Thursday, 31 December 2020

2020

क्या कहें इस बरस कितने ट्विस्ट हो गये
के एक '20-20' में करोड़ों 'टेस्ट' हो गये 

#तुषारापात

2020

इस साल के सारे दिन तो वेस्ट हो गये
एक 20-20 में करोड़ों 'टेस्ट' हो गये

#तुषारापात

Tuesday, 29 December 2020

शाखों ने कभी झुलाया था

वो खेत बेचकर शहर आया 
राशनकार्ड बनवा के फूला नहीं समाया था 

बिजली के तार पे बैठा बूढ़ा तोता 
कहता है कभी शाखों ने उसे झुलाया था 

#तुषारापात

Tuesday, 1 December 2020

रुआब

तूने बनायी हैं मंज़िलें ऊँची तो मुझको न दिखला रुआब
पत्थर हूँ मील का,रस्ता नहीं जो तेरे पैरों तले आ जाऊँगा

#तुषारापात

Thursday, 27 August 2020

मुझे विधाता है बनना

मैं छपूंगा कहीं?
नहीं! नहीं!
मैं रचूंगा ऋचाएं 

और 
तुम्हारे कानों में 
युगों युगों के लिए 
घुल जाऊँगा 

मैं
नये कल्प के 
आरम्भ में 
तुम्हें वेद सुनाऊंगा

नहीं! 
मुझे इस कल्प में 
कहीं नहीं है छपना
इस कल्प के अंत तक 
मुझे विधाता है बनना 

~#तुषारापात

Saturday, 15 August 2020

टूटा सितारा लुटा

सितारा टूटे तो दुआ पूरी होने की आस करते है लोग 
किसी के मरने में भी अपना मतलब तलाश लेते हैं लोग 

~#तुषारापात

Saturday, 25 July 2020

चुभन का निशान

"क्या इस बार भी सच हार जाएगा..झूठ की जीत आखिर कब तक यूँ ही होती रहेगी...क्या कोई भी सच के साथ नहीं है?"

"कोशिश करके देख लो..सच को लेकर आगे बढ़ो..देखो कौन साथ आता है तुम्हारे..लोग झूठ के विरोध में तो कभी आते ही नहीं.. और.. न ही सच के साथ चलते हैं..बस सच बोलने वाले के साथ थोड़ी दूर यूँ टहल आते हैं.. मानो दिल बहलाने को सिनेमा देख आए हों"

"पर लोग सिनेमा में भी तो सच की जीत की कहानियों पे ताली बजाते हैं फिर क्यों नहीं आएंगे साथ"

"सिनेमा किन्नरों के स्वांग जैसा है जो क्षणिक दबाव बनाता है..सच के लिए ताली बजाने वाले हाथ झूठ के लिए कभी अपनी मुठ्ठियाँ नहीं कसते..."

"मुठ्ठियाँ न भी कसें..हाथ भी न उठाएं..मगर धीमी ही सही..मेरी आवाज में अपनी आवाज़ तो मिला सकते हैं..मैं सबसे आगे चलने को तैयार हूँ...मैं सच के लिए मरने के लिए भी तैयार हूँ"

"अपने आगे चलने की तुम्हारी तमन्ना ये जरूर पूरी कर देंगे.. तुम्हारे मरने के बाद ये सब आएंगे तुम्हारे जनाज़े के पीछे..ये कहते कहते कि राम नाम सत्य है...."

"तो क्या करूँ मैं..बचपन से मुझे सिखाया गया कि सच ही सबकुछ है..एक सच सौ झूठ पे भारी है..क्या किताबों में लिखा वो सब सच, झूठ था..इस सच के लिए लड़ते लड़ते हर जगह से निष्काषित हूँ मैं..और जिन लोगों ने मुझे निष्काषित किया वो मुझे ही भगौड़ा कहते हैं.."

