँ तुमको.. जब देखो बिखरे बाल लिए.. मुड़ी तुड़ी साड़ी पहने एक गृहस्थन ऑन्टी बनी दिखती हो... कभी केंद्र को लेकर सो जाती हो तो कभी त्रिज्या को पढ़ाती रहती हो...घर का माहौल साला इतना नीरस है.. कि दो पैग के बाद भी रोमांस नहीं जगता.. तुम्हारी इस शकल के आगे शिलाजीत भी फेल है"

"हाँ हाँ..मैं तो हूँ ही गृहस्थन.. तुम तो बड़े यंग हैंडसम दिखते हो इस मोटे तोंद और अपने 30 सेकंड के पुरुषत्व के साथ...और...और किसने कहा था दो दो बच्चे पैदा करने को.." वो गुस्से में तमतमाई आगे और कुछ बोलने जा रही थी कि अपने कमरे से उनकी आवाजें सुनकर बच्चे आ जाते हैं वो चुप हो जाती है और बच्चों से कहती है

"केंद्र..त्रिज्या.. फटाफट हैंडवाश कर लो..मैं खाना लगा देती हूँ खा कर चुपचाप सो जाओ..नो टीवी शीवी टुडे" बच्चे हैडवाश करके आते हैं वो उन्हें खाना खिला के उनके कमरे में सुला आती है और बिना खाना खाये सुबकते हुए अपने बिस्तर पे लेट जाती है और उधर व्यास पहले ही गुस्से में पैर पटकते हुए घर से बाहर निकल चुका होता है और अपनी उम्र से कुछ ही बड़े लेकिन रिश्ते के अंकल के पास जाकर सारा किस्सा सुनाता है अंकल बाहर बरामदे में उसके साथ बोतल लेकर बैठते हैं और कहते हैं

"देखो..ये सिर्फ तुम्हारी ही नहीं..आज गृहस्थी के बोझ से दबे हर मध्य वर्गीय परिवार की यही कहानी है... सबसे पहले एक लड़का छुट्टा होता है व्यास के जैसे जिसकी कोई सीमा नहीं कोई बंधन नहीं.. वो कहीं भी आ जा सकता है..पर शादी के बाद एक परिधि आकर उसको एक निश्चित दायरे में बंद कर देती है..जिसे गृहस्थी का वृत्त कहते हैं..अब वो जहाँ जहाँ जाता है उसकी परिधि भी साथ जाती है.." कहते कहते अंकल ने एक पैग बना के उसकी ओर ग्लास बढ़ाया और आगे कहा

उसके बाद जब बच्चा होता है तो..इस वृत्त में एक नया केंद्र बनता है... परिधि इस नए केंद्र की हो के रह जाती है...और इस प्रकार गृहस्थी का वृत्त..वृत्त न रहकर..एक दो केंद्र वाला दीर्घवृत्त बन जाता है और व्यास का वजूद लगभग खत्म सा हो जाता..उधर दीर्घवृत्त के दो केंद्र होने के कारण परिधि भी अब अपना सुंदर सा गोल आकार..कायम नहीं रख पाती.. जिससे आकर्षण का अभाव उत्पन्न होता है" अंकल ने कहकर एक साँस में ग्लास खत्म किया और नमकीन चखने लगे

"ओह्ह आपने तो बहुत गूढ़ बात बता दी..आप और आंटी में के बीच तो कभी ऐसी कोई समस्या आई ही नहीं होगी आखिर आप इतने समझदार जो हैं..अब इसका उपाय भी बता दीजिये" व्यास ने अचंभित होते हुए उनकी प्रशंसा की और उनसे यह पुछा ही था कि अंदर से आंटी की आवाज आई

"अरे और कितनी देर तक पीते रहोगे...वाइफ के लिए तो तुम्हारे पास जरा सा टाइम नहीं है..बस जब देखो तब..यार बाजी करते रहते हो..आओ जल्दी नहीं तो दरवाजा बंद कर लूंगी.. रात भर बाहर रहना फिर.."

