वक़्त का अच्छा पता चलता है ग़ज़र से
कटता है बुरा वक्त दुआओं के असर से
बेटों ने सिखाया के परिंदे छोड़ जाते हैं
आख़िरी पत्ता जब ख़र्च हो जाये शजर से
खट्टा हो जाता है मन गाँव के गन्नों का
टॉफियाँ लाते हो जब भर भर के शहर से
आँगन में बन गये उसके चार गुसलख़ाने
ज़िंदगी कट रही है उसकी अच्छी बसर से
पहुँच जाता है जब नई मंज़िलों पे कोई
तो नाता तोड़ लेता है पुरानी हर डगर से
पूरे कहाँ हुये अभी उसके नौ सौ चूहे
उसे अभी क्या मतलब हज के सफ़र से
सीने से लिपटा के थे सोये किताब 'तुषार'
हरजाई लिखे जाओगे क़लम की नज़र से
~#तुषारापात
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