"सच कहूँ तो इस झूठ और सच की लड़ाई की बात ही बेमानी है..झूठ के सैनिक बहुत निर्दयी हैं..और सच..सच की कोई सेना ही नहीं है..बस एक पैदल है जो सच का झंडा उठाए दिखता है मानो कोई बहुत बड़ी सेना उसके पीछे आ रही हो..नियति ने उस पैदल के रूप में तुम्हें चुन लिया है..तुम मरोगे तो कोई और इस झंडे को पकड़ लेगा..पर.. उसके भी पीछे कोई सेना नहीं होगी..मेरी मानो झूठ में घुलमिल जाओ फिर देखो इस झंडे को कितना बढ़िया रथ मिल जाएगा.. झूठ चारो ओर ऐसे फैला हुआ है जैसे बसन्त में सरसों, और रही बात सच के किताबों में होने की..हाँ..सच किताबों में मिलता है..मगर सूखे फूलों की तरह.."

"जानता हूँ..सरसों के पीले फूल देखकर लोग हर्षाते हैं मगर उसके तेल को कड़वा कहते हैं.. औषधि मीठी नहीं होती.. झूठ के फूल गुदगुदी करते हैं मगर सच का एक सूखा फूल काँटे की तरह चुभता है....और ये सूखा फूल ..टूट जाएगा.. बिखर जाएगा..लेकिन.. चुभन का गहरा निशान बना जाएगा... फिर भले ही ये झूठे..झूठे न कहे जायें..लेकिन चुभन का निशान लगे लोग सच्चे नहीं हैं.. .. सब जान तो जाएंगें।"

#चुभन_का_निशान
~#तुषारापात

Thursday, 23 July 2020

हिंदुस्तान

कोई उसे सरदार तो कोई मुसलमान कहता है
वो आदमी खुद को मगर हिन्दुस्तान कहता है 

~#तुषारापात 
(आज़ाद पर कार्यक्रम करते हुए)

Wednesday, 22 July 2020

आज़ाद

जो चाहता है के बस्ती में उसकी कोई सवेरा लाये
वो अपनी आँख के तारे को सूरज की तरह तपाये

~तुषारापात

Wednesday, 15 July 2020

औघड़

#औघड़

शिव ढूँढते हैं
 
शक्ति को

पाके अपने को निर्बल।

गृहस्थी की गली से

प्रेम के बंधक यान को 

छुड़ाने के लिए 

पुरुष मल लेता है 

शरीर पे भस्म 

'शव' को 

'शिव' बनाने को।

~#तुषारापात

Monday, 13 July 2020

रंगभेद: काली भूख सफेद रोटी

रोटी 
सन सत्तर का 
टेलीविजन है 
ब्लैक एंड व्हाइट, मगर
सबकी पहुँच में नहीं 

मैलखोरु 
कम्बल की तरह 
भूख का काला रंग 
पसरकर, सफेद टाइल्स के 
फुटपाथ पे धब्बा लगाता है 

गोरी चिट्टी रोटी
काली नज़र से 
बचने को, बेझिझक
सजा लेती है, मगर 
खुद पे काली चित्तियाँ 

गेहुएँ रंग के तानों से
तंग आकर, गेहूँ 
डाल देता है 
अपना सर चक्की में
बन निकलता, उजला आटा 

गोरा होते ही 
उजली हो जाती है
उसकी कीमत
माँगता है उजला आटा 
ए सी का उथला पसीना 

गहरा पसीना 
बहाने वाला 
होता है, हमेशा 
काला आदमी ही 

रोटी, उसे
फेयर एंड लवली 
लगाने नहीं देती

सन सत्तर के 
इस टेलीविजन में 
गोरा बनाने वाला
कोई विज्ञापन नहीं।

~#तुषारापात







Thursday, 9 July 2020

उम्र के इस मोड़ पर

उम्र के इस मोड़ पर 
जो पीछे है, मुझे 
अपने से आगे मानता है
जो आगे है, मैं
पिछड़ा हूँ ये जानता है

उम्र के इस मोड़ पर 
पुराना ज़माना 
साथ आना चाहता है 
नया ज़माना 
पास नहीं बिठाता है 