ये सुनना था कि बाहर बैठे दोनो चाचा भतीजे ठहाका मार के हँस पड़े।

-तुषारापात®™

Tuesday, 17 May 2016

जागो

आसमान की माँग में सूरज का सिन्दूर भर दिया
नए सवेरे ने बदचलन रात को सुहागन कर दिया

#सुप्रभात
-तुषारापात®™

Monday, 16 May 2016

मासनामा

'जेठ' की दुपहरी
की सूनी सड़क सी मेरी जिंदगी
और 'आषाढ़' की बारिश सी तुम्हारी यादें
जब मुझपर बरसती हैं तो
'सावन' में शिवलिंग पे चढ़े
दूध सा पवित्र हो जाता हूँ
'भादों' तक बरसती
तुम्हारी यादों को सोख लेता हूँ खुदमें
इनमें से कुछ 'आश्विन' में
मेरे दुखों का श्राद्ध कर जाती हैं
तो 'कार्तिक' में
कुछ के साथ दिवाली मन जाती है
'मार्गशीर्ष' में उनमें से कुछ को
गुल्लक में रखकर बचाता हूँ
और 'पौष' के चाँद के साथ
ख़ुशी ख़ुशी ठुरठुराता हूँ
फिर वो गुल्लक फोड़ता हूँ 'माघ' में और
तुम्हारी यादों की डुबकियों से
संगम का पुण्य कमाता हूँ
'फाल्गुन' भर तुम्हारे ही
रंगों में ही रंगा नजर आता हूँ मगर
रंग के साथ साथ
उतर जाती हैं तुम्हारी यादें सारी
तो 'चैत्र' में चित्त अपना
फिर से अशांत पाता हूँ
आते आते 'बैशाख'
पूरी तरह कंगाल होकर
जेठ की दुपहरी के
सूने रस्ते पे फिर से आ जाता हूँ

