जाने क्यों उस दिन आसमान गुलाबी था?...हवा-ए-इश्क जिस्म की पाँचों खिड़कियों से गुज़र के तुम्हें हवामहल बनाये थी...लाज के पत्ते अपनी शाख छोड़ रहे थे...नारंगी सूरज आँखों में डूब सुरूर के लाल डोरे तैरा रहा था..आदमी जब इश्क में जयपुर बना हो तो...कानपुर का काला आसमान भी उसे गुलाबी दिखाई देता है।
-तुषारापात®
तुषार सिंह 'तुषारापात' हिंदी के एक उभरते हुए लेखक हैं जो सोशल मीडिया के अनेक मंचों पे बहुत लोकप्रिय हैं इनके लिखे कई लेख, कहानियाँ, कवितायें और कटाक्ष सभी प्रमुख हिंदी अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं तथा रेडियो fm पर भी कई कार्यक्रमो के लिए आपने लिखा है। कुछ हिंदी फिल्मों के लिए आप स्क्रिप्ट भी लिख रहे हैं। आप इन्हें यहाँ भी पढ़ सकते हैं: https://www.facebook.com/tusharapaat?ref=hl
Thursday 4 May 2017
गुलाबी
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इधर की उधर
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