उम्र के इस मोड़ पर
मुझसे बड़ा मुझे आप
छोटा तुम कहके बुलाता है।

~तुषारापात



Wednesday, 8 July 2020

सोशल मीडिया: लटका दरवाज़ा

बाथरूम का 
एक पल्ले वाला दरवाज़ा
थोड़ा सा लटक गया

सिटकनी लगाने में 
होने लगी मुश्किल थोड़ी
चारों पंजों पे ज़ोर देना
दरवाज़ा दबाना, ऊपर उठना 
इतनी मेहनत कौन करे

परिवार के आलसी सदस्यों ने
सिटकनी लगाना छोड़ दिया 
धीरे धीरे दरवाज़ा भी 
अपनी जगह बैठना भूल गया

अब जब भी कोई जाता है 
बाथरूम तो, चिल्लाता है 
ये दरवाज़ा क्या कभी 
कोई ठीक कराएगा भी 

खुलने और बंद होने के बीच 
झुके दरवाज़े की कराहट
रिटायर हुए पिता की तरह 
इस चिल्लाहट में दब जाती है

सब अपने हिस्से का 
चिल्लाना जानते हैं 
मैं अपने हिस्से का चिल्ला चुका
अब तुम्हारी बारी है।

#सोशल_मीडिया
~तुषारापात





Monday, 6 July 2020

चालीस का होना

चालीस का होना 
बढ़े हुए पेट के उस 
उच्चतम बिंदु पर होने जैसा है
जहाँ आकर 
कड़क क्रीज वाली 
आपकी पसंदीदा पतलून 
नखरीली साली की तरह 
आपको हद में रहने की 
चेतावनी देने लगती है 
और मुड़ी तुड़ी क्रीज वाली 
ढीली पतलून सी 
आपकी सीधी साधी पत्नी भी
थोड़े थोड़े ताने सुनाने लगती है 
आप नारे से कमर कसके 
पायजामे से यारी करने लगते हैं

चालीस का होना
आपके माथे का सर के 
उच्चतम बिंदु तक पहुँचने जैसा है
जहाँ आकर 
प्रॉपर्टी डीलर्स की नज़र 
सबसे पहले पड़ती है
वे आपके गंजेपन को 
आपके बड़े बंगले के बाहर लहराते 
पाम के पेड़ों से ढकने के सपने 
आपको बेच चुके होते हैं
आप किस्तों में जीना
सीखना शुरू कर देते हैं  

चालीस का होना 
आपकी नज़र के 
उस उच्चतम बिंदु के पकड़े जाने जैसा है
जहाँ पर 
किसी नवयौवना की नज़र टकराते ही
कड़क फुसफुसाहट में बताती है कि 
अब पलकों की चक्की से 
हुस्न पीसने की बजाय 
गरम मसाले की महँगी चीजों को 
चोरी होने से बचायें
और चक्की वाले पे अपनी नज़रें गड़ायें
आप अपनी नजरें 
नीची करना सीख रहे होते हैं

चालीस का होना 
आधुनिकता के 
उस उच्चतम बिंदु से फिसलने जैसा है
जहाँ आप नॉन स्टिक बर्तनों को
बाँधकर रसोई की टांड़ पर डाल देते हैं 
और पुरानी तरह के
लोहे की कढ़ाई और तवे में 
पत्नी को खाना बनाने को कहते हैं 
आप माँ के हाथ के स्वाद को 
थोड़ा सा ही सही ढूँढ लेते हैं

चालीस का होना 
पिता के जूते के
उच्चतम बिंदु को छूने जैसा है
जहाँ आकर 
आप वे आदतें खुद में पाते हैं 
जिनके लिए आप अपने पिता पे
खीजा करते थे 
आप अपने पैरों को 
पिता के जूतों में ढाल रहे होते हैं

चालीस का होना 
धनुष के घुमाव के
उस उच्चतम बिंदु पर होने जैसा है 
जहाँ तीर टिकाके 
छोड़ा जा चुका होता है
आप
या तो निशाने पे लग चुके होते हैं 
या निशाना चूक चुके होते हैं। 