-तुषारापात®™

Saturday, 14 May 2016

लड़की की शादी

"उस शिल्पी का तो चक्कर चल रहा होगा किसी से...कुछ ठहर गया होगा पेट में...इसीलिए उसकी इतनी गुपचुप और फटाफट शादी कर दी शर्मा लोगों ने... न किसी को बताया...न किसी को बुलाया...ऐसा कहीं होता है क्या" मिसेज दत्ता अपनी काम वाली मालती से अपने मोहल्ले के शर्मा जी के घर की टोह ले रहीं थीं
"मेम साब 'वन्डर' तो हमें भी लगा...पर शर्माइन कहिन कि आर्यसमाजी लोग हैं वो...तो शिल्पी बिटिया की शादी बड़ी सादगी से करिन..सिर्फ उनके घर के लोग और लड़के के घर के लोग इकठ्ठा हुए और चट मँगनी ते पट व्याह" मालती ने बात कुछ यूँ कही जैसे उसे खुद इस बात पे विश्वास न हो फिर आगे अपने मतलब की बात पे आते हुई बोली "मेमसाब लड़की की शादी तो हमको भी करनी है...आपसे कुछ पैसों की मदद हो जाती तो..एक दस हजार रुपैये"
"दस हजाSSSर...बड़ी महंगी शादी कर रही है क्या?" मिसेज दत्ता ने आँखें गोल करते हुए कहा
"अरे मेमसाब लड़के को हीरो हौंडा देना है और कुछ नगद भी...और फिर नाते रिश्तेदारों का न्यौता वगैरह....आप ही नहीं सबसे थोड़ा थोड़ा माँग रहे हैं" मालती ने ऐसे कहा जैसे इतना दहेज़ देना तो ईश्वरीय विधान के तहत आता है
"ठीक है...देखूँगी... देखूँगी..इनसे बात करुँगी" मिसेज दत्ता ने अपना पीछा उससे छुड़ाया और मोहल्ले की अन्य और औरतों से शिल्पी की शादी की 'सत्संगी' चर्चा करने को फोन उठा लिया
उधर शर्मा जी के यहाँ उनकी बेटी शिल्पी की शादी के बाद बड़ी बुआ आई हुई हैं शर्मा जी उनकी पत्नी और उनका बेटा संजय बड़ी बुआ की जली कटी बातें सुन रहे हैं "कुछ लोक लाज बाकी है तुममें शंभुनाथ..कि नहीं... पूरे खानदान में थू थू मची है.. ऐसे कहीं शादी ब्याह होता है..और तुम विमला तुम्हारे मायके की तरफ भी सब लोग हँस रहे हैं..और..ऐ संजय...ए तुम्हारे फूफा ने तो सुनाई सुनाई के जीनो हराम कर दियो" बुआ जी खड़ी बोली से अपने आंचलिक टोन में आते हुए बोलीं
और जैसे प्रेशर कूकर में कड़े आलू उबल के नरम पड़ जाते हैं वैसे ही बुआ जी की साढ़े तीन घंटे की अनवरत 'वंश और खानदान की वीरगाथा' सुनने के बाद शंभुनाथ शर्मा और विमला भी विचलित हो जाते हैं और निर्णय लेते हैं कि एक दिन निश्चित करके शिल्पी और शैलेन्द्र (दामाद) को बुलाकर एक 'आफ्टर मैरिज पार्टी' कर देते हैं वरना लोग क्या कहेंगे हालाँकि संजय को ये प्रस्ताव पसंद नहीं था पर उसकी किसी ने नहीं सुनी हाँ पापा को कुछ समझाते हुए उसने पूरे आयोजन की जिम्मेदारी चतुराई से अपने हाथ में ले ली और एक निश्चित दिन का सभी 'असंतुष्ट' रिश्तेदारों और कॉलोनी वालों को फोन से शाम के 8 बजे का न्यौता दे दिया गया
कार्यक्रम स्थल संजय के एक जिगरी दोस्त के घर की विशाल छत है संजय ने अपना म्यूजिक सिस्टम वहाँ लगा रखा है संगीत तेज है दिवाली पे घर पे लगने वाली झालर से दोस्त के घर को थोड़ा सजा दिया है साढ़े आठ बज रहा है लोग आना शुरू हो जाते हैं और साढ़े नौ तक अधिकतर लोग आ जाते हैं उनकी चाय नमकीन से सेवा करने के बाद संजय माइक लेकर बोलता है
"यहाँ पार्टी में आये वो लोग हैं जो शिल्पी की सादी शादी से बड़ी तकलीफ में हैं...जैसे हमारे प्रिय जीजाजी को तकलीफ है कि वो महँगी शराब पीकर अपनी सालियों के साथ 'कृष्णा नाच' नहीं कर पाये पाये...हमारे आदरणीय बड़े फूफा जी...जो बेचारे अपने और छोटे फूफा के टीके के बराबर पैसे को लेकर उत्पात नहीं कर सके..और हमारी जयपुर वाली पिंकी आंटी जो अपनी ढाई लाख की साड़ी किसी को नहीं दिखा पाईं और हमारे कॉलोनी की प्यारी सारी आंटीयाँ जिनको ये बताने का मौका नहीं मिला कि शिल्पी का रंग दूल्हे से थोड़ा दबा हुआ है" वो सबके बने हुए मुँह देखता है और आगे कहता है
"हमने शादी को दिखावा बना रखा है...अपने स्टेट्स को दिखाने का एक माध्यम...दहेज़ की रकम से पता करते हैं कि दुल्हन और दूल्हे के परिवार का क्या क्लास है..क्या रुतबा है...समाज की इसी मानसिकता के कारण लड़की का पिता...चाहे वो मालती के पति जैसा एक गरीब हो..या दत्ता अंकल जैसा अमीर...अपनी अपनी लड़की की शादी को लेकर इतना दबाव में रहता है कि उसे अपनी लड़की एक बोझ लगने लगती है...कोई मोटरसाइकिल देने के लिए परेशान है तो कोई मर्सिडीज देने के लिए... दहेज़ देना भी आज एक फैशन हो गया है नहीं दिया और कम दिया तो लोग हमें कमजोर न समझ लें..लो स्टैण्डर्ड का न समझ लें वाह हैं न कमाल की बात....और जो आदमी इस वाहियात परम्परा को तोड़ रहा है..उसकी बेटी चरित्रहीन है...या वो कंजूस है...या गरीब है...या उसकी लड़की ने भाग के शादी की है .." कहकर संजय ने अपनी उत्तेजना को गहरी साँस लेकर दबाया और आगे बहुत शांत और मीठे स्वर में बोला
"अभी वेबकैम पे शिल्पी और शैलेन्द्र वीडियो चैट पे होंगे आप लोग अपना अपना आशीर्वाद उन्हें दें...और जाते समय बूँदी के लड्डू का एक एक पैकेट जरूर से लेते जाइयेगा...और हाँ खाना अपने अपने घर जाके खाइयेगा"
इतना सुनते ही शंभुनाथ खिलखिला के हँस दिए..आश्चर्यजनक हैं न लड़की का पिता खुल के हँस रहा था।
-तुषारापात®™

