Friday 8 December 2017

कनक का अनमोल रजत

"तुम्हें लिखना नहीं छोड़ना चाहिए था...कॉलेज के दिनों की तुम्हारी कविताएं.. आज तक जहन में घूमती हैं... खास तौर पे वो तुम्हारी गोल्डन कश वाली कविताएं... रजत.. आज भी जब पढ़ती हूँ तो ऐसा लगता है मानो सुलगते हुए लफ़्ज़ों पे... एहसासों की ओस का छींटा पड़ रहा हो और छुन्न की आवाज पूरा गुजरा वक्त भीतर खनखना जाती हो... अगर तुम लिखते रहते तो इलाहाबाद तुम्हारे नाम से जाना जाता" आनंद भवन के लॉन में बैठी घास के एक तिनके को उखाड़ते हुए कनक ने कहा

रजत ने उसके हाथ से उखड़ा हुआ तिनका लिया और उसे मिट्टी में फिर लगाने की कोशिश करते हुए बोला "अब वो छुन्न की आवाज मैं रोज सुनता हूँ होटल के किचेन में..जब डिश बनाने के बाद..बेसिन में पॉट डुबो देता हूँ..कनक पेट की आग..कलम की क्रांति की मशाल से बड़ी होती है..बहुत बड़ी..शौहरत से दिमाग की भूख शांत होती है पेट की नहीं..और लिखता रहता तो क्या..बस दो चार सम्मान की शॉल मिल गईं होतीं..फटा कुर्ता छुपाने को"

कनक ने तिनके के चारों ओर मिट्टी को दबाते हुए कहा "और दिल की भूख?...अब तो सब ठीक है अब फिर से राइटिंग स्टार्ट कर दो..शेफ रजत केसरवानी साहब"

"एक बार उखड़ा हुआ पौधा तो फिर से मिट्टी में जम सकता है पर पेड़ नहीं" रजत ने तिनके को जमाते हुए कहा

"आह..क्या पंच लाइन मारी है..टाइमिंग है अभी भी तुममें..राइटर जिंदा है कहीं" कनक उसकी कही पंक्ति पे निहाल होने की ओवर एक्टिंग करते हुए आगे बोली "शादी के पहले तो बहुत लिखते थे.. शादी के बाद क्या हो गया..या मुझसे शादी नहीं होती तो लिखते.. कोई गम कोई दर्दे दिल का बहाना नहीं रहा...क्यों रॉकस्टार?"

रजत रॉकस्टार फिल्म याद करते हुए हँसते हुए बोला "हाँ शादी के बाद तुम्हारे माथे की लाल बिंदी ने सारी कल्पनाओं पे फुल स्टॉप जो लगा दिया"

"हाऊ..क्या वाकई में...क्या तुम्हारे राइटिंग छोड़ने की वजह सच में..मैं हूँ.." कनक ने घास पे अपनी मुठ्ठी कसते हुए कहा

रजत ने घास को उससे छुड़ाया और उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर मुस्कुराते हुए बोला "लगता है अब मेरे जोक्स में धार नहीं रही.."

"रहने दो..अब मैं तुमसे बात तभी करूँगी जब तुम राइटिंग छोड़ने का कारण बताओगे.." कनक ने हाथ छुड़ाया और दूसरी ओर घूम के बैठ गई

रजत घास पे पसरते हुए बोला "कनक..तुम्हारे पापा से जब मैं तुम्हारा हाथ माँगने गया था तो उन्होंने पूछा था कि मैं करता क्या हूँ और मेरे राइटर कहने पे उन्होंने कहा था कि हाँ हाँ ठीक है लिखते हो..पर काम क्या करते हो.. तो मैं कुछ जवाब नहीं दे पाया था..अपनी सबसे फेमस कविता भी उन्हें सुनाई थी..सुनकर उन्होंने बस ये कहा था कि बच्चन नाम से अमिताभ जाना जाता है हरिवंश नहीं..और उठकर चले गए थे"

"तो क्या हुआ..मैंने तो तुम्हारा साथ दिया..शादी की न..उनकी मर्जी के बगैर...और देखो सबकुछ अच्छा ही रहा..वो भी आज कितने खुश हैं हम दोनों को खुश देख के..ये बात तो मैं जानती ही थी..इसमें नया क्या बताया" कनक ने मुँह फेरे हुए ही कहा

"उन्होंने ये भी कहा था..कनक बहुत ऐशो आराम से पली बढ़ी है.. रजत और कनक के मोल का अंतर तो तुम्हें पता होगा ही" रजत उठकर अपना स्वेटर उतारते हुए बोला

कनक उसकी ओर घूमी और उसके हाथ से स्वेटर ले कर अपने सिर को ढकते हुए बोली "हम्म..तुमने ये बात आजतक क्यों छुपाई..खैर अब तो लिख सकते हो..फिर से शुरू करो..सरस्वती का वरदान सबको नहीं मिलता"

"तुम्हें याद है..शादी के बाद घर में सब एक साल तक गंगा में जाने को मना कर रहे थे..." रजत इतना ही कह पाया था कि कनक उसकी बात काटते हुए बोली "हाँ..तुम फिर भी..मुझे नाव से संगम ले चले थे..कितनी बढ़िया शाम थी..गंगा यमुना की तरह हम भी एक हो गए थे.."

रजत ने उसका हाथ थामते हुए कहा "हाँ..और गंगा जमुना के उस मिलन में..सरस्वती कहीं लुप्त थी..नाव में बैठा मैं..दूसरी ओर तुम्हें देख रहा था..फीका नारंगी सूरज .. तुम्हारी सुर्ख लाल बिंदी को देख सकुचाते हुए पानी में गड़ा जा रहा था..बस मैंने तभी डिसाइड कर लिया था कि..तुम्हारी माँग के सिंदूर को तुम्हारे पापा के आगे फीका नहीं पड़ने दूँगा..सरस्वती से मुख पे तेज आता है पर चेहरे पे चमक लक्ष्मी आती है..और..तब..चुपके से..तुम्हारी नज़र बचा के अपना फेवरिट पेन जिससे लिखना मुझे बहुत पसंद था..वहीं जल में छोड़ आया था...शायद त्रिवेणी पूरी करने को संगम में सरस्वती घोल आया था।"

कनक मुद्राओं की चमक के आगे नाचते संसार को रजत हँस मटमैला दिखता है।

#कनक_का_अनमोल_रजत
#तुषारापात®

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