~तुषारापात

Sunday, 5 July 2020

सवाल जवाब

मैं:
बनाये हैं तुमने ज़िंदगी के नक्शे 
इसलिये नक्शेबाजी जबर रहे हो 

ख़ुदा:
तुम अपनी तलाश के सफ़र में हो
और तलाश एक हमसफ़र रहे हो 

~#तुषारापात

Friday, 3 July 2020

शक्तिहीन ज्ञानी: मछली बिन पानी

कद पद तन मन धन में से न एकउ बली होय 
तो कलजुग में ज्ञानी ज्यूँ बिन पानी मछली होय

~#तुषारापात

Thursday, 2 July 2020

हो गए कलंदर निकले जब घर से

वक़्त का अच्छा पता चलता है ग़ज़र से 
कटता है बुरा वक्त दुआओं के असर से 

बेटों ने सिखाया के परिंदे छोड़ जाते हैं 
आख़िरी पत्ता जब ख़र्च हो जाये शजर से 

खट्टा हो जाता है मन गाँव के गन्नों का 
टॉफियाँ लाते हो जब भर भर के शहर से 

आँगन में बन गये उसके चार गुसलख़ाने 
ज़िंदगी कट रही है उसकी अच्छी बसर से 

पहुँच जाता है जब नई मंज़िलों पे कोई
तो नाता तोड़ लेता है पुरानी हर डगर से 

पूरे कहाँ हुये अभी उसके नौ सौ चूहे 
उसे अभी क्या मतलब हज के सफ़र से 

सीने से लिपटा के थे सोये किताब 'तुषार'
हरजाई लिखे जाओगे क़लम की नज़र से

~#तुषारापात

Wednesday, 1 July 2020

गिरा आदमी

झुक के उठाने की जो उसे कोशिश करोगे 
क़द जताने आये हो कहेगा वो गिरा आदमी

~#तुषारापात

Tuesday, 30 June 2020

हथेली पे साँप-सीढ़ी

माना उसने हथेली पे साँप-सीढ़ी बिछाई है
पर उँगलियों के पोरों पे तो गिनती बिठाई है

#बारह_पोर_पौ_बारह
~#तुषारापात

Monday, 29 June 2020

पाठकों का सुरुर, कलम क्यों मगरूर

सुरुर तुममें है, नशीली बात, न मेरी क़लम से निकले
मेरी हस्ती है राख सी, जो तुम्हारी, चिलम से फिसले

अपने सभी पाठक-पाठिकाओं के लिए🙏
~#तुषारापात 

Friday, 26 June 2020

बंटवारा

बंटवारे के बाद दो भाई सीलन से परेशान हैं 
गले लग के रोतीं हैं दीवारें दो बहनों की तरह 

#तुषारापात

Wednesday, 24 June 2020

अनुवाद :'Stopping by woods on a snowy evening'

है जिसका अरण्य यह, उससे मेरा है परिचय  गृह,उसका इसी ग्राम में,वन में मेरा है आश्रय 
सोचा भी न होगा उसने, रुक के मापूँगा कभी मैं 
अरण्य ने उसके, कितना किया है हिम संचय 

मेरे अश्व की सीमित बुध्दि पा रही इसे बड़ा विचित्र
ठहरना वहाँ जहाँ नहीं भौतिकता का एक भी चित्र 
पत्रहीन वृक्षों और अकड़ी हुई झील के मध्य, क्यों 
वर्ष की सबसे साँवली संध्या को बना मैं बैठा मित्र 

वो अपने सिर को नहीं नहीं के भाव में रहा झुला
ग्रीवा पे बँधी घण्टी की ध्वनि से भूल मेरी रहा बता 
स्फुरित वृक्षों से उत्पन्न वायु का प्रवहण, कानों तक
हिम के गिरते सूक्ष्म पतरों की ध्वनि रहा पहुँचा

सघन गहन यह अरण्य शांत संन्यासाश्रम सम 
पर प्रत्येक वचन को पूर्ण करना है प्रथम धर्म 
मृत्यु से पहले मोक्ष के लिये करने हैं कई कर्म
मृत्यु से पहले मोक्ष के लिए करने हैं कई कर्म 

~तुषार सिंह #तुषारापात

☝️Translation of The poem 
'Stopping by woods on a snowy evening' 

Whose woods these are I think I know.
His house is in the village though;
He will not see me stopping here
To watch his woods fill up with snow.