Sunday, 8 May 2016

"हैप्पी मदर्स डे.....ऑन्टी" 

"अ..जी...वो खाना..मिलेगा क्या" मैंने सकुचाते हुए उनसे पूछा

"नए आये हो न?...ढाबे में खाना नहीं मिलेगा तो और क्या मिलेगा" उनकी अनुभवी आँखों ने मेरी सकुचाहट को पढ़ लिया "क्या लगाऊँ ?" उन्होंने मुझसे पूछा

"जी..अ..बस ये लोग जो खा रहे हैं..मतलब दाल रोटी..अ कितने की होगी ये ?" एक दो लोग और थे जो वहाँ खाना खा रहे थे उनकी थाली में दाल रोटी सब्जी चावल देख के मैंने वही खाने को उनसे कह दिया

"20 रुपैये की थाली है...चार रोटी दाल सब्जी और चावल..आराम से बैठो बेटा...लगाती हूँ" उन्होंने बड़ी ममता से कहा और रसोई में चली गईं

"ओह्ह..जी पर एक बात है...मेरे पास सिर्फ...सिर्फ..उन्नीस रूपैये हैं.." मैं बड़ी शर्मिन्दिगी से बोल पाया

"कोई नहीं..बाद में दे देना..अब खाना खाने तो रोज ही आओगे न यहाँ" उन्होंने जाते जाते मुड़के मुस्कुराते हुए वात्सल्य प्रेम में डूबी आवाज में मुझसे कहा

"जी..जी..ठीक है" मैं चैन की साँस लेते हुए बोला उसके बाद मैंने खाना खाया और पैसे देकर अपने कमरे पे आ गया

बिसवाँ के एक गरीब माँ बाप का होनहार मगर बहुत शर्मीला बेटा मैं यहाँ लखनऊ में आगे पढ़ने आया हूँ सेक्टर क्यू के पास बेलिगारद में एक सस्ता कमरा लेकर रह रहा हूँ आज मेरा पहला दिन है, बेलिगारद चौराहे ,वैसे ये है तो तिराहा पर इसे चौराहा क्यों कहते हैं मुझे नहीं पता,पे ही ये आंटी का ढाबा है ढाबा क्या सड़क पे बने एक छोटे से मकान के निचले हिस्से में एक महिला जिन्हें सब ऑन्टी कहते हैं मीनू में सिर्फ दो आइटम वाला ये ढाबा चलाती हैं ढाबे में मेरे जैसे मजबूर लोग ही खाना खाने आते हैं जो सस्ता खाना ढूँढते हैं इसलिए ढाबे की हालत और उसकी कमाई में से कौन ज्यादा खस्ताहाल है ये कहना जरा मुश्किल है

अगले दिन मैं फिर जाता हूँ ढाबे में आंटी मुझे देखकर मुस्कुराती हैं मैं भी हल्का मुस्कुराता हूँ कल के बाद से थोड़ा सा आत्मविश्वास मुझमे आया है "आंटी..खाना लगा दीजिये...पर आपसे एक विनती है..आप थाली से एक रोटी..कम कर दीजिये..क्योंकि मेरे पास उन्नीस रुपैये से ज्यादा खाने पे खर्च करने को नहीं हैं"मैंने सोचा खाने से पहले ही साफ़ साफ़ बता दूँ

हालाँकि मेरा बजट बीस रुपैये का था पर एक रुपैया रोज बचा के जब छुट्टियों में घर जाऊँगा तो अपनी माँ के लिए कुछ उपहार ले जाऊँगा ये सोच के मैंने ये नीति बनाई है

"ठीक है..बैठ जाओ..अभी लगाती हूँ..." कहकर वो रसोई में चली गईं
एक तरफ की दीवार से लगीं मेज कुर्सियां पड़ी थीं और दूसरी ओर एक दीवार पे जमीन से करीबन ढाई फुट ऊँचा एक प्लेटफॉर्म बना था जिसपे चूल्हा बर्तन इत्यादि रखे थे बस वही रसोई थी
मैंने देखा कि आंटी का कद बहुत छोटा है जिसकी वजह से रसोई का प्लेटफॉर्म उनसे थोड़ी ज्यादा ऊँचाई पे पड़ता है और उन्हें खाना बनाने के काम में काफी कठिनाई आ रही है पर मैं चुप रहा थोड़ी देर बाद वो खाने की थाली ले आईं

"अरे...आपतो इसमें चार रोटी ले आईं.. मैंने आपसे कहा..." मैं आगे कुछ कहता कि वो बोल पड़ीं " देखो बेटा.. मैं एक बूढ़ी अकेली औरत बस इसलिए ढाबा चलाती हूँ..कि तुम लोगों के साथ... मेरी भी दो रोटी का इंतजाम हो जाए... अब एक रुपैये के लिए क्या तेरा पेट काटूँगी" कहकर मेरे सर पे हाथ फेरकर वो चली गईं

ऐसे ही रोज ये क्रम चलता रहा रोज मैं ऑन्टी को ऊँचे प्लेटफॉर्म पे बड़ी मुश्किल से काम करते देखता,घुटनो में तकलीफ के कारण बैठ के कोई काम उनसे हो नहीं पाता था,खाना खाता ,उन्नीस रुपये देता कुछ हल्की फुल्की बातें उनसे होती बस ऐसे ही कुछ महीने बीत गए और फिर आज के दिन मैं फिर ढाबे पे आया हूँ

"अरे..आज बड़ी देर कर दी तूने...सब ठीक तो है..बैठ मैं खाना लगाती हूँ" ऑन्टी की आँखों में चिंता थी, मैंने कहा "सब ठीक है और हाँ खाना तो खाऊंगा ही..पर पहले आप रसोई में आओ मेरे साथ..."

उनका हाथ पकड़ के मैं रसोई वाले हिस्से में उन्हें ले आया और उन्हें रसोई के प्लेटफॉर्म की ओर खड़ा किया और फिर उनके पैरों के नीचे पूजापाठ वाली दुकान से खरीदी लकड़ी की एक मजबूत चौकी रखने लगा तो वो आश्चर्य से भर गईं,उसपे खड़ी हुईं और उनकी आँखों ने न जाने कितने वर्षों के बंधे बाँध खोल दिए..

मैंने उनके पैर छुए और कहा "हैप्पी मदर्स डे.....ऑन्टी"

-तुषारापात®™