My little horse must think it queer
To stop without a farmhouse near
Between the woods and frozen lake
The darkest evening of the year.

He gives his harness bells a shake
To ask if there is some mistake.
The only other sound’s the sweep
Of easy wind and downy flake.

The woods are lovely, dark and deep,
But I have promises to keep,
And miles to go before I sleep,
And miles to go before I sleep.

~by Robert Frost.








Thursday, 18 June 2020

जेठ भी देवर की तरह मनचला निकला

धूप सख़्त न थी,आसमाँ से,मचलता सावन फिसला 
इस बरस, जेठ भी, देवर की तरह, मनचला निकला 

~#तुषारापात

Tuesday, 16 June 2020

सितारे नजूमियों को चुभते हैं

कमाल नहीं ये क़हर है उनपर 
आसमानी आवाज़ें जो सुनते हैं 

रात ओढ़ती है चाँदनी की चुनरी 
और सितारे नजूमियों को चुभते हैं 

#तुषारापात

Sunday, 14 June 2020

यार सुशांत

कभी हम जान न पाए खुशनुमा नहीं वो मंज़र थे 
मुस्कुराते लबों की पीठ पे  घुपे बत्तीसों ख़ंजर थे 

#तुषारापात 😔

Friday, 15 May 2020

लॉक इज फीलिंग डाउन

"तुम इतना बदल जाओगी मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था ...पहले..हर रात...जाने से ठीक पहले...तुम..दुनिया से अपनी नज़रें चुराती हुईं...मुझे कितनी कसके.. प्यार से छूतीं थीं... मानो.. तसल्ली करतीं थीं कि मैं रात भर की तुम्हारी जुदाई बर्दाश्त कर भी पाऊँगा...या कहीं तुम्हारी यादों के ग़म के बोझ से टूट तो नहीं जाऊँगा..कभी कभी तो तुम मुझे दो दो बार छूकर अपना हाथ माथे पर लगातीं थीं.. उफ्फ... उस समय ऐसा लगता था जैसे कोई नवविवाहिता अपने पति के पैर छूकर अपना हाथ माथे पर लगा रही हो..  लेकिन अब.. अब तो तुम मुझे छूने क्या ...देखने भी नहीं आतीं।"

"तुम्हारे जाने के बाद..पूरी रात मैं गर्दन टेढ़ी किये लेटा हुआ बस चाँद को देखता रहता था...और चाँद की चाल देखकर हिसाब लगाया करता था कि सुबह होने में और कितनी देर है.. तुम वहाँ गुलगुले बिस्तर पर चैन से सोती थीं और मुझे यहाँ किसी कंकड़ पत्थर की तकिया लगानी पड़ती थी... लेकिन वो कंकड़ भी मुझे उम्मीद के चमकते किसी सितारे से कम नहीं लगा करता था... कोई कोई रात तो बारिश इतनी ज्यादा हो जाया करती थी कि भरे पानी के कारण साँस लेना दूभर हो जाता था लेकिन.. तब भी सुबह के बाद तुम जब आती थीं तो मैं तुम्हें मुस्कुराता हुआ मिलता था..।"

"उफ्फ वो सुबहें कितनी हसीन हुआ करतीं थीं.. जब तुम मेरी नाभि में गुदगुदी करके मुझे जगाया करती थीं और मैं जकड़ी हुई अपनी बाँह को खोलकर एक भरपूर अंगड़ाई लेते हुए तुम्हारे हाथों में हुआ करता था... लेकिन तुम निष्ठुर! मेरी बाँह को फिर से मरोड़कर बाँध दिया करतीं थीं और मुझे एकदम से उठा देतीं थीं.. इतने भर से मैं मानो सातवें आसमान पर हो जाया करता था.. तुम्हें भले ही वो ऊँचाई ज्यादा न लगे लेकिन आसपास गुजरते लोगों के कद से भी मैं ऊँचा हो जाया करता था.. रातभर आते जाते चंद लोगों के गंदे जूते चप्पलों के देखने के बाद..लोगों के सिरों को अपने से नीचे देखने का वो नज़ारा मेरे लिए जन्नत सा हुआ करता था इसलिए मैं तुम्हारा शुक्रिया मन ही मन अदा करता न थकता था.."

"चौबीस घण्टो में बस दो बार की तुम्हारी वो छुअन मुझमें इतनी लहरें पैदा कर दिया करती थी... कि मैं दिन में..शान से हवा में झूमा करता था और..रातों को.. चौकीदार के डंडे फटकने की आवाज़ के साथ अपने सिर से शटर को थपक थपक के रोज एक नया संगीत बनाया करता था.. लेकिन हाय रे मेरी फूटी किस्मत.. मेरा विरह भरा वो संगीत तुम्हारे कानों तक कभी पहुँचा ही नहीं.. मेरे दर्द भरे संगीत को बस भौंकते हुए कुत्तों के स्वर ही मिले।"

"तुम्हें याद तो होगा...एक बार तुम्हारी सहेली ने मुझे छूने की कोशिश की थी... लेकिन मैंने एक बार भी उसके लिए अपनी बाहें नहीं खोली....उसने कसके मुझे अपनी गिरफ्त में ले लिया था और जब मैं उसकी गिरफ्त से निकलने की कोशिश करने लगा था तो.. तो गुस्से में आकर उसने मुझपर पर एक बड़े पत्थर से हमला कर दिया था.. मैं अपना सर जोर जोर से पटकने लगा था जिसकी तेज होती आवाज़ को सुनकर वो डरकर भाग गई थी.. बाद में तुमने अपनी उस सहेली को पुलिस में दे दिया था.. हाय कितना प्यार किया करतीं थीं तुम मुझसे.. लेकिन अब क्या हुआ.. आज पचासवाँ दिन हो गया तुम्हें देखे हुए... कहाँ हो तुम.. इतनी बेरुखी अच्छी नहीं.. मेरी बाँह जकड़ के रह गयी है... अंगड़ाई लिए भी एक अरसा हो गया... तुम्हारे ग़म में मैं बहुत डाउन  फील करने लगा हूँ.. मेरा उतरा हुआ चेहरा देखकर लोग अब मुझे चिढ़ाने लगे हैं.. आज ही एक आवारा सा दिखने वाला लड़का तुम्हारी दुकान का बोर्ड पढ़कर मुझे लात मारते हुए यह सुना के चला गया... साला ब्यूटी पार्लर का इतना बदसूरत ताला।"

~ तुषार सिंह #तुषारापात 





Monday, 11 May 2020

खाली हाथ

नहीं 
तुमसे नज़र मिला के 
सच बोलने की 
कोशिश कभी नहीं की 
मानो कोई पिता 
न दिखाना चाहता हो 
अपने 
खाली हाथ

~ #तुषारापात

Saturday, 9 May 2020

रौशनी का कारखाना

झालरों से अपने घर की तू दीवारें सजा रहा है 
घरों के चराग़ बुझा के मगर सितारे बना रहा है 

~ तुषारापात

Wednesday, 29 April 2020

मदारी

तू मदारी है मगर ठीक नहीं ये तेरा तमाशा 
कोई अपने जमूरे को यूँ गायब करता है क्या 

#तुषारापात

Wednesday, 22 April 2020

कारोबार

मेरी कलम से बहुतों का कारोबार चलता है 
मैं वो आदमी हूँ जो दीवारों पे इश्तिहार लिखता है 

#तुषारापात® 

Saturday, 14 March 2020

आँखों की मछलियाँ आंखों के जाल

रात-रात जागकर
यूँ ही नहीं 
अपनी आँखों में 
लाल डोरे थे उगाए

आँखों की 
तुम्हारी मछलियाँ 
पकड़ने को 
हमने जाल हैं बनाये

#तुषारापात®

Wednesday, 4 March 2020

इश्क़ ऑफ व्हाइट

"आचार्य! क्या आप प्रेम को सामान्य शब्दों में समझा सकते हैं?"

"प्रेम में 'मेरी कमीज़ तुमसे उजली है' ये नहीं होता, 'मुझे तुम ऑफ-व्हाइट शर्ट में अच्छे लगते हो' यह प्रेम है। 

#तुषारापाती_तैंतीसी 

Friday, 21 February 2020

रात एक नदी है

सितारे बिखरे पड़े हैं 
टूटे हुए पुल के टुकड़ों जैसे 
एक ओर मैं 
एक ओर ख़्वाब मेरे हैं 
डूबतीं नावों की 
थकी थमी पतवारों जैसीं पलकें 
आँख झपकती नहीं है 
रात जैसे एक नदी है

#तुषारापात®

Thursday, 13 February 2020

मर के सितारा होना

बाद मरने के 
भी क्या मिटेंगें, ये फासले
तुम किसी और 
हम किसी और 
नक्षत्र के, सितारे होंगें।
~तुषारापात®

Wednesday, 5 February 2020

पंच महाभूत

अंतरिक्ष भेदकर 
भेद जानना जान गए
विमानों से 
वायु की विमाएं माप गये 

अग्नि को साध लिया 
आठ आने की डिबिया में 
जल से विद्युत उपजाई 
बाँधों की बागी बगिया में 

पाये अन्न, रत्न, ईंधन 
कर धरती का दोहन 
पंच महाभूत हैं तेरे, ईश!
मानव-भविष्य के साधन?

#तुषारापात®

Monday, 3 February 2020

बेरंग

डाकियो के 
नाम नहीं होते 
नाम तो 
चिट्ठियों पे होते हैं 
और कुछ चिट्ठियाँ 
होतीं हैं बस नाम की 
इसीलिए 
डाकिए गुमनाम हैं।

#तुषारापात®

Wednesday, 22 January 2020

आये तुम याद मुझे...

आए तुम याद मुझे, गाने लगी हर धड़कन
ख़ुशबू लाई पवन, महका चंदन

कुछ पल यादों के चाक घुमायें 
कुछ पल तन की मिट्टी पिघलायें 
और दिल बन जाये खाली बर्तन 
आए तुम याद मुझे...गाने लगी हर धड़कन

जब मैं शामों के पन्ने सिलती हूँ 
और तेरे बोलों को फिरसे बुनती हूँ 
लगे मुझे हर लम्हा तेरी कतरन 
आए तुम याद मुझे...गाने लगी हर धड़कन

नदिया से जैसे धरती कटती है 
तिल तिल वैसे ही कोई मरती है
करदे अब तो तू उसका तर्पण 
आए तुम याद मुझे...गाने लगी हर धड़कन..

~तुषार सिंह #तुषारापात®

Thursday, 16 January 2020

चराग़ तले अंधेरा

जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटायेगा 
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता
~वसीम बरेलवी

सफेदपोशों की होती काली परछाइयाँ 
चराग़ तले अँधेरा खामखाँ नहीं होता 

~तुषारापात  #तुषारापात®

Wednesday, 15 January 2020

सौंदर्य किस पंक्ति में?

मुझे
अच्छा लगता है 
ऐसी कविताएं लिखना 
जिनमें 
पूरी कविता का सौंदर्य
उतर के आये, उभर के आये
अंतिम पंक्ति में,किंतु 
प्रकाशक माँगता है
मुझसे 
प्रथम पंक्ति में ही
काव्य का सारा सौंदर्य 
लोग 
मुख का तेज देखकर ही 
पैर छूने को झुकते हैं।

~तुषार सिंह #तुषारापात®

Wednesday, 1 January 2020

घड़ी की कुंडली

घड़ी के ठुमकते
तीन काँटें
कुंडली में नाचते
नौ ग्रह
बता देते हैं कि
तुम्हारे
बारह बजे हैं
या तुम्हारी
पौ बारह है।

~तुषारापात